आजकल
पिछले चौबीस घंटों में दसियों करोड़ लोगों के दिमाग में यह बात कील की तरह ठुक गई है कि राजस्थान और मणिपुर में कोई फर्क नहीं है। किसी समाचार एजेंसी की यह सोची-समझी मक्कारी किस तरह देश के अलग-अलग हजारों मीडिया संस्थानों के लोगों ने हाथोंहाथ ले ली है, यह देखते ही बनता है।
मणिपुर की खबरें फिर भयानक हो चली हैं। ऐसा भी नहीं कि वहां की हालत पिछले सौ-सवा सौ दिनों में सुधरी हो, लेकिन वहां हो रही हत्याएं कुछ थमी थीं, क्योंकि दसियों हजार सरकारी बंदूकें वहां तैनात थीं, दो जातियों के लोगों को दो अलग-अलग इलाकों में बांट दिया गया था, और सामान्य जिंदगी को सस्पेंड करके टकराव और हिंसा के मौके ही खत्म कर दिए गए थे। इसके बावजूद पिछले चार दिनों में बारह और लोगों का कत्ल किया गया है। ओलंपिक मैडल पाने वाली बॉक्सर मैरी कॉम ने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को अपना गांव बचाने के लिए चिट्ठी लिखी है कि वह जल रहा है, उसकी जनजाति को बचाया जाए। लेकिन ऐसी अपील बहुत सारे और लोग करते आए हैं, और अब तो पिछले कुछ हफ्तों से सुप्रीम कोर्ट की बनाई हुई कमेटी इसकी जांच कर रही है, जो सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट कर रही है। जांच के मोर्चे पर इससे अधिक क्या हो सकता है कि दूसरे राज्यों के रिटायर्ड आईपीएस, और दूसरे हाईकोर्ट के रिटायर्ड जजों को लेकर खुद सुप्रीम कोर्ट जांच करवा रहा है। इस मामले को केन्द्री की मोदी सरकार शर्मिंदगी की नौबत मानती है या नहीं, यह उसका अपना विवेक है, और वह अपनी ही पार्टी के मणिपुर-मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को राजधर्म याद दिलाती है या नहीं, यह उसके अपने राजधर्म पर निर्भर करता है। हम आज यहां कुछ दूसरे पहलुओं पर बात करना चाहते हैं जिसके पहले मणिपुर की आज तक की इस जमीनी हकीकत की चर्चा कर लेना जरूरी था।
चार महीनों से मणिपुर नस्लीय हिंसा की आग में झुलस रहा है, और शहरी-संपन्न मैतेई गैरआदिवासी, समुदाय को अपने मुख्यमंत्री की हिफाजत हासिल है, और उसका टकराव सीधे-सीधे वहां के आदिवासी और ईसाई, पहाड़ों पर रहने वाले कुकी समुदाय से है, उसका सीधा हमला इन पर है।
कल की खबर यह है कि मणिपुर की राजधानी इम्फाल, जो कि मैतेई समुदाय की आबादी का इलाका है, वहां बच गए गिने-चुने कुकी परिवारों के 24 लोगों को सुरक्षाबलों ने आधी रात उनके घरों से उठाया, उन्हें कोई सामान भी नहीं लेने दिया गया, और वहां से ले जाकर उन्हें पहाड़ों पर कुकी इलाकों में छोड़ दिया गया। इन लोगों का कहना है कि यह उन्हें बचाकर ले जाने के बजाय उनका अगवा करके उन्हें ले जाने की कार्रवाई लग रही थी।
अब आज की एक खबर पर लगे हाथों और गौर कर लेना चाहिए। देश के संपादकों की संस्था, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने मणिपुर में मीडिया की रिपोर्टिंग को पक्षपातपूर्ण बताया है, और राज्य सरकार की भूमिका को भी। उसने लिखा है कि राजधानी इम्फाल के मीडिया संस्थानों ने तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया, और एक समुदाय के खिलाफ कमजोर और भडक़ाने वाली रिपोर्टिंग की जिससे हिंसा बढ़ी। राज्य सरकार ने भी कुकी आदिवासी समुदाय को अवैध घुसपैठ करने वाले विदेशी करार दिया। इन सबसे राज्य में तनाव और हिंसा पैदा हुए, और उनमें बढ़ोत्तरी हुई।
अब अकेले मणिपुर के मीडिया को तोहमत क्यों दी जाए। लोगों को याद रखना चाहिए कि पिछले संसद सत्र की सुबह जब सुप्रीम कोर्ट से केन्द्र सरकार को मणिपुर को लेकर एक कड़ा नोटिस जारी हो रहा था, और सरकारी वकील को एक दिन पहले की अदालती पूछताछ से उसका अंदाज था, तो संसद में घुसने के पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 75 से अधिक दिनों के बाद पहली बार मणिपुर शब्द का उच्चारण किया था, और उन्होंने मणिपुर की हालत पर देश के सारे 140 करोड़ लोगों को शर्मिंदगी का हकदार बना दिया था। ऐसा करने पर खुद प्रधानमंत्री पर मणिपुर की जिम्मेदारी एक बटा 140 करोड़ रह गई थी। इसके साथ-साथ उन्होंने मणिपुर के साथ जोडक़र कहा था- घटना चाहे राजस्थान की हो, छत्तीसगढ़ की हो, या फिर मणिपुर की हो, कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
हमने कुछ घंटों के भीतर ही मोदी के बयान के इस पूरी तरह नाजायज जिक्र के बारे में लिखा था, और बाद में जाकर कांग्रेस पार्टी ने भी इस पर विरोध किया था। क्योंकि छत्तीसगढ़ और राजस्थान में नस्लीय हिंसा की ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी, और न ही जाति के आधार पर किसी महिला को नंगा करके उसका जुलूस निकाला गया था, उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था, उसका कत्ल हुआ था। इसलिए अपनी पार्टी के राज वाले मणिपुर की तुलना के लिए कांग्रेस शासन वाले छत्तीसगढ़ और राजस्थान का यह जिक्र पूरी तरह नाजायज था।
अब पिछले दो दिनों से देश में एक अलग हवा बांधी जा रही है। राजस्थान में एक महिला के साथ बड़ी हिंसा की एक घटना हुई है। वहां एक आदिवासी महिला के कपड़े उतारकर उसे गांव में घुमाया गया, और जब उसका वीडियो चारों तरफ फैला तो हंगामा खड़ा हुआ, राजस्थान पुलिस ने उस महिला के पति सहित दस लोगों को गिरफ्तार किया। इस महिला के पति ने अपने साथियों के साथ मिलकर उसके कपड़े उतारे, और उसे गांव में घुमाया। गांव में तमाशबीन भीड़ में दूसरी महिलाएं भी थीं, लेकिन किसी ने इसे रोका नहीं। ऐसा पता लगा है कि यह पति को छोडक़र किसी और के साथ रहने के उस महिला के फैसले से उपजा तनाव है।
अब कल सुबह से देश भर के मीडिया में जो खबरें इस घटना की आ रही हैं, उनमें एक जैसी हैडिंग है। शायद समाचार एजेंसियों ने ऐसी ही हैडिंग बनाई होगी, और अखबारों, वेबसाइटों, और टीवी चैनलों पर अब मौलिकता का इस्तेमाल घट गया है, इसलिए सबने वही हैडिंग लगाई है। राजस्थान में मणिपुर जैसी घटना, राजस्थान के प्रतापगढ़ में मणिपुर जैसी घटना, राजस्थान में मणिपुर जैसी हैवानियत, प्रतापगढ़ में मणिपुर जैसी शर्मनाक घटना, यह राजस्थान है मणिपुर नहीं। इंटरनेट पर ऐसी दर्जनों सुर्खियां मौजूद हैं जो दसियों करोड़ पाठकों और दर्शकों तक पहुंचकर उनके दिमाग में इस बात को पुख्ता तरीके से बैठा चुकी होंगी कि जो मणिपुर में हो रहा है, वह तो कांग्रेस के चुनावी राज्य राजस्थान में भी हो रहा है। तकरीबन तमाम लोगों की अक्ल अखबार या टीवी सरीखी सुर्खियों की कैदी रहती हैं,
और वे उससे परे अपनी समझ का इस्तेमाल नहीं करतीं। चारों तरफ मीडिया में काम करने वाले, और कुछ अधिक अक्ल और समझ रखने का झांसा देने वाले लोगों को खुद को भी ऐसी हैडिंग में कुछ अटपटा नहीं लगा कि राजस्थान के एक पारिवारिक झगड़े में परिवार के मर्दों द्वारा परिवार की ही महिला पर की गई इस हिंसा से मणिपुर की क्या बराबरी है जहां पर दो जातियों के बीच संघर्ष चल रहा है, और राज्य सरकार के संरक्षण में एक जाति के लोग दूसरी धर्म-जाति की महिलाओं को नंगा करके उनका जुलूस निकाल रहे हैं, वीडियो-कैमरों के सामने उसके बदन से खिलवाड़ कर रहे हैं, फिर उनके साथ सामूहिक बलात्कार करके उनका कत्ल कर दिया जा रहा है। उस नस्लीय हिंसा की मिसाल राजस्थान की पारिवारिक हिंसा पर थोपकर मणिपुर की गंभीरता को ठीक उसी तरह खत्म किया जा रहा है जिस तरह पिछले दिनों अभिनेता वरूण धवन की एक फिल्म में हिटलर के यातना शिविरों के हल्के-फुल्के जिक्र से हिटलर की गंभीरता को खत्म किया गया था, जिसका कि इजराइल से लेकर दुनिया के कई देशों ने विरोध किया था, और हिन्दुस्तान में भी भाजपा से जुड़े कई नेताओं ने हिटलर की मिसाल के खिलाफ सार्वजनिक रूप से लिखा था।
जब ऐतिहासिक जुर्मों की गंभीरता को खत्म करना हो, तो आज के किसी अलग किस्म के छोटे जुर्म से उसकी तुलना करना एक तरीका होता है। पिछले चौबीस घंटों में दसियों करोड़ लोगों के दिमाग में यह बात कील की तरह ठुक गई है कि राजस्थान और मणिपुर में कोई फर्क नहीं है। किसी समाचार एजेंसी की यह सोची-समझी मक्कारी किस तरह देश के अलग-अलग हजारों मीडिया संस्थानों के लोगों ने हाथोंहाथ ले ली है, यह देखते ही बनता है। और इसके साथ ही यह बात भी समझ आती है कि एक समाचार एजेंसी तो किसी सरकारी या राजनीतिक साजिश के तहत ऐसी हैडिंग बनाकर खबर भेज सकती है, लेकिन दसियों हजार पत्रकारों में से जब किसी को भी ऐसी हैडिंग खटकती नहीं है, तो यह साफ है कि देश के पत्रकारों के किसी नाम भर के हिस्से में मणिपुर को लेकर समझ रह गई हो, तो रह गई हो, बाकी को राजस्थान की एक पारिवारिक हिंसा मणिपुर की नस्लीय हिंसा के बराबर मानने में कोई दिक्कत नहीं है।