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गर्मी का अवसाद, समर डिप्रेशन, लोगों को पता ही नहीं चलता कि..
18-Jun-2023 5:12 PM
गर्मी का अवसाद, समर डिप्रेशन,  लोगों को पता ही नहीं चलता कि..

दुनिया में कम रौशनी के मौसम को अवसाद या डिप्रेशन से जोड़ा जाता है। जिन देशों में महीनों तक सूरज नहीं निकलता, या बहुत कम निकलता है, वहां पर लोग डिप्रेशन के शिकार बहुत मिलते हैं। ऐसे लोगों को सलाह दी जाती है कि जब सूरज की रौशनी मिले, तब उसका इस्तेमाल कर लें। लेकिन गर्मी के मौसम की वजह से भी डिप्रेशन हो सकता है, यह चिकित्सा विज्ञान में अच्छी तरह दर्ज है। इसकी कुछ वजह तो गर्मी हो सकती है, लेकिन इसकी बहुत सी वजहें इस मौसम में होने वाले, किए जाने वाले, और न कर सकने वाले बहुत किस्म के कामों से जुड़ी रहती हैं। 

अभी एक दोस्त के समर डिप्रेशन में घिरे होने की खबर मिली, तो इस बारे में कुछ पढ़ा। उससे पता लगा कि हिन्दुस्तान जैसे देश में गर्म मौसम के वक्त अधिकतर देश में स्कूलों की छुट्टियां रहती हैं, बच्चे घरों पर रहते हैं, और उनके पास करने को अधिक कुछ नहीं रहता है। जो परिवार संपन्न रहते हैं, उनके बच्चे तो फिर भी कहीं घूमने चले जाते हैं, रिश्तेदारों के यहां हो आते हैं, लेकिन गरीब और मध्यमवर्गीय बच्चों के लिए बाहर जाने की गुंजाइश बड़ी कम रहती है। ऐसे में वे लगातार घर पर रहते हैं, और उनकी उम्मीदें कुछ रहती हैं, मां-बाप की हैसियत कुछ और रहती है। परिवार बच्चों को कई-कई हफ्ते-महीने लगातार घर पर देखने और बर्दाश्त करने के लायक नहीं रह जाता, और जिस तरह कोई भी अच्छी चीज जरूरत से अधिक होने पर परेशानी का सबब बनती है, उसी तरह बच्चों का पूरे वक्त घर पर रहना पूरे परिवार के लिए एक अलग किस्म का तनाव रहता है। यह तनाव कुछ-कुछ वैसा ही रहता है जैसा कि लॉकडाउन के वक्त कामकाजी लोगों के घर रहने से परिवार के बाकी लोग एक अलग किस्म के तनाव में रहते थे। और तो और लोगों के घर के बाहर के प्रेम और देहसंबंध भी इतना लंबा फासला हो जाने से तनाव से घिरे रहते थे, और वह कहीं न कहीं परिवार के भीतर झलकने लगता था। 

समर डिप्रेशन एक मेडिकल शब्दावली है जिसे सीजनल अफेक्टिव डिस ऑर्डर कहा जाता है, समरटाईम एसएडी। कुछ देशों में जहां पर लोग सैर-सपाटे को जा पाते हैं, या गर्मियों में समंदर के किनारे या स्वीमिंग पूल पर जाते हैं, वहां उन्हें अपने शरीर को लेकर तनाव होता है। लोग कपड़ों के भीतर महफूज महसूस करते हैं, क्योंकि वहां चर्बी को छुपाने को ऊपर कपड़ा रहता है, लेकिन जब सिर्फ नहाने या तैरने के कपड़े बदन पर रहते हैं, तो चर्बी चीख-चीखकर लोगों को दिखाती है कि देखो मैं कितनी हूं। बहुत से लोग गर्मियों में इस वजह से भी तनाव में रहते हैं, और डिप्रेशन में आ जाते हैं कि उनका बदन दिखाने लायक नहीं रह गया है। 

ठीक उसी तरह जिस तरह कि एक आम हिन्दुस्तानी परिवार में हर त्यौहार तनाव लेकर आता है कि गरीबी कितनी भी हो कुछ तो कपड़े खरीदने होंगे, घर में कुछ रंग-रोगन करना होगा, और खाने-पीने और मेहमानों पर भी कुछ तो खर्च होगा ही। इस खर्च का इंतजाम हर किसी के लिए आसान नहीं रहता है, और ठीक इसी तरह का तनाव गर्मियों की लंबी छुट्टियों में आ जाता है जब कूलर या एसी की वजह से बिजली का बिल बढऩे लगता है, घर पर रह गए बच्चे रात-दिन खाने-पीने की चीजें चाहते हैं, घूमने जाना चाहते हैं, फिल्म और मॉल जाना चाहते हैं, खेल के सामान और खेल के कपड़े-जूते खरीदना चाहते हैं, स्वीमिंग पूल की मेंबरशिप लेना चाहते हैं, और दोस्तों की तरह या उनके साथ दूसरे शहर घूमने भी जाना चाहते हैं। यह सब कुछ घर चलाने वाले मां-बाप के लिए बड़े तनाव की वजहें रहती हैं जो कि डिप्रेशन में तब्दील होती हैं, समर डिप्रेशन की एक वजह यह भी रहती है।

फिर मां-बाप के सिर पर यह भी आता है कि बच्चों को व्यस्त रखना, उन्हें एक क्लास से लाना और दूसरे में पहुंचाना, घर के कम्प्यूटर, इंटरनेट, और टीवी को बच्चों और अपने बीच किसी तरह बांटना। ऐसी बहुत सी बातें गर्मी की छुट्टियों को लेकर आती हैं, और इन दिनों जिस तरह बच्चे अपने स्कूल-कॉलेज में, दोस्तों के बीच खर्चीली चीजों को देखकर आते हैं, और वैसा ही कुछ करना चाहते हैं, तो उनसे लगातार मनाही का एक संघर्ष चलना भी लोगों को डिप्रेशन में डाल देता है। यह मनोचिकित्सा विज्ञान ने दर्ज किया हुआ है कि बाहर पढऩे वाले बच्चे जब लंबी छुट्टियों पर घर आते हैं, तो वे मां-बाप के पूरे रूटीन को बदलकर रख देते हैं, उनका सोना-जागना सब कुछ बदल जाता है, और बच्चों की उम्मीदों पर खरा उतरना एक मुश्किल चुनौती रहती है। 

छुट्टियों के पहले अधिकतर लोगों को इन तमाम बातों के बारे में सोच लेना चाहिए, और कम से कम खर्च के बारे में तो साल भर से यह इंतजाम करके रखना चाहिए कि छुट्टियों का खर्च कैसे पूरा होगा, ठीक उसी तरह जिस तरह कि त्यौहार के खर्च का इंतजाम रखना पड़ता है, या कर्ज और उधार लेना पड़ता है। अपने शहर में कपड़ा और राशन तो उधार मिल भी जाता है, लेकिन सिनेमाघर की टिकट, आइस्क्रीम, या दूसरे शहरों की टिकट और होटल तो उधार मिल भी नहीं सकती। इन बातों के अलावा मौसम की मार भी रहती है, गर्मी लोगों को परेशान करती ही है, खाने-पीने को ठंडा और मीठा अच्छा लगता है जो कि बहुत से लोगों के लिए परेशानी का सबब रहता है, और बहुत से परिवार ऐसे बुरे अनचाहे रिश्तेदार-मेहमान झेलते हैं कि बंगाली की एक कहावत याद आती है- मेहमान और मछली तीसरे दिन बदबू मारने लगते हैं। 

इसलिए आपके आसपास के लोग अगर आपसे बहुत गर्मजोशी से बात नहीं कर रहे हैं, तो याद रखें कि वे समर डिप्रेशन से भी गुजरते हो सकते हैं। इसलिए उनके साथ नर्मी बरतें, हमदर्दी रखें, और उनका हौसला बंधाते रखें कि ये छुट्टियां भी निकल जाएंगी, ठीक उसी तरह जिस तरह कि जिंदगी के और बहुत से मुश्किल दौर निकल जाते हैं।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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