संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सुप्रीम कोर्ट को अब न सुनाई पड़ रही हेट-स्पीच, और न दिख रही हेट-हरकतें!
20-Jul-2024 3:55 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  सुप्रीम कोर्ट को अब न सुनाई  पड़ रही हेट-स्पीच, और  न दिख रही हेट-हरकतें!

उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, और मध्यप्रदेश ठीक उसी तरह हिन्दुत्व की प्रयोगशाला बने हुए हैं, जिस तरह आज दुनिया के कुछ दूसरे देशों को कुछ दूसरे धर्मों के सबसे अधिक हमलावर चेहरों की प्रयोगशाला पाया जा रहा है। उत्तरप्रदेश में मोदी सरकार का ताजा आदेश यह है कि जहां-जहां कांवड़ यात्रा निकलती है, वहां रास्ते के सभी दुकानदारों को अपना नाम और कर्मचारियों का नाम लिखना होगा ताकि उनका जात-धरम कांवडिय़ों को पता लग सके, और उनकी दुकान से कुछ खाने-पीने से उनकी धार्मिक आस्था आहत न हो। मोदी सरकार बनने के कुछ महीनों के भीतर ही देश में पहली बार किसी धार्मिक-साम्प्रदायिक मुद्दे पर एनडीए गठबंधन के भीतर दरार दिख रही है, और चिराग पासवान सहित जेडीयू ने भी इस पर आपत्ति की है। इस पर बखेड़ा अधिक होने के बाद योगी ने यह आदेश पूरे प्रदेश में लागू करने की घोषणा की है, और कॉमन सिविल कोड लागू करने में देश में अव्वल रहने वाले उत्तराखंड के भाजपा मुख्यमंत्री तुरंत ही इन पदचिन्हों पर चल पड़े हैं। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी सरीखे बहुत से राजनीतिक दलों ने इसका घोर विरोध किया है, और अखिलेश यादव ने तो कहा है कि अदालत को खुद इस मामले पर गौर करना चाहिए। इन दिनों भारत में हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं हैरान करने की रफ्तार से आहत हो रही हैं, और हिन्दू राजनीति करने वाली भाजपा की अगुवाई वाला केन्द्र पर सत्तारूढ़ गठबंधन अपने तीसरे कार्यकाल में दाखिल हो चुका है, लेकिन देश में हिन्दू इतने खतरे में दिख रहे हैं, जितने खतरे में इसके पहले कभी नहीं थे।

हिन्दुस्तान के अलग-अलग राजनीतिक दलों का धर्म और साम्प्रदायिकता पर अलग-अलग रूख बड़ा साफ है, लेकिन वह चुनाव के वक्त और अधिक ईमानदारी से दिखता है। उत्तरप्रदेश में तो लोकसभा का चुनाव भी निपट गया है, और विधानसभा के चुनाव बहुत दूर हैं। ऐसे में आक्रामक हिन्दुत्व के पैरोकार, सीएम योगी आदित्यनाथ के अपने असाधारण पैमानों पर भी यह ताजा आदेश कुछ अधिक ही आक्रामक है। जो लोग पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में भाजपा की खासी शर्मनाक पराजय का विश्लेषण कर रहे हैं, उनमें से कुछ जानकार लोगों का यह कहना है कि अपनी 60 सीटों में से 17 खो बैठे योगी एक बड़े खतरे में फंसे हुए हैं, और शायद अपने हिन्दुत्व की धार बढ़ाने के लिए उन्होंने यह नया शिगूफा छोड़ा है। उत्तरप्रदेश में खासी खलबली मची हुई है, और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लगातार लड़ रहे हैं, उस प्रदेश में अपनी ऐसी बुरी हार बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे होंगे। बनारस से उनकी अपनी लीड सदमा पहुंचाने की हद तक कम हो चुकी है, और लोकतंत्र में किसी पूरे प्रदेश में ऐसी शर्मनाक नौबत के लिए जिम्मेदार तो सीएम को ही माना जाता है। इसलिए योगी आज एक खतरे में है, और शायद ऐसे में उन्होंने अपने अस्तित्व रक्षा के लिए भी यह मुहिम शुरू की है।

अब हम मुद्दे की बात पर लौटें तो जिन लोगों को लग रहा है कि राह चलते कांवडिय़े अगर किसी मुस्लिम की दुकान से कुछ खा-पी लेंगे, तो उनसे उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा, तो ऐसे नाजुक धर्म की रक्षा के लिए कुछ दूसरे काम तुरंत करने चाहिए। एक तो यह कि हिन्दुओं के सारे उपवास का खाना-पीना साधारण नमक से नहीं होता, बल्कि सेंधे नमक से होता है जो कि पाकिस्तान के सिंध से आता है। उसमें जाने कितने मुस्लिमों का हाथ लगता होगा, इसलिए भी, और एक मुस्लिम देश से आ रहा है, इसलिए भी उपवास में इसका इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए। फिर सबसे बड़ी बात यह कि हिन्दुस्तान का अधिकतर पेट्रोलियम खालिस मुस्लिम देशों से आता है, और जिनकी धार्मिक भावनाएं बहुत अधिक नाजुक हैं, उन्हें डीजल-पेट्रोल का इस्तेमाल पूरी तरह छोड़ देना चाहिए। उससे देश की विदेशी मुद्रा भी बचेगी, और दूसरी तरफ प्रदूषण भी कम होगा। ऐसे लोग भारत के अधिक परंपरागत वाहनों का इस्तेमाल कर सकते हैं, और रथ पर चलने से एक गौरवशाली इतिहास की याद भी ताजा होती रहेगी। भारत में पटाखों का कारोबार अधिकतर मुसलमानों के हाथ में है, और पटाखे जलाना भी बंद करना चाहिए, इससे एक धार्मिक मकसद भी पूरा होगा, और दूसरी तरफ प्रदूषण भी घटेगा, सुप्रीम कोर्ट भी इस खुशफहमी में जी सकेगा कि उसके फैसले और हुक्म से पटाखों पर रोक लगी है। तमाम हिन्दू शादियों में इस बात पर भी गौर करना होगा कि कपड़ों पर कसीदाकारी, उनकी सिलाई किस धर्म के हाथों ने की है, और शादी चाहे दो-चार बरस बाद हो जाए, शादी के कपड़ों पर हाथ तो अपने मनपसंद ही लगने चाहिए। फिर शादी की घोड़ी लेकर किस जात-धरम का आदमी आया है, बैंड में किस जाति के लोग हैं, कौन लोग हैं जो शामियाना खड़ा कर रहे हैं, फूलों की माला किस धर्म के हाथों से होकर आई है, किसने सुहागरात का कमरा सजाया है, इन सबकी भी दरयाफ्त कर लेना जरूरी होगा, क्योंकि बाद में पता लगा कि किसी मुस्लिम के सजाए फूलों की शेज पर हिन्दुत्व की अगली पीढ़ी का निर्माण शुरू हो जाए, तो फिर घड़ी के कांटों को वापिस लाना भी मुश्किल होगा। जो खजूर खाड़ी के मुस्लिम देशों से आता है, उसका किसी भी शक्ल में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, और अफगानिस्तान जैसे देशों से किसी वक्त काबुलीवाला मेवे लाकर बेचकर चले जाता था, अब यह चालबाजी नहीं चलने देना चाहिए। साथ-साथ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बीफ खाने वाले डोनल्ड ट्रंप को गोली लगने पर हिन्दुस्तान में उसकी अच्छी सेहत के लिए हवन करने पर भी रोक लगना चाहिए, क्योंकि वह जब तक रहेगा, गाय खाते ही रहेगा।

बहुत से लोग सोशल मीडिया पर लिख भी रहे हैं कि महज सडक़ किनारे की दुकानों और ठेलों पर ही क्यों, अस्पताल के खून पर भी दानदाता का जात-धरम लिखना चाहिए, वरना किसी और का खून लग जाने पर बाद में पूरी जिंदगी धार्मिक भावनाओं के जख्म ही न भर पाएं। हमारा तो यह भी ख्याल है कि तमाम मंदिरों को दानपेटियां हटा देना चाहिए क्योंकि उनमें पडऩे वाले हर नोट और सिक्के जाने कितने ही विधर्मियों के हाथों से होकर आए होंगे, और जाने कितने ही मुस्लिम-ईसाईयों ने उन नोटों को गिनते हुए उन पर थूक भी लगाया होगा। ऐसे पैसे को मंदिर में घुसने देना, कम से कम यूपी और उत्तराखंड के लिए तो ठीक नहीं है, और इस बात को तो बिना देर किए लागू किया जा सकता है। फिर इन प्रदेशों में सिर्फ सडक़ किनारे के दुकानदारों का धरम उनके बोर्ड पर लिखवाना काफी नहीं है, हो सकता है कि कांवडिय़ों के आगे-आगे कोई गैरहिन्दू सडक़ पर चलकर जा रहा हो, और उसकी धूल पर कांवडिय़ों का पैर पड़ रहा हो, ऐसे में कांवडिय़ों के आगे मीलों तक सडक़ को धुलवाना भी चाहिए, और आगे चलने वाले लोगों के लिए भी कपड़ों के सीने पर नाम की तख्ती लगाना जरूरी करना चाहिए, वरना धार्मिक भावनाएं बहुत बुरी तरह आहत हो सकती हैं। साथ-साथ धर्मालु हिन्दुओं को अमरनाथ, वैष्णो देवी, या बद्री-केदार जैसे तीर्थों पर जाते हुए मुस्लिम कंधों पर लदकर चलने वाली पालकी पर नहीं बैठना चाहिए, और इसके साथ-साथ उनके हांके जाने वाले खच्चर-घोड़ों पर भी। धार्मिक भावना सबसे बड़ी चीज है, उसे आहत होने से बचाने की हर कोशिश करनी चाहिए।

हम तो हिन्दुस्तान के सुप्रीम कोर्ट को देखकर हैरान हैं जो कि एक जुबानी जमाखर्च के अंदाज में हेट-स्पीच के खिलाफ एक बड़ी कड़ी बात कहकर फिर मानो उसे भूल ही गया है। उसके बाद से अब तक हजारों नेताओं ने तरह-तरह की नफरती बातें कही हैं जो कि कैमरों पर दर्ज हैं, और जिनका चुनावी इस्तेमाल भी किया जा चुका है। इसके बाद से सुप्रीम कोर्ट इस पर सब कुछ देखते-सुनते हुए भी चुप बैठा है जिस तरह घर में रिटायर्ड बूढ़े अपने आखिरी बरस गिनते हुए बड़बड़ाते भी रहते हैं, और लोगों के अनसुना करने पर चुप भी रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपना कुछ वैसा ही हाल बना रखा है। वरना हिन्दुस्तान में आज हेट-स्पीच तो बहुत पीछे रह गई, बहुत नीचे छूट गई, अब तो यहां हेट-हरकतें चल रही हैं। गाय बचाने के नाम पर इंसानों को थोक में मारा जा रहा है, और इससे किसी अदालत की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा। फिलहाल यह उम्मीद की जानी चाहिए कि डीजल-पेट्रोल के बहिष्कार से, पटाखों और आतिशबाजी के बहिष्कार से देश में प्रदूषण घटेगा, और हिन्दुओं की सेहत सुधरेगी। इससे खाड़ी के मुस्लिम देशों की अर्थव्यवस्था चौपट भी होगी, और हिन्दुस्तान के बहुसंख्यक-हिन्दुओं का खासा पैसा भी बचेगा।

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