राजपथ - जनपथ

टिकट न मिली तो प्रमोद थम गए
खबर है कि जोगी पार्टी छोडऩे के बाद बलौदाबाजार विधायक प्रमोद शर्मा असमंजस में हैं। पहले उनके धर्मजीत सिंह के साथ भाजपा में शामिल होने की चर्चा थी लेकिन टिकट पर कोई आश्वासन नहीं मिलने से ठिठक गए।
बताते हैं कि जिस दिन धर्मजीत सिंह का भाजपा प्रवेश हुआ था उसके एक दिन पहले आधी रात तक प्रमोद की भाजपा के सहप्रभारी नितिन नबीन के साथ बैठक भी हुई थी।
नबीन ने उनसे कहा बताते हैं कि बलौदाबाजार की पड़ोस की सीट से शिवरतन शर्मा विधायक हैं, जो कि ब्राम्हण समाज से आते हैं। दोनों को एक साथ चुनाव मैदान में उतारने से जाति समीकरण गड़बड़ा सकता है। चर्चा है कि नितिन ने उन्हें सर्वे होने के बाद ही टिकट को लेकर निर्णय लेने की बात कही।
नितिन नबीन ने कहा कि पहले पार्टी ज्वाइन कर लें फिर सरकार बनने के बाद उनका ध्यान रखा जाएगा। इसके लिए प्रमोद तैयार नहीं हुए।
प्रमोद के कांग्रेस में जाने की भी चर्चा रही है। मगर कांग्रेस में टिकट की गुंजाइश नहीं दिख रही है। वजह यह है कि कांग्रेस में पूर्व राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा और शैलेष नितिन त्रिवेदी, पूर्व विधायक जनकराम वर्मा टिकट पाने के लिए मेहनत कर रहे हैं। ऐसे में प्रमोद अन्य विकल्पों की खोज में हैं। मगर हर बार दोनों पार्टियों से परे चुनाव लड?र जीतना आसान नहीं है।
बृजमोहन के खिलाफ फौज
बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ रायपुर दक्षिण से चुनाव लडऩे के लिए कांग्रेस में दावेदारों की फौज खड़ी हो गई है। मेयर एजाज ढेबर, सभापति प्रमोद दुबे से लेकर कन्हैया अग्रवाल और विकास तिवारी तक टिकट मांग रहे हैं।
बृजमोहन को लेकर यह प्रचारित है कि जो उनके खिलाफ भी होता है वो चुनाव जीतने के बाद उन्हें भूलते नहीं हैं। उनका पूरा ख्याल रखते हैं। चर्चा है कि एक-दो पुराने प्रत्याशियों और दावेदारों को भरपूर मदद भी की थी।
इन चर्चाओं के बीच जानकार लोग पामगढ़ के पूर्व विधायक दूजराम बौद्ध को याद कर रहे हैं। जो वर्ष 2013 से 18 तक पामगढ़ से विधायक रहे हैं। उन्होंने पिछला चुनाव सिर्फ इसलिए नहीं लड़ा कि वो चुनाव लडऩे के दौरान लिए गए कर्ज को नहीं चुका पाए थे।
उनकी ईमानदारी और लोकप्रियता का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि न सिर्फ दलित बल्कि कई ब्राम्हण समाज के प्रभावशाली लोग उन्हें चुनाव लडऩे के लिए प्रेरित कर रहे थे। एक तो ब्राम्हण नेता तो उन्हें वित्तीय मदद के लिए तैयार भी थे। मगर ईमानदारी का आलम यह रहा कि उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। कहा जाता है कि बाद में उन्होंने विधायक के रूप में मिले रियायती दर पर खरीदे गए प्लाट को बेचकर कर्जा चुकाया है। छत्तीसगढ़ की राजनीति में दूजराम जैसे नेता तो जीतकर भी नुकसान में चले जाते हैं और कई तो हार में भी फायदा होता है।
नाम घोषित, मीटर घूमना शुरू
भाजपा प्रत्याशियों की एक सूची जारी हो गई है, लेकिन कई सामान्य परिस्थिति के प्रत्याशी चिंतित भी हैं। उन्हें चिंता हार-जीत की नहीं बल्कि चुनाव खर्च की है। क्योंकि नाम की घोषणा के बाद खर्चों का मीटर घुमना शुरू हो गया है।
गणेशोत्सव नजदीक है। इसके बाद दुर्गोत्सव और दशहरा तक विशेषकर जनप्रतिनिधियों को काफी कुछ सहयोग करना पड़ता है। अब प्रत्याशी घोषित हो गए हैं तो अपेक्षा ज्यादा रहती है। हालांकि पार्टी ने अभी सादगी से रहने की सलाह दी है। मगर ज्यादा सादगी से लोगों की नाराजगी होने का खतरा भी है। देखना है कि ये प्रत्याशी किस तरह चुनाव निपटाते हैं।
चुनाव बहिष्कार का ऐलान
बस्तर के कई इलाकों में अलग-अलग आंदोलन चल रहे हैं। सुरक्षा बलों की कथित ज्यादती के खिलाफ, संविधान में दिए गए अधिकारों को शिथिल करने के विरोध में, और भी कई मुद्दों पर। एक ऐसा ही आंदोलन बीते 10 माह से अबूझमाड़ में चल रहा है। इरकभ_ी, तोयामेटा, बेहबेड़ा आदि गांवों के लोग लगातार धरने पर बैठे हुए हैं। याद होगा कि इन लोगों ने मई माह में नारायणपुर आकर, बेरिकेड्स तोडक़र बड़ा प्रदर्शन किया था। अब इन्होंने अगले विधानसभा चुनाव के बहिष्कार की घोषणा कर दी है। शिकायत है कि प्रशासन ने उनसे आज तक बातचीत करने की जरूरत नहीं समझी। इस ऐलान के बाद कलेक्टर अजीत वसंत का एक बयान जरूर आया है जिसमें वे कह रहे हैं कि चुनाव लोकतंत्र का त्यौहार है, मतदान में भाग लें।
शराबियों की बड़ी चिंता दूर
शराब दुकानों में बोतल तो मिल जाती है, पर उसके बाद चखना, गिलास और पानी पाउच का इंतजाम करना मुश्किल होता है। गरीब पीने वालों की इस तकलीफ को दूर करने के लिए एक महिला स्व-सहायता समूह आगे आया है। सोशल मीडिया में वायरल वीडियो के मुताबिक यह समूह कुंडा, पाटन जिला दुर्ग का है। उसने एक कॉम्बो पैक तैयार किया है, जिसमें एक डिस्पोजेबल गिलास, नमकीन और पानी पाउच एक साथ है। दुर्ग जिले की शराब दुकानों के आसपास यह सारा सामान एक साथ किफायती दाम पर मिल जाएगा।
गौरतलब है कि कुछ महीने पहले तक स्व-सहायता समूहों के हाथ में रेडी-टू-ईट बनाने का काम था। आंगनबाड़ी केंद्रों और गर्भवती महिलाओं के लिए पोषण आहार की खरीदी इनसे की जाती थी। पर सरकार ने इसे छीन लिया। यह काम अब ठेके पर दे दिया गया है। सरकार के इस फैसले के खिलाफ महिलाएं हाईकोर्ट भी पहुंची थीं, लेकिन वहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा। ऐसी स्थिति में जो काम सामने दिखता है वे वही तो करेंगीं?
कोरबा के कांग्रेसियों की मांग
कुछ विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो अनुसूचित जाति या जनजाति के लिए सुरक्षित नहीं हैं इसके बावजूद सामान्य वर्ग से टिकट देने, न देने के बारे में सोचा जाता है। सूरजपुर जिले की प्रेमनगर और कोरबा जिले की कटघोरा ऐसी ही सीटें हैं। दोनों में इस समय कांग्रेस के विधायक हैं जो आदिवासी वर्ग से हैं- खेलसाय सिंह और पुरुषोत्तम कंवर। कोरबा जिले में कुल चार सीटें हैं, जिनमें से दो पाली-तानाखार और रामपुर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। कटघोरा और कोरबा सामान्य सीटें हैं। कुमारी सैलजा के कल कोरबा प्रवास के दौरान टिकट के दावेदार तो उनके इर्द-गिर्द मंडरा ही रहे थे, पर एक ज्ञापन कई कांग्रेस नेताओं ने मिलकर सौंपा। मांग थी कि कटघोरा सामान्य सीट से किसी सामान्य वर्ग के कार्यकर्ता को ही टिकट दी जाए। अब देखना है कि ऐसी मांग क्या प्रेमनगर से भी उठती है? कुमारी सैलजा ने हाईकमान तक बात पहुंचाने की बात तो कही है।