राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : रायपुर से महिला टिकटार्थी
04-Sep-2023 4:31 PM
राजपथ-जनपथ : रायपुर से महिला टिकटार्थी

रायपुर से महिला टिकटार्थी
रायपुर की चारों सीटों के लिए कांग्रेस, और भाजपा में प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया चल रही है। दोनों ही दलों में महिला दावेदारों के नाम पर चर्चा भी हो रही है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस से परे भाजपा में कम से कम एक सीट पर महिला उम्मीदवार उतारने पर गंभीरता से मंथन हो रहा है।
 
दिलचस्प बात यह है कि परिसीमन से पहले रायपुर की दो सीटें होती थी, रायपुर शहर और ग्रामीण। अविभाजित मध्यप्रदेश में वर्ष-77 में जनता पार्टी ने रजनी ताई उपासने को प्रत्याशी बनाया, और वो विधायक भी बनीं। बाद में जनता पार्टी टूट गई। और जनसंघ, भाजपा के रूप में अस्तित्व में आ गई। मगर बाद के चुनावों में दोनों ही प्रमुख दल भाजपा, और कांग्रेस ने चुनाव में रायपुर की सीट से महिला उम्मीदवार नहीं उतारे।  

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद, और फिर वर्ष-2008 में परिसीमन के चलते रायपुर की चार सीट हो गई है। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव तक दोनों ही दलों ने किसी भी महिला को टिकट नहीं दी। इस बार कांग्रेस में महिला दावेदार तो हैं, लेकिन चर्चा है कि चारों सीटों के लिए अंतिम रूप से जो पैनल तैयार हुआ है उनमें एक भी महिला नहीं है। यानी कांग्रेस से महिला प्रत्याशी के उतरने की संभावना कम है। अलबत्ता, भाजपा से रायपुर पश्चिम, और रायपुर दक्षिण की सीट पर महिला दावेदारों का नाम मजबूती से उभरा है। पार्टी इसको लेकर गंभीर भी है।  

नगर निगम में भाजपा पार्षद दल की नेता मीनल चौबे का नाम रायपुर पश्चिम से चर्चा में है। इसी तरह रायपुर ग्रामीण से ममता साहू का नाम भी उभरा है। पार्टी के रणनीतिकार कम से कम एक सीट पर महिला उम्मीदवार उतारने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। अगर ऐसा होता है, तो रायपुर से 40 साल बाद कोई महिला उम्मीदवार चुनाव मैदान में होंगी। 

ठाकुर परेशान है
भाजपा के एक युवा ठाकुर नेता अपने दो दिग्गज नेताओं  से परेशान हैं। ये दोनो नेता क्षेत्र में जाकर ओबीसी वोटरों के ह्रदय परिवर्तन अभियान में सक्रिय हैं । एक नेता तो उनके अपने ही जिले के हैं, और पार्टी के बड़े पद पर हैं। कहा जा रहा है कि दोनों नेताओं ने अब तक आधा दर्जन से अधिक दौरे कर लिए हैं। और दबी जुबान में एक बात कह रहे हैं कि कब तक ठाकुरों की जय जयकार करोगे। पकड़ के मामले में ठाकुर भी कम नहीं हैं। उन्होंने दोनों दिग्गजों की शिकायतें मोटा भाई तक पहुंचा दी है।  मोटा भाई ने युवा ठाकुर नेता से कहा बताते हैं कि तुम राजधानी छोड़ अपने क्षेत्र को संभालो, बाकी को मैं संभाल लूंगा। देखना है आगे क्या होता है।

बुजुर्ग विधायकों का विकल्प
कांग्रेस अपने तीन सीनियर विधायकों की टिकट को लेकर ऊहापोह में है। ये तीनों विधायक 80 बरस पार कर चुके हैं। इनमें से एक पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा ने तो चुनावी राजनीति से सन्यास ले लिया है, और उनकी जगह पार्टी उनके बेटे पंकज को चुनाव मैदान में उतारने की सोच रही है। मगर दो अन्य बुजुर्ग आदिवासी विधायक खेलसाय सिंह, और रामपुकार सिंह का विकल्प नहीं मिल रहा है। 

खास बात यह है कि खेलसाय सिंह अनारक्षित प्रेमनगर सीट से विधायक हैं। वे कई बार विधायक और सांसद रहे हैं। खेलसाय अपने विधानसभा क्षेत्र में गैर आदिवासी तबकों में भी लोकप्रिय है। लेकिन उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती है। हालांकि उन्होंने टिकट के लिए आवेदन दे दिया है। लेकिन चर्चा है कि वो अपनी बहु को चुनाव लडऩा चाहते हैं। इसके लिए पार्टी तैयार नहीं है। यहां दिवंगत पूर्व मंत्री तुलेश्वर सिंह की बेटी शशि सिंह का नाम प्रमुखता से उभरा है। 

इसी तरह पत्थलगांव से रामपुकार सिंह का कोई मजबूत विकल्प नहीं दिख रहा है। राम पुकार सबसे ज्यादा 8 बार विधायक रहे हैं। वैसे तो रामपुकार सिंह की बेटी आरती सिंह का भी नाम चर्चा में है, लेकिन पार्टी पिता की तुलना में बेटी को कमजोर मान रहे हैं। देखना है कि पार्टी बुजुर्ग हो चुके विधायकों को लेकर क्या फैसला करती है। 

सीमेंट की कीमत में आग
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जब पहले चुनाव को जब कुछ महीने बचे थे तो सीमेंट के दाम में 10 से 15 रुपए का उछाल आ गया था। तब भाजपा ने इसे जोगी टैक्स का नाम देते हुए सडक़ से विधानसभा तक लड़ाई लड़ी थी। सीमेंट कंपनियों के साथ सरकार की साठगांठ का आरोप लगाया था। बीच के वर्षों में भी ऐसा हुआ है कि सीमेंट कंपनियों ने सिंडिकेट बनाकर आपूर्ति घटा दी और दाम बढ़ा दिए। भाजपा शासनकाल में दाम 300 रुपये बोरी तक पहुंचा था।

छत्तीसगढ़ में सीमेंट के लिए पर्याप्त कच्चा माल है। रॉयल्टी और बिजली दर भी अनुकूल है। इसीलिए छत्तीसगढ़ देश का सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक राज्य है। देश की जरूरत का 20 प्रतिशत सीमेंट का उत्पादन यहीं होता है। नौ बड़ी सीमेंट कंपनियों के 16 प्लांट्स यहां स्थापित हैं। कंपनियां यहां की भूमि, मानव श्रम, खनिज, बिजली, सडक़ और पानी का बेतहाशा इस्तेमाल करती हैं। इसके बावजूद सीमेंट के दामों में यहां पर कोई रियायत नहीं है। देश में सीमेंट फैक्ट्रियों की कुल उत्पादन क्षमता 3.5 लाख टन है और औसत मांग दो से ढाई लाख टन है। इसका मतलब यह है कि दाम में बढ़ोतरी कृत्रिम कमी के कारण होती है। एकाध बार जरूर सुना गया है कि कोयले की आपूर्ति में कमी के कारण उत्पादन धीमा हुआ। पर इस समय ऐसी कोई बात नहीं है।

अभी एकाएक सीमेंट कंपनियों ने प्रतिबोरी करीब 50 रुपए दाम बढ़ा दिए हैं। एक ठीक-ठाक कंपनी का सीमेंट 360 से 370 रुपए तक मिल रहा है। डीलर की दुकान से सीमेंट फैक्ट्री की दूरी ज्यादा है तो अतिरिक्त भाड़ा भी जोड़ा जा रहा है।

कहा जा रहा है कि सीमेंट कंपनियां बारिश के बाद निर्माण कार्यों में आ रही तेजी का फायदा उठाना चाहती हैं। वैसे अक्टूबर 2020 में भी 50 रुपए प्रति बोरी दाम बढ़ा था। तब उसकी कीमत 210 रुपए से बढक़र 260 हो गई थी। अब आप अंदाजा लगाएं कि वास्तव में सीमेंट कंपनियों ने अपने मुनाफे के लिए ही दाम बढ़ाएं हैं, या फिर इसका आने वाले चुनाव से भी कोई संबंध है।

बगावती सुर पर लगाम
मरवाही विधानसभा चुनाव से कांग्रेस टिकट के दावेदार कुछ कांग्रेसियों ने पिछले दिनों मीडिया से बात की और कहा कि वर्तमान विधायक डॉक्टर के के ध्रुव को छोडक़र किसी को भी टिकट दे दी जाए। वे मिलकर उनके लिए काम करेंगे। मालूम हुआ है कि इन दावेदारों को प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने रायपुर बुलाया था। सभी यह सोचकर गए थे कि उनसे पूछा जाएगा कि डॉ ध्रुव को नहीं तो फिर किसको खड़ा किया जाए। पर यहां दूसरी ही बात हो गई। प्रदेश पदाधिकारियों ने कहा कि मौजूदा विधायक की टिकट तो नहीं कटने वाली है। और आप लोगों को हर हाल में पार्टी के लिए काम करना होगा। यदि ऐसी मंशा नहीं रखते हैं तो अभी से बता दें ताकि आप लोगों पर कोई जिम्मेदारी नहीं डाली जाए। इस घटना के बाद सब सकते में आ गए। अब डॉक्टर ध्रुव के खिलाफ विरोध का स्वर ठंड पड़ गया है।

एक्सप्रेस वे का हाल
जब राजधानी रायपुर के एक्सप्रेस वे की हालत ऐसी हो तो समझा जा सकता है कि प्रदेश में सडक़ों पर गाय-बैल किस तरह से पसरे हुए हैं। और इनकी वजह से कितनी दुर्घटनाएं हो रही हैं।

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