राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : अधिवेशन के खर्च पर पूछताछ
02-Apr-2023 4:28 PM
राजपथ-जनपथ : अधिवेशन के खर्च पर पूछताछ

अधिवेशन के खर्च पर पूछताछ 
चर्चा है कि ईडी कांग्रेस अधिवेशन के खर्चों की पड़ताल कर रही है। ईडी का अंदाजा है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में करीब 25 करोड़ खर्च हुए हैं। ये खर्चा शराब कारोबारियों, और उद्योगपतियों ने वहन किया है। छापों के बीच ईडी अफसरों ने कुछ लोगों से इसी का हिसाब किताब कुरेद-कुरेद कर पूछा। लेकिन इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला, तो ईडी के अफसर काफी खफा भी हुए।

कुछ लोग मानते हैं कि ईडी का दावा गलत है। क्योंकि होटल आदि के पेमेंट तो अभी तक नहीं हुए हैं। होटल वाले चक्कर काट रहे हैं। वैसे भी सबको अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई थी। ऐसे में किसी एक के पास हिसाब-किताब नहीं मिल सकता। हल्ला यह भी है कि ईडी अफसर अधिवेशन की व्यवस्था संभालने वाले कुछ और लालबत्तीधारी लोगों के यहां धमक सकती है। देखना है कि आगे क्या होता है।

संगठन पर चर्चा जारी 
कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव का खाका तैयार हो रहा है। सीएम भूपेश बघेल ने पिछले दिनों दिल्ली में प्रियंका गांधी वाड्रा से चर्चा की थी, और फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े से मंत्रणा हुई। चर्चा है कि खडग़े ने प्रभारी महामंत्री केसी वेणुगोपाल से भी बात की। इन चर्चाओं में विधानसभा चुनाव के चलते संगठन को बेहतर करने पर जोर दिया गया।

सुनते हैं कि सीएम ने अपनी तरफ से काफी कुछ सुझाव दिए हैं। इन सुझावों पर हाईकमान मंथन कर रहा है। इससे पहले प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम से सचिवों की सूची मांगी गई थी। संगठन मेें कुल 90 सचिव नियुक्त होना है। सीएम के सुझाव के बाद सचिवों की नियुक्ति फिलहाल टल गई है। अब कुछ और बदलाव के साथ ये नियुक्तियां होंगी। 6 अपै्रल को संसद सत्र खत्म होने के बाद फेरबदल होगा। देखना है कि आगे क्या बदलाव होता है।

सामाजिक सर्वेक्षण पर वायरल अपील
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की घोषणा के अनुसार एक अप्रैल से सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण शुरू हो गया है। सर्वेक्षण टीम गांव-गांव जाकर मकानों की नंबरिंग कर रहे हैं। परिवार की मुखिया की जानकारी ले रहे हैं। शैक्षणिक योग्यता, प्रधानमंत्री आवास का लाभ, धान विक्रय, आधार नंबर, राशन कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड, परिवार के पास भूमि और उसकी सालाना आमदनी, सिंचाई का साधन, वाहन और अन्य चल संपत्ति, कच्चे-पक्के मकान, कौशल प्रशिक्षण, मोबाइल नंबर, उज्जवला गैस कनेक्शन आदि की जानकारी भी सर्वेक्षण टीम जुटा रही है। इधर सोशल मीडिया विशेषकर व्हाट्सएप में एक सूचना वायरल हो रही है जिसमें दूसरे राज्यों में कमाने खाने के लिए गए लोगों को सर्वेक्षण में भाग लेने के लिए लौटने की अपील की जा रही है। ऐसा भी है कि नहीं लौटेंगे तो उनका विवरण दर्ज नहीं होगा। जबकि वास्तविकता यह है कि प्रशासन की ओर से इस तरह का कोई निर्देश नहीं जारी किया गया है। केवल सर्वेक्षण में भाग लेने के लिए लोग गांव लौटें और फिर वापस काम पर जाएं, यह भी व्यवहारिक नहीं है। ऐसे अधिकांश प्रवासी मजदूर दूसरे राज्यों में काम पर जाते हैं। सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण जिस तरह से तैयार किया जा रहा है, उसमें यह भी दर्ज होगा कि गांव से कितने परिवारों ने स्थायी पलायन किया, या प्रवास पर रहकर लौट जाते हैं। बल्कि प्रवास पर रहने वाले श्रमिकों की आर्थिक स्थिति, उनकी व उनके बच्चों की शिक्षा पर पडऩे वाले प्रभाव, आदि का सटीक आंकड़ा भी दर्ज किया जा सकेगा। यह भी स्पष्ट हो सकेगा कि प्रवास पर रहने वाले और गांव में मजदूरी, कामकाज रहने वाले ग्रामीणों की दशा में क्या फर्क है। यदि प्रवास पर रहने वाले मजदूरों को लौटना जरूरी होता तो इस बारे में शासन-प्रशासन की ओर से कोई ना कोई सर्कुलर अब तक जारी हो चुका होता।

मौसम सुहाना पर फसल खराब  
छत्तीसगढ़ में एक बार फिर मौसम बदला है। अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए प्रदेश का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में इस मौके पर अलग ही नजारा देखने को मिला। वहां पॉली हाउस में बर्फ की मोटी परत जम गई। बर्फ के गोले उठाकर बच्चे, युवा खेलते रहे। दूसरी ओर फसलों को मौसम में इस परिवर्तन से नुकसान पहुंचा। क्षति इतनी पहुंची कि कलेक्टर कुंदन कुमार नुकसान का जायजा लेने मैनपाट के नर्मदापुर ब्लॉक पहुंचे और गेहूं के खेतों में उतरकर किसानों को हुए नुकसान का लिया। उन्होंने राजस्व अधिकारियों को मुआवजे का प्रकरण बनाने भी जायजा कहा है। मैनपाट पर्यटन का इतना व्यापक साधन नहीं बन सका है कि बर्फबारी हो तो दूर दराज से सैलानी पहुंच जाएं। स्थानीय लोगों की आजीविका तो खेती पर ही निर्भर है।  

आम का फल अर्पित करने का पर्व
बस्तर में आदिवासियों के रीति-रिवाज और उनकी संस्कृति अनोखी और विविधता से भरी हुई है। प्रकृति पर ही उनका जीवन निर्भर है और वे जल-जंगल, जमीन का आभार जताने का मौका नहीं छोड़ते। ऐसा ही है चैतराई उत्सव। आम की जब नए फल खाने लायक हो जाते हैं तो वे प्रकृति और देवी देवताओं को याद करते हैं और सबसे पहले उनको खिलाते है। इसके लिए आदिवासी ग्रामीण ही नहीं, बूढ़ा देव और अन्य ‘देवी-देवता’ भी डांग, डोली के साथ जुलूस में शामिल होते हैं। प्रकृति को अक्षुण्ण बनाए रखने और पर्यावरण की रक्षा का संकल्प भी सब लेते हैं। कांकेर में इसी मौके पर कल निकाली गई एक चैतराई यात्रा। ([email protected])

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