राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : असरी के बाद राजनीति, मिली-जुली...
06-Jun-2023 5:14 PM
राजपथ-जनपथ : असरी के बाद राजनीति, मिली-जुली...

असरी के बाद राजनीति, मिली-जुली...
विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही कई प्रशासनिक, और पुलिस अफसरों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हिलोरे मार रही हंै। आईएएस नीलकंठ टेकाम तो वीआरएस के लिए आवेदन दे चुके हंै। कुछ और अफसर चुनाव लडऩे के लिए नौकरी छोडऩे की तैयारी कर रहे हैं। 

ऐसा नहीं है कि राजनीति में आने के बाद सबको दलों में सम्मान मिल पाता है। पूर्व कलेक्टर आरपीएस त्यागी कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आ गए। त्यागी की कांग्रेस में पूछपरख नहीं रह गई थी। कुछ इसी तरह की स्थिति पूर्व डीजी राजीव श्रीवास्तव, शमशेर खान समेत दर्जनभर रिटायर्ड पुलिस अफसरों के साथ भी बन गई थी। ये सभी पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपामें शामिल हो गए थे लेकिन पार्टी को विधानसभा चुनाव में बुरी हार का सामना करना पड़ा। चुनाव नतीजे आने के महीने भर बाद सभी ने एक साथ राजनीति से ही तौबा कर लिया।

हालांकि कई अफसर सफल भी हैं। पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी भले ही चुनाव हार गए, लेकिन पार्टी के भीतर उन्हें महत्व मिल रहा है। गणेशशंकर मिश्रा भी भाजपा संगठन में पद पा गए हैं। पूर्व आईएएस शिशुपाल सोरी तो चुनाव विधानसभा चुनाव जीतकर संसदीय सचिव का दायित्व संभाल रहे हैं। पूर्व एसीएस सरजियस मिंज को भले ही रायगढ़ लोकसभा से टिकट नहीं मिली, लेकिन सरकार ने वित्त आयोग के चेयरमैन पद पर बिठाया है। अलबत्ता, पूर्व आईएएस जीएस धनंजय, ,पूर्व सहकारिता अफसर पीआर नाईक, सुखदेव कुरैठी, पूर्व आईएएस आरसी पैकरा भाग्यशाली नहीं रहे। उनका राजनीतिक जीवन थोड़े समय चल पाया।

जुनेजा का टीना फैक्टर 
वैसे तो डीजीपी अशोक जुनेजा इस महीने की 30 तारीख को रिटायर हो जाएंगे। बावजूद इसके डीजीपी के पद पर बने रह सकते हैं। केन्द्र सरकार ने डीजीपी, सीबीआई डायरेक्टर, और केन्द्रीय गृह सचिव को न्यूनतम दो साल तक पद पर बनाए रखने के लिए कानून बना रखा है। हालांकि सरकार के पास विकल्प है कि वो रिटायरमेंट के बाद डीजीपी बदल सकती है। मगर जुनेजा के मामले में फिलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है। 

जुनेजा के ठीक नीचे 90 बैच के अफसर राजेश मिश्रा स्पेशल डीजी हैं, लेकिन उनके पास कोई महत्वपूर्ण दायित्व नहीं है। मिश्रा करीब सालभर पहले बीएसएफ में प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद यहां आए थे। वो रायगढ़, दुर्ग एसएसपी रह चुके हैं। सरगुजा आईजी रह चुके हैं, लेकिन सरकार के रणनीतिकारों की नजरें उन पर इनायत नहीं हुई है। इसके बाद अरूण देव गौतम, और पवन देव का नंबर आता है। ये अभी एडीजी ही हैं। ऐसे में सरकार के पास विकल्प सीमित है, और इसका फायदा जुनेजा को होते दिख रहा है। राजनीति में कहा जाता है, टीना फैक्टर, देयर इज नो अल्टरनेटिव...

सुलह तो होनी ही है, फिर देर क्यों?
प्रदेशभर के पटवारी पिछले 15 मई से हड़ताल पर हैं। सरकार और आंदोलनकारियों के बीच संवाद की जो कमी दिख रही है, उससे ऐसा नहीं लगता कि आंदोलन जल्दी खत्म होगा। राजस्व सचिव एनएन एक्का का दावा है कि उन्हें चर्चा के लिए बुलाया गया लेकिन नहीं आए। वह काम ही नहीं करना चाहते। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। दूसरी तरफ पटवारी संगठन के नेताओं कहना है कि जब तक शासन की ओर से कोई बुलावा नहीं आएगा, हम मिलने नहीं जाएंगे। 7 जून यानी कल से उन्होंने आंदोलन और तेज करने की चेतावनी भी दी है। पटवारियों की मांगें यदि अनुचित हैं तो उन्हें केवल चेतावनी क्यों दी जा रही है, जो दिए हुए भी एक सप्ताह से ज्यादा हो चुके।

आंदोलन का असर अब गहराता जा रहा है। बेरोजगारों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए निवास, जाति, आय प्रमाण पत्र की जरूरत पड़ रही है, जो नहीं बन रहे हैं। सरकार को भी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। रजिस्ट्री ठप है। नामांतरण, संशोधन, रिकॉर्ड दुरुस्त करने के लिए समय-समय पर चलने वाले शिविर, अभियान बहुत पीछे चले गए। पटवारियों का कहना है कि तीन साल पहले राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने आश्वासन देकर आंदोलन समाप्त करवाया था, लेकिन कोई मांग पूरी नहीं हुई।

चाहे बस्तर के आंदोलन हों,  संविदा कर्मचारियों का हो, मनरेगा कर्मचारियों या शिक्षा कर्मियों का ही क्यों ना हो। सरकार शायद आंदोलनकारियों के थक जाने तक इंतजार में होती है। पटवारी हड़ताल किसी न किसी दिन समझौते के नतीजे तक पहुंचकर खत्म हो जानी है, कुछ मांगें मानी जाएगीं, कुछ नहीं। अनुशासन की कार्रवाई प्राय: समझौते में वापस भी ले ली जाती है। पूरा वेतन भी अक्सर मिल जाता है। मगर इस बीच आम लोगों को तकलीफ हो रही है। लोग भटक रहे हैं और राजस्व दफ्तरों में सन्नाटा फैला है।

अकेला बाघ और सैकड़ों सैलानी
राजस्थान का रणथंभौर टाइगर रिजर्व विश्व पर्यटन के नक्शे में शामिल है। कुछ दिनों के बाद बारिश के मौसम में यह टाइगर रिजर्व भी बाकी अभयारण्यों की तरह अक्टूबर तक के लिए बंद कर दिया जाएगा। छत्तीसगढ़ से वहां घूमने गए एक पर्यटक ने वीडियो शेयर की है। वहां इन दिनों इतने पर्यटक उमड़ रहे हैं कि टाइगर को देखने के लिए सफारी गाडिय़ों की कतार लगी हुई है। सामने एक टाइगर चल रहा है, पीछे 100 से ज्यादा लोग उसके पीछे-पीछे गाडिय़ों में। छत्तीसगढ़ के सैलानी ने सवाल किया है कि क्या ऐसे में बाघ सुकून महसूस कर रहा होगा। सहमा सा दिख रहा है पर मूड बदल भी सकता है और पर्यटक मुश्किल में पड़ सकते हैं। पर्यटकों की संख्या कम से कम बाघ वाले ठिकाने के लिए तो सीमित होनी चाहिए।([email protected])

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