राजपथ - जनपथ
बंसल पर हुए निवेश का क्या होगा?
एआईसीसी में बदलाव से स्थानीय हितों पर भी असर पड़ा है। पवन बंसल की जगह अजय माकन को एआईसीसी का कोष संभालने का जिम्मा दिया गया है। सुनते हैं कि रायपुर के एक नेता ने टिकट की आस में पवन बंसल की अच्छी खातिरदारी की थी। कोषाध्यक्ष की सिफारिशों को महत्व दिया जाता है। मगर अब बंसल कोषाध्यक्ष नहीं रह गए हैं। नए कोषाध्यक्ष तक नेताजी की पहुंच नहीं है। ऐसे में नेताजी की उम्मीदों पर झटका लगा है। फिर भी नेताजी को बंसल से उम्मीद है। देखना है कि बंसल जी पद से हटने के बाद नेताजी के लिए क्या कुछ करते हैं।
समाज और उम्मीदवारी
चर्चा है कि भाजपा में रायपुर की एक सीट से समाज विशेष के नेता को टिकट देने को लेकर काफी माथापच्ची हुई। पार्टी के रणनीतिकार समाज विशेष के जिस व्यापारी नेता को टिकट देना चाहते थे वो चुनाव लडऩे के लिए तैयार नहीं हुए। बाकी दावेदारों को कमजोर आंका जा रहा था।
बावजूद इसके समाज विशेष को प्रतिनिधित्व देने के लिए विचार मंथन चल रहा था कि उसी समाज के दो प्रमुख पदाधिकारियों ने पार्टी के रणनीतिकारों को भरोसा दिला दिया कि उनके समाज से टिकट नहीं देने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। टिकट नहीं देने के बावजूद समाज के लोग पार्टी को ही टिकट देंगे। दो प्रमुख पदाधिकारियों की गारंटी मिली, तो फिर पार्टी के रणनीतिकारों ने एक झटके में दूसरा नाम तय कर दिया।
दूसरी तरफ, समाज विशेष के लोग कांग्रेस से टिकट की आस में हैं। कांग्रेस के एक बड़े नेता तो पहले ही कह चुके हैं कि जितने लोग कांग्रेस से जुड़े हैं उतने ही वोट हमें मिलते हैं। ऐसे में टिकट देने का कोई फायदा नहीं है। अब समाज के लोगों के पास विकल्प है कि आम आदमी पार्टी या किसी और पार्टी से संभावना तलाशे।
संघ का भूपेश प्रेम
यह सर्वज्ञ है कि संघ और कांग्रेस एक दूसरे के धुर विरोधी हैं। लेकिन व्यक्तिगत रूप से संघ, कांग्रेस के कुछ नेताओं को पसंद नहीं करता और कांग्रेस के ये नेता भी संघ को।
हालांकि संघ कभी कभी कांग्रेस के कार्यों की तारीफ करने से नहीं चूकता । जैसे बघेल सरकार की गौठान, गोबर खरीदी योजना। इसकी तारीफ करने से संघ के शीर्ष नेतृत्व ने भी गुरेज नहीं किया। संघ को गोबर से जैविक खाद, वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने की योजना पसंद आई। और योजना की सही मॉनिटरिंग हो तो गौठान में गौ संपदा की सुरक्षा के लिए कारगर कहा। बस फिर क्या था। भाजपा से जुड़े एक शिक्षाविद भी इन दिनों सीएम बघेल की तारीफ में कमी करने में पीछे नहीं है। इनका फेसबुक वॉल इससे भरा पड़ा है।
कॉलेज में पढ़ाते पढ़ाते अब ये संघ विचारक कहलाने लगे हैं। यह खांटी संघियों को नागवार गुजर रहा है । इससे परिजन भी परेशान हैं। हर जगह उलाहना जो सुननी जो पड़ती है। वो भी कितना कहें कि कितना कहें उनके व्यक्तिगत विचार हैं। बात भाजपा नेताओं तक तो पहुंचा दी गई है। कुछ लोग जागृति मंडल को भी सचेत करने की तैयारी में। देखें आगे क्या होगा।
आदिवासी ईमानदारी
इसीलिए कहा जाता है कि आदिवासी भोले, ईमानदार होते हैं। चाहे वह कितने ही बड़े पद पर हो। कितने ही साल हो जाएं अपना कमिटमेंट पूरा ही करते हैं। कर्ज चुकाना भी उसी कमिटमेंट का अहम हिस्सा है। क्योंकि आपने उधारी लेकर चुकाने का वादा किया है। ऐसे ही छत्तीसगढ़ के एक मंत्री भी हैं। अपनी सादगी अल्हड़पन के लिए हमेशा चर्चा मेंं रहते हैं। इस बार उनकी चर्चा 30 वर्ष बाद चुकाए कर्ज को लेकर हो रही है। कवासी लखमा ने पिता से लिए कर्ज की भरपाई तीस साल बाद बेटे को चुका कर कमिटमेंट पूरा किया। वैसे लोग कहेंगे कि कर्ज चुकाने में 15 वर्ष ज्यादा ही लिए। क्योंकि कवासी तो विधायक पहले ही बन गए थे। बहरहाल वाट्सएप पर एक वीडियो वायरल है। इसमें मंत्री कवासी लखमा एक ग्रामीण को पैसे देते हुए नजर आ रहे हैं। कवासी लखमा जब राजनीति में नहीं आए थे तो वनोपज खरीदी का काम करते थे। 30 साल पहले जो व्यापारी कवासी लखमा थे उन्होंने गांव के एक ग्रामीण से 6000 रुपए उधार लिए थे, लेकिन सिर्फ 3000 रुपए ही लौटा पाए थे।
वहीं, इन दिनों जब कवासी लखमा अपने गृह जिले के प्रवास पर थे तो जिस शख्स ने उधार दिए थे उनका बेटे से मुलाकात हो गई। उन्हे देखते ही मंत्री लखमा को पुराना कर्ज याद आ गया और उन्होंने मौके पर ही उधार देने वाले शख्स के बेटे को 3000 रुपए लौटाए। इतना ही नहीं उन्होंने 500 रुपए अधिक भी दिए ये बोलकर कि ये ब्याज है। ब्याज वाली बात पर वहां जुटी भीड़ हंस पड़ी। ([email protected])