राजपथ - जनपथ

दुश्मन पार्टी में दोस्त
विधानसभा प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होते ही भाजपा में गदर मच गया है। बताते हैं कि सरगुजा के एक ताकतवर नेता तो अपनी टिकट कटने से इतने गुस्से में आ गए, कि उन्होंने अपने परंपरागत प्रतिद्वंदी रहे कांग्रेस विधायक को यह संदेश भिजवा दिया, कि उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। वो भरपूर मदद करेंगे। ये अलग बात है कि कांग्रेस की सर्वे रिपोर्ट में सीनियर विधायक की स्थिति को कमजोर माना जा रहा है।
कहा जा रहा है कि ऐसे ही संदेश कई और क्षेत्रों से कांग्रेस नेताओं को मिल रहे हैं। इन सबसे संबंधित क्षेत्र के कांग्रेस नेताओं का मनोबल बढ़ा दिख रहा है। कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची सितंबर के पहले हफ्ते में आ सकती है। चर्चा है कि कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया कांग्रेस में भी देखने को मिल सकती है। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
सेलजा को नहीं, ब्लॉक में आवेदन करें
कांग्रेस में विधायकों को आसानी से टिकट मिल जाती थी। वर्ष 2008, 2013, और 2018 के चुनाव में इक्का-दुक्का विधायकों की ही टिकट कटी थी। मगर इस बार थोक मेें टिकट कटने के आसार दिख रहे हैं। कई पूर्व विधायक भी अपनी टिकट के लिए जद्दोजहद करते नजर आ रहे हैं।
राजनांदगांव के तीन पूर्व विधायक भोलाराम साहू, तेजकुंवर नेताम और गिरवर जंघेल तो शनिवार को अपना बायोडाटा लेकर प्रदेश प्रभारी सैलजा से मिलने पहुंचे तो उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ा। भोलाराम दो बार खुज्जी से विधायक रहे हैं। उन्होंने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वो खुज्जी से फिर टिकट दावेदारी कर रहे हैं। तेजकुंवर नेताम भी मानपुर मोहला से विधायक रहीं हैं।
पार्टी ने उनकी जगह इंदरशाह मंडावी को टिकट दे दी थी और वो विधायक बन गए। तेजकुंवर अपनी दावेदारी नहीं छोडऩा चाहती हैं। इसी तरह गिरवर जंघेल भी अपनी सीट खैरागढ़ से टिकट चाहते हैं। खैर, ये तीनों राजीव भवन पहुंचे तो उन्हें घंटों इंतजार के बाद साफतौर पर बता दिया गया कि मैडम बायोडाटा नहीं लेंगी और उन्हें ब्लॉक में आवेदन करना पड़ेगा। निराश तीनों पूर्व विधायक, सैलजा से बिना मिले लौट गए।
यहां कदर नहीं हुई
मुंबई के बड़े बिल्डर बाबा सिद्दीकी को कांग्रेस ने रायपुर लोकसभा का पर्यवेक्षक बनाया है। बाबा सिद्दीकी की इफ्तार पार्टी काफी चर्चा में रहती है और इसमें तमाम बड़े फिल्म स्टार दिखते हैं। मगर पार्टी मीटिंग के लिए शनिवार को बाबा यहां पहुंचे तो ज्यादा कुछ महत्व नहीं मिला। उनकी मीटिंग भी मात्र 20 मिनट में निपट गई। जबकि उन्हें रायपुर आने के लिए फ्लाइट पकडऩे सुबह 4 बजे से तैयार होना पड़ा।
बाबा सिद्दीकी को तेलंगाना की विधानसभा टिकटों की छानबीन समिति का सदस्य भी बनाया गया है। चर्चा है कि बाबा को छत्तीसगढ़ मीटिंग इतनी बोझिल लगी कि वो चाहते हैं कि उनकी जगह किसी और को रायपुर लोकसभा का पर्यवेक्षक बनाया जाए। हालांकि उन्होंने यह बात निजी चर्चा में एक-दो लोगों से कही है। देखते हैं आगे क्या होता है।
बिना नक्शा, कैलेंडर समय पर पहुंचे प्रवासी
पेस्फिक गोल्डन प्लोवर हजारों किलोमीटर की उड़ान भर कर विश्व फोटोग्रॉफी के दिन 19 अगस्त को मोहनभाठा पहुंच गए। इस झुंड में चार पक्षी हैं। इससे इस बात की पुष्टि हो गई कि हर साल भी तय तारीख के आसपास ही प्रवास करते हैं। 'स्टेशन' मोहनभाठा में उनका अगस्त के तीसरे सप्ताह के आसपास आगमन होता है।
वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्ढा ने इनकी तस्वीरें साझा सोशल मीडिया पर साझा करते हुए कहा है कि इन परिंदों के पास कोई कैलेंडर नहीं, नक्शा नहीं लेकिन लम्बी दूरी कब तय करनी है और प्रतिकूल मौसम के बावजूद राह कैसे सुरक्षित तय करनी है, यह सब जानकारी उनके दिमाग में रहती है।आकार में यह पक्षी जंगली कबूतर के करीब है।
छतीसगढ़ में बिलासपुर से 23 किमी दूर मोहनभाठा में कुछ दिन पेटभर खुराक और थकान दूर कर आगे की उड़ान भरते हैं। ये आगे कहां जाते हैं यह पता नहीं। पर इन दिनों यहां खूब बारिश हो रही है। यहां की गौचर भूमि पर अर्थवर्म यानि केंचुये खूब पनपते हैं जो जमीन भींगने की वजह बाहर निकलते हैं। यही केंचुये इन पक्षियों का प्रमुख आहार हैं। गोर्ब के इन कीड़ों की भी यहां यहां कमी नहीं।
कांग्रेस की ही नहीं सुन रहा प्रशासन
अंबिकापुर में कांग्रेस कार्यकर्ता कई दिनों से मांग कर रहे हैं कि यहां के एक मोहल्ले बोरीपारा में स्थित शराब दुकान को हटाकर कहीं और शिफ्ट किया जाए। यह दुकान मोहल्ले के बीचों-बीच है, जिससे महिलाओं को भारी परेशानी हो रही है और बच्चों पर गलत असर पड़ रहा है। जैसा कि प्राय: सभी शराब दुकानों में हो रहा है, यहां भी अवैध चखना सेंटर और अहाता भी चल रहा है। इसलिये शराबियों का मजमा देर रात तक लगा रहा है। हटाने की मांग करने वालों में आम कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि औषधि पादप बोर्ड के चेयरमैन बालकृष्ण पाठक भी हैं। शराब दुकान के मामले में ऐसा देखा जाता है कि प्रशासन दुकान हटाने के लिए जल्दी तैयार नहीं होता, जबकि दुकान कहीं भी खुले, जिन्हें जरूरत होती है- ठिकाने को ढूंढ ही लेते हैं। फिलहाल उन्होंने कलेक्टर के नाम एसडीएम को फिर एक बार और ज्ञापन दिया है और अपील की है कि आंदोलन की नौबत आने से पहले कार्रवाई कर दें।
नेशनल हाईवे की यह हालत
देशभर में नेशनल हाईवे के निर्माण कार्य को गति देने के लिए भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की तारीफ की जाती है लेकिन जशपुर से पत्थलगांव और सरगुजा को जोडऩे वाली सडक़ की हालत 15 सालों में नहीं सुधरी। इसमें क्या-क्या हो चुका है? काम में देरी करने पर ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट किया गया। लोगों ने बार-बार प्रदर्शन किया। हर बार प्रशासन नेशनल हाईवे से कहकर मरम्मत कर कामचलाऊ सडक़ तैयार करा दी, जो बारिश में फिर उखड़ जाती है। हाईकोर्ट में प्रदेशभर की खराब सडक़ों पर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई तो इस सडक़ का नाम भी प्रमुखता से आया। वहां भी एनएचएआई ने वचन दिया कि जल्द निर्माण कार्य पूरा कराएंगे। आज बारिश के बाद सडक़ अब दलदल में तब्दील हो चुकी है।
जीपीएम जिले के भवन कहां बनें?
10 फरवरी 2020 को गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के जिला बनने के बाद से इसका संचालन यहां की पुरानी इमारतों में हो रहा है। कुछ ऐतिहासिक महत्व के हैं, जहां रवींद्रनाथ टैगोर ठहरे थे। कुछ वृक्ष हैं जहां गुरुदेव बैठा करते थे। यहीं पर अब नये कलेक्ट्रेट परिसर की तैयारी चल रही है। यह कहां बने इसके लिए जिला प्रशासन और स्थानीय नागरिकों के बीच विवाद काफी बढ़ चुका है। खासकर मरवाही इलाके की मांग है कि मुख्यालय पेंड्रा और मरवाही के बीच में बनाया जाए ताकि जिला बनाने की मंशा पूरी हो और अधिकारियों, दफ्तरों तक आम लोगों की आसान पहुंच हो सके। प्रशासन तो चाहता है कि यहां के गुरुकल और सेनेटोरियम की जमीन पर ही नई बिल्डिंग तैयार की जाए। इसकी तैयारी भी शुरू कर दी गई है। इसके लिए सौ दो सौ साल पुराने और टैगोर की स्मृतियों से जुड़े कई पेड़ भी काट दिये गए, तो लोगों ने विरोध प्रदर्शन भी किया, श्रद्धांजलि सभा रखी। बीते 11 अगस्त को मरवाही इलाके में बंद का भी आयोजन किया गया था।
जब यहां शिखा राजपूत कलेक्टर थीं तो उन्होंने मरवाही और पेंड्रा के बीच स्थित कोदवाही ग्राम में 50 एकड़ जमीन का चयन किया था। वर्तमान विधायक डॉ. केके ध्रुव सहित अधिकांश जनप्रतिनिधि इस बात से सहमत हैं कि इसी तय जगह पर जिला मुख्यालय बने। इससे सबके लिए मुख्यालय तक पहुंच आसान होगी। दूरी सबके लिए बराबर होगी। अभी पेंड्रा से मरवाही की दूरी 38 किलोमीटर है। नई जगह पर विकास होने से पूरे क्षेत्र का संतुलित विकास होगा और दूर दूर बसे गांवों वाले आदिवासी क्षेत्र में जिला बनाने की मंशा पूरी होगी।
इन सबके बावजूद पेंड्रा में ही जिला मुख्यालय बनाने के लिए प्रशासन क्यों जिद कर रहा है इसके दो कारण सामने आए। एक तो जिला बनाने के लिए चले आंदोलन का केंद्र पेंड्रा-गौरेला ही रहा। यहां के निवासियों के लिए सुविधाजनक होगा कि नई बिल्डिंग भी यहीं बने। यह पहले से विकसित इलाका है, तमाम सुविधायें हैं। दूसरी बात और यह सामने आ रही है कि ज्यादातर बाबू और अफसर अभी यहां नहीं रुकते, वे शाम को बिलासपुर निकल जाते हैं। यदि मरवाही और पेंड्रा के बीच की जगह कोदवाही को मुख्यालय बनाया गया तो ट्रेन पकडऩे के लिए 25 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ेगी, जो अभी सिर्फ 6 किलोमीटर है।