राजपथ - जनपथ
गिरिराज सिंह के तेवर
अपने बिगड़े बोल,और बयानों के लिए चर्चित केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री गिरिराज सिंह शनिवार को एक समीक्षा बैठक में राज्य के अफसरों पर जमकर बरसे। उन्होंने पहले तो मनरेगा मद के कार्यों में स्पष्टता न होने पर नाराजगी जताई, फिर डीएमएफ को लेकर यह कह गए, कि इसका तो कोई माई बाप नहीं है।
गिरिराज सिंह ने यहीं नहीं रूके। उन्होंने अफसरों को चेताया,और कहा कि उन्हें नेताओं का पिछलग्गू नहीं होना चाहिए। गिरिराज सिंह के तेवर देखकर वहां मौजूद भाजपा के नेता पूरे समय मुस्कुराते रहे।
भाजपा ने गिरिराज सिंह को कोरबा,और बस्तर लोकसभा का प्रभारी बनाया है। वो हर एक-दो महीने में दोनों जगह जाते हैं। उन्हें यहां चल रही योजनाओं में ऊंच-नीच की पूरी जानकारी है। ऐसे में उनकी कुछ नाराजगी तो स्वाभाविक मानी जा रही थी।
सीनियर विधायक को सलाह
चर्चा है कि प्रदेश भाजपा के बड़े नेता, और सीनियर विधायक को पिछले दिनों संगठन के एक प्रमुख नेता ने विधानसभा के बजाए लोकसभा चुनाव की तैयारी करने के लिए कह दिया है। इस पर अभी विधायक का रुख सामने नहीं आया है।
कहा जा रहा है कि प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों को तीन भागों में बांटकर संगठन के तीन प्रमुख नेताओं को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। ये तीनों नेता विधानसभा क्षेत्रों में लगातार बैठक कर रहे हैं, और दावेदारों को टटोल रहे हैं।
चर्चा यह भी है कि प्रत्याशी चयन में इस बार नए चेहरों की संख्या पिछले चुनावों के मुकाबले ज्यादा हो सकती है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा रहा है कि 14 विधायकों में से कुछ की टिकट कट भी सकती है। देखना है आगे क्या होता है।
गोबर बेचो वरना मनरेगा नहीं
राजनांदगांव जिले के अंबागढ़ चौकी इलाके के कुछ गांवों से शिकायत आ रही है कि वहां सरपंच दबाव डालकर ग्रामीणों को गौठानों में गोबर लाने के लिए कर रहे हैं। बोगाटोला पंचायत के ग्रामीणों ने अपने इलाके के जिला पंचायत सदस्य से इसकी शिकायत की तो पता चला कि कई और पंचायतों में ऐसा किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि यदि वे गोबर नहीं लाएंगे तो मनरेगा में उन्हें काम नहीं मिलेगा। मनरेगा में काम करने वाले ज्यादातर लोग मजदूर होते हैं। यदि उनके पास गाय-भैंस होते तो शायद मनरेगा में काम करने की जरूरत ही नहीं। अधिकतर के पास न तो गाय-भैंस है न खेती की जमीन। सरपंचों के फरमान से उन्हें मनरेगा की रोजी से भी वंचित होना पड़ रहा है।
सबको साथ लेकर चलने की मजबूरी
विधानसभा के बजट सत्र में कोंडागांव जिले में डीएमएफ के खर्चों पर काफी शोर शराबा हुआ था। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम के दबाव पर कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने भले ही एक महीने के भीतर जांच कर कार्रवाई की घोषणा की थी, लेकिन यह जांच अब तक पूरी नहीं हुई है।
मरकाम जिस ईई के खिलाफ कार्रवाई को लेकर मुखर थे वो अब सम्मानजनक तरीके से रिटायर हो गए। ईई, युवक कांग्रेस के प्रमुख पदाधिकारी के पिता हैं। चुनाव का समय है, ऐसे में मरकाम पर सबको साथ लेकर चलने की मजबूरी भी है। यही वजह है कि उन्होंने भी जांच रिपोर्ट, और कार्रवाई पर जोर नहीं दिया।
सडक़ पर रोलर स्कैटिंग
जशपुर-रायगढ़ की सारी सडक़ें खराब नहीं हैं। कुछ सडक़ों पर भारी वाहनों का दबाव नहीं है वे तो इतनी दुरुस्त भी हैं कि रोलर स्कैटिंग की जा सके। यह कुनकरी से 30 किलोमीटर दूर सुनकाडांड़ ग्राम की तस्वीर है जहां 6 वीं कक्षा का अंश एक्का रोलर स्केटिंग कर रहा है। उसे इसकी राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेना है। जशपुर पढ़ाई, खेल और उन्नत खेती के लिए जाना जाता है इसलिए यह वहां ऐसा दृश्य देखने को मिले तो कोई अनोखी बात नहीं।
शांति से जनपितुरी सप्ताह का गुजर जाना
जून महीने में हर साल माओवादी संगठन जनपितुरी सप्ताह मनाते हैं। इस बार भी 5 से 11 जून तक यह मनाया जा रहा है। अपने मारे गए साथियों की याद में वे इन दिनों को समर्पित करते हैं और स्थानीय लोगों से अपील करते हैं कि सुरक्षा बलों से सहयोग न करें। साथ ही हमले और सुरक्षा बलों के गश्त में व्यवधान कर अपनी मौजूदगी दिखाते हैं। बीते सालों में जनपितुरी सप्ताह के दौरान सुरक्षा बलों पर हमला कर, सडक़ों को काटकर, विस्फोट कर वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं। हमलों की आशंका को देखते हुए रेलवे हर साल यात्री ट्रेनों को दंतेवाड़ा से किरंदुल के बीच बंद कर देती है। इस बार भी ऐसा ही किया गया है। मालगाडिय़ों को भी प्रभावित क्षेत्रों में धीमी गति से निकाला जा रहा है।
आज जनपितुरी सप्ताह के आखिरी दिन भी इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सुरक्षा बलों को किसी माओवादी हमले का सामना इस बार नहीं करना पड़ा है, बल्कि इस दौरान वह माओवादियों पर ही भारी पड़ी। बीजापुर-सुकमा की सीमा पर सुरक्षाबलों के साथ माओवादियों की मुठभेड़ हुई थी। सुरक्षा बलों ने दावा किया है कि इसमें तीन माओवादियों की मौत हुई। झीरम घाटी हमले में वांछित हिड़मा के भी इस मुठभेड़ में मौजूद होने और भाग निकलने का दावा फोर्स की ओर से किया गया है।
25 अप्रैल को दंतेवाड़ा में ब्लास्ट कर एक पेट्रोलिंग वाहन को माओवादियों ने उड़ा दिया था, जिसमें 10 जवानों सहित 11 लोगों की मौत हो गई थी। इसलिये शांत जनपितुरी सप्ताह को लेकर गुरिल्ला वार में पारंगत बल को लेकर यह धारणा बना लेना कि उनकी स्थिति काफी कमजोर है, सही नहीं होगा। सुरक्षा बल अधिकारी जरूर दावा कर रहे हैं कि माओवादियों के पैर उखड़ रहे हैं और जल्द ही उन्हें खदेड़ दिया जाएगा। यह एक रणनीति भी हो सकती है। खासकर, तब जब विधानसभा चुनावों में कुछ माह ही बचे हैं और नेताओं के दौरे अंदरूनी इलाकों में होने वाले हैं।