राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : बक्से खुलने, न खुलने का राज
08-Apr-2023 4:04 PM
राजपथ-जनपथ : बक्से खुलने, न खुलने का राज

बक्से खुलने, न खुलने का राज

सोशल मीडिया पर विधानसभा आम चुनाव के ठीक पहले की तस्वीर वायरल हो रही है, जिसमें भाजपा नेता प्रत्याशी चयन के लिए सीलबंद बक्सा लेकर चार्टर प्लेन, और हेलीकॉप्टर से अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के लिए निकल रहे हैं। मकसद यही था कि कार्यकर्ताओं से जीतने लायक दावेदारों के नाम बक्से में लिए जाएंगे, और फिर सील बंद बक्से प्रदेश नेतृत्व को दिए जाएँगे । प्रदेश नेतृत्व नाम लेकर पैनल तैयार करेगा, और फिर इन्हीं में से प्रत्याशी तय किए जाएंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ।

कुछ लोग बताते हैं कि चार्टर प्लेन, और हेलीकॉप्टर के किराए पर ही करोड़ों फूंक दिए गए, लेकिन बक्से नहीं खोले गये। जिनके खिलाफ आक्रोश था वो सभी टिकट पा गए। हाल यह रहा कि आधा दर्जन प्रत्याशी 50 हजार से भी ज्यादा वोटों से हार गए। पिछले चुनाव में भाजपा ने अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया, और 15 सीटों पर ही सिमट गई। बाद में उपचुनाव में एक और सीट कम हो गई।

अब प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव दावा कर रहे हैं कि सर्वे और आम कार्यकर्ताओं से रायशुमारी कर ही प्रत्याशी तय किए जाएंगे। लेकिन उनके दावे पर पार्टी के कई नेताओं को शक है। वजह यह है कि कईयों ने तो अभी से वॉल राइटिंग शुरू कर दी है। हारे हुए कई नेताओं ने पार्टी हाईकमान से अपने संपर्कों के आधार पर फिर से टिकट का दावा कर रहे हैं। ऐसे में कुछ लोगों का अंदाजा है कि बक्से इस बार भी शायद ही खुले। देखना है आगे क्या होता है।

जानबूझकर गलती?

कांग्रेस में बड़े बदलाव की तरफ इशारा किया जा रहा है। इसका अंदाजा कुछ-कुछ घटनाक्रमों से लग भी रहा है। पिछले दिनों प्रदेश प्रभारी शैलजा के प्रेस कॉन्फ्रेंस के पहले परिचयात्मक उद्बोधन में मोहन मरकाम की जुबान फिसल गई, और वो शैलेष नितिन त्रिवेदी को संचार विभाग का चेयरमैन बोल गए। शैलेष प्रेस कॉन्फ्रेंस में थे ही नहीं, और उन्हें संचार विभाग के दायित्व से मुक्त हुए 2 साल अधिक हो चुके हैं। हालांकि मरकाम ने तुरंत गलती सुधारी, और फिर सुशील आनंद शुक्ला का नाम लिया। कुछ लोग मानते हैं कि मरकाम ने जानबूझकर गलती की है। वो सुशील के काम से नाखुश हैं। और वो शैलेष नितिन त्रिवेदी की वापसी चाहते हैं। इसमें सच्चाई कितनी है, यह तो पता नहीं, लेकिन मरकाम जैसे सुलझे व्यक्ति की जुबान फिसलने की खूब चर्चा हो रही है।

सेलिब्रिटी नशे के खिलाफ मुहिम में

बिलासपुर पुलिस ने नशे के अवैध कारोबार के खिलाफ निजात अभियान छेड़ रखा है। पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार अपनी पदस्थापना के बाद से ही दूसरे जिलों की तरह इस जिले में भी मुहिम शुरू कर दी। अब बड़ी कोशिश करके बिलासपुर पुलिस ने बॉलीवुड कलाकारों से संपर्क किया। अब एक वीडियो बिलासपुर पुलिस ने जारी किया है जिसमें राजपाल यादव, अरबाज खान, सुनील ग्रोवर, कैलाश खेर, प्रभु देवा, पीयूष मिश्रा, कविता कृष्णमूर्ति, वीरेंद्र सक्सेना, रोहिताश गौड़, परितोष त्रिपाठी, शहवर अली, यश अजय सिंह और भगवान तिवारी जैसे कलाकार बिलासपुर के नागरिकों से अपील कर रहे हैं कि वे पुलिस के निजात अभियान को सफल बनाएं। नशे को ना कहें, जिंदगी को हां कहें।

बॉलीवुड के मशहूर कलाकारों को निजात अभियान से जोडऩा और उनसे अपील करवाना इसलिए खास बात है क्योंकि नशे में लिप्त युवा उनसे प्रेरणा लेते हैं। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद बॉलीवुड को नशे का ठिकाना बताने का अभियान चल निकला था। ये सेलिब्रिटी पर्दे पर किरदार निभाते हुए कई बार नशा करते हुए दिखाई देते हैं। इनकी अपील से यह तो लोगों को समझ में आया होगा कि असल जिंदगी में वे नशे के खिलाफ है।

सारा झगड़ा ही खत्म हो जाए

बिहार में चल रहे सामाजिक सर्वेक्षण में एक दिलचस्प मामला सामने आ गया है। इस सर्वेक्षण के दौरान जातियों की पहचान कोड के आधार पर की जाएगी। उदाहरण के लिए अगर ब्राह्मण एक सामाजिक इकाई है तो उसका जाति कोड 126 होगा। भूमिहार को 142, कायस्थ को जाति कोड 21 दिया गया है और इसी तरह से 215 कोड विभिन्न जातियों को आवंटित किए गए हैं। दिक्कत यहां आ रही है इसमें किन्नर (थर्ड जेंडर) को एक जाति मान लिया गया है। इसे जाति कोड 126 आवंटित किया गया है। तृतीय लिंग के लिए काम करने वाले एक संगठन दोस्ताना सफर की संस्थापक रेशमा प्रसाद ने इस पर कड़ी आपत्ति की है। उनका कहना है एक इंसान की शारीरिक संरचना उसकी जाति कैसे बन सकती है? फिर तो सभी को पुरुष जाति या स्त्री जाति के रूप में ही गिना जाना चाहिए। ब्राह्मण, कायस्थ, भूमिहार जाति के रूप में अलग-अलग गिना ही ना जाए।

बिहार में जाति आधारित जनगणना की मांग बहुत जोर पकड़ी हुई है। छत्तीसगढ़ जैसे कई और राज्यों में इसकी मांग उठने लगी है। पर यदि लिंग को ही जाति मान लें तो फिर राजनीति कैसे होगी? विरोधियों ने तो धर्म के नाम पर वोट मांग कर समीकरण बिगाड़ रखा है। मामला टेढ़ा है। देखते हैं बिहार सरकार इसके लिए क्या रास्ता निकलती है। और, जब वहां तृतीय लिंग को अधिकार मिल जाएंगे तो फिर दूसरे राज्यों में भी इसका असर देखने को मिलेगा।

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