राजपथ - जनपथ
कामयाब सभा का खर्च
पीएम नरेंद्र मोदी की सभा भीड़ भाड़ के मामले में काफी सफल रही। लेकिन पार्टी के कई लोगों के मुताबिक ये खर्चीला भी रहा। वह भी तब जब मंच आदि का खर्च केन्द्र सरकार की एजेंसी एनएचआईए ने वहन किया था। सभा से पहले पीएम का सरकारी परियोजनाओं का शिलान्यास-भूमिपूजन, और लोकार्पण कार्यक्रम भी था।
बताते हैं कि बारिश के मौसम में लोगों को लाने ले जाने में काफी खर्च करना पड़ा। चूंकि खेती-किसानी का सीजन चल रहा है। इसलिए ग्रामीण इलाकों से लोग आने के लिए इच्छुक नहीं थे। ऐसे में तो पार्टी के लोगों को सुदूर इलाकों में तो बकरा-भात पार्टी का आयोजन करना पड़ा। सभी इसलिए खुश थे कि बोरे बासी खाने के समय सभा के पहले सुबह ताजा लजीज खाना परोसा गया। खैर, सभा सफल हुई, तो प्रदेश प्रभारी ओम माथुर व सहप्रभारी काफी खुश नजर आए, और एक-दूसरे को बधाई भी देते दिखे।
सेल्फी विथ टमाटर...
टमाटर आम आदमी की पहुंच से बाहर नहीं हुई है। खरीदने की नहीं यहां सेल्फी की बात हो रही है। सोशल मीडिया पर यह तस्वीर कल से छाई हुई है। यह वेंडर परेशान हो गया होगा। टमाटर के साथ लोग सेल्फी लेकर बिना खरीदे निकल जाते होंगे। इसलिए उसने टमाटर के साथ-साथ सेल्फी का रेट भी लिख दिया है।
कलेक्टर के खिलाफ विधायक
चुनाव नजदीक आ गए हैं। ऐसे में विशेषकर सत्तारूढ़ दल के जनप्रतिनिधि अपने इलाके में पसंदीदा अफसरों की पोस्टिंग चाह रहे हैं। इसके लिए वो लगातार अनुशंसा पत्र भी लिख रहे हैं। इन सबके बीच एक महिला विधायक ने कलेक्टर को हटाने के लिए सीएम से गुजारिश भी की है।
पेंच यह है कि कलेक्टर का कामकाज ठीक ठाक रहा है, और रायपुर में अलग-अलग पदों पर रहकर कलेक्टर ने सबसे अच्छे रिश्ते बना लिए हैं। ऐसे में उन्हें हटाना आसान नहीं है।
चर्चा है कि पिछले दिनों कलेक्टर, और महिला विधायक को रायपुर बुलाकर शिकवा-शिकायतों को दूर करने के लिए पहल भी हुई है, लेकिन कहा जा रहा है कि अभी भी महिला विधायक पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। अब कलेक्टर रहेंगे या जाएंगे, यह तो कुछ दिन बाद ही पता चल पाएगा।
अब घोषणा पत्र की जिम्मेदारी किस पर?
मिशन 2023 के लिए जी-जान लगा रही भाजपा ने सांसद विजय बघेल को घोषणा पत्र समिति का संयोजक बना दिया है। इधर उपमुख्यमंत्री टी एस सिंहदेव ने एक बार फिर साफ किया है कि वे इस बार कांग्रेस घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष नहीं रहेंगे। रायपुर में जब पत्रकारों ने उनसे सवाल किया तो उन्होंने कहा कि इतना समय नहीं बचा है कि सभी से बात हो सके। सदस्य के रूप में जरूर काम कर लेंगे और फीडबैक देने के लिए भी पार्टी के साथ खड़े रहेंगे।
सरकार कह रही है कि उसने उसने सन् 2018 के चुनाव में किए गए 90 प्रतिशत वादे पूरे कर दिए हैं। सिंहदेव खुद सरकार के कामकाज की तारीफ कर रहे हैं। सिंहदेव को इस बात का श्रेय तो मिलना ही चाहिए कि उनके घोषणा पत्र ने 2018 का चुनाव जिताया और उस पर सरकार ने काम किया। इस साल 75 सीटें जीतने की यदि उम्मीद है तो इसका भी योगदान है। ऐसे में दोबारा घोषणा पत्र समिति का नेतृत्व करना तो पार्टी की उपलब्धि पर ही मुहर लगाने जैसा होगा। पिछली बार घोषणा पत्र समिति ने चुनाव आने के एक साल पहले से ही प्रदेश में दौरा शुरू कर दिया था। पर इस बार परिस्थितियां भिन्न हैं। सरकार जनता के संपर्क में है, मंत्री विधायक पहले से ही मैदान में हैं। इसलिये लोगों से बात करने के लिए समय कम होने की बात बड़ी नहीं है।
दूसरा पहलू यह है कि इन 54-55 महीनों में सिंहदेव को कई बार असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। जब लोगों ने उन्हें घेरकर चुनावी वायदों की याद दिलाई तो कहना पड़ा कि मैं घोषणा समिति का अध्यक्ष था, घोषणा पूरी करने का काम उनका नहीं, बल्कि मंत्रिपरिषद् का है। उलझन इसी में है कि क्या सरकार के दावे पर मतदाता भी मुहर लगाएंगे?
धान खरीदी में पैसा किसका?
भाजपा के इस दावे पर प्रदेश के मंत्रियों ने बार-बार ऐतराज किया है, जिसमें वे कहती है कि धान खरीदी के लिए पैसा केंद्र सरकार देती है। सात जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रायपुर की जनसभा में यही बात कही कि धान खरीदी के लिए केंद्र सरकार पैसा दे रही है। नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल ने कल फिर यही दावा किया कि खरीदी केंद्र के पैसे से हो रही है। यह भी कहा कि धान के लिए केंद्र अब तक छत्तीसगढ़ को 52 हजार 63 करोड़ रुपये दे चुकी है। जब मीडिया के सवालों में उलझ गए तब उन्होंने स्वीकार किया कि यह राशि राज्य से मिले चावल के एवज में दी गई है। उनकी बात से साफ हुआ कि यह केंद्र की ओर से मिल रहा कोई अनुदान नहीं है, इसके बदले में राज्य सरकार से चावल मिलता है।