राजपथ - जनपथ
महीनों बाद लुकआउट नोटिस !
आखिरकार केन्द्र सरकार ने प्रदेश के दो बड़े सट्टेबाज सौरभ चंद्राकर, और रवि उप्पल की गिरफ्तारी के लिए लुक आउट नोटिस जारी किया है। भिलाई रहवासी सौरभ और रवि, महादेव और रेड्डीअन्ना एप नामक ऑनलाइन सट्टा के कर्ताधर्ता हैं। ऑनलाइन सट्टा का कारोबार भिलाई से शुरू होकर पूरे देश में फैल गया है।
चर्चा है कि ऑनलाइन सट्टा के कारोबार फलने-फूलने देने में पुलिस की भूमिका भी रही है। भिलाई के एक आरक्षक को निलंबित भी किया गया था। वह दुबई से होकर लौटा था। यही नहीं, प्रदेश के बड़े अखबारों में फ्रंट पेज पर विज्ञापन छपते रहे, लेकिन पुलिस आंखों पर पट्टी बांधे रही। पुलिस की नींद तब खुली जब सट्टे की रकम की वसूली के लिए भिलाई, दुर्ग, और रायपुर में गैंगवार शुरू हो गया।
बताते हैं कि ऑनलाइन सट्टा पहले दुबई से संचालित होता था। दोनों सट्टेबाज सौरभ, और रवि के बीच मतभेद की भी खबर आई है। चर्चा है कि अब रवि ने कतर को अपना ठिकाना बना लिया है। दोनों अरबपति सटोरियों के प्रदेश के राजनेताओं से संपर्क की खबरें भी चर्चा में रही है। सीएम भूपेश बघेल, सटोरियों का भाजपा नेताओं से संबंध होने का आरोप लगा चुके हैं। कुछ इसी तरह का पलटवार भाजपा भी कर चुकी है। अब जब दोनों हिरासत में होंगे तभी सच्चाई सामने आ पाएगी। जानकार मानते हैं कि लुक आउट नोटिस जारी होने के बाद भी वापसी की राह आसान नहीं है। ये लोग आर्थिक रूप से इतने ताकतवर हो चुके हैं, जिससे वो वापसी की राह में कानूनी बाधा भी खड़ी कर सकते हैं।
दारू कोर्ट में, विधानसभा से बची
विधानसभा के आखिरी सत्र में भी विपक्ष, कई बड़े विषयों को सदन में नहीं उठा पाएगा। इनमें से शराब पर कोरोना टैक्स का प्रकरण भी शामिल है। विपक्षी भाजपा सदस्यों ने शराब पर कोरोना टैक्स को लेकर सदन में दो साल पहले मामला उठाया था। विपक्ष का आरोप रहा है कि कोरोना टैक्स के नाम पर जमकर वसूली की गई है।
विपक्षी भाजपा सदस्य अजय चंद्राकर, बृजमोहन अग्रवाल, नारायण चंदेल, और शिवरतन शर्मा वसूली को गैरकानूनी करार देते हुए हाईकोर्ट चले गए। प्रकरण पर सरकार को नोटिस भी जारी हुआ था। जवाब आने के बाद कोर्ट में आगे बहस नहीं हो पाई है। संसदीय परम्परा है कि जो विषय कोर्ट के समक्ष लंबित है, उस पर सदन में बहस नहीं होती है। ऐसे में शराब प्रकरण पर सदन में चर्चा की गुंजाइश नहीं रह गई है।
इसी तरह प्राथमिक सहकारी समितियों में धान के शार्टेज पर भी सदन में काफी हंगामा हुआ था। प्रकरण की जांच की मांग को लेकर पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर हाईकोर्ट चले गए। यह प्रकरण भी कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है। जानकार मानते हैं कि विपक्ष ने ऐसे विषयों पर सदन के बजाए कोर्ट में चुनौती देकर खुद ही बहस का रास्ता बंद कर दिया है।
बिना जल उठाए किए गए वादे
शराबबंदी को लेकर गंगाजल की कसम कांग्रेस ने खाई थी या नहीं इसका एक नया सबूत मंत्री मो. अकबर ने दे दिया है। अब भाजपा में जा चुके आरपीएन सिंह का वीडियो सामने लाया गया है, जिसमें कांग्रेस की ओर से सन् 2018 के चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने किसानों की कर्ज माफी को लेकर सौगंध ली थी। वह सरकार बनने के बाद पूरा हो गया। पर कई वादे पूरे नहीं हुए हैं। इससे यह ज्ञान मिलता है कि गंगाजल लेकर की गई प्रतिज्ञा और संकल्प पत्र के जरिये किए गए वायदों में फर्क होता है।
छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी को मालूम था कि कागज पर लिखे चुनावी घोषणाओं पर विश्वसनीयता का संकट खड़ा हो रहा है। इसलिए उन्होंने 2018 के चुनाव में अपनी पार्टी का घोषणा पत्र, शपथ-पत्र पर हस्ताक्षर करके जारी किया।
इधर, छत्तीसगढ़ में अनियमित कर्मचारी हड़ताल पर हैं। हाल ही में संयुक्त कर्मचारी संगठन ने सांकेतिक आंदोलन किया था। आगे वे इसका विस्तार करने जा रहे हैं। स्वास्थ्य और राजस्व विभाग के कर्मचारी ‘जनहित को देखते हुए’ बिना मांग पूरी हुए ही काम पर वापस लौट आए हैं। इनकी मांगें उस कैटेगरी में जिसमें गंगाजल की शपथ शामिल नहीं हैं। फिर भी आंदोलन कर रहे संगठनों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। उन्हें लगता होगा कि चुनाव की अग्नि परीक्षा, गंगाजल की शपथ से बड़ी है। कुछ न कुछ तो मिल ही जाएगा।
केवल एक शिक्षक कैसे बचे?
शालाओं में प्रवेशोत्सव का कार्यक्रम अभी चल ही रहा है कि ग्रामीण शालाओं में शिक्षकों की कमी की खबरें भी आ रही हैं। महासमुंद जिले के शिवपुर ब्लॉक के अमलोर की छात्र-छात्राओं ने राजधानी रायपुर पहुंचकर मुख्यमंत्री से मिलना चाहा। वे अपनी कापी किताब लेकर आई थीं, जिन्हें लाकर यहां सडक़ के किनारे रख दिया। स्कूल में केवल एक शिक्षक है। बच्चे पढऩा चाहते हैं लेकिन पढ़ाई शिक्षकों के नहीं होने कारण ठप है। सत्र की अभी शुरूआत ही हुई है, छात्र-छात्राओं को अभी से सचेत हो जाना अच्छा है। मुख्यमंत्री निवास पहुंचने से पहले बच्चों ने महासमुंद में जिला स्तर के अधिकारियों के सामने भी मांग की होगी, कलेक्टर से भी मिले होंगे। उनकी मांग नहीं सुनी गई होगी, तब वे मजबूरी में राजधानी पहुंचे होंगे। महासमुंद जिला मुख्यालय से अमलोर करीब 45 किलोमीटर दूर पड़ता है, राजधानी रायपुर से यह 90 किलोमीटर की दूरी पर है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्हें यहां तक पहुंचने में कितनी तकलीफ उठाई होगी। शिक्षा विभाग ऐसा विभाग है जहां तबादलों को लेकर बड़ा खेल चलता है। शहर या उसके आसपास आने के लिए शिक्षक हर तरह की सिफारिश और खर्च करने के लिए तैयार हैं। ऐसे में गांवों के स्कूल खाली हो जाते हैं। अमलोर गांव में एक टीचर बच गए हैं वह शायद इसलिये एकल शिक्षक वाले स्कूलों से तबादला नहीं हो सकता। या फिर शिक्षक का घर इस स्कूल के आसपास होगा। इस मामले में शिक्षकों की नियुक्ति जल्द करने का आश्वासन देकर अधिकारियों ने बच्चों को वापस भेजा है। मगर, ऐसे स्कूल हर ब्लॉक में मिलेंगे, जहां संकट की स्थिति शिक्षा विभाग में चल रहे तबादले के खेल के चलते पैदा हुई है।
चुनाव बहिष्कार का भी रूझान लें...
विभिन्न राजनीतिक दल अपने चुनाव अभियान को धार देने में लगे हैं तो मतदाता चुनाव से पहले आश्वासनों के पूरा कराने की कोशिश में। इसी के साथ चुनाव बहिष्कार की चेतावनी भी सामने आने लगी है। धमतरी जिले के नगरी ब्लॉक के जैतपुरी और कोरमुड़ के नागरिकों ने कलेक्ट्रेट में ज्ञापन सौंपा। उन्होंने बताया कि हर नेता से बोल चुके, अधिकारियों से गुहार लगा चुके। कोरमुड़ से दुधावा की साढ़े 4 किलोमीटर सडक़ और पुलिया अब तक नहीं बन पाई। चुनाव के समय जो नेता प्रचार के लिए आया, आश्वासन दे गया। अब सब्र का बांध टूट रहा है। ग्रामीणों ने कलेक्टर को सौंपे गए ज्ञापन में चेतावनी दी है कि चुनाव से पहले सडक़ नहीं बनी तो वे वोट नहीं डालेंगे। प्रभावित ग्राम वनांचल में स्थित है। यहां की सभी पहुंच मार्गों की हालत खराब है। पेजयल, बिजली, शिक्षक से संबंधित समस्याएं हैं। पिछले माह जून में ग्रामीणों ने कलेक्ट्रेट में धरना दिया था, जिसमें करीब एक दर्जन गांवों के लोग शामिल हुए थे। उन्होंने भी चुनाव बहिष्कार की चेतावनी दी थी।