राजपथ - जनपथ
अब अफसर देंगे टक्कर ?
भाजपा के लिए सरगुजा की सीतापुर सीट ऐसी है जिसे पार्टी अब तक फतह नहीं कर पाई है। पहले प्रोफेसर गोपाल राम निर्दलीय विधायक थे। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के अमरजीत भगत ने जीत हासिल की थी। इसके बाद से वो अब अजेय बने हुए हैं।
भाजपा सीतापुर सीट जीतने के लिए कई प्रयोग कर चुकी है। जशपुर से दिग्गज आदिवासी नेता गणेशराम भगत को सीतापुर लाकर अमरजीत खिलाफ लड़ाया गया था लेकिन वो भी बेदम साबित हुए। अब अमरजीत सरकार में मंत्री हैं, और सरकार में प्रभावशाली हैं। चर्चा है कि भाजपा अब एक अफसर को इस्तीफा दिलवाकर अमरजीत के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारने की सोच रही है।
अफसर लोकप्रिय हैं, और तमाम बड़े आदिवासी नेताओं के पंसदीदा भी हैं। पार्टी नेताओं से हरी झंडी मिलते ही अफसर ने वहां सामाजिक कार्यक्रमों में जाना शुरू कर दिया है। चर्चा है कि उन्हें किसी राष्ट्रीय नेता के समक्ष पार्टी में प्रवेश दिलाया जा सकता है। देखना है आगे क्या होता है।
होटल के लिए सरकारी सडक़!
छत्तीसगढ़ से राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन विवादों से घिर गई हैं। रंजीत रंजन ने भिलाई नगर निगम को सांसद निधि से 25 लाख रूपए सीसी रोड निर्माण के लिए दिया था। इस राशि से उस जगह सीसी रोड का निर्माण हुआ, जहां कांग्रेस नेता का होटल है। इस पर स्थानीय भाजपा के नेता, रंजीत रंजन और महापौर पर निशाना साधा रहे हैं।
भाजपा नेताओं का तर्क है कि गंदी बस्तियों को छोड?र कांग्रेस नेता के होटल व्यवसाय को फायदा पहुंचाने के लिए वहां सीसी रोड बनाया गया है। रंजीत रंजन बिहार की रहवासी हैं, और उन्हें छत्तीसगढ़ के बारे में ज्यादा कुछ मालूम नहीं हैं। वो तो ऐसी हंै कि प्रेस कांफ्रेंस में सवाल पूछा गया कि छत्तीसगढ़ में कितनी विधानसभा की सीटें हैं, तो वो कुछ क्षण चुप रहीं। पीछे से भिलाई महापौर ने बताया, तो सही जवाब दे पाईं।
सिंहदेव का सरगुजा में पिघलना
रहीम ने कहा है-चाह गई, चिंता मिटी मनुवा बेपरवाह, जिनको कछु नहीं चाहिए वो साहन के साह। सरगुजा रियासत के प्रतिनिधि टीएस सिंहदेव सरगुजा सम्मेलन में शाहों के शाह की तरह ही नजर आए। कुछ समय पहले तक मुख्यमंत्री पद के लिए कथित रूप से तय हुए ढाई-ढाई साल वाले फॉर्मूले पर अमल नहीं होने से वे व्यथित थे। कह दिया था कि उनका इस बार चुनाव लडऩे का पहले जैसा मन नहीं है, सोचेंगे लड़ेंगे या नहीं। इधर सरगुजा कांग्रेस सम्मेलन में उन्होंने तमाम अटकलों पर विराम देते हुए साफ कर दिया कि वे खाली नहीं बैठेंगे। कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और तमाम नेताओं की मौजूदगी में मंच से यह खुलासा किया कि भाजपा के कैबिनेट स्तर के मंत्रियों ने उनसे दिल्ली के फाइव स्टार होटल में मुलाकात की थी। सिंहदेव इस शर्त पर मिलने के लिए तैयार हुए कि उन्हें भाजपा में शामिल होने नहीं कहा जाएगा। इसके बावजूद वे मिलने आए और भाजपा में आने का ऑफर भी दिया। भाजपा के अलावा कुछ दूसरे दलों ने भी संपर्क किया, पर वे जीवन पर्यन्त कांग्रेसी रहेंगे। कांग्रेस में काम करने का मौका मिलेगा तो पीछे नहीं हटेंगे, नहीं मिला तो घर बैठना चाहेंगे।
सिंहदेव ने भावुकता के साथ सन् 2018 में सत्ता में वापसी के लिए मिल-जुलकर किए गए संघर्ष को याद किया। साथ ही आगाह किया कि कांग्रेस को विरोधी दल से ज्यादा अपनी ही गुटबाजी से खतरा है। यह भी कहा कि हर कोई कांग्रेस के लिए फिर से सत्ता में आने की बात कह रहा है, संभावना भी यही है, पर विपक्ष को कम न आंकें।
वैसे, सत्ता के साढ़े चार साल में सिंहदेव ने काफी कुछ बर्दाश्त किया। मंत्रिमंडल में मनपसंद विभाग नहीं मिला। विधायक बृहस्पत सिंह की ओर से सीधे हमले हुए तो खाद्य मंत्री अमरजीत भगत के समर्थकों ने भी कसर बाकी नहीं रखी। इसका असर प्रशासन के रवैये पर भी दिखा। सरकार के ढाई साल पूरा होने के बाद उन्होंने कई दौर की दिल्ली यात्रा की। हाईकमान से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। शीर्ष नेताओं से तो मुलाकात भी नहीं कर पाए। इन सब बातों का मलाल मन में हो न हो, यह जाहिर कर बड़प्पन दिखाया है कि वे कांग्रेस को अपनी वजह से कोई नुकसान अगले चुनाव में नहीं होने देंगे। उनके खाली बैठ जाने की आशंका से सरगुजा के उनके समर्थकों में असमंजस और निराशा का भाव भर रहा था। सरगुजा के बाहर भी उनके समर्थक हैं, कुछ विधायक भी हैं। इन सबको सिंहदेव ने अपने रुख से राहत पहुंचाई है। सत्ता और संगठन दोनों की चिंता भी घटी है।
साजिश के बिना भी संभव
दो जून की शाम ओडिशा के बालासोर के बहानगा बाजार स्टेशन पर हुई भीषण रेल दुर्घटना की वजह यह बताई गई कि कोरोमंडल एक्सप्रेस मेन लाइन की जगह एकाएक लूप लाइन में चली गई। लूप लाइन में उन ट्रेनों को खड़ा किया जाता है जिन्हें दूसरी ट्रेनों को आगे बढ़ाने के लिए रोकना हो। प्राय: ये मालगाडिय़ां ही होती हैं। रेल मंत्री और मंत्रालय के उच्चाधिकारियों का कहना है कि सिग्नल प्रणाली में छेड़छाड़ किए बिना ऐसा संभव नहीं है कि मेन लाइन में जा रही यात्री ट्रेन लूप लाइन में चली जाए। इसमें साजिश की आशंका को देखते हुए अब सीबीआई जांच शुरू हो गई है। पर रेलवे के जानकार अधिकारियों का दावा है कि बिना साजिश के भी सिग्नल फेल हो सकता है। सेफ्टी इंजीनियर्स की चौकस रहने की जिम्मेदारी है। सिग्नल ठीक काम कर रहे हैं या नहीं यह देखें। ऐसी एक लापरवाही बिलासपुर रेलवे जोन में बरती गई थी। करीब 11 साल पहले अक्टूबर 2012 में दगौरी स्टेशन से जिस मालगाड़ी को सीधे आगे निकल जाना था, वह सिग्नल में गड़बड़ी के चलते लूप लाइन में चली गई। वहां एक मालगाड़ी पहले से खड़ी थी, जिससे दूसरी मालगाड़ी जाकर टकरा गई। इस हादसे में लोको पायलट और गार्ड की मौत भी हो गई थी। दगोरी दुर्घटना में सेफ्टी इंजीनियर और स्टेशन मास्टर की लापरवाही पाई गई थी। पर बालासोर दुर्घटना में यह पता लगने में देर है कि दुर्घटना लापरवाही की वजह से हुई या कोई साजिश थी, क्योंकि जांच सीबीआई कर रही है।
न उडऩे की जगह न चलने की
सन् 2018 में कांग्रेस सरकार आई तब लोगों को उम्मीद थी कि राजधानी रायपुर के जीई रोड में बनाया गया अधूरा स्काई वाक या तो पूरा तैयार होगा या फिर तोड़ दिया जाएगा। कांग्रेस इसे भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार का स्मारक बताती है। इसकी उपयोगिता को लेकर विधायक सत्यनारायण शर्मा की अध्यक्षता में बनाई गई समिति अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप चुकी है। कांग्रेस ने ढेर सारे दस्तावेज ईओडब्ल्यू को सौंपे हैं। जांच के घेरे में पूर्व मंत्री राजेश मूणत और पीडब्ल्यूडी के अधिकारी हैं, पर अब तक यह जांच पूरी नहीं हुई है। अब इंसानों के पास ऐसा हुनर तो है नहीं कि नीचे सडक़ जाम हो तो 25 फीट ऊंचे खंडहर बनते स्काई वाक पर उडक़र चढ़ ले। चढ़ भी ले तो छोर नहीं मिलेगा। तोड़ ही दिया जाता तो कम से कुछ सडक़ कुछ चौड़ी हो जाती। इधर 40 डिग्री सेल्सियस की ऊमस भरी गर्मी में बची खुची सडक़ पर पैदल और दोपहिया गाड़ी में सरक-सरक कर चलने वालों की सहनशीलता नापी जा रही है। ([email protected])