राजपथ - जनपथ
साय के लिए किसकी टिकट कटेगी?
चार दशकों तक भाजपा के कई महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद पार्टी से नाराज होकर कांग्रेस में शामिल हुए नंद कुमार साय को महीने भर से अधिक गुजर जाने के बावजूद कोई बड़ी जिम्मेदारी अभी तक नहीं मिली है। बीच में चर्चा चली थी कि उनको किसी निगम या मंडल का अध्यक्ष बना दिया जाएगा लेकिन बात बनी नहीं। कांग्रेस ने उनके जनाधार का इस्तेमाल करने के बारे में जरूर कुछ सोचा होगा लेकिन साय क्या चाहते हैं, हाल में एक न्यूज़ चैनल से चर्चा के दौरान इशारा कर दिया। उन्होंने कहा है कि वे विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने संभावित सीट भी बता दी पत्थलगांव या कुनकुरी। उन्होंने यह नहीं कहा कि कांग्रेस हाईकमान के कहने पर लड़ेंगे। अभी इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं। कुनकुरी विधायक यू डी मिंज पहली बार के विधायक हैं तो पत्थलगांव से राम पुकार सिंह रिकॉर्ड 9 बार के। जब नंदकुमार साय को पार्टी में लाया गया तो कांग्रेस ने कुछ न कुछ आश्वासन तो उनको दिया ही होगा। पर शायद साय को लगता है कि अपनी इच्छा सार्वजनिक कर दें ताकि आगे कोई भ्रम की स्थिति ना रहे और टिकट बांटने वाले मानसिक रूप से तैयार रहें। इस बयान पर चिंता इन दोनों जगहों के विधायकों को भी होनी चाहिए।
ब्राह्मण बहुल क्षेत्र
एक देश के भीतर कितने ही देश बसे होते हैं और एक गांव के भीतर भी कितने गांव। सबको अपनी अपनी पहचान इस तरह नहीं बतानी पड़ती, जैसा इस बोर्ड में दर्शाया गया है। यह यूपी के अमेठी जिले के किसी गांव की सडक़ पर लगा हुआ साइन बोर्ड है। पता नहीं यहां पर बताने की जरूरत क्यों पड़ी कि यहां ब्राह्मण लोगों की बहुलता है। इस समय देश को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के पक्ष में एक वर्ग लगातार अभियान चला रहा है। मान लो कभी ऐसा हो भी गया तो इस तरह के बोर्ड हट जाएंगे या अपनी अपनी पहचान बताने के लिए ऐसे बोर्ड लगाने की होड़ मच जाएगी?
बारले से शाह की मुलाकात के मायने
पंडवानी गायिका उषा बारले के घर जाकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात के पीछे की राजनीति क्या थी, यह चर्चा का विषय बना हुआ है। पृष्ठभूमि यह बताई जा रही है कि पद्मश्री ग्रहण करने के लिए जब बारले दिल्ली गई थीं तब राष्ट्रपति भवन में अमित शाह की उनकी संक्षिप्त बातचीत हुई थी। शाह के पूछने पर बारले ने बताया था कि वह छत्तीसगढ़ की लोक कलाकार हैं। शाह ने कहा था कि मैं तो छत्तीसगढ़ आता रहता हूं, अब जब आऊंगा तो आपके घर जरूर आऊंगा। और इस तरह अतिव्यस्त शाह ने एक कलाकार के घर पर 20 मिनट समय दिया।
दरअसल, भाजपा छत्तीसगढ़ में दोबारा सरकार बनाने के लिए हर छोटी-बड़ी कोशिश कर रही है। जिस सतनामी समाज से उषा बारले आती हैं, उस समाज का प्रदेश में करीब 18 प्रतिशत वोट है। छत्तीसगढ़ में 10 सीटें अनुसूचित जाति की हैं। सन् 2013 के चुनाव में इनमें से 9 भाजपा के पास थी लेकिन सन् 2018 में सिर्फ दो सीटें मुंगेली और मस्तूरी उसके पास रह गई। इसकी एक बड़ी वजह सतनामी समाज के धर्मगुरू बालदास का कांग्रेस को समर्थन मिल जाना था। एक और गुरु रुद्र कुमार भी कांग्रेस में मंत्री हैं। भाजपा पर अक्सर यह आरोप कांग्रेस लगाती है कि उसे स्थानीय संस्कृति और छत्तीसगढिय़ावाद से कोई लेना-देना नहीं। भाजपा के लिए चुनाव से पहले इस धारणा को तोडऩा जरूरी है। अनुसूचित जाति सीटें जरूर 10 हैं लेकिन इस सतनामी समाज पूरे प्रदेश में फैले हैं। कम से कम 35-40 सीटों पर उनका असर है। हाल ही में पंथी नर्तक आरएस बारले ने भाजपा प्रवेश किया था। अभी उषा बारले से शाह की इस बारे में कोई बात नहीं हुई, जैसा उन्होंने मीडिया को बताया है। बारले का दावा है कि उन्होंने आज राजनीति में आने का विचार नहीं किया है, लेकिन कोई बोलेगा तो देखेंगे।
कौन विधायक बचा रहा अफसर को?
रायपुर में उद्योग विभाग के अतिरिक्त संचालक संतोष भगत पर वहीं की एक महिला अधिकारी ने छेडख़ानी के गंभीर आरोप लगाये थे। ठीक एक माह पहले महिला को ऑफिस से घर निकलने में देर हो गई थी। आरोप के मुताबिक शराब के नशे में उक्त अधिकारी ने महिला की कार का शीशा खुलवाकर गलत तरीके से छुआ। इस आरोप के बाद कार्यस्थल पर होने वाले यौन अपराध को लेकर गठित समिति की जांच अलग चल रही है, जिसकी रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आई है लेकिन भगत के तबादला की विभागीय फाइल चली। इसमें उनको मंत्रालय भेजने का प्रस्ताव था। पर, तबादला नहीं हुआ। बताया जा रहा है कि यह फाइल विभागीय मंत्री के पास जाकर अटक गई है। आरोप यह भी है कि जशपुर इलाके के एक विधायक ने उन पर कार्रवाई नहीं करने का दबाव बना रखा है। जशपुर के तीनों विधायक कांग्रेस से हैं। किसी महिला अधिकारी से छेड़छाड़ पर हो रही कार्रवाई में आरोपी को बचाने के लिए विधायक की दखलंदाजी और मंत्री की उनकी सिफारिश को मान लेना क्या दर्शाता है?