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वे लोग जिनके हौसले दो कदमों में नाप देते हैं एवरेस्ट से पहाड़..
05-Mar-2023 3:48 PM
वे लोग जिनके हौसले दो कदमों  में नाप देते हैं एवरेस्ट से पहाड़..

दुनिया में लोग नामुमकिन दिखते कामों को जब मुमकिन करते दिखते हैं, तो लगता है कि अगर कहीं कोई ईश्वर है, या कि कुदरत का दिया हुआ तन और मन है, तो ऐसे लोग इन सबको शिकस्त देते हुए कामयाब होकर दिखाते हैं। छत्तीसगढ़ में ही दोनों पैर खो चुके, और दोनों नकली पैरों पर चलने वाले चित्रसेन साहू हर बरस कुछ बार खबरों में आते हैं जब वे दुनिया के अलग-अलग सबसे ऊंचे पहाड़ों पर चढऩे का जोखिम उठाते हैं, और एक के बाद एक चुनौतियों को शिकस्त देते हैं। चित्रसेन साहू बालोद जिले के एक गांव में पढक़र आगे निकले थे, और उन्हें एयरफोर्स में नौकरी मिल गई थी। उसी वक्त एक ट्रेन हादसे में उनके दोनों पैर कट गए, और उस वक्त पुलिस को यह भी लगा था कि चित्रसेन ने शायद खुदकुशी की कोशिश की है। लेकिन वह दिन है और आज का दिन है दोनों पैर कट गए, और वे एक के बाद दूसरे पहाड़ों पर चढ़ते चले गए। हौसले और कामयाबी की ऐसी कहानियां दुनिया भर से आती हैं और उम्मीद खो चुके लोगों में से बहुतों के मन में फिर उम्मीद जगाती हैं। लोग खुदकुशी की कगार पर पहुंचे रहते हैं, और वहां पर एक और धक्का लगने से वे खाई में गिरकर खत्म भी हो सकते हैं, और जरा सी हिम्मत मिलने से वे बिना पैरों पहाड़ों की चोटी पर पहुंच सकते हैं। 

आज सुबह खबरों के दुनिया के सबसे बड़े संस्थान, बीबीसी, ने अपने पॉडकास्ट में एक अतिरिक्त पॉडकास्ट जोड़ा जिसका नाम हैप्पी पॉडकास्ट था। इसमें दुनिया भर के श्रोताओं की भेजी गई खबरों में से कुछ चुनिंदा खबरों को बीबीसी ने आगे बढ़ाया, और आधे घंटे का यह खास पॉडकास्ट तैयार किया। इसमें एक खबर समंदर में एक बोट में फंस गए एक आदमी की कहानी भी थी जिसने बिना किसी मदद के ऐसे टमाटर कैचप (चटनी) की मौजूद एक बोतल को पानी में घोल-घोलकर 24 दिन जिंदा रहने का करिश्मा कर दिखाया था। अब दुनिया में कैचप बनाने वाली एक सबसे बड़ी कंपनी इस आदमी को एक नई बोट तोहफे में देने जा रही है। 

एक दूसरी कहानी इन्हीं दिनों खबरों में आई है जिसमें इंसानी कामयाबी की एक दूसरी ऊंचाई दिखाई पड़ रही है। ब्रिटेन में रहने वाले जेसन को तीन बरस की उम्र में ही ऑटिस्टिक स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का मरीज पाया गया था, और डॉक्टरों ने परिवार को कह दिया था कि उसे पूरी जिंदगी मदद की जरूरत रहेगी। ग्यारह बरस की उम्र तक वह बोल भी नहीं सकता था, अठारह बरस की उम्र तक वह लिखना-पढऩा नहीं सीख पाया था। लेकिन फिर उस पर मेहनत करने वाले, उसे पढ़ाने और सिखाने वाले लोगों के साथ-साथ जेसन की खुद की करिश्माई मेहनत थी कि उसने 18 बरस के बाद पढऩा-लिखना सीखकर भी ब्रिटेन के एक नामी विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल की, और वह शारीरिक शिक्षा का टीचर बना। इसके बाद उसने दो और विषयों में डिग्रियां हासिल कीं, और शिक्षण-अध्ययन में पीएचडी की। 2018 में उसे एक विश्वविद्यालय ने वरिष्ठ व्याख्याता रखा गया, 2021 में वह ब्रिटेन के एक बड़े विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बनने वाले सबसे नौजवान लोगों में से था। अब आने वाले कल, सोमवार 6 मार्च को जेसन दुनिया के एक सबसे नामी ब्रिटिश विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज में प्रोफेसर बन रहा है। वह इस विश्वविद्यालय का आज तक का सबसे नौजवान अफ्रीकी नस्ल का प्रोफेसर बना है। उसने बताया कि दस बरस पहले उसने अपनी मां के कमरे में दीवार पर अपनी जिंदगी के लिए तय की गई मंजिलें लिखी थीं, जिनमें तीसरे नंबर पर ही लिखा था कि एक दिन वह ऑक्सफोर्ड या कैम्ब्रिज में काम करेगा। अब दस बरस के भीतर वह कैम्ब्रिज में प्रोफेसर नियुक्त हुआ है। 

जिंदगी में कामयाबी की, भलमनसाहत की, नेक कामों की, और कड़े संघर्ष की असल कहानियों की बहुत जरूरत रहती है। आज छोटी-छोटी सी बातों पर बच्चे खुदकुशी कर रहे हैं, किसी बच्चे को मनचाहा मोबाइल न मिले तो खुदकुशी, किसी के इम्तिहान के पर्चे बिगड़ जाने पर खुदकुशी, और किसी से मां-बाप की डांट बर्दाश्त न हो तो खुदकुशी। खुदकुशी से कम दर्जे का डिप्रेशन या तनाव लोगों की जिंदगी को और बुरी तरह प्रभावित करता है, और वे जीते जी मरे हुओं की तरह जीते हैं। चूंकि वे जिंदा रहते हैं इसलिए उनकी तरफ अधिक ध्यान भी नहीं जाता। लेकिन ऐसे ही वक्त लोगों के संघर्ष और हौसले की असल जिंदगी की कहानियां अगर देखने-सुनने मिले, तो बहुत से लोग मौत की कगार पर जाकर भी लौट सकते हैं, और जीते जी मुर्दा की तरह रहने के बजाय एक बेहतर कामयाबी की तरफ बढ़ सकते हैं। 

आज दिक्कत यह है कि जिंदगी की सकारात्मक खबरों, और कामयाबी की असल कहानियों की जगह कम होती जा रही है, और खुदकुशी की खबरें इतने खुलासे से छप रही हैं कि मरने की तरकीबें भी सिखाने का काम वे करती हैं। आज जिस मीडिया और सोशल मीडिया की पहुंच हर दिल और दिमाग तक हो चुकी है, उन्हें, और उन्हें चलाने वाले लोगों को सोचना चाहिए कि वे कैसी खबरें लोगों के सामने रखें, कैसी मिसालें पेश करें कि लोग बिकराल विपरीत परिस्थितियों में भी जिंदा रहने, आगे बढऩे, और कामयाबी की ऊंचाई पर पहुंचने की सोच सकें, पहुंच सकें। आज हर किसी के लिए यह जरूरी है कि वे ऐसी असल जिंदगी की खबरें ढूंढ-ढूंढकर उन्हें अपने सोशल मीडिया पेज पर बढ़ावा दें, और अखबार या टीवी सरीखे दूसरे मीडिया को भी मजबूर करें कि वे भी सकारात्मक खबरों की जगह बढ़ाएं, और नकारात्मक खबरों को छोटा करें।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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