संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ...पहली मुसीबत आपको ले जाती है अपनी सहेलियों तक
16-Jul-2024 4:36 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :   ...पहली मुसीबत आपको ले  जाती है अपनी सहेलियों तक

महाराष्ट्र की एक आईएएस ट्रेनी अफसर का मामला और रहस्यमय होते चल रहा है। कलेक्ट्रेट में ट्रेनिंग के दौरान डॉ.पूजा खेडक़र ने जितने किस्म की सहूलियतें मांगी थीं, और जितना अहंकार साथी अफसरों पर दिखाया था, उनके पिता ने जिले के अफसरों को जितना धमकाया था, उन सबके चलते हुए उन्हें तबादले पर एक दूसरे जिले में डाल दिया गया है। अब जब इस युवती की जांच चल रही है, तो कई किस्म के खुलासे हो रहे हैं कि वह जिस तरह से विकलांग कोटे में आईएएस में आई थी, वह रियायत भी संदिग्ध थी, और शायद झूठे आधार पर उसे पाया गया था। इस युवती की मेडिकल फाईल अस्पताल से गायब है, और जब जांच खुल रही है तो तमाम किस्म की बातें अब कसौटी पर कसी जा रही हैं। यह भी सामने आ रहा है कि पिता के आईएएस होते हुए भी पूजा खेडक़र ने ओबीसी कोटे में क्रीमीलेयर से बाहर होने का सर्टिफिकेट जमा किया था, जबकि आईएएस की सालाना तनख्वाह के हिसाब से उसकी बेटी को क्रीमीलेयर में आना चाहिए, और आरक्षण का हकदार नहीं होना चाहिए। लगे हाथों अब ऐसे वीडियो भी सामने आए हैं कि पूजा खेडक़र की मां जमीन के किसी विवाद में दूसरे लोगों को हाथ में पिस्तौल लेकर धमका रही हैं, और इसे देखकर पुलिस अब उसे तलाश रही है, और एक खबर के मुताबिक वह फरार है।

हम इस घटना पर अधिक लिखना नहीं चाहते क्योंकि इस आईएएस प्रशिक्षणार्थी ने जो बददिमागी दिखाई थी उसे लेकर हम अफसरशाही के तौर-तरीकों पर दो-चार दिन पहले ही लिख चुके हैं। लेकिन हम आज जिंदगी के एक दूसरे पहलू पर लिखना चाहते हैं कि किस तरह एक परेशानी में फंसने पर दूसरी भी कई किस्म की परेशानियां सामने आती हैं। कहते हैं कि मुसीबत सहेलियों सहित आती है। लोगों को याद रखना चाहिए कि अगर सरकार का कोई टैक्स विभाग किसी कारोबारी की एक जांच शुरू करता है, तो फिर वह जांच बढ़ते-बढ़ते कई तरह से और कई तरफ से घेराबंदी करने लगती है। इसलिए बेहतर नौबत यही रहती है कि मुसीबत में फंसने से बचना चाहिए, और बिल्ली को रसोई में दूध का बर्तन देखने नहीं देना चाहिए।

जिंदगी में कई जगह यह देखने मिलता है कि लोग जब किसी एक परेशानी में फंसते हैं, तो उनके बाकी पहलू भी जांच के घेरे में आने लगते हैं, और इन सबसे एक साथ निपट और निकल पाना अधिकतर लोगों के लिए मुमकिन नहीं होता है। इसलिए सरकारी सेवा, या सार्वजनिक जीवन में रहने वाले लोगों के लिए बेहतर और समझदारी की बात यही होती है कि वे किसी गैरजरूरी विवाद में न फंसें। अब जैसे इसी आईएएस युवती की बात करें, तो अगर वह अपने वरिष्ठ अधिकारियों और सहकर्मियों से बदसलूकी नहीं करती, उसके रिटायर्ड पिता फोन करके सरकारी अमले को नहीं धमकाते, तो हो सकता है कि मां की पिस्तौल की बात भी खप जाती, और इस लडक़ी के विकलांगता प्रमाणपत्र का मामला, या इसके ओबीसी क्रीमीलेयर का विवाद भी दबे रह जाता। लोगों को जब यह भरोसा रहता है कि वे किसी एक बखेड़े में उलझकर उससे ऊबर सकते हैं, तो वे इस बात को भूल जाते हैं कि यह पहला बखेड़ा कई दूसरे और तीसरे नंबर के बखेड़े भी खड़े कर देता है।

जिंदगी में सयाने, और समझदार लोग विवाद में पडऩे से बचने के बारे में कई किस्म की बातें कहते आए हैं। उसमें जिंदगी की समझदारी भी रहती है कि जिस विवाद से कुछ ठोस हासिल न हो रहा हो, उसमें पडऩे से पहले संभावित खतरों और नुकसान के बारे में जरूर सोच लेना चाहिए। इसकी एक छोटी सी मिसाल यह है कि जब जहां चार लोग बैठकर गप्पें मारते रहते हैं, वहां लोग अपनी बात दूसरों को सुनाने के लिए कई बार बड़ी सनसनीखेज बात कहने लगते हैं, जो कि सच भी हो सकती है, और अफवाह भी। लेकिन वहां जो मौजूद नहीं हैं, उनके बारे में कोई आपत्तिजनक, अपमानजनक, और सनसनीखेज बात कहने पर लोग कुछ पल के लिए तो आपको ध्यान से सुनने लगते हैं, लेकिन उसके बाद आपकी कही यह बात हमेशा के लिए आपके नाम के साथ दर्ज हो जाती है, और मौजूद लोग संबंधित व्यक्ति को भी जाकर बताते हैं कि उसके बारे में आप क्या कह रहे थे। बिना किसी फायदे के आपकी जुबान आपका बड़ा नुकसान करती है। अपने आपको चोट पहुंचाने का काम किसी धारदार हथियार से जितना हो सकता है, उससे कई गुना ज्यादा आपकी नर्म दिखने और लगने वाली जुबान से भी हो सकता है। इसलिए अनर्गल बात कहकर परेशानी को न्यौता नहीं देना चाहिए।

हमारा यह भी मानना है कि लोग बिना काम के जब कहीं बैठकर दूसरे लोगों की चर्चा करते हैं, तो उससे फायदा किसी का भी नहीं होता, लेकिन बोलने वाले हर किसी का नुकसान जरूर हो जाता है। इसलिए समझदारी इसमें है कि लोग गप्पें मारने के अंदाज में बैठने से बचें, किसी को दूसरों के बारे में आपत्तिजनक बात लिखकर न भेजें, क्योंकि लोग इन दिनों स्क्रीनशॉट लेकर भी बांटते हैं, और पास में बैठे दूसरे लोगों को फोन पर आपके भेजे गए संदेश, और फोटो-वीडियो दिखाते भी हैं। जिस तरह आपको सनसनीखेज बातों को फैलाना अच्छा लगता है, उसी तरह उन्हें सुनने या पाने वाले लोगों को उन बातों को आपके नाम के साथ आगे बढ़ाना और अधिक अच्छा लगता है। इसलिए इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए कि सनसनी आप अकेले ही नहीं फैला सकते, और लोग भी फैला सकते हैं, और बिना कुछ हासिल होने की संभावना के लोग दूसरों से मुफ्त में दुश्मनी पा लेने का खतरा उठाते हैं। बकवास का स्वाद जुबान को बड़ा अच्छा लगता है, और तमाम दुश्मन मिलकर किसी को जितना नुकसान नहीं पहुंचा सकते, उससे अधिक उसकी खुद की जुबान ही पहुंचा देती है। मुंह खोलने के पहले याद रखें कि आप अपने खुद के भविष्य को, खुद की संभावनाओं को तो काटने नहीं जा रहे हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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