संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : हर किस्म के मुजरिमों के पकड़ाने के बाद भी औरों का हौसला पस्त क्यों नहीं?
13-Jul-2024 3:38 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : हर किस्म के मुजरिमों के पकड़ाने के बाद भी औरों का हौसला पस्त क्यों नहीं?

तस्वीर / ‘छत्तीसगढ़’

चारों तरफ चल रहे जुर्म देखकर यह लगता है कि बहुत से लोगों के लिए आज पैसा ही सब कुछ है। लोग कॉलेज में पढ़ाने का इज्जत का पेशा छोडक़र लोगों को ठगने के धंधे में उतर रहे हैं, एक लडक़ा अपने ही मां-बाप से रकम लूटने के लिए अपने अपहरण की झूठी कहानी गढ़ रहा है, अपनी हिंसक पिटाई का झूठा वीडियो बनवा रहा है, और पुलिस की पकड़ में भी आ जा रहा है। ऐसी दर्जन भर खबरें आज ही के अखबार में हैं, और सारी की सारी एक राज्य में हुई वारदातों की हैं। एक नाबालिग लडक़ी अपने मौजूदा ब्वॉयफ्रेंड के साथ मिलकर अपने किसी सोशल मीडिया फ्रेंड को खाड़ी के देश से बुलवाती है, और उसके बैंक खाते से दो-तीन लाख रूपए लूटकर दोनों उसका कत्ल कर देते हैं, डेढ़ दर्जन टुकड़े कर देते हैं, और अलग-अलग बैग में भरकर उन टुकड़ों को फेंक देते हैं। पैसों के लिए ही एक भाई अपने दूसरे भाई और मां का कत्ल कर देता है। कहीं एक नक्सल-शहीद की पत्नी को सरकार से मिली सहायता राशि को दो लोग मिलकर ठग लेते हैं, पूरी रकम निकाल लेते हैं। सरकार के अलग-अलग विभाग खुली धोखाधड़ी करते हैं, कहीं धान का स्टॉक गायब है, और एफआईआर हो रही है, तो कहीं किसी और तरह की जालसाजी की जा रही है।

पहली नजर में हमें लगता है कि इनमें से अधिकतर लोगों को इस बात का अंदाज रहना चाहिए था कि उनके जुर्म का हमेशा के लिए छुपना आसान या मुमकिन नहीं होगा। इन दिनों ऐसे कोई जुर्म नहीं छिप पाते हैं जिनमें मोबाइल फोन या कम्प्यूटर का इस्तेमाल होता है, जो सीसीटीवी कैमरों पर कैद रहते हैं, या बैंकों से रकम की आवाजाही रिकॉर्ड में रहती है। हर दिन अखबारों में ऐसे मुजरिमों की पकड़े जाने की खबर आती है, फिर भी लोग रूपए-पैसे की लालच में अगर उम्रकैद पाने लायक जुर्म करते हैं, तो पता नहीं उनके दिमाग का कौन सा हिस्सा उन्हें ऐसा खतरा लेने की सलाह देता है। आज के वक्त शायद ही कोई बड़ा जुर्म ऐसा होता हो जिसमें मुजरिम पकड़ में न आते हों, इसके बावजूद कुछ दिनों के लिए रकम पा लेने का लालच लोगों की तमाम सोच-समझ को खत्म करते दिखता है। हमें तो यह भी देखकर हैरानी होती है कि छत्तीसगढ़ के बड़े-बड़े अफसरों ने अंधाधुंध भ्रष्टाचार किया, खुला जुर्म किया, और इसकी काली कमाई से बेतहाशा जमीन-जायदाद खरीद ली, जबकि यह बात साफ थी कि ऐसी खरीदी रिकॉर्ड में दर्ज होते चल रही है। यह भी हो सकता है कि उन्हें इस बात पर अपार भरोसा रहा हो कि सरकारें आमतौर पर भ्रष्ट के खिलाफ केस नहीं चलाती हैं, और रहस्यमय कारणों से ऐसी रियायत मिल जाती है। हो सकता है कि ऐसी रियायत खरीदने की उम्मीद में इन अफसरों ने बेधडक़ जुर्म किए हों, और खुद सैकड़ों करोड़ कमाने के फेर में सरकारी खजाने को हजारों करोड़ का चूना लगाया हो। कुल मिलाकर जुर्म चाहे निजी रिश्तों में हों, या सरकारी कामकाज में, यह बात साफ दिखती है कि पैसों का मोह लोगों से हर किस्म का जुर्म करवा रहा है। कोई भूखे मरते लोग एक पैकेट डबल रोटी के लिए भी किसी का कत्ल कर दें, तो भी बात समझ में आती है, लेकिन जब खाते-पीते लोग और अधिक पैसों की चाह में हर किस्म का जुर्म करने लगते हैं, तो फिर लगता है कि यह पैसों की अंधी भूख है।

कुछ लोगों का कहना है कि आज की दुनिया में एक-दूसरे से आगे बढऩे की एक अंधी होड़ ऐसी रहती है कि दूसरों की संपन्नता देख-देखकर कई लोगों के दिल सुलगते रहते हैं, और वे जुर्म भी करने को तैयार हो जाते हैं। अब ऐसे में जो दुनिया के सबसे रईस हैं, उन्हें देख-देखकर तो बाकी तमाम दुनिया का दिल जल सकता है, तो क्या सारी दुनिया ही मुजरिम हो जाए? आज मुकेश अंबानी की बेटे की शादी में पिछले कई हफ्तों से देश-विदेश में जश्न चल रहे हैं, अरबों का खर्च हो चुका होगा, हो सकता है कि शादी का खर्च खरबों में चले जाए, लेकिन क्या उसे देखकर और लोग अपने घर की शादी की शान-शौकत बढ़ाने के लिए जुर्म करने लगें? हर शहर में बड़ी-बड़ी करोड़ों की गाडिय़ां दौड़ाते बहुत से लोग रहते हैं, तो क्या उन शहरों में पैदल या साइकिल पर चलने वाले मुजरिम बनने लगे? यह तर्क सही नहीं लगता है। अभाव लोगों का स्वभाव इतने बड़े पैमाने पर नहीं बदलता, लेकिन कुछ लोग जो अपने मिजाज से जुर्म से परहेज नहीं करते, वैसे कुछ लोग जरूर पैसों की चकाचौंध में नजरें खोकर जुर्म करते होंगे, लेकिन आमतौर पर जुर्म की ऐसी रकम का इस्तेमाल करने के लिए लोग आजाद नहीं रह जाते।

आज दुनिया में मुजरिमों के पकड़ाए जाने के मामले इतने बढ़े हुए हैं कि किसी को जुर्म करने के पहले उस जुर्म की अधिकतम संभव कैद के बारे में भी सोच लेना चाहिए। पकड़ाए मुजरिमों की खबरों को भी देख लेना चाहिए। एक सवाल मन में यह भी उठता है कि क्या जेल की जिंदगी का खौफ लोगों के मन में पूरी तरह खत्म हो गया है जो वे बेखौफ जुर्म करते रहते हैं? क्या अखबारों में रोज दर्जनों मुजरिमों के पकड़ाने की खबरों के बाद भी लोगों को और नसीहत देने की जरूरत है कि जुर्म करने से सजा मिलना तकरीबन तय रहता है? हो सकता है कि बहुत से लोग अखबार न पढ़ते हों, और उन्हें जुर्म से जुड़े खतरों का अहसास न रहता हो, तो ऐसे में शायद सरकार और पुलिस को चाहिए कि वे मुजरिमों के पकड़ाने, और उनके सजा पाने की खबरों को खुलासे के साथ सोशल मीडिया पर भी फैलाएं ताकि बाकी लोगों को उससे कुछ नसीहत मिल सके। कुल मिलाकर आज पैसों के लिए, या निजी रिश्तों की तनातनी में होने वाले सबसे बड़े जुर्म बड़ी संख्या में हो रहे हैं। सरकार और समाज को जानकार लोगों के साथ मिलकर जागरूकता का कोई अभियान चलाना चाहिए ताकि जिन और लोगों के मन में जुर्म करने का इरादा उबल रहा हो, उनके हौसलों पर कुछ पानी फिर सके। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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