राजपथ - जनपथ
खर्च करोड़ों में सबकी आँखें बंद
चुनाव आयोग ने विधानसभा प्रत्याशी के लिए चुनाव खर्च की सीमा 40 लाख रुपए निर्धारित की है, लेकिन चर्चा है कि प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा ने अपने प्रत्याशियों को तय सीमा से अधिक राशि उपलब्ध कराई थी। 40 लाख रुपए तो प्रत्याशियों के बैंक अकाउंट में जमा किए गए थे। बाकी राशि किस्तों में उपलब्ध कराई गई।
सुनते हैं कि दोनों ही दलों ने अपने प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार में खर्च के लिए 2 करोड़ तक दिया था। बस्तर के प्रत्याशियों को मैदानी इलाकों के प्रत्याशियों की तुलना में कम फंड दिया गया था। मगर दर्जनभर से अधिक सीट ऐसी है जहां 10 करोड़ से ज्यादा खर्च हुआ है।
चर्चा है कि रायपुर में तो एक निर्दलीय ने एक रात में ही 2 करोड़ बांट डाले। रायपुर और बिलासपुर में तो रातभर गलियों में पैसे का खेल चलता रहा। मगर व्यय प्रेक्षकों ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। कुछ लोग तो मानते हैं कि इस बार पैसे का खेल पहले की तुलना में काफी ज्यादा हुआ है। अब चुनाव नतीजे पर क्या कुछ फर्क पड़ता है, यह तो 3 दिसंबर के बाद ही पता चलेगा।
एक पूर्व विधायक के खिलाफ शिकायत
कांग्रेस मेें भीतरघातियों के खिलाफ कार्रवाई चल रही है, और दर्जनभर से अधिक नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया। भाजपा में भी ढेरों शिकायतें हुई है, लेकिन अभी कार्रवाई से परहेज किया जा रहा है। चर्चा है कि चुनाव नतीजे आने के बाद भीतरघातियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
सुनते हैं कि रायपुर की सीटों के भाजपा प्रत्याशियों ने एक पूर्व विधायक पर पार्टी के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया है। पूर्व विधायक की शह पर एक-दो सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी भी खड़े किए गए हैं। एक प्रत्याशी ने तो सह चुनाव प्रभारी डॉ. मनसुख मंडाविया से इसकी शिकायत की है। मंडाविया ने तमाम शिकायतों को गंभीरता से लिया है। देखना है कि भीतरघातियों पर क्या, और कब कार्रवाई होती है।
चुनाव खत्म तगादा शुरू, फंड मैनेजर गायब
प्रदेश में दोनों चरणों का मतदान खत्म हो गया है। प्रत्याशी और उनके व्यय पर्यवेक्षक एक एक वोट पर हुए खर्च के हिसाब किताब में व्यस्त हैं। कुछ रिलेक्स होकर हिसाब किताब करने के मूड में कस्बा,गांव और शहर से बाहर हैं तो कुछ ने घर के दरवाजे नतीजों तक बंद कर लिए हैं। यानी जीते तो पेमेंट और हारे तो बाद में दे देंगे, भागे थोड़े जा रहे हैं। सबका दिया है तुम्हें भी दे देंगे आदि आदि जवाब तैयार है। पड़ोस के शहर में आज सुबह से एक पेंटर, भैया के फंड मैनेजर के हेमू नगर के घर के बाहर हंगामा कर रहा है। इसने भैया के लिए वॉल राइटिंग की है।
पहली किस्त के बाद दूसरी का अता पता नहीं। दूसरी किस्त में पौन लाख का बिल दिया तो मैनेजर ने नापजोख की बात कही, वो भी करना शुरू किया तो मैनेजर का गवाह गायब। अब बेचारा पेंटर दरवाजे पर खड़े होकर हंगामा कर रहा और व्हाट्सएप में वायरल करने मजबूर हो रहा। सरकारी एजेंसी से भी लोग नाराज हैं । मतदान के दिन ब्रेकफास्ट और लंच का पैसा न मिलने पर बस ड्राइवर सैकड़ों बसें खड़ी कर विरोध जता चुके थे।
चुनाव अभी बाकी है दोस्त...
मतदाताओं का ख्याल तभी तक किया जाता है जब तक वोटिंग नहीं हो जाती। ऐसे फैसले सरकार नहीं लेती जिससे मतदाता नाराज हों, वरना वोट उनके खिलाफ जा सकते हैं। लोगों ने पिछले कई चुनावों में पाया है कि पेट्रोलियम कंपनियां पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाना महीने दो महीने पहले बंद कर देती हैं और मतदान खत्म होने के तुरंत बाद एकमुश्त वृद्धि कर भरपाई कर लेती हैं। केंद्र सरकार अक्सर पेट्रोलियम के दाम बढऩे के सवाल पर हाथ खड़े कर देती है कि यह तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार के आधार पर कंपनियां खुद तय करती हैं। पर, चुनाव के वक्त यह साफ हो जाता है कि कंपनियां कुछ नहीं, केवल सरकार की सुविधा और निर्देश पर ही काम करती हैं।
कोविड काल के बाद से छोटे स्टेशनों पर ट्रेनों का स्टापेज बंद करना, अनेक ट्रेनों को लंबे समय से रद्द करके रखना, आए दिन सुधार व निर्माण कार्यों का नाम लेकर चालू ट्रेनों का परिचालन रोक देना, छत्तीसगढ़ के यात्रियों पर भारी पड़ता रहा है। इसके खिलाफ लगातार आंदोलन किए गए। इसे लेकर छोटे-छोटे कई आंदोलन अलग-अलग स्टेशनों में पिछले दो साल से हो रहे हैं। कांग्रेस के सांसद विधायकों की चि_ियों और रेलवे के अधिकारियों से चर्चा करने पर भी स्थिति नहीं सुधरी। बीते सितंबर महीने में कांग्रेस ने एक बड़ा रेल रोको आंदोलन किया था। रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, दुर्ग सभी जगह कार्यकर्ता पटरी पर बैठ गए थे। सैकड़ों लोगों के खिलाफ रेलवे ने एफआईआर दर्ज कर ली थी। इसके बाद रेलवे को शायद लगा कि मुद्दा बड़ा होता जा रहा है, जिसका आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान हो सकता है। तब एक-एक कर ट्रेनों के बंद स्टापेज शुरू किए गए। चुनाव की घोषणा के बाद कटनी रूट पर कई पुराने बंद स्टापेज फिर शुरू कर दिए गए। खासकर कोटा और गौरेला के लोग लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे। ट्रेन ठहरने की बंद की गई सुविधा को भी उपलब्धि की तरह दिखाया गया, सांसदों और मंत्रियों को अतिथि बनाकर कार्यक्रम रखे गए। इधर, आधुनिकीकरण के नाम पर ट्रेनों को निरस्त करने का सिलसिला भी थम सा गया। दो महीने तक रेलवे ने कोई बड़ी कैंसिलेशन नहीं की। हालांकि त्यौहारों के समय स्पेशल ट्रेनों की संख्या में पहले की तरह उदारता रेलवे ने नहीं दिखाई। इसके कारण हावड़ा, पटना की ओर आने-जाने वाली ट्रेनों में टिकटों की मारामारी रही।
इधर 17 नवंबर को मतदान खत्म होने के बाद अगले दिन रेलवे ने 30 ट्रेनों को रद्द करने का ऐलान कर दिया। दोपहर में ऐलान हुआ फिर अचानक यह फैसला वापस ले लिया गया। हद तो यह हो गई कि बिलासपुर से बीकानेर जाने वाली ट्रेन को रद्द करने की सूचना यात्रियों को उनके मोबाइल फोन पर भेजी जा चुकी थी। पर उसे भी अचानक रवाना कर दिया गया। जो यात्री महीनों पहले रिजर्वेशन करा चुके थे, उन्हें अपनी यात्रा रद्द करनी पड़ी, क्योंकि रद्द होने की सूचना के चलते वे स्टेशन पहुंचे ही नहीं थे। रेलवे ने अधिकारिक रूप से यह नहीं बताया कि किस वजह से इन 30 ट्रेनों को रद्द करने का फैसला वापस लिया गया। इनमें कई ट्रेन ऐसी हैं, जो राजस्थान की ओर जाती है, जहां अभी विधानसभा चुनाव के लिए वोट नहीं डाले गए हैं।
किसने सामान दिया, पता तो रहे...
चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद पूरे प्रदेश में इस बार पुलिस और निर्वाचन आयोग की टीम ने साड़ी कंबल और नगद के परिवहन को रोकने के लिए जबरदस्त अभियान चलाया। फिर भी आखिरी रात तक मतदाताओं तक रकम और सामग्री पहुंचाने का सिलसिला चलता रहा। जशपुर में ‘कत्ल की रात’ में जो साडिय़ां बंटने के लिए आई, वह चोरी छिपे नहीं बांटी गई। दो कारों में लोग घूम रहे थे। भीतर उपहार था, जिसे आप वोट देने के लिए दी गई रिश्वत भी कह सकते हैं। चूंकि ये लोग कांग्रेस का प्रचार करने वाले लोग ही थे, इसलिये ग्रामीणों ने अंदाजा लगाया है कि यह सब उम्मीदवार की जानकारी में हुआ होगा। पुलिस ने जब्ती बनाई है, शिकायत हुई है-कार्रवाई करना न करना आयोग के हाथ में है। पर दिलचस्प यह है कि ये सामान बकायदा एक बड़े थैले में लाए गए थे, जिनमें पंजे के निशान के साथ कांग्रेस प्रत्याशी विनय भगत की बड़ी सी तस्वीर थी। शायद यह सुनिश्चित करने के लिए कि मतदाता याद रखे, सामान किससे मिला। ([email protected])