राजपथ - जनपथ

राजपथ-जनपथ : उगता सूरज छाप को सलाम
08-Dec-2023 4:21 PM
 राजपथ-जनपथ : उगता सूरज छाप को सलाम

उगता सूरज छाप को सलाम

नई सरकार के गठन से पहले नौकरशाही भाजपा के दिग्गज नेताओं के घर दस्तक दे रहे हैं। इन सबके बीच भूपेश बघेल के करीबी अफसर भी चुपचाप भाजपा नेताओं से मिल रहे हैं। ऐसे ही दो-तीन अफसरों की तस्वीर भी वायरल हुई है। ये अफसर, एक ताकतवर नेता के घर गुलदस्ता लेकर पहुंचे थे, और उनके साथ बैठक भी की।

नेताजी सरल स्वभाव के हैं। उन्होंने खुशनुमा माहौल में अफसरों से बातचीत की। नेताजी से मेल मुलाकात के बाद अफसर भी निश्चित होते दिख रहे हैं कि किसी तरह के बदले की भावना से कार्रवाई नहीं की जाएगी। हालांकि भाजपा के भीतर कई ऐसे नेता हैं, जो चाहते हैं कि भूपेश के करीबी अफसरों को साइड लाइन किया जाए। देखना है कि सरकार गठन के बाद भूपेश के करीबी अफसरों का क्या कुछ होता है।

मेयर हटाने की हड़बड़ी

रायपुर नगर निगम के मेयर एजाज ढेबर को हटाने की काफी हड़बड़ी दिख रही है। ढेबर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए भाजपा पार्षद दल की बैठक भी हुई थी। भाजपा के पास अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए जरूरी बहुमत नहीं है। बावजूद इसके निर्दलीय और कांग्रेस पार्षद दल में तोडफ़ोड़ कर अविश्वास प्रस्ताव पारित कराने पर चर्चा हुई।

भाजपा पार्षद चाहे कुछ भी सोच रहे हैं, लेकिन शहर जिला भाजपा के विधायक, मेयर को हटाने के पक्ष में नहीं है। भाजपा के एक प्रमुख नेता ने संकेत दिए, कि एजाज ढेबर के बने रहने से पार्टी को काफी फायदा हुआ है। नगर निगम की चारों सीट भाजपा के खाते में चली गई, और लोकसभा चुनाव में भी इसका फायदा मिल सकता है। ऐसे में उन्हें हटाने का कोई मतलब नहीं है। अलबत्ता, स्मार्ट सिटी और अन्य कार्यों में गड़बड़ी घोटाले की जांच करा ढेबर, और उनके करीबियों पर कार्रवाई की जा सकती है। देखना है आगे क्या होता है।

शादियों में नेताओं का टोटा

राजधानी में इन दिनों मांगलिक कार्यक्रम काफी हो रहे हैं। शादियों में इंतजाम भी फिल्मी स्टाइल में हो रहे हैं। वर वधू से लेकर परिवार वाले रीति रिवाज ऐसे कर रहे हैं जैसे फिल्मों की शूटिंग हो रही है। बहरहाल शादियों की शहनाई में कुछ कमी सी दिखती है, वह है नेताओं की। वर्ना कई नेता तो रात तीन बजे भी रिसेप्शन में पहुंचते रहे हैं।

सत्ता जाने के बाद कांग्रेस के कद्दावर नेता सार्वजनिक आयोजन में अभी जाने से हिचक रहे हैं क्योंकि वहां एक ही चर्चा होती है कि सत्ता कैसे बदल गई, ऐसी हवा तो नहीं थी। शादियों में आमंत्रितों की सूची में कांग्रेसी ही अधिक हैं, क्योंकि सरकार के लौटने का अनुमान था, सो व्यवहार संबंध की सूची भी उसी हिसाब से बनी थी। भाजपा के नेताओं को अभी कमान नहीं मिली है, इसलिये वे भी कम ही जा रहे हैं।

मीसाबंदियों को फिर मिलेगी पेंशन?

सन् 2008 में छत्तीसगढ़ की तत्कालीन भाजपा सरकार ने जयप्रकाश नारायण सम्मान निधि शुरू की थी। यह आपातकाल के दौरान जेल जाने वाले मीसा बंदियों के लिए थी। सम्मान निधि में हर माह 25 हजार रुपये मिलते थे। कांग्रेस सरकार बनने के बाद फरवरी 2019 में यह पेंशन रोक दी गई। पहले कारण यह बताया गया कि जिन्हें पेंशन दी जा रही है, उनका सत्यापन कराया जाएगा। पर जब पेंशन रुकी रही तो भूपेश बघेल ने कहा कि एक खास विचारधारा के लोगों को पेंशन देने का कोई नियम नहीं होता है। भाजपा सरकार ने जनता की गाढ़ी कमाई के 100 करोड़ रुपये इसके पीछे लुटा दिए। प्रभावित लोगों ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के बाद अदालत ने पेंशन जारी रखने का आदेश दिया। इस आदेश पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देकर स्थगन ले लिया। तब से यह पेंशन बंद है। अब जब राज्य में फिर से भाजपा लौट गई है, मीसा बंदियों को आशा बंध गई है कि सुप्रीम कोर्ट में लगा मुकदमा सरकार वापस ले लेगी और फिर से उन्हें पेंशन मिलेगी। यदि बीते पांच साल का पेंशन भी देने का फैसला लिया गया तो एक-एक मीसाबंदी के हाथ में 10-12 लाख रुपये एक साथ आ जाएंगे।

बस्तर तक बुलडोजर...

चुनाव परिणाम आने के बाद प्रशासन ने नई सरकार के साथ खड़े होने में कोई देरी नहीं की। चखना सेंटर और सडक़ों के किनारे के अतिक्रमण पर पूरी रफ्तार से उखाड़े जा रहे हैं। ज्यादातर एक्सीवेटर का इस्तेमाल हो रहा है, पर इसे इन दिनों का प्रिय नाम बुलडोजर दिया गया है। बस्तर में भी यही बुलडोजरी कार्रवाई हुई। नक्सलियों का एक ऊंचा शहीद स्मारक फोर्स ने एक्सीवेटर ले जाकर ध्वस्त कर दिया।

विधायकी तो पक्की हुई, सांसदी का पता नहीं...

विधानसभा जीतने के बाद इस्तीफा देने वाले तीन सांसदों में से दो अरुण साव और रेणुका सिंह को मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल बताया जा रहा है। कोई और नाम आया भी तो उम्मीद कर सकते हैं कि मंत्रिमंडल में तो शामिल हो ही जाएंगे। तीसरी सांसद गोमती साय को यदि नहीं भी लिया गया तो सन् 2028 तक उनका भी विधायक बने रहना तो तय है, वह भी सत्तारूढ़ दल का। यदि सांसदी नहीं छोड़ते तो उनके पास यह पद अगले साल के मई महीने तक ही बना रहता। जबकि विधायकी पांच साल के लिए मिल चुकी है।

सन् 2014 के जब लोकसभा चुनाव हुआ तो भाजपा के पास 11 में से 10 सीटें थीं। चौंकाते हुए फैसला लेते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने अपने सभी सांसदों की टिकट काट दी थी। इनमें रमेश बैस, डॉ. रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह, स्व. बलिराम कश्यप के पुत्र दिनेश कश्यप जैसे नाम भी थे। विष्णु देव साय को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था फिर हटा दिया गया। अब उन्होंने भी विधानसभा चुनाव लडक़र जीत हासिल कर ली है। ऐसा ही बस्तर से सांसद रहे विक्रम उसेंडी को अभी मौका मिला और वे भी विधानसभा पहुंच गए हैं। बैस तो कुछ समय बाद ही राज्यपाल बना दी गए। वहीं कोरबा में बंशीलाल महतो की टिकट काट दी गई थी। उनके पुत्र विकास महतो को 2018 में चुनाव लड़ाया गया था, पर वे जयसिंह अग्रवाल से हार गए थे। इस बार उन्होंने कोरबा जिले का चुनाव संचालन किया, नतीजे अच्छे आए।

लखन लाल साहू, कमलभान सिंह, चंदूलाल साहू, कमला देवी पाटले, अभिषेक सिंह आदि सांसदों ने अपनी सीट बड़ी मार्जिन से 2014 में निकाली पर 2019 में सबकी टिकट कट गई। उस समय टिकट काटने की वजह यह बताई कि चुनाव सिर्फ मोदी के नाम पर लड़ा जाएगा। इन सांसदों के पांच साल के काम की कोई नकारात्मक छवि बनी हो तो मोदी के चेहरे को उससे नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। यह कामयाब प्रयोग था। 11 में से 9 सीटों पर भाजपा की जीत हुई।

इस बार भी यह साफ दिखाई दे रहा है कि लोकसभा चुनाव मोदी के ही नाम पर लड़ा जाना है। ऐसे में कोई नहीं जानता कि मौजूदा सांसदों में से किसकी टिकट बरकरार रहेगी और किसकी काटी जाएगी। फिर 2019 जैसा फैसला लिया गया तो? ऐसे में ये तीन सांसद विधायक बनने के बाद तो कम से कम इस चिंता से मुक्त हुए।

घी जैसा महुआ तेल...

देखने से लग सकता है कि इन हाथों में गाय का घी है। पर नहीं, यह महुआ के बीज से तैयार किया गया तेल है। सर्दी के चलते यह जम गया है और ऐसा दिख रहा है। आदिवासियों के बीच उन्नत खेती और फूड प्रोसेसिंग पर काम कर रहीं सुभद्रा खापर्डे बताती हैं कि महुआ के बीज का तेल बहुत पौष्टिक और असंतृप्त वसा से भरपूर होता है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों में खाना पकाने के लिए इसका प्रचलन है। ([email protected])

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