राजपथ - जनपथ

ईडी का अंदाज
04-Apr-2023 3:49 PM
ईडी का अंदाज

ईडी का अंदाज

हाल के ईडी के शराब कारोबारी, अफसरों, और उद्योगपतियों पर रेड से जुड़े कई किस्से छनकर निकल रहे हैं। रेड से जुड़े कई लोग बताते हैं कि रायपुर, और आसपास के इलाकों से करीब 90 गाडिय़ां किराए पर ली गई थी।
गाड़ी में बैठने के बाद सभी अफसरों को सीलबंद लिफाफा दिया गया। फिर ड्राइवरों को बताया गया कि गाड़ी कहां जाएगी। इसके बाद सीआरपीएफ के अमले के साथ अलग-अलग जगहों के लिए गाडिय़ां रवाना हुई। गंतव्य स्थान पहुंचने से पहले गाड़ी में बैठने वाले शख्स ने लिफाफा खोला, और फिर ड्राइवर से नाम और एड्रेस गूगल मैप पर लोड कराया। गूगल मैप के सहारे उसी जगह पहुंचे, जहां रेड होना था।

ईडी अफसरों ने फिर कालबेल बजाया, और फिर दरवाजा खुलते ही सर्च वारंट दिखाकर जांच-पड़ताल की कार्रवाई शुरू की। मेयर एजाज ढेबर ने तो बिना सर्च वारंट दिखाए जांच में सहयोग नहीं देने पर अड़े रहे। उनके नाम का सर्च वारंट दिखाया, लेकिन चर्चा है कि बिना सर्च वारंट के उनके भाई अनवर के यहां रेड की गई। अब ईडी ने रेड का कोई ब्यौरा सार्वजनिक नहीं किया है। देखना है आगे क्या होता है।

अधिक चौकन्नेपन में

ईडी की रेड की जानकारी तमाम प्रमुख लोगों को थी। हमने इसी कॉलम में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के दौरे के बाद ईडी के संभावित रेड की खबर प्रकाशित की थी। जिनके यहां रेड डली, उनमें से ज्यादातर तो पहले से ही रेडी थे।
सीमावर्ती इलाकों में पुलिस भी चौकस थी। अनजान गाडिय़ों पर पैनी निगाह रखे हुए थी। बताते हैं कि नक्सल इलाकों में काम करने वाले एक ख़ुफिय़ा विभाग के एक मामूली कर्मचारी को ही पुलिस ने गलतफहमी में धर दिया था। बाद में टीआई, और अन्य अफसर पहुंचे, तो वो उन्हें पहचान गए, और फिर छोड़ दिया।

कुछ समय पहले इसी जिले में रेड हुई थी, तब पुलिस को कानोकान भनक नहीं लगी थी। जबकि ईडी का भारी भरकम अमला आसपास ही मौजूद था। इसको लेकर काफी किरकिरी भी हुई थी, लेकिन इसके बाद से विशेषकर सीमावर्ती जिलों के पुलिस अफसर-कर्मी काफी चौकस रहने लगे।

भाजपा में इतना सन्नाटा क्यों था?

प्रदेश में ताबड़तोड़ ईडी के रेड डले, लेकिन भाजपा के लोगों ने राजनीतिक लाभ लेने के बजाए चुप्पी साध ली थी।  सीएम, और कांग्रेस के छोटे-बड़े नेता ईडी-मोदी सरकार पर जुबानी हमला करते रहे, लेकिन दो दिन तक भाजपा की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। चर्चा है कि भाजपा हाईकमान की नाराजगी के बाद पार्टी में हलचल हुई, और पहले अरुण साव, फिर ओपी चौधरी, और पूर्व सीएम रमन सिंह व बृजमोहन अग्रवाल ने कार्रवाई के समर्थन में बयान जारी किए।

भाजपा नेताओं की चुप्पी के पीछे एक बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि ईडी ने कांग्रेस नेताओं के साथ-साथ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, और कोर कमेटी के सदस्य गौरीशंकर अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल के दफ्तर में भी दबिश दी थी, और उनसे बयान भी लिए। नितिन को कसडोल सीट से भाजपा के संभावित उम्मीदवार के रूप में भी देखा जाता है। ऐसे में उनके यहां छापेमारी से भाजपाइयों को सांप सूंघ गया था। प्रदेश में ईडी के तकरीबन 50 छापे पड़ चुके हैं, लेकिन पहली बार किसी भाजपाई के परिवार वाले के यहां छापा डला। अब आगे क्या होता है, यह देखना है।

प्लास्टिक फेंका तो जुर्माना

सार्वजनिक स्थानों पर विशेषकर पर्यटन स्थलों पर थूकने, प्लास्टिक इस्तेमाल नहीं करने के स्लोगन लगाए जाते हैं पर लोगों पर असर नहीं होता। असर तब होता है जब उन पर जुर्माना लगाने का बंदोबस्त ठीक तरीके से हो। भारतीय रेलवे ने भी थूकने, प्लास्टिक बोतलें और खाने-पीने के खाली पैकेट इधर-उधर फेंकने पर जुर्माने का प्रावधान रखा है। पर बहुत कम कार्रवाई होती है। थूकने, गंदगी फैलाने पर चुस्त निगरानी के लिए उसने कोई सिस्टम नहीं बनाया है। वैसे अब तो रेलवे खुद गंदगी को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है। आए दिन सोशल मीडिया पर बोगियों में फैली गंदगी की तस्वीरें यात्री डालते रहते हैं। कोरोना के बाद से रेलवे ने बड़ी संख्या में साफ-सफाई के अनुबंध खत्म कर दिए हैं। प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को उन्होंने वंदेभारत जैसी ट्रेनों को चलाने के नाम पर हाशिये पर रख दिया। वैसे दिल्ली और कुछ दूसरे मेट्रो स्टेशन साफ-सुथरे दिखते हैं। वहां थूकने या गंदगी फैलाने पर 500 रुपये तक जुर्माना है जो जगह-जगह दीवारों पर लिखकर बताया भी गया है। सीसी कैमरों से निगरानी भी होती है। इधर, भुवनेश्वर के जुलोजिकल पार्क प्रबंधन ने जो काम किया है वह एक बेहतर तरीका है। यहां भीतर जाते समय यदि आप प्लास्टिक की पानी बोतल या कोई दूसरा सामान लेकर जाते हैं तो आपको 50 रुपये की एक रसीद कटवानी पड़ेगी। इसे आपके बोतल में चिपका दिया जाएगा। जब आप वापस लौटेंगे तो बोतल वापस करके अपने 50 रुपये वापस ले सकते हैं। पानी पीकर बोतल गार्डन के भीतर फेंक दिया तो सीधे 50 रुपये का नुकसान। इसका परिणाम यह है कि जुलोजिकल पार्क साफ-सुथरा दिखाई देता है। वहां प्लास्टिक कचरा नहीं दिखता। वन और पर्यटन विभाग के अफसरों को अपने यहां भी सीख लेनी चाहिए।

सर्वे में भाजपा की उछाल..

2023 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में किसकी सरकार बनेगी इस पर मीडिया ने काम शुरू कर दिया है। एबीपी न्यूज ने मेट्राइज की ओर से सर्वे कराया है जिसमें दावा किया गया है कि कांग्रेस को 44 फीसदी और भाजपा को 43 फीसदी वोट मिलेंगे। 13 फीसदी वोट दूसरी पार्टियों में चले जाएंगे। अनुमान लगाया गया है कि कांग्रेस को 47 से 52 तो भाजपा को 34 से 39 सीटें मिलेंगीं। सीटों की संख्या एक से 5 तक कम ज्यादा हो सकती है। सर्वे में यह भी पूछा गया कि मोदी फैक्टर का विधानसभा चुनाव में असर होगा या नहीं? जवाब में 38 फीसदी ने कहा बहुत असर होगा, 39 फीसदी ने कहा खास असर नहीं होगा और 23 फीसदी ने कहा थोड़ा बहुत होगा।

यह सर्वे चुनाव की डुगडुगी बजने के 9 महीने पहले किया गया है। इस पर यकीन करें तो 2018 के मुकाबले भाजपा के वोटों में सीधे 10.2 प्रतिशत का उछाल आना है। उसे तब 32.8 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को 43 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार कांग्रेस को 44 प्रतिशत वोट मिलेंगे। यानि मतदाताओं को कांग्रेस का समर्थन पिछली बार से अधिक रहेगा लेकिन भाजपा के वोटों में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि के कारण कांग्रेस की सीटें पिछली बार से कम हो जाएगी।

कुछ और पीछे जाकर कांग्रेस भाजपा के बीच मुकाबला कैसा रहा है देखें। सन् 2003 के चुनाव में भाजपा 39.26 और कांग्रेस 36.71 प्रतिशत- अंतर 2.55 प्रतिशत का। सन् 2008 में भाजपा 40.33 प्रतिशत, कांग्रेस 38.63 प्रतिशत- अंतर रहा 1.7 प्र्तिशत का। सन् 2013 में भाजपा को 41.04 प्रतिशत और कांग्रेस को 38.63 प्रतिशत वोट-अंतर 2.41 प्रतिशत का। सन् 2018 में भाजपा को 32.8 प्रतिशत तथा कांग्रेस को 43 प्रतिशत से अधिक- अंतर रहा करीब 10.2 प्रतिशत।

सन् 2003 में भाजपा ने 50 तथा कांग्रेस ने 37 सीटों पर जीत हासिल की। सन् 2008 के चुनाव में भाजपा की 50 सीटें बनी रहीं पर कांग्रेस की एक सीट बढक़र 38 हो गई। सन् 2013 में भाजपा 49 सीटों पर जीती, कांग्रेस फिर 38 में रह गई। सन् 2018 में ऐतिहासिक अंतर से कांग्रेस की जीत हुई। कांग्रेस को 68 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा 15 में सिमट गई।

सर्वे में सबसे खास बात यह कही गई है कि 10.2 प्रतिशत का जो भारी अंतर कांग्रेस के पक्ष में था, इस बार वही बढ़त भाजपा को मिल रही है, पर कांग्रेस का वोट प्रतिशत कम नहीं होगा। सर्वे यह भी बताता है कि प्राय: सभी मोदी सरकार के कामकाज से नाखुश कोई नहीं है। मोदी फैक्टर भी चुनाव में काम करेगा।

अटकलें तो छत्तीसगढ़ को लेकर चौक-चौराहों में भी चल निकली है कि किसे कितनी सीटें मिलेंगी। लोगों की जिज्ञासा को हवा देने के लिए इस तरह के सर्वे अब सामने आते रहेंगे। किस सर्वे पर कितना भरोसा करना है, आप स्वयं तय करें। पिछले चुनावों के कुछ आंकड़े भी आपके सामने यहां रख दिए गए हैं।

ऐसा तो पहले भी बोलते थे

राहुल गांधी को कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा ने राष्ट्रपुत्र कह दिया। भाजपा इसके बाद हमलावर हो गई। प्रवक्ता केदार कश्यप ने राबर्ट वाड्रा की याद दिला दी। कहा- उनको राष्ट्रीय दामाद क्यों नहीं कहते। भाजपा नेता ने ही यह बात पहली बार नहीं कही है। बाबा रामदेव ने सन् 2012 में जब लोकपाल के लिए आंदोलन चल रहा था और वाड्रा के खिलाफ जमीन के मामले कोर्ट पहुचे थे तो उन्होंने वाड्रा को न केवल राष्ट्रीय दामाद कहा था, बल्कि गांधी परिवार को गद्दार, राष्ट्रद्रोही और न जाने क्या क्या कह दिया था। न्यूज चैनलों में उनका यह बयान कई-कई बार लगातार चला। उस वक्त केंद्र और कई राज्यों में कांग्रेस गंठबंधन यूपीए की सरकार थी। फर्क यही है कि सत्ता हाथ में होते हुए भी रामदेव के खिलाफ कांग्रेस ने उनको मानहानि के लिए किसी अदालत में नहीं घसीटा।
वैसे केदार कश्यप के बयान पर सीएम भूपेश बघेल की संयत प्रतिक्रिया रही। दुर्ग में पत्रकारों से उन्होंने कहा- हम सभी राष्ट्र की पुत्र-पुत्रियां हैं। बीजेपी के पास तो गांधी परिवार पर हमला करने के अलावा कोई मुद्दा ही नहीं है।

([email protected])

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news