संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चीन और जापान के तजुर्बों से सीख सकता है हिन्दुस्तान
23-Jul-2024 4:37 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :   चीन और जापान के तजुर्बों  से सीख सकता है हिन्दुस्तान

आबादी के आंकड़े बड़े दिलचस्प रहते हैं। इतिहास के मुकाबले आज की आबादी के आंकड़े तो सामने रहते हैं, लेकिन आज के मुकाबले भविष्य के आंकड़ों का एक अनुमान ही लगाया जा सकता है, और यह अनुमान जब बाकी दुनिया की आबादी के अनुमान के साथ जोडक़र देखा जाता है, तो यह बताता है कि 2050 या 2070 की दुनिया में हिन्दुस्तानियों का अनुपात क्या होगा। फिर आबादी को जब अलग-अलग उम्र के तबकों में बांटकर देखा जाता है, तो उससे भी बड़ी दिलचस्प तस्वीर उभरती है। आज सुबह ही चीन के आंकड़ों का एक विश्लेषण बता रहा था कि किस तरह वहां आने वाले बरसों में रिटायर्ड लोगों का अनुपात कामकाजी लोगों से अधिक हो जाएगा, और चीन की सरकार को यह समझ ही नहीं आ रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में रिटायर्ड और अनुत्पादक हो चुके लोगों का खर्च कैसे उठाया जाएगा? कुछ लोग इसे चीन की इस गलती का नतीजा बतलाते हैं कि उसने अपने कामकाजी लोगों के रिटायर होने की उम्र बड़ी कम रखी थी, नतीजा यह हुआ कि जापान के मुकाबले चीन के लोग दस बरस कमउम्र में ही रिटायर होकर देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बनने लगे। दुनिया का ऐसा कई किस्म का तजुर्बा हिन्दुस्तान के सामने भी बहुत सी बातों के सबक लेने का मौका पेश करता है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की भारत की ईकाई, यूएनएफपीए-इंडिया की प्रमुख इंड्रिया ओजनार ने अभी एक इंटरव्यू में भारत के सामने चुनौतियों और संभावनाओं का अपना एक विश्लेषण पेश किया है। उनका कहना है कि 2050 तक इस देश में बुजुर्ग आबादी आज के मुकाबले संख्या में दो गुना हो जाएगी। इस साल तक 60 साल से ऊपर के लोग 34 करोड़ 60 लाख हो जाने का अंदाज है। इन बुजुर्ग लोगों की रहने-खाने की जरूरतों को लेकर भारत को एक योजना बनाने की जरूरत है। इंड्रिया का कहना है कि खासकर बूढ़ी महिलाओं के लिए ऐसा करना जरूरी है जिनके अकेले रहने, और गरीबी का सामना करने की अधिक आशंका है। उन्होंने भारत की नौजवान आबादी के बारे में संभावनाओं की चर्चा की, और कहा कि इस देश में आज दस से बीस बरस के दायरे में 25 करोड़ से अधिक लोग हैं, और इस उम्र के लोगों का देश के लिए एक उत्पादक उपयोग हो सकता है, अगर इनकी क्षमता को उस लायक बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के साथ-साथ प्रशिक्षण और रोजगार सृजन में निवेश करने से नौजवान कामकाजी पीढ़ी की इस क्षमता को भुनाया जा सकता है।

हम इस पर चर्चा इसलिए भी कर रहे हैं कि अभी दो-चार दिन पहले ही हमने भारत के राज्यों से यह उम्मीद की थी कि वे अपनी नौजवान पीढ़ी को हुनरमंद बनाएं, उनके हुनर में उत्कृष्टता लेकर आएं, और उन्हें स्थानीय मजदूरी से ऊपर के कामों के लिए भी तैयार करें। हमने यह भी सुझाया था कि चीन जैसे देश में प्रति व्यक्ति आय भारत के लोगों के मुकाबले सवा पांच गुना से अधिक है, और यह फर्क आबादी को हुनरमंद बनाने का है, और फिर उस आबादी को हुनर के लायक काम मुहैया कराने का है। भारत को जापान और चीन के बीच के तजुर्बे के फर्क को देखना चाहिए। जापान में लोग औसतन दस बरस अधिक उम्र तक कामकाजी रहते हैं, और उनकी उत्पादक भूमिका की वजह से वे सरकार पर बोझ नहीं बनते। चीन ने अर्थव्यवस्था के कई पहलुओं पर खासा काम किया है, लेकिन इस एक मामले में वह चूक गया दिखता है। उसने अपनी आबादी पर एक फौलादी पकड़ बना रखी थी, और आज जब उसे अधिक से अधिक कामगारों की जरूरत है, देश के आर्थिक और निर्माण ढांचे के बेहतर इस्तेमाल के लिए उसे अधिक कामकाजी लोग चाहिए, तो उसकी नौजवान पीढ़ी सिमटती चली जा रही है, आज चीनी नौजवान अधेड़ हो जाते हैं, लेकिन वे एक से अधिक बच्चे पैदा करना नहीं चाहते। यह चीन की दूसरी बड़ी दीर्घकालीन गलती थी कि उसने अपनी अर्थव्यवस्था में कामगारों की उत्पादक भूमिका का अंदाज नहीं लगाया था, और आज उसे आबादी की कमी खल रही है। चीन की दूसरी चूक यह रही कि उसने कामकाजी लोगों को कमउम्र में रिटायर करना जारी रखा, और आज घर बैठे ऐसे लोग सरकार पर बोझ बन गए हैं।

भारत के सामने आज ऐसे तमाम तजुर्बों से नसीहत लेने का मौका है। यहां आबादी अभी चीन की तरह सिमटती नहीं जा रही है, और 2060 तक यह आबादी बढ़ते जाने का अंदाज है। आबादी बढऩे से कामगार भी बढ़ेंगे, और भारत की आर्थिक नीतियां, काम का माहौल अगर अच्छा रहेगा, तो चीन से कई वजहों से निराश बाकी देश भारत को चीन के अलावा एक और मेन्युफेक्चरिंग केन्द्र बना सकते हैं। लेकिन इसके लिए बहुत ही हुनरमंद कामगारों की जरूरत पड़ेगी, और भारत के दक्षिण के राज्यों के अलावा बहुत कम राज्य ऐसे हैं जो कि इसके लिए तैयार हैं। भारत को यह भी देखना होगा कि अलग-अलग कामकाज में किस तरह लोगों को अधिक उम्र तक रखा जा सकता है, ताकि उनका उत्पादक उपयोग देश के लिए हो सके, और वे बुढ़ापे की तकलीफों और जरूरतों से अपनी कमाई से ही जूझ सकें। भारत को नौजवान पीढ़ी को अंतरराष्ट्रीय स्तर के कामकाज के लिए भी तैयार करना पड़ेगा। आज एप्पल जैसी एक सबसे बड़ी कंपनी के मोबाइल फोन बनाने का कारखाना दक्षिण भारत के तमिलनाडु और कर्नाटक में चल रहा है। इन दो राज्यों को कारखानों ने इसलिए भी छांटा होगा कि यहां पर तकनीकी कौशलयुक्त कामगार उपलब्ध होंगे। तमिलनाडु में इसके लिए एक और कारखाना बन रहा है, और आज आईफोन बनाने में 20 हजार कर्मचारी लगे हैं, जो बढक़र 55 हजार हो जाएंगे। भारत जैसे देश में अपनी आबादी को कामकाजी बनाने, और कमाऊ बनाए रखने में केन्द्र सरकार से परे राज्य सरकारों की भी बहुत बड़ी भूमिका है। हर राज्य सरकार को यह सोचना चाहिए कि क्या उसकी कामकाजी आबादी महज सरकारी राशन, और न्यूनतम मजदूरी पर जिंदा है, या उसके उगाए अनाज पर सरकारी सब्सिडी से जिंदा है? अपने कामगारों को सरकारी राशन पर जिंदा भी रखा जा सकता है, और उन्हें हुनरमंद-कामकाजी बनाकर चीन की तरह उनके पसीने की एक-एक बूंद का नगदीकरण भी किया जा सकता है। भारत को अपने कामगारों को रिटायर करने की हड़बड़ी नहीं रहना चाहिए, बल्कि अधिक उम्र तक लोग क्या-क्या काम कर सकते हैं, उसकी संभावनाएं भी ढूंढनी चाहिए, और नई पीढ़ी को आज की विकसित दुनिया की जरूरतों के मुताबिक कौन-कौन से हुनर सिखाकर, कितना उत्कृष्ट बनाय जा सकता है, यह भी देखना चाहिए। हालांकि हम जो कह रहे हैं उसके लिए पांच-पांच बरस में होने वाले चुनावों के दबावों से परे के लोग लगेंगे जो लंबी दूरी की सोच सकें, और आबादी के हर व्यक्ति को देश के विकास में जोड़ सकें। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news