संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सुबह के भूले जो बाइडन शाम तक घर लौटे, कमला हैरिस की घोषणा
22-Jul-2024 4:31 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : सुबह के भूले जो बाइडन शाम तक घर लौटे, कमला हैरिस की घोषणा

दुनिया का एक बड़ा असमंजस आज खत्म हुआ। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपनी पार्टी के लोगों, दानदाताओं, और शुभचिंतकों की बात सुनी, और राष्ट्रपति चुनाव न लडऩा तय किया। उन्होंने इसके साथ-साथ अपनी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का नाम डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार के लिए सुझाया है। वे न सिर्फ राष्ट्रपति चुनाव से बाहर हो गए हैं, बल्कि उन्होंने पार्टी के भीतर एक दुविधा को भी खत्म कर दिया कि उनके बाद अब और किसे उम्मीदवार बनाया जाए। बाइडन का समर्थन करने वाले जितने लोग हैं, उनमें से अधिकतर अब कमला हैरिस के साथ हो जाएंगे, और ऐसा माना जा रहा है कि चुनाव इतना करीब आ चुका है कि डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर कमला हैरिस को चुनौती देने की हसरत रखने वाले लोग भी पार्टी में अस्थिरता पैदा करने की तोहमत पाना नहीं चाहेंगे, और ऐसा लगता है कि रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार, भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के मुकाबले अब कमला हैरिस की उम्मीदवारी तय हो सकती है। जो बाइडन ने न सिर्फ मुकाबले से बाहर होना तय किया है बल्कि कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति बनाने को अपना सबसे अच्छा फैसला भी घोषित किया है, इस तरह से अब उनका पूरा समर्थन कमला हैरिस को है। भारतवंशी मां और जमैका से अमरीका आए पिता की संतान, कमला हैरिस अमरीका की पहली महिला राष्ट्रपति भी बन सकती है, और वे पहली काली महिला राष्ट्रपति उम्मीदवार तो बनी हुई दिख रही है। अमरीका के सामने ओबामा के बाद अब यह दुविधा तो नहीं बची है कि क्या कोई काला अमरीकी राष्ट्रपति बन सकता है, लेकिन महिला को राष्ट्रपति बनाने वाले लोगों को तब निराशा हुई थी जब हिलेरी क्लिंटन को राष्ट्रपति चुनाव में शिकस्त मिली थी। अमरीकी समाज को इस बार कमला हैरिस की शक्ल में पहली काली महिला चुनने का मौका मिल रहा है, देखते हैं उसका फैसला क्या होता है। यहां यह भी जिक्र करना काम का हो सकता है कि एक पिछले अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा का नाम भी डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार के तौर पर लिया गया था, लेकिन उन्होंने खुद ही इन चर्चाओं को खारिज कर दिया था। ओबामा का नाम जो बाइडन के उन शुभचिंतकों में शामिल था जिन्होंने राष्ट्रपति को मनाने की कोशिश की थी कि अपनी सेहत और उम्र का हाल देखते हुए उन्हें चुनाव नहीं लडऩा चाहिए।

 

कमला हैरिस को लेकर भारत के जो लोग अतिउत्साही हैं, उन्हें यह बात याद रखना चाहिए कि वे वहीं पर पैदा हुई हैं, और उनकी मां भारत के तमिलनाडु से अमरीका जाकर विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक की तरह काम किया था, और वहीं जमैका से आए एक छात्र से उनकी मुलाकात हुई थी, और फिर शादी के बाद कमला हैरिस का जन्म हुआ। कमला हैरिस का अपने पुरखों के यहां चेन्नई आना-जाना लगे रहा, लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति के रूप में हिन्दुस्तान को उनसे किसी रियायत की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। भारत के मामलों को अगर वे बारीकी से देखती भी होंगी, तो भी वे इस देश की कई मौजूदा बातों को लेकर निराश भी होंगी। लेकिन भारत की महिलाओं के लिए यह एक प्रेरणा की बात हो सकती है कि किस तरह कमला की मां ने भारत से जाकर बर्कले विश्वविद्यालय में पहले दाखिला पाया था, फिर काम किया था, और उनकी बेटी आज अमरीकी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार है। अमरीका में नस्लीय भेदभाव और रंगभेद अपनी जगह है, लेकिन वहां हर किस्म के लोगों की आगे बढऩे की संभावनाएं अपार रहती हैं। अमरीका की इस खूबी से आज कम से कम हिन्दुस्तान सरीखे देश को यह सीखने मिल सकता है कि किस तरह हर किसी को बराबरी से आगे बढऩे के मौके दिए जाएं, तो देश में कैसी प्रतिभाएं सामने आ सकती हैं। हिन्दुस्तान में विख्यात वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम के इतिहास गढ़ देने के बाद भी आज किसी अब्दुल को सडक़ किनारे चायठेला लगाने में भी खतरा झेलना पड़ रहा है, और ऐसे देश को अमरीका में पैदा कमला हैरिस के आसमान तक पहुंचने पर खुशी मनाने का ज्यादा हक तो है नहीं।

खैर, हिन्दुस्तान से परे अमरीका की बात करें, तो जो बाइडन ने समय रहते एक अच्छा फैसला लिया है। उनकी उम्र उनकी जीत की संभावनाओं को घटा रही थी, और उनकी सेहत बार-बार लडख़ड़ा रही थी। यह एक अलग बात है कि पिछली आधी सदी के संसदीय जीवन का एक असाधारण और अनोखा तजुर्बा उनके साथ था जो कि जटिल अंतरराष्ट्रीय स्थितियों में मुश्किल फैसले लेने में मददगार हो सकता था। लेकिन चुनाव तो जनधारणाओं पर भी लड़ा जाता है, और ट्रंप की तरह गोली खाए हुए, और जख्मी सांड की तरह मंच और माईक पर फुंफकारते हुए रिपब्लिकन उम्मीदवार के सामने जो बाइडन की संभावनाएं बुरी तरह सिमट चुकी थीं। ऐसे में उन्होंने अपनी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का नाम बढ़ाकर एक अच्छा फैसला लिया है, वरना बहुत बुरी तरह शिकस्त की हालत में उन्हें इतिहास में अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचाने वाला दर्ज किया जाता। आज वे बेफिक्र होकर राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा कर सकते हैं, और डेमोक्रेटिक पार्टी इस तोहमत से भी बच रही है कि उसने पहली बार किसी काली महिला की संभावनाएं पैदा होने पर भी उन्हें खारिज कर दिया। ट्रंप कल तक बाइडन को कमजोर और बीमार साबित कर रहे थे, अब कमला हैरिस के मुकाबले वे खुद बूढ़े दिखने लगेंगे। फिर यह भी है कि ट्रंप अपनी बदजुबानी, बददिमागी, और बदचलनी के साथ कमला हैरिस के मुकाबले अधिक बुरे दिखने लगेंगे, जिनके साथ किसी तरह का कोई दाग लगा हुआ नहीं है। हालांकि जो बाइडन के साथ भी उनके जवान बेटे के एक-दो कानूनी मामलों से परे कोई बड़े विवाद नहीं थे, लेकिन कमला हैरिस बाइडन के मुकाबले भी अधिक बेदाग हैं।

अमरीकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार तय करने का काम उनकी पार्टी का कोई संगठन नहीं करता है, बल्कि पूरे देश में बिखरे हुए पार्टी के स्थानीय नेता बड़े लोकतांत्रिक तरीके से करते हैं जिसे भारत के मॉडल से नहीं समझा जा सकता। वहां पर अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनने के लिए पार्टी के नेताओं के बीच मंच और माईक से जैसा खुला मुकाबला होता है, वह बड़ा पारदर्शी और हिम्मती काम होता है। एक-दूसरे के खिलाफ मतभेद खुलकर सामने आते हैं, और जब किसी एक उम्मीदवार को सबसे अधिक समर्थन मिल जाता है, तो फिर बाकी के दावेदार भी उसका साथ देते हैं। वह एक अलग ही किस्म की राजनीतिक व्यवस्था है, और भारत में जिस तरह पार्टियों में आंतरिक तानाशाही चलती है, यहां अमरीकी मॉडल को समझना भी मुश्किल है। कमला हैरिस की उम्मीदवारी से, जो कि तय सी लग रही है, उससे हमें कुछ बातों की खुशी है कि ट्रंप जैसे घटिया इंसान के मुकाबले अमरीकी मतदाताओं को एक भली और काबिल महिला को चुनने का मौका मिल रहा है। एक काली महिला को राष्ट्रपति बनाने का मौका पहली बार है, और कमला हैरिस ने पिछले चार बरस राष्ट्रपति भवन के काम को, और उस मार्फत पूरी दुनिया को बड़ी बारीकी से देखा है। वे जो बाइडन की विचारधारा और रणनीति को ही मोटेतौर पर जारी रख सकती हैं, और ट्रंप की शक्ल में दुनिया के सामने खड़े हुए एक भयानक खतरे को टालने के लिए वे एक विकल्प की तरह मौजूद हैं। आज अरब देशों से लेकर पूरे के पूरे योरप तक कोई भी ट्रंप को झेलने के लिए तैयार नहीं है, ट्रंप एक पूरी तरह सिद्धांतहीन, बेअक्ल सनकी तानाशाह है, लेकिन अमरीकी जनता एक बार उसे चुन चुकी है, और अमरीकी जनता के बहुमत का फैसला हमेशा सही रहता हो, ऐसा जरूरी भी नहीं है, वह घटिया लोगों को भी चुनने का भी इतिहास रखती है।

फिलहाल जो बाइडन ने बहुत अधिक देर किए बिना एक सही फैसला अपनी पार्टी और अमरीकी वोटरों के सामने रखा है, और हम भी इससे चुनाव में पडऩे जा रहे फर्क को लेकर उत्साहित हैं कि डेमोक्रेटिक उम्मीदवार को महज बढ़ती उम्र और घटती ताकत की वजह से खारिज नहीं किया जाएगा, और ट्रंप के मुकाबले करीब बीस बरस छोटी कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए भी एक बेहतर लंबे भविष्य की उम्मीद है, अमरीका के लिए तो है ही। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news