संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : यह बीज किसी और का नहीं, ट्रंप का ही लगाया हुआ था...
15-Jul-2024 4:50 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : यह बीज किसी और का नहीं,  ट्रंप का ही लगाया हुआ था...

अब जब अमरीका में रिपब्लिकन उम्मीदवार और भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप गोली से मिले जख्म से उबरकर आगे के चुनाव अभियान में जुट गए हैं, तब अमरीका को वहां के राजनीतिक और सार्वजनिक माहौल पर एक नजर डालना चाहिए। ऐसा भी नहीं कि अमरीका को हमारी नसीहत की जरूरत है, वहां पर यह आत्ममंथन चल ही रहा है कि 20 बरस का एक नौजवान किस तरह एक तीन फीट की रायफल लेकर पूर्व राष्ट्रपति की आमसभा के किनारे एक इमारत की छत पर पहुंच जाता है, और वहां से ट्रंप पर गोलियां भी चलाता है। किस तरह बिना पुलिस या मिलिट्री ट्रेनिंग वाला यह नौजवान इतना अचूक निशाना लगाता है कि वह ट्रंप के सिर तक तो पहुंच ही जाता है। कल हमने इसी जगह यह लिखा था कि अमरीका में बंदूकों की संस्कृति और आसानी से उसकी उपलब्धता की वजह से वहां बंदूक-हिंसा कितनी अधिक होती है। कल ही जब ट्रंप टीवी स्क्रीन से हटे भी नहीं थे कि वहां एक नाईट क्लब में गोलीबारी हुई, और चार लोग मारे गए। आज अमरीका को यह सोचना चाहिए कि नागरिकों से अधिक संख्या में बंदूकों की वजह से तो हिंसा का खतरा रहता ही है, उससे परे भी कौन सी ऐसी वजहें हैं कि ट्रंप पर ऐसा हमला हुआ है? 

यह याद रखने की जरूरत है कि ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के पहले से भी महिलाओं के बारे में जिस हिकारत का नजरिया सार्वजनिक रूप से पेश किया था, और उन्हीं की कुछ रिकॉर्डिंग बाद में यह बताते हुए भी सामने आई थीं कि मर्द कामयाब रहें तो वे महिलाओं को उनके गुप्तांगों से भी पकड़ सकते हैं, और उनका कुछ नहीं बिगड़ता। अमरीका में जिन लोगों की सोच मर्दवादी हिंसा से लदी हुई है, उनके लिए ट्रंप का यह फतवा एक और हिंसक उकसावा था, और इसका असर उनके समर्थक अमरीकी मर्दों की सोच पर निश्चित ही पड़ा होगा। राष्ट्रपति रहते हुए भी उनके फतवे नस्ल और रंग के आधार पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ थे, दूसरे देशों से आए हुए प्रवासियों के खिलाफ थे, और गरीबों के खिलाफ थे। इन सबसे भी समाज के एक तबके में हिंसक सोच बढ़ी होगी। लेकिन हम इन बातों को भी छोडक़र आगे बढ़ते हैं कि जब नवंबर 2020 में ट्रंप चार साल का कार्यकाल पूरा करके चुनाव हार चुके थे, तो उन्होंने चुनावी-धांधली के झूठे और बेबुनियाद आरोप लगाते हुए पूरे देश में तनाव और नफरत का एक ऐसा अलोकतांत्रिक और अराजक माहौल बनाया था कि जिससे अमरीकी इतिहास की एक सबसे बुरी हिंसा हुई। जब अमरीकी संसद संयुक्त सत्र में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन के आखिरी वोटों की गिनती पर औपचारिक मुहर लगनी थी, तब ट्रंप ने खुले हिंसक फतवे जारी करके अपने समर्थकों को संसद पर झोंक दिया था, और उनके हजारों समर्थक हथियारबंद होकर संसद में घुस गए थे, और पुलिस और सुरक्षाबल उन पर काबू भी नहीं कर सके थे क्योंकि अमरीका में किसी ने ऐसा भयानक सपना भी कभी नहीं देखा था। बाद में संसदीय जांच की सुनवाई में यह सामने आया कि किस तरह ट्रंप के सहयोगी उनसे यह अपील कर रहे थे कि वे अपने समर्थकों को हिंसा से रोकें, और टं्रप ने ऐसी कोई भी अपील करने से साफ मना कर दिया। जाहिर तौर पर ट्रंप एक राज्य के अपनी पार्टी के गवर्नर को वोटों में हेराफेरी करने के लिए एक टेलीफोन कॉल पर अच्छी तरह दर्ज हुए थे, और अपने समर्थकों को हिंसा के लिए भडक़ाने में भी। संसदीय जांच समिति ने बाद में यह पाया था कि ये तमाम हमले ट्रंप की ही साजिश का हिस्सा थे, जिनमें कई लोग मारे भी गए थे, और करीब पौने दो सौ पुलिस अफसर भी जख्मी हुए थे। ट्रंप ने अमरीका के सबसे अधिक कट्टर, तथाकथित राष्ट्रवादी, नस्लवादी, और हिंसक संगठनों को उकसाया था, और उन्होंने लोकतंत्र बचाने के नाम पर अमरीकी संसद पर अभूतपूर्व, और ऐतिहासिक हिंसक हमला किया था। 

यहां पर यह भी याद रखने की जरूरत है कि चार बरस राष्ट्रपति रहते हुए, उसके पहले और उसके बाद भी ट्रंप ने अमरीका में लोकतंत्र के लिए जो परले दर्जे की हिकारत दिखाई थी, उसका असर वहां के लाखों लोगों पर पड़ा होगा, और उनमें ट्रंप के ऐसे कट्टर समर्थक भी हैं जिनका मानना था कि जो बाइडन की राष्ट्रपति पद पर जीत हेराफेरी और धांधली से हासिल की गई थी। जब किसी लोकतंत्र में अराजकता को खूब बढ़ावा दिया जाता है, जब किसी दूसरे को अलोकतांत्रिक तरीके से जीता हुआ बताया जाता है, धर्म, और नस्ल के आधार पर नफरत फैलाई जाती है, जब अराजक और हिंसक आंदोलनों के फतवे जारी किए जाते हैं, तब इन सबसे उपजी नफरत आगे कितनी बढ़ती है, और कहां जाकर थमती है, इस पर नफरती-फतवेबाज का भी काबू नहीं रहता। इसलिए एक तरफ जब ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी के अपने समर्थकों के बीच नफरत और हिंसा भर रहे थे, तब उसकी एक प्रतिक्रिया भी हो रही थी, और बहुत से लोग ट्रंप को भी नापसंद कर रहे थे। अभी जिस नौजवान ने ट्रंप पर गोलियां चलाई है, वह तो रिपब्लिकन पार्टी का रजिस्टर्ड वोटर भी था। अब उसने किस नीयत से यह हमला किया था उस बारे में उसका बताया जा रहा एक वीडियो यह कहता है कि वह ट्रंप और रिपब्लिकन पार्टी से नफरत करने लगा था। अब जहां हर हाथ में काम हो या न हो, बंदूक जरूर है, सैकड़ों मीटर दूर तक मार करने वाली बंदूकों में टेलीस्कोप भी लगे हैं, और साइलेंसर भी, फौजी जरूरतों की बंदूकें घर-घर में हैं जो कि एक मिनट में उसके सेेकेंड से भी अधिक गोलियां दाग सकती हैं, तो फिर ऐसे हथियारबंद नागरिकों वाले देश में लोगों को लोकतंत्र के खिलाफ हिंसक और अराजक बगावत करने के लिए उकसाना बहुत खतरनाक हो सकता है। अभी ट्रंप की सभा में जो हिंसक हमला सामने आया है, उस हिंसक सोच के बीज इसी दशक में ट्रंप ने ही बोए थे, और उसमें खाद-पानी भी डाला था। 

दुनिया के जिन देशों में भी नफरती और हिंसक फतवे दिए जाते हैं, वहां पर कब कौन सा फतवा उसे देने वाले के ही खिलाफ जानलेवा साबित हो जाए, इसका कोई ठिकाना तो रहता नहीं है। अमरीका की इस ताजा हिंसा से खुद अमरीका के भीतर तो सबक लेने की बात हो ही रही है, बाकी दुनिया को भी अमरीका के आज के तनाव से सबक लेना चाहिए, और नफरत फैलाने के खतरों को समझना चाहिए। लोकतंत्र में नफरत फैलाना जंगल में आग लगाने सरीखा रहता है जिसमें बाद में आग को बुझाना खुद अपने काबू का नहीं रह जाता। हिन्दुस्तान में भी सुप्रीम कोर्ट साल भर से हेट स्पीच के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राज्य सरकारों, और पुलिस पर दबाव बनाए हुए हैं, लेकिन अदालत की बार-बार की नाराजगी भी जमीन पर पूरी तरह बेअसर दिखती है, क्योंकि भारत का पिछला लोकसभा चुनाव पूरे का पूरा नफरत से भरा हुआ था। नफरत से अगर किसी तबके के लिए समर्थन जुटता है, तो किसी दूसरे तबके की प्रतिक्रिया ऐसे पहले तबके के खिलाफ भी हिंसक हो सकती है। अमरीका का आज का हाल बाकी दुनिया के लिए एक बड़ा सबक है, जो उससे सीखना चाहें, वे सीख लें, बाकी के सामने खुद ठोकर खाकर अपना बड़ा नुकसान करने की आजादी तो है ही।   (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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