राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : चुनाव तक आना-जाना लगा रहेगा
08-Jul-2023 3:45 PM
राजपथ-जनपथ : चुनाव तक आना-जाना लगा रहेगा

चुनाव तक आना-जाना लगा रहेगा 

अमित शाह ने खुद आगे आकर छत्तीसगढ़ भाजपा के चुनाव की कमान संभाल लिया है। पार्टी ने मोदी, और शाह के करीबी केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया को सह चुनाव प्रभारी बनाया है। इसका अंदाजा उस वक्त लग गया था जब शाह ने 4 तारीख की रात पार्टी दफ्तर में प्रदेश के चुनिंदा भाजपा नेताओं के साथ मीटिंग की थी, उसमें मंडाविया भी थे।

मंडाविया, शाह के साथ ही पार्टी दफ्तर में ही रात रूके थे। शाह के जाने बाद भी मंडाविया यहां रूके रहे। और मोदी की सभा निपटने के बाद ओम माथुर के साथ चुनाव तैयारियों को लेकर औपचारिक मीटिंग की। इसके बाद ही दिल्ली गए।

सुनते हैं कि पार्टी हाईकमान को मध्यप्रदेश से ज्यादा उम्मीदें नहीं है। ऐसे में छत्तीसगढ़ में हर हाल में सरकार की वापिसी के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। शाह 14 जुलाई को फिर आ रहे हैं। उनके साथ मंडाविया भी होंगे। यानी शाह-मंडाविया का चुनाव तक आना-जाना लगा रहेगा।

डिप्टी कहाँ बैठेंगे?

टीएस सिंहदेव के डिप्टी सीएम बनने के बाद विधानसभा के आखिरी सत्र में सदन के भीतर की बैठक व्यवस्था में बदलाव के संकेत हैं। कहा जा रहा है कि सिंहदेव अब सीएम भूपेश बघेल के बगल की सीट पर बैठेंगे। खबर है कि विधानसभा सचिवालय ने नई बैठक व्यवस्था पर संसदीय कार्य विभाग से राय भी मांगी है।

सदन में सीएम के बगल की सीट अब तक खाली रही है। सिंहदेव भी प्रथम पंक्ति में संसदीय कार्यमंत्री रविन्द्र चौबे के साथ बैठते रहे हैं। बैठक व्यवस्था में बदलाव दिवंगत विधायक विद्यारतन भसीन की वजह से भी हो रहा है। भसीन विपक्षी विधायकों के साथ बीच की सीट पर बैठते थे।

दूसरी तरफ, डिप्टी सीएम के रूप में सिंहदेव भले ही कोई अतिरिक्त सुविधाओं की पात्रता नहीं रखते हैं, लेकिन सरकार और आम लोगों के बीच उनकी हैसियत बढ़ी है।

मोदी के मंच पर पहुँचने की दिक्कत 

कोरोना केस भले ही नगण्य हो गए हैं, लेकिन पीएम के कार्यक्रम को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरती गई। पीएम के साथ मंच पर रहने वाले सभी नेताओं का पहले आरटीपीसीआर टेस्ट कराया गया था, और रिपोर्ट निगेटिव होने के आने बाद ही उन्हें मंच पर बैठने की अनुमति मिली। यही नहीं, कई ऐसे नेता थे तमाम कोशिशों के बाद भी मंच पर आने की अनुमति नहीं मिल पाई। इनमें युवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष कमलचंद्र भंजदेव और पूर्व सांसद दिनेश कश्यप भी थे। वो अपना परिचय देकर किसी तरह मंच पर जगह पाने की कोशिश में लगे थे लेकिन एसपीजी ने तुरंत उन्हेें वहां से हटने के लिए कह दिया। उन्हें आम कार्यकर्ताओं के बीच में बैठना पड़ा।

इन सबके बीच जिले के दो महामंत्री सत्यम दुआ और रमेश ठाकुर मंच पर न सिर्फ पूरे समय तक मौजूद रहे बल्कि पीएम के लिए फूल-माला लाने की पहुंचाने की जिम्मेदारी उन पर थी। दुआ, पूर्व मंत्री राजेश मूणत के करीबी माने जाते हैं और उन्होंने पहली बार महत्वपूर्ण कार्यक्रम में अहम जिम्मेदारी निभाई। ऐसे में उनका खुश होना लाजमी है। 

खौफ के माहौल में प्रवेशोत्सव

इन दिनों शाला प्रवेशोत्सव की जगह जगह से सुंदर-सुंदर तस्वीरें आ रही है। सरकारी स्कूलों के बच्चे अपने शिक्षकों और स्थानीय नेताओं के हाथों से अभिनंदित होकर खुश हैं। मध्याह्न भोजन में पुलाव, खीर, पनीर की सब्जी, हलवा मिल रहा है। नई किताबें, नए जूते, स्कूल यूनिफार्म मिल रहे हैं और बच्चों की आंखों में सुनहरा भविष्य तैर रहा है। पर जो तस्वीर नजर नहीं आ रही है, वह यह है कि जिन स्कूल भवनों में इनकी पढ़ाई हो रही है वे जर्जर और असुरक्षित हैं। 

सूरजपुर जिले के मलगा गांव में बच्चे फर्श पर बैठकर पढ़ाई कर रहे थे। उसी दौरान बिल्डिंग की छत से प्लास्टर के टुकड़े गिरने लगे। बच्चों ने बाहर भागकर जान बचाई। शिक्षक ने भी उन्हें खींचते हुए बचा लिया। सभी सुरक्षित बाहर आ गए। गनीमत, किसी को चोट नहीं आई। यहां तीसरी और चौथी कक्षा के मासूम बच्चे पढ़ रहे थे।

इसी सरगुजा के बलरामपुर जिले मे वाड्रफनगर ब्लॉक स्थित ग्राम कोटी के स्कूल परिसर में दोपहर के अवकाश के दौरान यहां खेल रहीं एक साथ 3 बच्चियां एक शटर से चिपक गए। उसमें करंट प्रवाहित हो रहा था। 6 और 9 साल की इन तीनों बच्चियों को बेहोश हो जाने पर अस्पताल लाया गया, जिनमें से एक की मौत हो गई। 

दो साल पहले बिलासपुर जिले के सीपत में ठीक स्कूल परिसर में बिजली गिरने से 11 बच्चे झुलस गए थे, जिनमें एक छात्र की मौत हो गई थी।

प्राथमिक स्कूलों के भवन का निर्माण प्राय: पंचायत करती है। मगर स्कूल खुलने के बाद में शिक्षा विभाग के अधीन आ जाता है। निर्माण इतना घटिया होता है कि एक भवन आठ 10 साल भी नहीं टिक पाता। गांव के जनप्रतिनिधि अपने ही बच्चों के लिए अच्छा स्कूल उनकी चिंता नहीं करते। बिलासपुर की घटना के बाद सभी स्कूलों में अनिवार्य रूप से तडि़त चालक लगाने का निर्देश मुख्यमंत्री ने दिया था। कितनी जगह इसका पालन हुआ, कोई आंकड़ा नहीं है। 

स्कूल तक पहुंचने के रास्ते भी कीचड़ से भरे या जर्जर है। शौचालय की व्यवस्था नहीं, बाउंड्री वॉल नहीं है। 
ऐसे माहौल में शिक्षा विभाग और पंचायतों का पूरा जोर सिर्फ प्रवेश का जलसा मनाने की और है, और बच्चे जान को जोखिम में डालकर पढ़ाई कर रहे हैं।

अपना-अपना हिसाब-किताब

        

सरकारी आंकड़ों का मकडज़ाल जबरदस्त होता है। इनमें से अपनी पसंद के हिस्सों को उठाकर नाकामियों भी उपलब्धियों की तरह पेश किया जा सकता है। दूसरों की उपलब्धियों को अपना बताया जा सकता है। नक्सल हिंसा पर नियंत्रण लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार? दोनों की तरफ से कोशिशें की जाती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में बीते कुछ वर्षों के भीतर नक्सली हिंसा और मुठभेड़ कम हुई हैं। इसका श्रेय किसे मिलना चाहिए? कांग्रेस का आंकड़ा देखें तो लगेगा कि वह ठीक कह रही है। भाजपा को सुनें तो लगेगा यह भी सही है। 

7 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान भाजपा के आईटी इंचार्ज अमित मालवीय ने एक चार्ट जारी किया। इसने उन्होंने बताया कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान 1 मई 2005 से 30 अप्रैल 2014 तक बस्तर में नक्सली वारदातों की संख्या 4,645 थी। जब 1 मई 2014 को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी, तब से लेकर अप्रैल 2023 तक नक्सली वारदातों में 33.4 फीसदी की कमी आई और घटकर संख्या सिर्फ 3,093 रह गई। 

इसके जवाब में छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमेटी का ग्राफ जारी हुआ है। इसमें बताया गया है कि 2005 से 2014 तक 4,645 नक्सली वारदातें हुई। इसके बाद 2014 से लेकर 2018 के बीच 1,948 घटनाएं हुई। तब छत्तीसगढ़ में रमन सरकार थी। वहीं इसके बाद 2019 से 2023 की अवधि में भूपेश सरकार के दौरान घटनाएं सिर्फ 1,150 दर्ज हुई। 

अब यह आपके ऊपर हैं कि किसे कितने प्रतिशत श्रेय देना है। इन्हीं आंकड़ों से अंदाजा भी लगा लें  कि बस्तर में शांति स्थापित करने में कितना वक्त और लग सकता है।

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