राजपथ - जनपथ
ग़ुस्सा किस पर निकलेगा
खबर है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा का चुनाव प्रबंधन गड़बड़ा गया था। हालांकि स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने खुद कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में बैठकर काफी कुछ स्थिति को संभाला, लेकिन कमियां रह गई।
पार्टी ने चुनाव के लिए वार रूम तैयार किया था। इसकी कमान दिल्ली के प्रोफेशनल्स को दी गई थी। स्थानीय नेताओं को इससे दूर रखा गया था। वार रूम चुनाव के दौरान पूरी तरह सक्रिय नहीं रहा। वार रूम रात में बंद कर दिया जाता था। इस वजह से कई प्रत्याशियों को अपेक्षाकृत सहयोग नहीं मिल पाया। फिलहाल तो प्रत्याशी खामोश हैं, और चुनाव नतीजे का इंतजार कर रहे हैं। कुछ लोगों का अंदाजा है कि नतीजे अनुकूल नहीं आए तो वार रूम प्रभारियों पर भी गुस्सा निकल सकता है।
बिचौलियों का भी भला हो गया
छत्तीसगढ़ में धान का औसत उत्पादन 12 क्विंटल प्रति एकड़ है। सरकार की इकाई इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च यही कहता है। पर सामान्य परिस्थितियों में किसान 15 क्विंटल तक उगा लेता है। जो किसान बोनी से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार करते हैं, समय पर खाद खुराक डालते हैं, सिंचाई के साधन हों, और मौसम भी साथ दे तो उनका उत्पादन 25 क्विंटल तक पहुंच सकता है। बस्तर जैसी जगह पर औसत उत्पादन 6 क्विंटल ही है। धमतरी राजिम में यह 20 क्विंटल तक पहुंचता है। पूरे प्रदेश में 5 फीसदी किसान ही ऐसे हैं जो 20 क्विंटल या अधिक उत्पादन कर सकते हैं। 25 क्विंटल उगाने वाले किसान तो गिनती के ही होंगे। इस बार कांग्रेस भाजपा दोनों ही दलों ने धान खरीदी की सीमा बढ़ाने की घोषणा की है। कांग्रेस ने 20 क्विंटल प्रति एकड़ धान खरीदने की घोषणा की है तो भाजपा ने 21 क्विंटल। इसका फायदा कुछ प्रतिशत बड़े किसानों को जरूर मिलेगा, पर छोटे किसान जो पर्याप्त खाद, अच्छे बीज नहीं डाल पाते और फसल के लिए सिर्फ बारिश पर निर्भर हैं, उन पर इस बढ़ोतरी का असर नहीं होगा। ऐसे किसान छत्तीसगढ़ में 80 फीसदी हैं, जिनके पास 2.5 एकड़ या उससे कम खेत हैं। इन किसानों को अपनी पूरी उपज बेचने के बाद भी और धान बेचने का मौका है। इसका फायदा अभी से बिचौलियों ने उठाना शुरू कर दिया है। पड़ोसी राज्यों से धान की तस्करी की आशंका बढ़ गई है। गरियाबंद जिले में ओडिशा की सीमा पर पांच गाडिय़ों में जब्त 300 बोरी धान कल ही जब्त किया गया। इस जिले में औसत उत्पादन 7-8 क्विंटल ही है। यानि एक एकड़ के पीछे किसान को 12 क्विंटल अतिरिक्त बेचने का मौका मिल रहा है।
बैलगाड़ी है या भैंस गाड़ी?
आम तौर पर गाड़ी को या तो दो बैल खींचते हैं या फिर दो भैंस। दोनों की भार वहन क्षमता और चलने की गति अलग-अलग होती है। पर इन दिनों किसान खेतों में कट चुकी अपनी फसल खलिहान लाने के लिए भी बेचैन है। गौरेला के समीप एक गांव के इस गाड़ी के साथ हमेशा चलने वाला दूसरा बैल बीमार है। गाड़ीवान ने पड़ोसी से मदद मांगी। उसके पास बैल नहीं था, भैंसा था। बस उसे ही फांद दिया। तालमेल बैठ गया, और संभव हो गया। गाड़ी हांक कर खेत तक ले जा रही हैं, गाड़ीवान की बेटियां। तस्वीर अखिलेश नामदेव ने ली है।