राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : पेड़ बचाने की एक कोशिश
10-Apr-2023 3:36 PM
राजपथ-जनपथ : पेड़ बचाने की एक कोशिश

पेड़ बचाने की एक कोशिश

सुपेला भिलाई की रेलवे क्रासिंग से हर महीने करीब 40 लाख लोग आना-जाना करते हैं, जिसके चलते यहां अंडरब्रिज बनाने की मांग लंबे समय से की जा रही थी। यह काम अब शुरू हो चुका है। इसमें दोनों ओर करीब 200 पेड़ों को काटने की जरूरत है लेकिन कुछ ऐसे विशाल पेड़ हैं जिन्हें राहगीर वर्षों से देखते आ रहे हैं। उनकी छाया लेते रहे हैं। इनमें से पीपल, इमली, सीताफल, अशोक आम के कुछ पेड़ 90 साल तक पुराने हैं। इन्हीं में से 5 बड़े पेड़ों को काटने की जगह जड़ से उखाडक़र दूसरी जगह शिफ्ट किया जा रहा है। लगभग 50 साल पुराने पीपल पेड़ को कल इसी तरह शिफ्ट किया गया है। वानिकी में मास्टर डिग्री धारक नेहा बंसोड़ की टीम यह काम कर रही है, जो पहले भी भिलाई-3 में इसी तरह से करीब 40 पेड़ों को शिफ्ट कर चुकी हैं। अंडरब्रिज के लिए उखाड़े जा रहे एक पेड़ को वहां के हनुमान मंदिर के एक संस्थापक ने भी अपने परिसर में शिफ्ट करने की अनुमति दी है।

ऐसे समय में जब सडक़,पुल-पुलिया की योजना बनने पर सबसे पहले पेड़ों को काटने की ही सूची बन जाती हो, तब पर्यावरण की हिफाजत के लिए की जा रही ऐसी कोशिशें ध्यान खींचती हैं। छोटी लगने के बावजूद बहुत ये कोशिश असर डालती है।

पहले कोविड टेस्ट मशीनों की जांच

दिल्ली, महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों में लगातार कोविड संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी एक्टिव मरीजों की संख्या 500 के आंकड़े को छू रही है। बिलासपुर में दो और रायपुर में एक मौत भी हो चुकी। अभी दावा यही किया जा रहा है कि कम्युनिटी स्प्रैड की नौबत नहीं आई है लेकिन इसकी आशंका बनी हुई है। पिछली बार की दो लहरों में भी देखा गया कि एकाएक केस बड़ी तेजी से केस बढ़े। दूसरी लहर में ऑक्सीजन और वेंटिलेटर के अभाव में हजारों मौतें देशभर में हुईं। इसके बाद कोविड अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड जब  वेंटिलेटर की संख्या बढ़ाई गई। पर दूसरी लहर जैसी खौफनाक स्थिति नहीं आई। इसके चलते आम लोग कोविड की दहशत से तो बाहर आ ही गए, पर स्वास्थ्य विभाग भी अस्पतालों और मशीनों का रख-रखाव भूल चुका था।

जांजगीर, रायगढ़, राजनांदगांव, अंबिकापुर आदि शहरों से खबर है कि वहां आरटीपीसीआर मशीनें धूल खा रही हैं। कोविड टेस्ट की संख्या बढ़ाने का दबाव है पर रफ्तार नहीं आ  रही है। स्वास्थ्य मंत्री का यह कहना एक हद तक सही हो सकता है कि ज्यादातर मरीज घरों में ही ठीक हो रहे हैं और जल्दी हो रहे हैं। देश में भी इस समय रिकव्हरी रेट 98 प्रतिशत से ऊपर है। पर, कोई दावा नहीं कर सकता कि आगे भी ठीक होने की रफ्तार तेज और मौतों की रफ्तार इसी तरह कम रहेगी। प्रदेश में कोविड वैक्सीन के दोनों डोज लगवाने वालों की संख्या जरूर ठीक ठाक है। पहली डोज तो 90 प्रतिशत से ऊपर है। पर बूस्टर डोज केवल 30 प्रतिशत लोगों ने लगवाए। पिछला ट्रैंड बताता है कि महाराष्ट्र में केस बढऩे के कुछ दिनों बाद छत्तीसगढ़ में कोविड केस बढ़े थे। जो 5300 के करीब नए मामले एक दिन में पूरे देश में आए हैं, उनमें 644 महाराष्ट्र से हैं, पांच मौतें भी हुई हैं। तो, स्वास्थ्य महकमा ही नहीं, हम-आपको भी स्थिति पर नजर टिकाए रखना है।

किस टीम की जांच सही

जशपुर जिले के बगीचा इलाके में पहाड़ी कोरवा राजू राम और उसकी पत्नी ने अपने दो बच्चों को फांसी पर लटकाने के बाद खुद अपनी जान दे दी थी। इस ह्रदय विदारक घटना के पीछे की हकीकत आने में अभी शायद वक्त लगे पर भाजपा की दो जांच टीमों ने अलग-अलग बयान देकर पार्टी नेताओं की फजीहत जरूर कर दी है। राज्य स्तर पर एक टीम भाजपा ने बनाई थी। इसमें नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, पूर्व सांसद रामविचार नेताम सहित कई वरिष्ठ नेता शामिल थे। इन्होंने जांच के बाद कहा कि परिवार के पास रोजगार नहीं था, आर्थिक तंगी थी। भुखमरी के कारण उन्होंने आत्मघाती कदम उठाया। इधर जशपुर के कद्दावर भाजपा नेता नंदकुमार साय, जो राज्य की जांच टीम में शामिल नहीं थे, उन्होंने अलग से एक टीम बनाकर घटना की जांच की। उन्होंने जशपुर लौटकर बयान दिया कि परिवार को कोई आर्थिक संकट नहीं था, यह उनकी वेशभूषा से ही साफ हो जाता है। नहीं लगता कि उसे कोई आर्थिक तंगी थी। मनरेगा का जॉब कार्ड भी उसके पास था। मजदूरी भी करता था और वनोपज की बिक्री का भी लाभ उसे मिल रहा था।
कोई वजह नहीं हो सकती कि साय जैसे अनुभवी नेता की टीम जानबूझकर कोई भ्रम फैलाए। पर इससे राज्य की टीम की जांच रिपोर्ट अपने-आप बेअसर हो गई। ज्यादा जानकार बता सकते हैं कि यह भाजपा की आपसी कलह है या नहीं।

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