राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : मुख्य सचिव, डीजीपी और इंटेलिजेंस चीफ
05-Dec-2023 3:59 PM
राजपथ-जनपथ : मुख्य सचिव, डीजीपी और इंटेलिजेंस चीफ

मुख्य सचिव, डीजीपी और इंटेलिजेंस चीफ

जब भी सरकार बदलती है तो सबसे पहले निशाने पर मुख्य सचिव, डीजीपी और इंटेलिजेंस चीफ होते हैं। ब्यूरोक्रेसी में इस बात की चर्चा छिड़ गई है कि वर्तमान में जो अफसर हैं, उनका क्या होगा। कुछ नाम भी विकल्प के तौर पर गिना जा रहे हैं। हालांकि यह भी तर्क है कि मुख्य सचिव अमिताभ जैन सौम्य छवि के हैं। वे राजनीतिक उठापटक में नहीं रहे। डीजीपी अशोक जुनेजा रमन सरकार ने इंटेलिजेंस चीफ थे, इसलिए संभव है कि उन्हें कार्यकाल पूरा होने तक न छेड़ा जाए। रही बात इंटेलिजेंस चीफ आनंद छाबड़ा की तो वे कुछ महीनों के फ़ासले से दो बार ख़ुफिय़ा मुखिया बने। देखना है कि नई सरकार का इन अफसरों को लेकर क्या रुख रहता है।

सीएम सचिवालय 

सरकार बदलने के साथ ही सीएम ऑफिस में भी बदलाव होगा। हालांकि अभी सीएम कौन होगा, इस पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व विचार मंथन कर रहा है। सीएम अपनी पसंद से अपने सचिवालय में अफसरों की पोस्टिंग करते हैं। सीएम के सचिव का पद काफी पॉवरफुल माना जाता है। ऐसे में प्रशासनिक हलकों में नए सीएम के सचिव के नाम को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। 

कहा जा रहा है कि केन्द्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ एक-दो अफसरों को सीएम सचिवालय में भेजा जा सकता है। जिन तीन अफसरों के नाम की चर्चा है उनमें रमन सिंह के सचिव रहे सुबोध सिंह, रजत कुमार, और डॉ. रोहित यादव प्रमुख हैं। सुबोध केन्द्र सरकार में अतिरिक्त सचिव स्तर के पद पर हैं। जबकि रजत कुमार डीओपीटी में संयुक्त सचिव हैं। इससे परे डॉ. रोहित यादव पीएमओ में संयुक्त सचिव हैं। सीएम सचिव कौन होगा, यह उनकी पसंद पर निर्भर है। फिलहाल तो मंत्रालय में  अफसर अपना-अपना अंदाजा लगा रहे हैं। 

शिकायत वाले अफ़सरों का क्या होगा?

पुलिस महकमे में शीर्ष स्तर पर बदलाव का हल्ला है। बीएसएफ में आईजी रहे  90 बैच के आईपीएस अफसर राजेश मिश्रा का कद बढ़ सकता है। मिश्रा स्पेशल डीजी हैं, लेकिन भूपेश सरकार में वो अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण पद पर हैं। अंदाजा लगाया जा रहा है कि राजेश मिश्रा को पुलिस प्रशासन में अहम जिम्मा दिया जा सकता है। इससे परे तीन आईपीएस अफसरों को किनारे लगाया जा सकता है, जो वर्तमान में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। खास बात यह है कि तीनों अफसरों के खिलाफ मुख्य चुनाव आयुक्त को शिकायत भेजी गई थी, उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब नई सरकार इन अफसरों के खिलाफ सीधे कोई कदम उठा सकती है। 

दांव पर कुछ अधिक ही 

कांग्रेस की हार से ज्यादा अब  प्रदेश देश में पराजित  मंत्री  अमरजीत भगत की मूंछ दांव पर है। उनके दावा तो पूरा नहीं हुआ लेकिन जो उन्होने दांव लगाया था लेग अब उनके पीछे लग गए हैं। भाजपा के नेता तो हर रोज ट्वीट कर तंज कस रहे हैं। आज पार्टी ने तो मूछों को दांव पर लगाने वाले स्व.दिलीप सिंह जूदेव की फोटो के साथ बिना मूंछ के भगत की फोटो पेस्ट कर ट्वीट किया है । वैसे भगत बिना मूंछ के भी अच्छे ही दिख रहे हैं। उनके पड़ोसी भाजपा के महामंत्री केदार कश्यप ने तो एक बयान दिया है कि मूंछ मुंडवाने में मैं मदद कर सकता हूं। इन सबमें वह मीडिया रिपोर्टर परेशान हैं जिसे भगत ने आन कैमरा  बयान दिया था। वह भी कहने लगा है कि मुझे ही कैंची, शेविंग किट लेकर जाना पड़ेगा लगता है ।

ओवर कॉन्फिडेंस

इस चुनाव में ओवर कॉन्फिडेंस के दो उदाहरण देखने को मिला। चुनाव के पहले कांग्रेस ओवर कॉन्फिडेंस में थी इसलिए हार गई और भाजपा चुनाव से पहले संभल कर चल रही थी, लेकिन वोटिंग और एग्जिट पोल के बाद इतना कॉन्फिडेंस आ गया कि रिजल्ट के एक दिन पहले ही भाजपाइयों ने अपने सोशल मीडिया पर कमल खिला दिया था। एक नेता ने तो बाकायदा रेत के एक ढेर का लाइव वीडियो कर ऐलान कर दिया कि कल से यह नहीं चलने वाला है। 

कमजोर कड़ी की तलाश

कांग्रेस की सरकार में अपनी चलाने वाले अफसर अब उस कमजोर कड़ी की तलाश में जुट गए हैं, जो बीजेपी में भी सब ठीक ठाक कर दे। खबर है कि कुछ ब्यूरोक्रेट्स की एक उभरते हुए नेता के साथ मीटिंग हुई है। अफसरों ने भाजपा को नीचा दिखाने का कोई मौका पीछे नहीं छोड़ा था, इसलिए उन्हें डर है कि कहीं पिछली सरकार जैसा हुआ तो उनकी मुश्किलें बढ़ जाएंगी, इसलिए मैनेज करने में जुट गए हैं। अपने सर्वे में कांग्रेस की सरकार बनाने वाले एक आईएएस ने भी आरएसएस से जुड़े कुछ लोगों को संपर्क किया है।

परदे के पीछे आरएसएस..

छत्तीसगढ़ सहित तीन राज्यों में भाजपा की जीत के बाद यह तस्वीर पार्टी के कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं। अलग-अलग स्लोगन के साथ। एक में लिखा है- कौन है जो खामोशी के साथ आता है, चुपचाप अपना काम करता है और लौट जाता है। एक दूसरी पोस्ट में कहा गया है-सभी मौन साधकों को प्रणाम...।

जाहिर है यह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए कहा जा रहा है। अब जब चुनाव परिणाम आ गए हैं, खबर आ रही है कि 6 माह पहले से आरएसएस कार्यकर्ताओं ने सरगुजा, बस्तर में डेरा डाल रखा था। वे चुनाव आते तक वहीं रुके। बिना सभा किये, पोस्टर बैनर के बिना घर-घर संपर्क कर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाते रहे। यह ध्यान जरूर आता है कि भाजपा संगठन की बैठक के दौरान बार-बार यह कहा जाता था कि उनके कार्यकर्ता घर-घर पहुंचेंगे। पर इसका शोर कम हुआ। महतारी वंदन योजना जिसमें एक महिला को साल में 12 हजार रुपये देने की बात है, के लाखों फॉर्म भी बिना प्रचार किए भरवाये गए। कांग्रेस के नेता न इसे भांप पाए, न ही उनके पास ऐसा कैडर था जो जवाब दे पाता।

मंत्री का बेटा बना चपरासी...

एक बार सांसद विधायक बन जाने के बाद वह कम से कम अपने बाल-बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा होने का इंतजाम तो कर ही देता है। कोई व्यापार करने लगता है, कोई ठेकेदारी। नौकरी भी लगती है तो ठीक-ठाक, वरना पिता की तरह राजनीति में कूद जाता है। मगर, झारखंड में अलग हटकर एक घटना हुई है। यहां के श्रम एवं रोजगार मंत्री सत्यानंद भोक्ता के बेटे मुकेश भोक्ता ने चपरासी बनना तय किया है। उसने यहां के व्यवहार न्यायालय में भर्ती निकलने पर आवेदन किया और चुन लिया गया। उसके चचेरे भाई का नाम भी प्रतीक्षा सूची में है। मुकेश का कहना है कि पिता का अपना पेशा है, उसका अपना। पिता के भरोसे कैसे रहूं। मुझे अपनी आजीविका भी तो देखनी है। हद यह है कि इसमें भी विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि मंत्री की सिफारिश से भर्ती हुई है।

बिना सिफारिश ही नियुक्ति मिल गई होगी, लेकिन क्या ऐसा लगता है कि मंत्री पिता के रहते बेटा ड्यूटी पर जाएगा? उस तक घर बैठे वेतन तो नहीं पहुंचने वाला है? उसने किसी जरूरतमंद बेरोजगार का हक तो नहीं मार दिया?

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