संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : भक्ति के चक्कर में तर्कशक्ति को दिमाग-निकाला न दें
11-Jul-2024 4:29 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : भक्ति के चक्कर में तर्कशक्ति  को दिमाग-निकाला न दें

आए दिन हिन्दुस्तान के किसी न किसी कोने से खबर आती है कि किस तरह किसी तांत्रिक ने इलाज के नाम पर, या गर्भवती बनाने के नाम पर किसी लडक़ी या महिला से बलात्कार कर दिया। देश की एक सबसे बड़ी मिसाल आसाराम नाम के एक बलात्कारी की है जिसे उसके अंधभक्त अब भी बापू कहते हैं। इसने अपनी संस्था के एक स्कूल के छात्रावास में पढ़ रही अपने एक भक्त की नाबालिग बेटी को अपने पास बुलाकर उससे बलात्कार किया था। कुछ ऐसा ही राम रहीम नाम के एक दूसरे बाबा ने किया था। देश में अलग-अलग धर्मों के चोगे पहनने वाले कई किस्म के ‘बाबा’ हैं जो अंधभक्तों के परिवारों की लड़कियों और महिलाओं का शोषण करते हैं, और उसे भी कई परिवार आशीर्वाद मानकर खुशी-खुशी ग्रहण करते हैं। रोमन कैथोलिक चर्च में, या मदरसे में, या यतीमखाने, संस्कृत पाठशाला, किसी मठ, या किसी धार्मिक-आध्यात्मिक छात्रावास में तरह-तरह से देहशोषण होता है, और ऐसे बाबाओं के भक्तजन उन्हें बचाने के लिए खड़े रहते हैं। आज भी हर इतवार बलात्कारी आसाराम के भक्तजन उनके नाम का स्टॉल लगाकर उसका साहित्य बांटते हैं, और अपने घर की महिलाओं और बच्चों को साथ लेकर इस काम में जुटे रहते हैं।

दरअसल अंधभक्ति ऐसी ही होती है कि उसमें अक्ल काम करना बंद कर देती है, तर्कशक्ति खत्म हो जाती है, न्याय की कोई भावना बचती नहीं है। यह अंधभक्ति अभी-अभी हाथरस में करीब सवा सौ भक्तों की भगदड़-मौतों के बाद फिर सामने आ रही है, जब सूरज पाल उर्फ भोले बाबा उर्फ साकार विश्व हरि नाम के एक गुरू ने लाखों भक्तों की भीड़ के बीच अपनी चरण रज लेकर जाने को कहा था, और उसी भगदड़ में इतनी मौतें हुईं। अब एक समाचार-रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि यह भोले बाबा हमेशा कुंवारी लड़कियों से घिरे रहता था, और इन्हें आयोजक लाल रंग के कपड़े देते थे जिन्हें पहनकर वे मदहोश होकर बाबा के इर्द-गिर्द डांस करती थी। एक टीवी चैनल आज तक की रिपोर्ट में एक महिला ने बताया है कि भोले बाबा के आसपास रहने वाली कुंवारी लड़कियां उनको अपना पति मानती थीं, और इसी तरह से उनके साथ रहती भी थीं। इस महिला ने यह भी बताया है कि जब दीक्षा लेने वाली लड़कियां आसपास रहती थीं, और इनमें भी सिर्फ कुंवारी लड़कियों को विशेष दीक्षा देकर शिष्या बनाया जाता था, तो इन लड़कियों को इस बाबा में अपना पति दिखता था। यह भी कहा गया है कि शादीशुदा महिलाओं को बाबा पास नहीं आने देता था, और कुंवारी लड़कियां लाल जोड़े में तैयार होकर गहने पहन, श्रंृगार करके बाबा के पास जाती थीं, और नाचती थीं।

कल की ही खबर थी कि किसी एक दूसरी जगह कैसे एक तांत्रिक ने इलाज करने के नाम पर किसी लडक़ी या महिला से बलात्कार किया। यह सिलसिला हिन्दुस्तान में आम हैं जहां पर न सिर्फ इलाज के लिए, बल्कि नौकरी और दौलत के लिए, शादी के लिए जीवनसाथी पाने को, हर तरह की हसरत के लिए लोग बाबाओं की शरण में जाकर पड़े रहते हैं। संतान चाहने वाले बेऔलाद जोड़े तो अपने धर्म से परे के भी बाबाओं और गुरूओं के चरणों पर पड़े दिखते हैं। दरअसल धर्म और आध्यात्म के साथ दिक्कत यह है कि इन पर आस्था लोगों में तब ही जाग सकती है जब उनकी तर्कशक्ति खत्म हो जाती है। देश में इलाज का पुख्ता इंतजाम नहीं है, दाखिला और नौकरी के इम्तिहान इतने भ्रष्ट हो चुके हैं कि लोगों का उन पर भरोसा नहीं है, न्याय प्रक्रिया नीचे से ऊपर तक ऐसी भ्रष्ट है कि लोगों को लगता है कि बिना किसी ईश्वरीय मेहरबानी के उन्हें इंसाफ नहीं मिल सकता, लोकतंत्र पर भरोसा इतना कम है कि वे इंसाफ के बजाय अपने पक्ष में फैसला चाहते हैं, फिर चाहे वे खुद मुजरिम ही क्यों न हों। ऐसी नौबत में यह देश अंधविश्वास में डूबा हुआ है, और लोगों को तर्क की बात करने वाले लोगों को बेंगलुरू से लेकर पुणे तक मार डालना बेहतर लगता है। दुनिया में वैज्ञानिक सोच लोगों को न्यायप्रिय बनाती है, और अंधविश्वास उन्हें अन्यायी बना देता है। दूसरों के प्रति अन्यायी होने तक तो ठीक है, लोग अपनी आस्था के केन्द्र बाबाओं को अपने परिवार की महिलाएं और लड़कियां भी समर्पित कर देते हैं। यह जाहिर है कि अंधविश्वास लोगों के लिए आत्मघाती भी होते चलता है, और उन्हें आस्था के अपने केन्द्र की खुशी और सुख के लिए अपने परिवार को भी समर्पित कर देना खुशी का सामान लगता है।

दुनिया में अंधभक्ति और अंधविश्वास किसी का भला नहीं करते। जिस आसाराम को न जमानत मिल पा रही है, और न ही पैरोल, उसकी हरकतों पर भक्त अगर सवाल करते रहते, तो हो सकता है कि वह नाबालिग छात्रा से बलात्कार के मामले में न फंसा होता। ऐसा न सिर्फ धर्म, और आध्यात्म के मामले में होता है, बल्कि राजनीति में भी होता है। राजनीति में जिस नेता के जितने अधिक अंधभक्त होते हैं, उससे गलत काम होने का खतरा भी उतना ही बड़ा रहता है। कुल मिलाकर हम लोगों को सावधान करना चाहते हैं कि भक्ति तक तो बात ठीक है, लेकिन अंधभक्ति सबके लिए घातक होती है। किसी कीर्तन या कव्वाली में हिलने वाले सिरों के भीतर दिमाग काम करना तकरीबन बंद कर देते हैं। इसलिए सबका भला इसी में है कि भक्ति के चक्कर में तर्कशक्ति को दिमाग-निकाला न दे दिया जाए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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