राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : राजभवन से छत्तीसगढ़ पर नजर
22-Jun-2023 6:00 PM
राजपथ-जनपथ :  राजभवन से छत्तीसगढ़ पर नजर

राजभवन से छत्तीसगढ़ पर नजर
महाराष्ट्र का राजभवन अब छत्तीसगढ़ के भाजपा नेताओं, और कई कारोबारियों का नया ठिकाना बन गया है। छत्तीसगढ़ भाजपा के बड़े नेता, और राज्यपाल रमेश बैस भले ही संवैधानिक पद पर हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ की राजनीति पर पैनी नजर रहती है। 

छत्तीसगढ़ के भाजपा के नेता मुंबई जाते हैं, तो बैस से मिलने जरूर जाते हैं। और उनका मार्गदर्शन भी लेते हैं। पिछले दिनों बैस ने विधायक सम्मेलन में आए सभी विधायकों को अपने यहां लंच पर आमंत्रित भी किया था। भाजपा के तो सभी विधायक पहुंचे, लेकिन कांग्रेस से सिर्फ विकास उपाध्याय, और आशीष छाबड़ा ही थे। बैस ने सबकी अच्छी खातिरदारी की। नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल तो सपरिवार राजभवन के गेस्टहाउस में रूके थे। चंदेल, बैस के नजदीकी रिश्तेदार भी हैं। 

पार्टी के ज्यादातर नेता अनौपचारिक चर्चा में बैस को सलाह दे देते हैं कि उन्हें छत्तीसगढ़ की राजनीति में लौट आना चाहिए। कुछ उत्साही नेता तो उन्हें सीएम का फेस भी बता देते हैं। इन सब पर बैसजी बोलने से परहेज करते हैं, और ठहाका लगा देते हैं। 

खारिज होती आदिवासियों की गुहार
गांधीवादी मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने बस्तर में हिंसा के शिकार आदिवासियों के मामले में अदालतों खासकर हाईकोर्ट के कुछ फैसलों का सोशल मीडिया में जिक्र किया है। सन् 2009 में सुकमा में 17 आदिवासियों को, जैसा आरोप है- सुरक्षा बलों ने लाइन में खड़ा कर गोली मार दी, जिनमें 4 महिलाएं थीं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने माना कि जांच में पुलिस ने लीपापोती की। 14 साल बाद हाईकोर्ट ने मुकदमा खारिज कर दिया। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के सिंगाराम गांव में 2009 में सुरक्षाबलों ने 17 आदिवासियों को लाइन में खड़ा करके गोली से उड़ा दिया था, इनमें 4 महिलाएं थीं। 2017 में बीजापुर जिले के पेद्दा गेलूर की 28 आदिवासी महिलाओं ने सिपाहियों पर बलात्कार करने का मामला हाईकोर्ट में उठाया।  पिछले हफ्ते छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट महिलाओं की यह याचिका भी खारिज कर दी।  अर्जुन नाम के एक नाबालिग आदिवासी बच्चे को पुलिस ने गिरफ्तार किया, कोर्ट ने उसे जमानत दे दी। वह जमानत पर रिहा होकर घर गया। पुलिस ने घर में जाकर उसे गोली मार दी। पिछले हफ्ते हाईकोर्ट ने यह मामला भी खारिज कर दिया। एक नाबालिग आदिवासी लडक़ी के साथ थाने में बलात्कार किया गया और उसके बाद फर्जी मामले में फंसा कर 7 साल जेल में रखा गया, 7 साल बाद उसे अदालत ने बरी कर दिया।

वह मुआवजे और दोषी पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग लेकर अदालत आई थी, अदालत ने उसका मामला भी खारिज कर दिया।

हिमांशु कुमार लिखते हैं कि आदिवासियों की फर्जी मुठभेड़ में हत्याओं के कई मामले हाईकोर्ट ने एक ही हफ्ते में खारिज कर दिए गए हैं। इस तरह से बड़े पैमाने पर आदिवासियों के मानवाधिकारों से जुड़े मामले खारिज करने से आदिवासियों में अदालत के प्रति अविश्वास पैदा होगा। आदिवासियों के पास न्यायालय जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है लेकिन अगर अदालत उनकी याचिकाओं को न्याय दिए बिना खारिज कर देगी तो आदिवासियों के पास कोई रास्ता नहीं बचता। मीडिया, किसी आदिवासी संगठन या वकील का बयान अब तक इन पर सामने नहीं आया हैं।

वन नेशन वन कार्ड की परेशानी
राशन उठाने वाले एपीएल बीपीएल परिवारों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वे एक बार अपने परिवार के पूरे सदस्यों के साथ, जिनका कार्ड में नाम दर्ज है, राशन दुकान पहुंचें और अपना आधार कार्ड वेरिफिकेशन कराएं। केंद्र सरकार ने वन नेशन वन कार्ड की योजना लागू की है, जिसके लागू होने पर कोई भी कार्डधारक देश के किसी भी कंट्रोल की दुकान से राशन उठा सकेगा। प्रवासी मजदूरों के लिए यह एक फायदेमंद योजना है, पर इस बात का सर्वे तो शायद किया ही नहीं गया है कि ज्यादातर लोग अपने ही मोहल्ले या गांव की दुकानों से राशन लेते हैं। बस्तर, सरगुजा, जशपुर में तो कई दुकानें दूसरे-दूसरे गांवों में कई-कई किलोमीटर दूर हैं। नदी नाले पगडंडी, पहाड़ी पार करना पड़ता है। इन्हें वन नेशन वन कार्ड का फायदा कभी लेना होगा, इसकी उम्मीद ही कम है। पर, आधार कार्ड अपडेट करना सबके लिए जरूरी कर दिया गया है। इसके चलते हो यह रहा है कि राशन दुकानों में पूरे परिवार के साथ लोग पहुंच रहे हैं। इनमें बच्चे और बूढ़े भी हैं। गर्मी में घंटों इंतजार करना पड़ रहा है और उनकी बारी नहीं आ रही है। यह काम कितनी धीमी चल रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बस्तर में 2.20 लाख राशन कार्ड धारी हैं, उनमें से केवल 18 हजार आधार कार्ड अपडेट हो सके हैं। अनेक गांवों में कनेक्टिविटी की समस्या भी खड़ी हो रही है। पहले अपडेट करने की तारीख जून के आखिरी तक थी, जिसे बढ़ाकर जुलाई कर दी गई है, पर जिस रफ्तार से यह प्रक्रिया चल रही है, जुलाई में भी पूरा होने के आसार नहीं है। गरीब परिवारों के लिए जिनके लिए कंट्रोल का राशन बहुत मायने रखता है, वे इस बात से घबराए हुए हैं कि अंतिम तारीख निकलते तक अगर अपडेट नहीं कराया तो उनके नाम का आवंटन नहीं आएगा। क्या यह व्यावहारिक नहीं होता कि वन नेशन वन कार्ड के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की जाती, उन लोगों का कार्ड अपडेट करने में प्राथमिकता से किया जाता, जिन्हें बाहर जाना पड़ता है और अलग-अलग दुकानों से राशन उठाने की जरूरत पड़ती है?

([email protected])

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news