संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : छत्तीसगढ़ विकसित करने के लिए यहां के लोगों को मजदूर से ऊपर कुछ बनाना होगा
17-Jul-2024 3:21 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  छत्तीसगढ़ विकसित करने के  लिए यहां के लोगों को मजदूर  से ऊपर कुछ बनाना होगा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने की घोषणा कर चुके हैं। यह एक अलग बात है कि डॉ.मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए देश की किसी एक बड़ी प्राकृतिक आपदा के समय जब दुनिया के दूसरे देशों ने मदद भेजनी चाही थी, तो भारत ने यह कहते हुए उसे विनम्रता से अस्वीकार कर दिया था कि भारत अब एक विकसित देश है, और किसी आपदा से निपटने की उसकी पर्याप्त क्षमता है। हो सकता है कि वह बात सिर्फ उस मदद के संदर्भ में हो, और मोदी की 2047 की सोच देश के विकसित होने का कोई अलग पैमाना हो। फिलहाल यह भी समझने की जरूरत है कि मोदी सरकार दो कार्यकाल पूरी कर चुकी है, तीसरा कार्यकाल शुरू हो चुका है, और 2047 इसके बाद कम से कम तीन कार्यकाल पार करने पर आएगा। इस हिसाब से 2047 का सपना 2014 से शुरू होकर 2047 तक चलेगा जो कि देश की आजादी के सौ बरस पूरे होने का मौका भी रहेगा। जाहिर है कि भाजपा और एनडीए के जो राज्य हैं वहां भी 2047 को लेकर एक चर्चा शुरू हुई है कि उसकी तैयारी के लिए क्या-क्या किया जा सकता है।

छत्तीसगढ़ में कल राज्य नीति आयोग की तरफ से एक कार्यक्रम किया गया जिसमें बहुत से अलग-अलग तबके के लोगों से राज्य सरकार ने सलाह मांगी। इसमें मोटेतौर पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, और नौजवान वित्तमंत्री ओ.पी.चौधरी प्रमुख थे जिन्होंने कार्यक्रम में कुछ कहा भी, और अधिक सुना भी। अगर एक औपचारिकता से परे यह एक गंभीर कोशिश है, तो फिर इसका विस्तार किसी सभागृह के कार्यक्रम से ऊपर उठकर सोशल मीडिया, और ऑनलाईन भी होना चाहिए ताकि जो लोग मौके पर न पहुंच सकें, वे भी अपनी सोच सरकार के सामने रख सकें। हम भी काफी समय से छत्तीसगढ़ को देखते आए हैं, और इस राज्य को अगर आजादी की सौवीं सालगिरह पर एक विकसित प्रदेश बनाना है, तो कुछ बातों के बारे में सोचना चाहिए।

हमारा ख्याल है कि एक खनिज राज्य होने की वजह से और साथ-साथ कृषि प्रधान होने की वजह से छत्तीसगढ़ में रोजगार खासा उपलब्ध है, और अब रोजगार की कमी से प्रदेश छोडक़र बाहर जाने की मजबूरी लोगों के सामने नहीं है। यह जरूर हो सकता है कि अभी भी कुछ इलाकों से लोग परंपरागत तरीके से हर बरस बाहर जाते हैं क्योंकि वहां पर शायद ठेके पर काम करके वे यहां मिलने वाली मजदूरी से कुछ अधिक कमाई कर पाते हैं। इसका एक मतलब यह भी है कि छत्तीसगढ़ में अभी लोगों की मजदूरी देश के कई दूसरे हिस्सों के मुकाबले कम है। हमारा ख्याल है कि छत्तीसगढ़ में खेतिहर मजदूर, खदान, और औद्योगिक मजदूर, सडक़ और निर्माण मजदूर जैसे रोजगार के साथ-साथ मनरेगा जैसी सरकारी रोजगार योजनाओं में काफी लोगों को काम मिलता है, लेकिन इनमें से अधिकतर काम अकुशल (अनस्किल्ड) दर्जे के हैं जिनमें प्रति व्यक्ति मजदूरी बड़ी सीमित है। और सरकार ने प्रदेश में जो न्यूनतम मजदूरी तय कर रखी है, उतनी मजदूरी भी निजी क्षेत्र में, और खेतों में कहीं नहीं मिल पाती। नतीजा यह है कि आबादी का तकरीबन तमाम कामकाजी हिस्सा बहुत कम मजदूरी पर काम करता है, और उसे न तो बेरोजगार कहा जा सकता, न ही उसकी कमाई उसे निम्न-मध्यम वर्ग तक पहुंचा पाती। इसलिए आय के पिरामिड में अगर देखें, तो नीचे का आधा हिस्सा ऐसे ही लोगों का दिखता है जो कि सरकारी रेट से न्यूनतम मजदूरी भी नहीं पाते हैं। सरकार को अगर इस प्रदेश को विकसित बनाने की कोशिश करनी है, तो उसे दक्षिण के राज्यों से सीख लेनी पड़ेगी कि लोगों को हुनर सिखाने, कामचलाऊ अंग्रेजी भाषा सिखाने, और काम की क्वालिटी में उत्कृष्टता लाने के लिए क्या किया जा सकता है? आज छत्तीसगढ़ से बाहर जाकर काम करने वाले गिने-चुने कामयाब लोगों की बात छोड़ दें, तो आबादी का अधिकतर हिस्सा अकुशल मजदूर से बेहतर नहीं है, और जब प्रति व्यक्ति आय इतनी कमजोर रहती है, तो प्रदेश खनिज रायल्टी के बावजूद विकसित नहीं हो सकता। आज भी छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था में उस खनिज रायल्टी का सबसे बड़ा योगदान है जिसमें यहां के लोगों का योगदान नहीं है, वह बस धरती की मुहैया कराई गई संपत्ति है जिसका दोहन करके छत्तीसगढ़ एक ठीकठाक अर्थव्यवस्था वाला राज्य बना हुआ है। इस राज्य को यह सोचने की जरूरत है कि खनिजों को छोडक़र खुद इंसान की खड़ी की हुई अर्थव्यवस्था में ऐसा क्या किया जा सका है, जिससे कामगारों की मेहनत से प्रदेश की कमाई हो सके? आज तो खनिजों की वजह से यह प्रदेश धान की फसल खरीदने में लोगों को एक ऐसी सब्सिडी दे पा रहा है कि जिसकी वजह से खेती फायदे का काम हो सका है, और खेतिहर मजदूर की मजदूरी भी थोड़ी सी बढ़ सकी है। इसके बावजूद यह प्रदेश दूसरे प्रदेशों को ईंट भट्ठा, और निर्माण के मजदूर ही भेज पाता है। यह किसी विकसित देश की पहचान नहीं है। अभी पिछले ही हफ्ते भारत का वित्त आयोग छत्तीसगढ़ आया हुआ था, और राज्य सरकार ने उससे जब छत्तीसगढ़ के विकास के लिए स्पेशल फंड की मांग की, तो वित्त आयोग के मुखिया बोले कि अपने लोगों को हुनर सिखाइए, उन्हें स्किल्ड कीजिए।

वित्त आयोग अध्यक्ष की बात एकदम सही थी, धरती की दी गई दौलत के दोहन से रोजाना का काम ठीकठाक चलाने वाले प्रदेश को अपने कामगारों की अधिक उत्पादकता की कोशिश भी करनी चाहिए। बरसों से एक नारा चले आ रहा है जो कि सर्वदलीय है, छत्तिसगढिय़ा सबले बढिय़ा। लेकिन सवाल यह है कि अगर राज्य के अधिकतर रोजगार सिर्फ मजदूरी और मजदूर दर्जे के हैं, तो क्या ऐसे मजदूरों को सबसे बढिय़ा कहा जाना जायज है? यह बात समझने की जरूरत है कि इसी देश में कई ऐसे प्रदेश हैं जहां से कामगार दुनिया के दर्जन भर विकसित देशों में जाकर हिन्दुस्तानियों की अच्छी पहचान बना चुके हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ से इक्का-दुक्का लोगों को छोड़ दें, तो आजादी से लेकर अब तक इस इलाके से विदेश में किसी कामकाज के लायक किसी को तैयार नहीं किया जा सका है। खासकर राज्य सरकार की कोशिशों से परे के एक छोटे से औद्योगिक शहर भिलाई को देखें, तो वहीं से पढ़ाई-लिखाई में कामयाब होकर कुछ बच्चे बाहर पढऩे जाते हैं, और फिर बेहतर ऊंची पढ़ाई करके वे दुनिया के विकसित देशों में बेहतर संभावनाएं पाते हैं। लेकिन आज जब दुनिया के दर्जनों देश कामगारों की कमी का शिकार है, वे दूसरे देशों के लोगों को काम करने के लिए आने देने को मजबूर हैं, तब भी छत्तीसगढ़ में रोजगार और कामगार की उम्र वाले नौजवानों को किसी अंतरराष्ट्रीय मोर्चे के लायक तैयार नहीं किया जा सका है। राज्य सरकार को अगर 2047 तक के अगले 20-22 साल का बेहतर इस्तेमाल करना है, तो वह छत्तीसगढ़ में मानव संसाधन के विकास की बड़ी मेहनत करके ही हो सकता है। छत्तीसगढ़ की नौजवान पीढ़ी को अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में कई देशों में जाकर कई तरह के हुनर के काम करने के लायक कैसे तैयार किया जा सकता है, यह इस राज्य की किसी भी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती रहेगी। हम बीते बरसों में भी इस बात पर जोर देते आए हैं कि छत्तिसगढिय़ा को महज मजदूर बनाकर यह तसल्ली पा लेना कि वह बेरोजगार नहीं है, बड़ी ही निराशा की नौबत है। कामयाबी तो तब होगी जब यहां की नौजवान-कामगार पीढ़ी, बेहतर हुनर के साथ अधिक तनख्वाह, या मेहनताने का काम करेगी। आज दुनिया में संभावनाएं करोड़ों की संख्या में बिखरी हुई हैं, भारत की कुछ राज्य सरकारें इनका दोहन करने में बहुत कामयाब भी हैं, और वहां पर बाहर गए हुए लोगों की भेजी गई कमाई अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है। छत्तीसगढ़ को भी और कई किस्म के कामों के साथ-साथ एक बड़ा काम यह भी करना चाहिए कि अपनी नौजवान पीढ़ी को अंतरराष्ट्रीय जरूरतों के मुताबिक बहुत ही उत्कृष्टता वाले हुनरमंद बनाकर उन्हें दुनिया भर में पहुंचाने का काम भी करना चाहिए। कोई हमसे पूछेगा तो राज्य बनने के बाद के तकरीबन चौथाई सदी के इतिहास में कई अच्छे नेता और अफसर इस राज्य में रहे, लेकिन इस मोर्चे पर कोई भी पहल हमें याद नहीं पड़ती। देखते हैं आज की भाजपा सरकार, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, और नौजवान वित्तमंत्री ओ.पी.चौधरी इस बारे में क्या कर सकते हैं।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news