राजपथ - जनपथ
ईडी और सुप्रीम कोर्ट
ईडी, और सीबीआई के दुरुपयोग के खिलाफ दायर विपक्षी दलों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 5 तारीख को सुनवाई होगी। यह कहा गया कि पिछले 8 साल में 3010 छापे ईडी ने मारे हैं। इनमें से 95 फीसदी छापे विपक्ष, और उनसे जुड़े लोगों पर पड़े हैं। याचिका में आगे कहा गया कि एक भी भाजपा नेता के यहां छापेमारी नहीं की गई है, और केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया है।
छत्तीसगढ़ में पिछले तीन साल में ईडी काफी सक्रिय रही है, और इस दौरान करीब 50 छापे डाले जा चुके हैं। छापेमारी में कांग्रेस के विधायक, और पदाधिकारी निशाने पर रहे हैं। याचिका में छत्तीसगढ़ में ईडी की कार्रवाई का भी जिक्र है। कुल मिलाकर सुप्रीम कोर्ट के रूख पर निगाहें लगी हैं।
अवस्थी की अहमियत बरकरार
आखिरकार रिटायर होने के बाद डीजी डीएम अवस्थी को एक साल की संविदा नियुक्ति मिल गई। उन्हें पीएचक्यू में ओएसडी बनाया गया है। नई खबर यह है कि अवस्थी को ईओडब्ल्यू-एसीबी का अतिरिक्त चार्ज दिया जाएगा। एक-दो दिनों में ऑर्डर निकलने की उम्मीद जताई जा रही है। कुल मिलाकर ईओडब्ल्यू-एसीबी में चल रहे हाईप्रोफाइल जांच के चलते अवस्थी महत्वपूर्ण बने रहेंगे।
झंडी के नीचे क्या है?
जब राजनीतिक दलों, और धार्मिक संगठनों को कुछ प्रचार करना होता है, तो वह बहुत हमलावर अंदाज में होता है। अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के टैगोर नगर चौक को देखें तो वहां भगवा रंग की इन झंडियों के ढेर के नीचे कुछ है यह अंदाज भी नहीं लग सकता। लेकिन चूंकि वहां रविन्द्रनाथ टैगोर नाम की तख्ती लगी हुई है, इसलिए यह माना जा सकता है कि झंडियों के ढेरतले टैगोर होंगे। राजनीति और धर्म अपने को छोड़ बाकी सबके लिए इसी दर्जे की हिकारत पैदा कर देते हैं।
गागड़ा पर ब्लैकमेलिंग का आरोप
बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी ने अपने बयान से सनसनी फैला दी है। पूर्व वन मंत्री और भाजपा नेता महेश गागड़ा पर उन्होंने आरोप लगाया है कि एक ठेकेदार को उन्होंने और बीजेपी के एक पदाधिकारी ने तेंदूपत्ता ठेकेदार को ब्लैकमेल कर दूर के रिश्ते में चाचा लगने वाले एक व्यक्ति के खाते में 91 लाख रुपये कई किश्तों में डलवाए। मंडावी ने जो बैंक स्टेटमेंट दिखाया है, यदि वह सही है तो यह समझ में आता है कि एक खाते में एक के बाद एक लाखों रुपये किसी अमित सेल्स के एकाउंट से डाले गए।
कुछ दिन पहले गागड़ा के नेतृत्व में भाजपा ने एक आंदोलन किया था। वे तेंदूपत्ता हितग्राहियों और परिवहन ठेकेदारों को भुगतान नहीं होने को लेकर था। मंडावी का कहना है कि ब्लैकमेलिंग के लिए ही यह आंदोलन किया गया जबकि उन्होंने वन विभाग से पता किया तो मालूम हुआ कि परिवहन का कुछ भुगतान रुका है, बाकी सब हो चुका है।
इधर गागड़ा ने भी जवाब दिया है। उन्होंने मान लिया कि जिस खाते का जिक्र है वह उनके एक रिश्तेदार है, पर यह ब्लैकमेलिंग की रकम नहीं है। ठेकेदार रिश्तेदार के खाते का इस्तेमाल करता है। उसी से कैश निकालकर वह हितग्राहियों और ठेकेदारों को भुगतान करता है। गागड़ा ने यह भी कहा है कि मंडावी 10 दिन में सबूत पेश करें वरना वे मानहानि का मुकदमा करेंगे।
पूरे प्रकरण में कई सवाल खड़े होते तो हैं। जैसे, भुगतान के लिए ठेकेदार किसी दूसरे के खाते का इस्तेमाल क्यों करता था? वह भी भाजपा के पूर्व मंत्री के रिश्तेदार का? ठेकेदार क्या किसी एक नेता को 91 लाख रुपये जैसी बड़ी रकम रिश्वत के रूप में दे सकता है? वह भी सीधे खाते में? उसे तो वन विभाग के अफसरों को भी देखना पड़ता होगा, फिर अपना मुनाफा भी निकालना पड़ता होगा। भाजपा शासनकाल में गागड़ा एक बड़े काम के महकमे वन विभाग में मंत्री रहे, पर चुनाव 21,500 मतों के भारी अंतर से हारे थे। फिर भी अगला चुनाव क्यों नहीं लडऩा चाहेंगे। ब्लैकमेलिंग के आरोप से उनकी टिकट की दौड़ पर असर पड़ सकता है। यदि आरोप राजनीतिक नहीं है तो विधायक मंडावी भी प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाने के बजाय सही जगह शिकायत करें, जहां कानूनी कार्रवाई हो। ठेकेदार को भी सफाई देनी चाहिए कि माजरा क्या है?
खुदकुशी का यह मामला साधारण नहीं
जशपुर जिले के बगीचा इलाके में विशेष संरक्षित व राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा के एक परिवार के चार लोगों ने एक साथ फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या का निर्णय पति-पत्नी ने लिया होगा। दो बच्चे जो एक साल और चार साल के थे, उन्हें फांसी पर लटकाने का निर्मम फैसला उन्होंने लिया फिर खुद फंदे पर लटक गए। एक साथ चार मौतों की खबर वह भी विलुप्त होती जनजाति की आने से प्रशासन में हडक़ंप मच गया। शाम तक उसकी जांच रिपोर्ट आ गई।
इस परिवार को उपज का पूरा भुगतान मिल रहा था, सरकारी योजनाओं का वे फायदा उठा रहे थे। प्रधानमंत्री आवास भी मिला हुआ है। गरीबी-भुखमरी के हालात नहीं थे। सरकारी महकमे ने तो अपने ऊपर लगने वाले किसी तोहमत से बचने के लिए यह सब जानकारी जुटा ली और दे दी। पर सवाल खत्म नहीं हुए हैं। यदि आर्थिक स्थिति ठीक थी तो कुछ पारिवारिक, सामाजिक कारण होंगे। आदिवासी समुदाय ऐसे हार नहीं मानता। वे कठोर परिश्रम कर जंगलों से वनोपज इक_ा करते हैं। घंटों पैदल चलकर हाट-बाजार जाते हैं। संघर्ष और जीजिविषा उनके व्यवहार में शामिल है। प्राय: वे सामूहिकता में विश्वास रखते हैं और रीति-रिवाज, पर्वों को मिल-जुलकर मनाते हैं। जबकि इस घटना की वजह पड़ोसियों और ग्रामीणों को समझ नहीं आ रही है। यह समाजशास्त्र और मनोविज्ञान का अध्ययन करने वालों के लिए शोध का विषय हो सकता है।
कोरबा में फिर किंग कोबरा
कोरबा जिले के जंगल में एक बार फिर किंग कोबरा देखा गया है। दो साल पहले भी देखा गया था। कोरबा वन्यप्राणियों, जंतुओं से समृद्ध जंगल का इलाका है। यदि यहां दुर्लभ किंग कोबरा मिल रहे हैं तो इसका मतलब है इस जंगल को बचाकर रखना जरूरी है। पर कोयला खनन और दूसरे खनिज उत्पादों के लिए यहां बड़े पैमाने पर वनों की जमीन अधिग्रहित की गई है। हाल में कटघोरा के जंगलों में लिथियम का भंडार भी मिला है। ऐसे में भविष्य में ये जंतु दिखाई देंगे या नहीं, कह नहीं सकते।