राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : कमल सारडा को बधाई
14-Jun-2023 6:10 PM
राजपथ-जनपथ : कमल सारडा को बधाई

कमल सारडा को बधाई 
उद्योगपति कमल सारडा बुधवार को एक शादी समारोह में पहुंचे, तो कई लोगों ने उन्हें बधाई दी। सारडा हल्की मुस्कान बिखेरकर बधाई स्वीकार करने में थोड़ा हिचक भी रहे थे। दरअसल, कमल सारडा की अगुवाई में सारडा समूह ने ऊंची छलांग लगाई है। कंपनी रायगढ़ स्थित एसकेएस पॉवर को खरीदने की रेस में सबसे आगे निकल गई है। कहा जा रहा है कि कुछ कागजी कार्रवाई के बाद एसकेएस पॉवर, सारडा एनर्जी का हिस्सा बन जाएगा।

बताते हैं कि कर्ज अदायगी न कर पाने के कारण एसकेएस पॉवर को बैंकों ने नीलाम कर दिया था। एसकेएस पॉवर को खरीदने में कई नामी कंपनियां मसलन, टाटा पॉवर, अदानी सहित कुल पांच कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई थी। मगर सारडा एनर्जी ने सबको पीछे छोड़ दिया। जानकार बताते हैं कि कई बिजली कंपनियों की माली हालत अच्छी नहीं होने के बाद भी एसकेएस को खरीदना सारडा एनर्जी के लिए बड़े फायदे का सौदा है।  

एसकेएस पॉवर का उत्तर प्रदेश सरकार से पॉवर परचेस एग्रीमेंट है। ऐसे में उत्पादित बिजली को बेचने के लिए सारडा एनर्जी को इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा।

पिल्ले दंपत्ति राज्य सरकार से बाहर 
एसीएस रेणु पिल्ले केन्द्रीय अनुसूचित जाति आयोग की सचिव बन गई है। 91 बैच की अफसर रेणु पिल्ले केन्द्र सरकार में सचिव पद के लिए सूचीबद्ध हुई है। रेणु राज्य की दूसरी अफसर हैं, जो केन्द्र सरकार के किसी आयोग में सचिव के पद पर पदस्थ हुई हैं। इससे पहले आईपीएस अफसर केन्द्रीय अल्पसंख्यक आयोग में सचिव रहे हैं।

रेणु पिल्ले का 5 साल बाद रिटायरमेंट है। उनके पति डीजी (जेल) संजय पिल्ले का अगले महीने रिटायरमेंट हैं। रेणु पिल्ले जनगणना निदेशक भी रह चुकी हैं। रेणु और संजय के पुत्र भी ओडिशा कैडर के आईएएस हो चुके हैं। 

कहीं ये वो तो नहीं
ईडी ने लिकर स्कैम में दो दिन पहले एक कर्मचारी गिरफ्तार किया था। इसके नाम से मिलता जुलता राज्य प्रशासन ने भी एक अधिकारी कार्यरत है। नाम सामने आते ही हर कोई उनकी पतासाजी, और खैरियत पूछने में जुट गया। इनमें एसीएस स्तर के अफसर भी शामिल हंै। पूछ परख क्यों न हो, यह भी उन दिनों देश से बाहर ही थे। पहले वाले का भी गोरखपुर के रास्ते नेपाल जाने का हल्ला था। कल रात एक विवाह समारोह में ये जनाब दिखे तो साहब लोगों ने शुक्र बनाया। कहने लगे हमें शंका हो रही थी कहीं वो तुम तो नहीं थे। इन्होंने कहा कि मैं अमेरिका गया था। लोगों ने वहां भी कॉल कर ऐसी ही टोह ली थी। 

चेहरे को लेकर भाजपा में असमंजस
राजनांदगांव में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की मौजूदगी में भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने अगले विधानसभा चुनाव के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा, इस सवाल पर कहा कि केंद्रीय समिति यह तय करती है इंतजार करिये। साथ ही यह भी कहा कि कई राज्यों में बिना चेहरे के भी भाजपा ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की है।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा को बुहत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। वहां दो प्रयोग हुए थे, एक तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा सामने रखकर चुनाव लड़ा गया था और दूसरा राज्य के बड़े पार्टी नेता को किनारे कर नये लोगों को टिकट दिए गये थे। छत्तीसगढ़ में भी ऐसा किया जाना एक जोखिम भरा फैसला होगा। उसे कार्यकर्ताओं की तरफ इशारा करना होगा कि यदि सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कौन हो सकते हैं।

शायद संगठन के शीर्ष नेता सोच रहे हैं कि सन् 2018 की ऐतिहासिक पराजय के बाद डॉ. रमन सिंह को दुबारा चेहरे के रूप में पेश करने का जोखिम भी नहीं उठाया जा सकता। यह न केवल उन कार्यकर्ताओं को नाराज करेगा जो सत्ता में रहने के दौरान अपनी उपेक्षा से नाराज थे, बल्कि उन नेताओं को भी जो कद्दावर होने के बावजूद डॉ. सिंह के दौर में हाशिये पर डाल दिए गए थे।

विधानसभा चुनाव में अब लगभग 5 माह रह गए हैं। यदि कोई चेहरा भाजपा को तय करना है तो ज्यादा इंतजार नहीं किया जा सकता। पार्टी यह भी साफ नहीं कर रही है कि सामूहिक नेतृत्व चुनाव लड़ेगा। मोदी के चेहरा कामयाबी का रास्ता जरूर बनेगा पर सत्ता में दोबारा लौटने की गारंटी नहीं। कर्नाटक और उसके पहले हिमाचल प्रदेश के नतीजों ने यह बता दिया है।

अब यह सवाल उठता है कि मुख्यमंत्री पद के लिए कौन-कौन दावेदार हैं। जनाधार वाले एक बड़े नेता बृजमोहन अग्रवाल हैं। उनके पास चुनाव जीतने और जिताने का रिकॉर्ड भी है। राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय की भी पूरे प्रदेश में पकड़ है। सांसद संतोष पांडेय भी वरिष्ठ नेता हैं। पर इन नामों को नतीजे से पहले ही आगे कर देना खुद को नुकसान पहुंचाना हो सकता है। यह सही है कि डॉ. रमन सिंह सामान्य वर्ग से आते रहे। रमेश बैस और नंदकुमार साय को किनारे रखकर उनका नाम सन् 2003 के नतीजों के बाद तय किया गया, पर इधर चार सालों में पिछड़ा वर्ग फैक्टर प्रदेश की राजनीति में हावी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिच ही कुछ ऐसी तैयार कर दी है।

पिछड़े वर्ग के वरिष्ठ नेताओं में विधायक और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर और सांसद विजय बघेल दावेदार हो सकते हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव और प्रदेश महामंत्री ओपी चौधरी भी उभरते हुए नेता हैं। इन नेताओं के सीमित जनाधार, अनुभव की कमी और कार्यकर्ताओं में सहमति नहीं बनने जैसे अलग-अलग कारण हैं। नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल को इस रेस में माना जाना सही नहीं होगा, उनकी अपने इलाके के अलावा कहीं पकड़ नहीं। सन् 2018 का चुनाव जीतने के लिए तब के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव साथ-साथ हर जगह दिखते थे। यहां चंदेल अलग-थलग दिखाई देते हैं।

आदिवासी वर्ग के नेताओं में नंदकुमार साय एक बड़ा नाम थे, पर वे अलग हो गए। केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह, रामविचार नेताम, ननकीराम कंवर जैसे कुछ नेता रह जाते हैं। सरगुजा, कोरबा इलाके में इनका नाम आने पर जरूर भाजपा कार्यकर्ता उत्साहित हो सकते हैं, पर बाकी इलाकों में  कार्यकर्ताओं के घर बैठ जाने का खतरा है, क्योंकि वे किसी और को इस पद पर देखना चाहते हैं। कांग्रेस की तरह भाजपा में भी खेमेबंदी कम नहीं है।

अब नाम आता है राज्यपाल रमेश बैस का। सन् 2003 में भी उनका दावा था। इसके बाद कई बार चर्चा हुई कि उन्हें मौका मिल सकता है पर वे पिछले आठ साल से छत्तीसगढ़ की राजनीति से अलग हैं। एक बार फिर उनकी चर्चा होने लगी है। हाल के दिनों में उन्होंने छत्तीसगढ़ का कई बार दौरा किया। न केवल रायपुर बल्कि दूसरे शहरों में भी गए। कम विवादित नाम है और आरएसएस की पसंद भी रहे हैं। कांग्रेस की ओबीसी पॉलिटिक्स के जवाब के लिए भी दुरुस्त नाम है। शायद सर्वाधिक सहमति उनके नाम पर बन जाए। राज्यपाल पद से इस्तीफा लेकर उन्हें फिर राजनीति में सक्रिय करना सही है या नहीं, इस सवाल का मतलब नहीं है। कांग्रेस ने भी अर्जुन सिंह सहित कई नेताओं के मामले में ऐसा किया है। सवाल बैस का है कि वे क्या इतने लंबे अंतराल के बाद पार्टी के भीतर खुद को सहज पाएंगे।

जर्जर सडक़ पर शव के साथ..
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के लखनपुर ब्लॉक के ये ग्रामीण शव को खाट में ले जा रहे हैं। ऐसी तस्वीर तो सरगुजा के अंदरूनी इलाकों से अक्सर आती रहती है। पर इनका एक दूसरा दर्द भी है। सडक़ नाम की है। सात साल से ग्रामीण सडक़ बनाने की मांग कर रहे हैं। न अफसरों ने सुनी न क्षेत्र के विधायक ने। यहभ्राम पटकुरा की तस्वीर है। जो मुख्य मार्ग से सात किलोमीटर दूर है। ([email protected])

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