राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : भाजपा में भी डिप्टी सीएम की मांग
06-Dec-2023 4:08 PM
	 राजपथ-जनपथ : भाजपा में भी डिप्टी सीएम की मांग

भाजपा में भी डिप्टी सीएम की मांग

नई सरकार बस बनने वाली है, सीएम तय होने वाले हैं, मंत्रिमंडल का गठन होने वाला है। ऐसे में उप-मुख्यमंत्री पद की मांग उठ चुकी है। मुंगेली विधायक पुन्नूलाल मोहले ने सातवीं बार विधानसभा चुनाव जीता, चार बार लोकसभा से जीत चुके हैं। 80 के दशक के पहले चुनाव के बाद मोहले ने कभी हार का मुंह नहीं देखा। अब गुरु घासीदास जयंती मनाने के लिए हुई सामाजिक बैठक में उनको उप-मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठ गई है। प्रस्ताव पारित कर लिया गया है। मांग भाजपा के शीर्ष नेताओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की जा रही है। यह मांग स्थानीय संगठन या पदाधिकारियों की ओर से नहीं की गई है, पर समाज की बैठक में जो लोग मौजूद थे, उनमें अधिकतर भाजपा से जुड़े लोग थे। पूर्व विधायक चोवाराम खांडेकर भी थे, जो उनके साले लगते हैं।

भाजपा की पिछली सरकार में मोहले खाद्य मंत्री थे। वरिष्ठता के आधार पर उन्हें उप-मुख्यमंत्री बनाने की मांग जायज लग सकती है। पर गौर करने की बात यह है कि मुंगेली जिले में कुल दो ही सीटें हैं। दूसरी सीट लोरमी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव ने जीती है। उनका नाम तो सीएम पद के लिए चल रहा है। बात नहीं बनी तो डिप्टी सीएम पर विचार हो सकता है। ऐसे में मोहले के लिए डिप्टी सीएम की मांग के कई अर्थ लगाए जा सकते हैं। कई लोग कह रहे हैं कि भाजपा में इस तरह से मांग नहीं की जाती। संगठन नाराज हो जाता है। ऐसी बातों को हवा देने से अरुण साव की दावेदारी कमजोर पड़ जाएगी। वैसे मोहले, डॉ. रमन सिंह के पसंदीदा सहयोगियों में से एक हैं।

बागी भारी थे या भितरघाती?

कांग्रेस की हार का हर कोई अपने-अपने तरीके से विश्लेषण कर रहा है और कारण बता रहा है। इसमें एक है, बागी होकर चुनाव लडऩे वालों को रोक नहीं पाना और भितरघात से नहीं निपट पाना। बागी प्रत्याशी वाली सीटों पर नजर डालने से मालूम होता है कि एक दो को छोडक़र बाकी में अधिकृत उम्मीदवार यदि बागी खड़े नहीं होते तब भी नहीं जीत पाते। यह बात अलग है कि बगावत के चलते अधिकृत के खिलाफ माहौल बना हो और मतदाताओं ने किसी तीसरे को वोट दे दिया हो।

उत्तर रायपुर की सीट जरूर ऐसी थी जिसमें कांग्रेस के बागी अजीत कुकरेजा को 22 हजार 939 वोट मिले, जबकि अधिकृत प्रत्याशी कुलदीप जुनेजा की हार करीब इतने ही 23 हजार 54 वोटों से हुई। कुकरेजा यदि मैदान में नहीं होते तो शायद जुनेजा अपनी सीट बरकरार रखने में सफल हो जाते।

मगर हर जगह ऐसा नहीं था। अंतागढ़ सीट से अनूप नाग निर्दलीय लडक़र ज्यादा कमाल नहीं दिखा सके। उन्होंने 9415 वोट हासिल किए। कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी में रहे मंतूराम पवार ने भी यहां निर्दलीय लडक़र 15063 वोट झटके। नाग और पवार के कुल वोट 24 हजार से ऊपर हैं, जबकि विक्रम उसेंडी की 23 हजार 710 वोटों से जीत हुई है।

जशपुर में बगावत कर निर्दलीय उतरने पर प्रदीप खेस को कांग्रेस ने 6 बागी नेताओं के साथ ही निष्कासित कर दिया था। खेस को 7571 वोट मिले। यहां से विधायक विनय भगत भाजपा की रायमुनि भगत से 17 हजार 645 वोटों से हार गए। यानि भगत तब भी जीत जातीं, जब खेस मैदान में नहीं होते।

मुंगेली जिला कांग्रेस के अध्यक्ष सागर सिंह बैस ने टिकट नहीं मिलने पर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का दामन थाम कर लोरमी से चुनाव लड़ा। उन्होंने 15 हजार 910 वोट हासिल किए। यहां से कांग्रेस उम्मीदवार थानेश्वर साहू सिर्फ 29 हजार 179 वोट पा सके। कांग्रेस का वोट काटने में एक निर्दलीय उम्मीदवार संजीत बर्मन का भी हाथ था। उसे  25 हजार 126 वोट मिले, अनुसूचित जाति के वोट इनके पक्ष में आए। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने 45 हजार 891 के अंतर से यहां चुनाव जीता।

कसडोल से कांग्रेस टिकट नहीं मिलने पर गोरेलाल साहू ने चुनाव लड़ा। मगर इससे फर्क नहीं पड़ा और प्रत्याशी संदीप साहू 33 हजार 765 मतों से जीत गए। गोरेलाल को केवल 5395 वोट मिले। दंतेवाड़ा से अमूलकर नाग ने कांग्रेस की टिकट नहीं मिलने पर पार्टी छोडक़र निर्दलीय चुनाव लड़ा और 3248 मत जुटा पाए। यहां पर भाजपा प्रत्याशी चेतराम अटामी ने कांग्रेस प्रत्याशी छविंद्र कर्मा को 16 हजार 803 वोटों से हराया। इसी तरह की स्थिति लैलूंगा धमतरी, भाटापारा सीटों पर बनी थी। कुल मिलाकर बगावत कांग्रेस को हराने के लिए अधिक जिम्मेदार नहीं है। लोरमी और अंतागढ़ में निर्दलियों के हिस्से में बहुत अधिक वोट गए, जिसका फायदा भाजपा की भारी अंतर से जीत रही।

मगर, असली संकट भितरघातियों का रहा। इनमें से कुछ का पता चलने पर संगठन ने कार्रवाई की चाबुक भी चलाई लेकिन यह कार्रवाई देर से हुई। समय रहते नहीं रोका, समझाया गया या कोशिश सफल नहीं हुई। महासमुंद से हारने वाली कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. रश्मि चंद्राकर ने अपने सोशल मीडिया पेज पर इस बात का जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति विरोधी से लडक़र तो जीत सकता है, पर परिवार की लड़ाई में हार जाता है। लड़ाई भाजपा से नहीं थी, बल्कि कांग्रेस के अपने पदाधिकारियों से रही।

उत्कृष्ट पढ़ाई का क्या होगा?

सरकार बदलने के बाद कई चीजें बदलने वाली है। भूपेश सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं पर नई सरकार का क्या रुख होगा, लोगों में जिज्ञासा के साथ चिंता भी है। स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट स्कूलों के बाद इसी पैटर्न में कॉलेज भी कई जिलों में शुरू किए गए। लेकिन उनमें भर्तियां नहीं हो पाई और चुनाव आ गए। स्थिति यह है कि माध्यम अंग्रेजी है, पर अंग्रेजी के टीचर ही नहीं है। रायगढ़ में खोले गए कॉलेज में आधा सत्र बीत जाते के बाद भी पढ़ाई ठप है। कई छात्रों ने अपना ट्रांसफर सर्टिफिकेट भी निकलवा लिया। वैसे भी जितनी सीटें थी, उतने एडमिशन नहीं हुए। ऐसी दिक्कत कई स्कूलों में भी आ रही है। अधिकांश जिलों में इसका संचालन डीएमएफ फंड से किया जा रहा है। राज्य सरकार ने इसके लिए अलग बजट का प्रावधान नहीं किया था। यहां कई शिक्षक, शिक्षा विभाग से डेपुटेशन पर हैं, मगर अधिकांश की नियुक्ति अनुबंध पर की गई है। इन्हें वेतन भी रुक-रुक कर मिल रहा है। अब यह नई सरकार के ऊपर है कि वह स्वामी आत्मानंद कॉलेज, स्कूलों के कंसेप्ट को ही खत्म करती है या फिर इन्हें सुचारू रूप से चलाने के लिए सेटअप के अनुसार शिक्षकों की पूरी भर्ती करती है। हो सकता है निर्णय तत्काल न हो। ऐसा न होने पर स्कूल, कॉलेज में उत्कृष्ट पढ़ाई की उम्मीद में एडमिशन लेने वाले विद्यार्थियों के इस सत्र का नुकसान होने वाला है।

लंबी पारी की उम्मीद में...

बस्तर संभाग की जिन 12 सीटों में से 4 पर भाजपा की हार हुई है, उनमें एक बस्तर विधानसभा  सीट भी है। यहां लखेश्वर बघेल फिर जीते। भाजपा प्रत्याशी मनीराम कश्यप हारने के बाद मतदाताओं से मिलने पहुंचे और कुछ इस तरह उनका आभार जताया। उन्हें शायद लग रहा हो कि 6 हजार वोट से ही तो हारे हैं, पांच साल तो देखते-देखते बीत जाएंगे। 

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