राजपथ - जनपथ
मोदी की सभा और तनाव
पीएम नरेंद्र मोदी की शुक्रवार को सभा के लिए भीड़ को लेकर भाजपा के रणनीतिकार चिंतित हैं। पार्टी ने एक लाख से अधिक लोगों को लाने की योजना बनाई है। मगर मौसम की बेरुखी आड़े आ सकती है।
सभा के लिए सबसे ज्यादा भीड़ लाने की जिम्मेदारी रायपुर, और आसपास के नेताओं पर है। अगर टारगेट के मुताबिक भीड़ आई, तो मैदान में जगह कम पड़ जाएगी। रायपुर की चारों विधानसभा सीट से करीब 75 हजार लोगों को लाने का लक्ष्य है। इसके लिए पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, और अन्य नेता लोगों को आमंत्रित करने पीला चावल लेकर गली मोहल्लों में घूम रहे हैं।
बिलासपुर संभाग से 25 हजार, और बस्तर-सरगुजा से 25 हजार लोगों को लाने की जिम्मेदारी दी गई है। चूंकि सभा सुबह है इसलिए बाहर से हजारों लोगों को लाने का इंतजाम किया गया है। कुल मिलाकर भीड़ जुटाने के लिए इतनी मशक्कत पहले कभी नहीं हुई।
खास बात यह है कि कुछ दिन पहले शहडोल में पीएम की सभा में अपेक्षाकृत भीड़ नहीं आ पाई थी। इससे हाईकमान खफा है, और यही वजह है कि पीएम की इस सभा पर हाईकमान भी नजर गड़ाए हुए हैं। ऐसे में यहां के रणनीतिकारों का चिंतित होना स्वाभाविक है।
शाह के साथ बंसोड़
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह यहां आए, तो उनके साथ छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस नीरज बंसोड़ भी थे। नीरज केन्द्रीय गृहमंत्री के ओएसडी हैं। वो कुछ महीना पहले ही केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर गए थे, और फिर उनकी पोस्टिंग केन्द्रीय गृह मंत्री के ऑफिस स्टॉफ में हुई।
नीरज जांजगीर-चांपा कलेक्टर रहे हैं। इसके अलावा भूपेश सरकार में भी करीब तीन साल डायरेक्टर हेल्थ के पद पर रहे हैं। नीरज यहां आए, तो कई भाजपा नेता उनसे संपर्क के लिए कोशिश करते रहे।
कुछ तो अमित शाह के दौरे के प्रयोजन की जानकारी के लिए उनके ऑफिस संपर्क करते रहे। मगर उनसे कोई विशेष मदद नहीं मिल पाई। शाह चुनिंदा नेताओं के साथ बैठक की, और चुनाव तैयारियों को मार्गदर्शन देकर निकल गए।
टमाटर का महानगरों से मुकाबला
देशभर में सब्जियों का थोक, चिल्हर भाव बताने वाली एक भरोसेमंद वेबसाइट के मुताबिक आज मुंबई में टमाटर का दाम अधिकतम 103 रुपये है। दिल्ली, चेन्नई में भी दाम रायपुर के मुकाबले कुछ कम ही हैं। कोलकाता में जरूर यह 123 रुपये बता रहा है। बाकी सब्जियों के दाम भी रायपुर के मुकाबले कम ही हैं। रायपुर में रेट 107 बताया जा रहा है पर वास्तव में यह 120 रुपये और कहीं-कहीं उससे अधिक है। खेतों बाडिय़ों से महानगर में खाने-पीने की चीजें पहुंचाने पर भाड़ा खर्च अधिक होता है। वहां जीवन-यापन के लिए भी खर्च अधिक करना पड़ता है इसलिये हर चीज महंगी हो सकती है। रायपुर उनके मुकाबले छोटा शहर है। फिर छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर सब्जियां उगाई भी जाती हैं। यह जरूर हुआ है कि देर से आए मॉनसून ने सब्जी उत्पादकों को काफी नुकसान पहुंचाया, उत्पादन भी घटा। टमाटर सहित कई सब्जियां दूसरे राज्यों से आ रही है। पर थोक व चिल्हर बाजार में जो अंतर दिखाई दे रहा है वह सब्जी महंगी होने का बड़ा कारण है।
थोक बाजार से चिल्हर बाजार तक पहुंचने पर गाड़ी भाड़ा, हमाल की मजदूरी, उतारने चढ़ाने के दौरान हुआ नुकसान, चबूतरे का किराया और नगर निगम का टैक्स शामिल होता है। यह खर्च अलग-अलग सब्जियों के हिसाब से प्रति किलो 5 रुपये से अधिकतम 10 रुपये किलो तक हो सकता है। पर अभी यह हो रहा है कि मंडी में जो टमाटर 65 से 75 रुपये के बीच उपलब्ध है वह चिल्हर विक्रेताओं के पास 110, 120 रुपये में मिल रहा है। इतना अधिक अंतर। अधिक मुनाफा लेने के पीछे चिल्हर विक्रेताओं का अपना तर्क है। वे कह रहे हैं कि महंगाई के कारण बिक्री घटी है, पर कम बिक्री में अपनी आमदनी तो घटा नहीं सकते। पहले जो मुनाफा 500 किलो बेचने पर मिलता था, उसे 50 किलो में ही निकालना पड़ रहा है। वैसे अगस्त अंत तक यही कीमत बने रहने के आसार हैं।
छत्तीसगढ़ की स्लीपर बसें..
लंबे सफर को आरामदायक बनाने के लिए लक्जरी बसों में जो स्लीपर सीट की व्यवस्था की जाती है वह मुसीबत आने पर कितनी जानलेवा हो सकती है, यह नागपुर से पुणे जा रही बस के दुर्घटनाग्रस्त होने से पता चलता है। यह बस देर रात बुलढाणा के पास एक डिवाइडर से टकरा गई थी, जिसके बाद उसमें आग लग गई। 8 लोगों की जान बच पाई, 26 बस के अंदर ही झुलसकर मारे गए। छत्तीसगढ़ के कई शहरों से चलने वाली रात्रिकालीन बसों में स्लीपर सीट की व्यवस्था है। रायपुर, बिलासपुर, जशपुर, अंबिकापुर, जगदलपुर से 400-500 किलोमीटर की दूरी तक चलने वाली बसें हैं। ये बसें कोलकाता, नागपुर, पुणे तक के लिए भी मिलती हैं। दुर्घटनाग्रस्त नागपुर-पुणे बस के मामले में यह पाया गया कि स्लीपर सीट पर सोये यात्री भीतर ही फंस गए थे। स्लीपर सीटों के चलते बस में चलने-फिरने बाहर निकलने की जगह बहुत कम होती है। यह इतना असुविधाजनक होता है कि बहुत से लोग स्लीपर सीट ऑफर करने पर भी नहीं लेते और बैठने वाली सीट ही मांगते हैं। इन बसों के ड्राइवर पूरी रात गाड़ी चलाते हैं। उन पर दबाव होता है कि झपकी भी आ रही हो तो समय पर गंतव्य तक पहुंचा दें, क्योंकि दूरी लंबी होती है। स्लीपर सीट की व्यवस्था भी इसीलिये की जाती है। स्लीपर सीट बसों में जिस जगह पर होती है, वहां इमरजेंसी एग्जिट की कोई व्यवस्था नहीं होती। महाराष्ट्र जैसे एक दो राज्यों में नियम बनाकर ऐसी बसों में अधिकतम 30 सीटों की अनुमति दी गई है। छत्तीसगढ़ सहित अधिकांश राज्यों में परिवहन विभाग ने इन बसों के यात्रियों की सुरक्षा को लेकर कोई पहल नहीं की है। कई जानकार बसों में स्लीपर सीट की सुविधा बंद करने की मांग भी कर रहे हैं।