संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नेता-अफसर बड़े मुजरिमों की हिफाजत के लिए बने हुए हैं सीट बेल्ट-एयरबैग
24-Jul-2024 4:29 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :   नेता-अफसर बड़े मुजरिमों  की हिफाजत के लिए बने  हुए हैं सीट बेल्ट-एयरबैग

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कुछ बड़े बिल्डरों ने सरकारी नहर को लगभग पूरा ही पाट दिया, और अवैध कब्जा करके अवैध निर्माण भी कर लिया। नतीजा यह निकला कि तकरीबन बंद हो चुकी इस नहर पर इन बड़े कब्जों के आसपास और लोगों ने भी कब्जा कर लिया। अब एक जनहित याचिका के हाईकोर्ट पहुंचने पर वहां से जांच का हुक्म दिया गया तो राज्य शासन ने कलेक्टर की रिपोर्ट के हवाले से यह माना कि सरकारी नहर पर इन बड़े बिल्डरों ने अवैध कब्जा और अवैध निर्माण कर लिया है। हाईकोर्ट इस बात पर हैरान है कि कलेक्टर की रिपोर्ट के बाद भी राजधानी के नगर निगम ने इस अवैध कब्जे को हटाया नहीं है। अदालत ने निगम आयुक्त को नोटिस भेजकर इस पर जवाब मांगा है।

राज्य बनने के पहले से भी छत्तीसगढ़ के इस सबसे बड़े शहर का हाल देखें, तो यहां बड़े-बड़े बिल्डर सरकारी जमीन पर, नहर, नालों, और तालाबों पर कब्जा करके कॉलोनियां बना लेते हैं। अभी शहर की एक सबसे महंगी, और सबसे अधिक इश्तहार करने वाली कॉलोनी का हाल यह है कि उसने अपने भीतर कोटवार की सरकारी जमीन को घेर लिया है, और चारों तरफ कॉलोनी बनाकर बेच दी है। हाईकोर्ट ने इस जमीन को कोटवार के नाम चढ़ाने का हुक्म भी दिया है, लेकिन इससे भी इस बड़े बिल्डर और कॉलोनाइजर की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। राजधानी में, और प्रदेश के दूसरे तमाम शहरों में भी कॉलोनियां बनाने वाले लोग कहीं बगीचों की जमीन बेच खा रहे हैं, तो कहीं खेल के मैदान पर मंदिर बना दे रहे हैं। इन पर कोई कार्रवाई इसलिए नहीं होती क्योंकि जिन विभागों को ऐसे गैरकानूनी कामों पर कार्रवाई करनी रहती है, उसके बड़े-बड़े अफसरों को अपनी कॉलोनी में पहले से चुनिंदा जमीनें दे दी जाती हैं, और उसके बाद ऐसे बिल्डरों के गैरकानूनी कामों को हिफाजत देना इन अफसरों की जिम्मेदारी हो जाती है। कई बरस हुए इस राजधानी में स्वागत विहार नाम की एक विवादास्पद कॉलोनी सरकारी जमीन पर कब्जा करके बना ली गई थी, और उस पर प्लॉट बेच दिए थे। बाद में शिकायतें होने पर पता लगा कि इस कॉलोनाइजर ने आसपास की तमाम सरकारी जमीनों पर कब्जा करके उसे बेच खाया था। मामले की जांच हुई तो इस कॉलोनी में प्लॉट पाने वाले अफसरों की लिस्ट में प्रदेश के सबसे बड़े अफसरों के, उनके रिश्तेदारों के नाम भरे पड़े थे, और ऐसे लोगों को उपकृत करने वाले मुजरिम पर हाथ डालने वाला कानून भला इस देश में कैसे बन सकता है? नतीजा यह हुआ कि स्वागत विहार में सरकारी जमीन पर कब्जे और उसकी बिक्री का साफ-साफ मामला रहते हुए भी वहां जमीन खरीदने वाले लोगों को बचाने के नाम पर सरकार ने किसी तरह इस मामले का निपटारा किया। जबकि सरकार की नीयत आम खरीददारों को बचाने की नहीं थी, बल्कि जो आला अफसर यहां जमीन के मालिक बन गए थे, उनके कब्जों को बचाने की थी।

छत्तीसगढ़ में हमने बीते दशकों में यह सबसे बड़ा खेल देखा है कि शहरों के नक्शों में अलग-अलग जमीनों के भू-उपयोग तय करते हुए जिसे फायदा पहुंचाना हो, उसकी रिहायशी जमीन को भी कारोबारी बना दिया जाए, और जिससे नाराजगी हो उसकी कारोबारी या रिहायशी जमीन को भी उद्यान या किसी और सार्वजनिक उपयोग का बना दिया जाए। राज्य शासन के बड़े-बड़े नौकरशाहों ने, और नेताओं ने अपनी जमीनों का सिर्फ रंग बदलवाकर करोड़ों की जमीन को अरबों का करवा लिया, और अपने आपको साफ-सुथरा भी बताते रहे। अभी हाईकोर्ट में मामला जाने के बाद भी सरकारी नहर पर से कब्जा अगर नहीं हट रहा है, तो सत्ता पर काबिज कुछ नेता और अफसर इस कार्रवाई को रोक रहे होंगे, क्योंकि जिस तरह किसी हादसे से बचने के लिए कारों में एयरबैग लगाए जाते हैं, उसी तरह कॉलोनाइजर अपनी स्कीम (या स्कैम?) में कुछ नेताओं और अफसरों को जमीनें देकर रखते हैं, और ऐेसे लोग एयरबैग बनकर कॉलोनाइजर की हिफाजत करते हैं। इस ताजा मामले में होना तो यह चाहिए था कि सरकार एक मिसाल कायम करती, सरकारी जमीन, खासकर सार्वजनिक उपयोग की नहर जैसी सहूलियत पर कब्जा कर लेना, सरकारी नालों को अपनी योजना के भीतर ले लेना, सरकारी जमीनों के इर्द-गिर्द अपनी कॉलोनी बना लेना, इन सब पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए थी। आज एक तरफ तो प्रदेश के अलग-अलग शहरों से यह सुनाई पड़ता है कि प्रशासन ने गैरकानूनी प्लॉटिंग करके जमीन बेचने वाले लोगों पर कार्रवाई की, और मशीनों से ऐसी अवैध कॉलोनियों को तहस-नहस कर दिया। दूसरी तरफ सरकारी नहर पर अवैध कब्जा और अवैध निर्माण करने वाले लोग धड़ल्ले से बड़े-बड़े कारोबार कर रहे हैं। कानून के खिलाफ काम करने वाले ऐसे बड़े बिल्डरों के इश्तहारों का दबाव इतना रहता है कि आमतौर पर हमलावर बने रहने वाले अखबार और टीवी चैनल भी सबसे बड़े मुजरिमों के मामलों में आंखें बंद कर लेते हैं, और फिर अपने कारोबारी कार्यक्रमों में अपने मंच पर ऐसे ही मुजरिमों को बुलाकर मंत्री-मुख्यमंत्री के हाथ से उनका सम्मान करवाते हैं। हमें इस बात पर भी हैरानी होती है कि जिन कारोबारियों के खिलाफ कई तरह के मुकदमे दर्ज रहते हैं, उनका सम्मान करने के लिए मंत्री-मुख्यमंत्री तैयार कैसे हो जाते हैं? पिछली सरकार में एक स्पा सेंटर चलाने वाले का सम्मान सीएम के हाथों करवाया गया था, और बाद में वह स्पा सेंटर वेश्यावृत्ति करते पकड़ाया था। सरकार में बैठे नेताओं को भी किसी कार्यक्रम में ऐसे नाजायज सम्मान करने से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसे सम्मान के बाद ये मुजरिम अफसरों पर और अधिक दबाव डालने की हालत में आज जाते हैं।

फिलहाल छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जिस मामले पर छत्तीसगढ़ सरकार और रायपुर म्युनिसिपल को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाई है, उस मामले पर आगे क्या होता है, यह देखना चाहिए। इसी राजधानी में सबसे बड़े अवैध कब्जे, और सबसे बड़े अवैध निर्माण हाईकोर्ट में मुकदमा हारने के बाद भी मजबूती से जमे हुए हैं, और दसियों करोड़ रूपए साल की कमाई कर रहे हैं। मुकदमा जीती हुई सरकार अपनी जीत के बाद भी मुजरिमों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है, ऐसा करने वाली प्रदेश की यह तीसरी सरकार चल रही है, और इससे मुजरिमों की ताकत का अंदाज लगाया जा सकता है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट अगर चाहे तो वह लगे हाथों यह पूछ सकता है, कि उसके पिछले फैसलों पर दस-दस बरस हो जाने पर भी कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई है। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी अवैध निर्माण इस शहर में टूटा नहीं है, और अपने फैसले पर अमल के लिए सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को ही इंचार्ज बनाया था।

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