राजपथ - जनपथ
परेशानी का सामान
कांग्रेस और भाजपा के साथ एक सहूलियत और दिक्कत यह है कि दोनों के झंडों के रंग में बस सफेद रंग का फर्क है। बाकी दोनों रंग, केसरिया और हरा दोनों पार्टियों के झंडों में है, और शांति का प्रतीक सफेद रंग भाजपा के झंडे में नहीं है। ऐसे में अब चुनाव करीब है, तो महिला वोटरों में बांटने के लिए जो तोहफे आ रहे हैं, उनमें कुछ तो ऐसे हैं जो इन दोनों ही पार्टियों के काम के हैं। जैसे यह साड़ी, जो कि सफेद रंग के कपड़े पर केसरिया और हरे रंग के छापे वाली है, और इसे दोनों ही पार्टियां इस्तेमाल कर सकती हैं। और महज राजनीतिक दल ही नहीं, स्वतंत्रता दिवस के समारोह वगैरह में भी इसका इस्तेमाल हो सकता है क्योंकि तिरंगे झंडे के रंगों के साथ-साथ इसमें तो राष्ट्रीयध्वज वाला नीला चक्र भी छपा हुआ है। फिलहाल राजधानी रायपुर के एक कार्यक्रम में बांटी गई यह साड़ी किसी भी पार्टी या नेता के नाम के साथ जोडक़र उसके लिए परेशानी खड़ी की जा सकती है।
अब कहां गायब हो गया?
जैसे-जैसे देश में अलोकतांत्रिक घटनाएं होने लगती हैं, कई किस्म के बड़े भ्रष्टाचार सामने आते हैं, या महाराष्ट्र में सरकारी अस्पतालों में थोक में मौतें होती हैं, तो सोशल मीडिया पर लोग अन्ना हजारे नाम के उस आदमी को याद करते हैं जो खादी और गांधी टोपी पहनकर रामलीला मैदान पर अनशन पर बैठे रहता था, और जिसने यूपीए सरकार को बदनाम कर-करके हटाकर ही सांस ली थी। लोग अब इसे याद करते हैं कि खादी की खाल ओढ़ा हुआ यह तथाकथित समाजसेवी और समाज सुधारक अब कहां सोया हुआ है।
भूपेश सरकार का आखिऱी मनोनयन?
दिवंगत पूर्व सीएम अजीत जोगी की जाति के मसले पर लंबी लड़ाई लडऩे वाले आदिवासी नेता संतकुमार नेताम को सरकार ने तोहफा दिया है। उन्हें पीएससी सदस्य नियुक्त किया है। नेताम वही शख्स हैं, जिनकी शिकायत के आधार पर राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने अजीत जोगी के सीएम रहते उन्हें आदिवासी नहीं माना था।
नेताम गौरेला-पेंड्रा के रहने वाले हैं। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। वो भाजपा के आदिवासी मोर्चा के राष्ट्रीय कार्यालय मंत्री रहे हैं। प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद उन्हें निगम-मंडलों जगह पाने की उम्मीद थी। कई बड़े नेताओं ने उनकी पैरवी भी की थी। मगर रमन सरकार ने उन्हें अनदेखा किया।
जोगी पिता-पुत्र के खिलाफ जाति के मुद्दे पर कानूनी लड़ाई लड़ते रहे। फिर भूपेश बघेल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गए। नेताम, नंदकुमार साय के सहयोगी रहे हैं। आखिरकार सरकार की सिफारिश पर उन्हें पीएससी में सदस्य नियुक्त किया है। उनका कार्यकाल पांच साल रहेगा। अब किसी भी दिन आचार संहिता लगने जा रही है।
लिस्ट और विरोध
भाजपा में अधिकृत तौर पर प्रत्याशियों की सूची भले ही जारी नहीं की गई है लेकिन जो नाम लीक हुए हैं उससे पार्टी के भीतर विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। सूची में एक नाम सीतापुर सीट से पूर्व सैनिक रामकुमार टोप्पो का भी है। टोप्पो का नाम सामने आते ही पार्टी के ही कुछ लोगों ने उनकी जाति प्रमाण पत्र पर ही सवाल खड़े कर दिए थे।
चर्चा है कि महामंत्री (संगठन) पवन साय ने इस सिलसिले में पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी से राय ली लेकिन वो भी विवाद को लेकर कोई संतोषजनक हल नहीं निकाल पा रहे थे। इसके बाद साय व अन्य नेताओं ने स्थानीय वकील से चर्चा की जो कि जाति प्रमाण पत्र से जुड़े विवाद को निपटाने में माहिर माने जाते हैं। वकील की सलाह के बाद साय और अन्य प्रमुख नेताओं ने संतुष्टि जाहिर की और फिर टोप्पो को प्रचार में जुटने के लिए कहा गया।
दूसरी तरफ, रायपुर जिले की दो सीटों को लेकर ज्यादा विवाद चल रहा है। एक सीट में तो चारों मंडल अध्यक्ष ने साफ तौर पर कह दिया कि वो काम नहीं करेंगे। मगर प्रत्याशी सक्रिय हुए तो दो अध्यक्ष टूट गए और उनके साथ प्रचार की रणनीति बनाने में जुट गए। प्रत्याशी ने पार्टी के सभी स्थानीय पदाधिकारियों के लिए भोज रखा है। टिकट के दावेदार असमंजस में हैं कि वो भोज में जाएं अथवा नहीं। इन सबके बावजूद कहा जा रहा है कि विरोध को देखते हुए सूची में कुछ बदलाव जरूर किया जाएगा।
भाजपा की लिस्ट से कांग्रेस खुश
कांग्रेस में दो दर्जन से अधिक विधायकों की टिकट काटने की चर्चा थी लेकिन अब कहा जा रहा है कि ज्यादातर विधायकों को फिर से लड़ाया जा सकता है। वजह यह है कि भाजपा से जो नाम सामने आए हैं, उससे कांग्रेस के रणनीतिकार खुश हैं, और मानकर चल रहे हैं कि विधायकों की एंटी इंकमबेंसी का कोई ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। बालोद जिले के तो तीनों विधायकों को चुनाव तैयारियों में जुट जाने के लिए कह दिया गया है। कांग्रेस की सूची पितृपक्ष के बाद जारी हो सकती है।
विभीषण की तलाश जारी
लीक हुई सूची को लेकर भाजपा विभीषण को ढूंढने में जुट गई है। इसमें हाईकमान ने इंटेलिजेंस विंग को भी लगा दिया है। इंटेलिजेंस ने अब तक जो इनपुट जुटाया है उसके मुताबिक लीक दिल्ली से ही लीक हुई। एक-दो नाम सामने आये हैं। कह रहे हैं कि ये अपने लोगों की टिकट क्लीयर करवा लेने की सफलता से इतने उत्साहित थे कि एक एक को नाम बताते गए। सूची में अधिकांश नाम पूर्व सीएम के खेमे के रहे तो कुछ वरिष्ठतम विधायक के खेमे में भी आए। नुकसान में रहीं तो मैडम। वो अपनी सीट भी हासिल नहीं कर पाईं। यह बात जब मोटा भाई को पता चली तो उन्होंने सूची फाइनल होकर वायरल होने के बाद इलाज किया। और पूरी सूची को वेंटिलेटर पर भिजवाने में सफल रहे। अब देखना यह है कि कितने नाम बदलते हैं।