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हिन्दुस्तानी पानी की आखिरी बाल्टी से कार ही धुलेगी...
25-Feb-2024 3:40 PM
हिन्दुस्तानी पानी की आखिरी बाल्टी से कार ही धुलेगी...

हिन्दुस्तान में कम्प्यूटर के सबसे बड़े कामकाज और कारोबार की वजह से जिस बेंगलुरू को सिलिकॉन वैली कहा जाता है, उस बेंगलुरू में गर्मी का मौसम आने के पहले ही पानी की ऐसी भयानक कमी हो गई है कि लोगों को जरूरतें कम करनी पड़ी हैं, और तकरीबन दोगुना दाम पर पानी खरीदना पड़ रहा है। देश का एक सबसे आधुनिक शहर इंसानी जिंदगी की सबसे बुनियादी जरूरत से इस कदर जूझ रहा है कि आने वाली गर्मी में डेढ़ करोड़ से कुछ कम आबादी वाले इस उपमहानगर का जाने क्या हाल होगा। शहर के लोग कह रहे हैं कि करीब दोगुने दाम पर भी टैंकर आसानी से नहीं मिल रहे, और लोगों ने पौधों में पानी डालना बंद कर दिया है, और कुछ लोगों का कहना है कि वो दो दिन में एक बार नहा रहे हैं। इसकी एक वजह यह बताई जा रही है कि शहर और आसपास मानसून कमजोर रहा, जिसकी वजह से कावेरी नदी में पानी घटा, आसपास के जलाशयों में भी पानी घटा, और भूजल स्तर में गिरावट आई है। 

अब बेंगलुरू की इस बदहाली को बाकी देश के हिसाब से देखें, तो देश भर में हाल यह है कि पानी का इस्तेमाल बेकाबू है। जिस शहर में इसकी कमी नहीं है वहां लोग रोजाना कार धोते हैं, घर-दुकान के सामने पाईप की धार से फर्श और सडक़ धोते हैं, और बड़े-बड़े घास के मैदान सींचे जाते हैं। संपन्न कॉलोनियों में जाएं तो वहां लोगों के ड्राइवर कार धोने के मुकाबले में लगे रहते हैं, और चक्कों पर लगे मिट्टी-कीचड़ को भी पानी की धार से हटाया जाता है। दरअसल देशभर में शायद ही कहीं लोगों पर जमीन के नीचे से पानी निकालने पर कोई रोक हो। हर मकान बनने के पहले ट्यूबवेल खुदवा लिए जाते हैं, और सबमर्सिबल पम्प लगाकर जरूरत से कई गुना, मनचाही मात्रा में पानी निकाला जाता है। इस पर न कोई रोक है, न ही शायद किसी भी जगह इस पर कोई टैक्स लगाया जाता है। दूसरी तरफ हिन्दुस्तान के जिन शहरों में पानी पर टैक्स लगाया गया है, वहां पर खपत भी घट गई है, और निजी सप्लायरों के बेहतर इंतजाम की वजह से पानी कुछ घंटे आने के बजाय चौबीस घंटे रहने लगा है। 

हम किसी निजीकरण की वकालत नहीं कर रहे, लेकिन पानी जैसी सार्वजनिक संपत्ति को हिन्दुस्तान की देश-प्रदेश की सरकारें, और म्युनिसिपल जिस लापरवाही से अंधाधुंध इस्तेमाल होने दे रही हैं, उसका सबसे बड़ा फायदा सबसे संपन्न तबका उठा रहा है, और उसकी सबसे बुरी मार सबसे विपन्न तबके पर पड़ रही है, जिसकी गर्मियों की रात पानी के टैंकर के इंतजाम में हराम होती है, और कई जगहों पर गरीबों के काम के घंटे भी बर्बाद होते हैं। संपन्न तबका अपनी दानवाकार ताकत से अपने हर घर के लिए अंधाधुंध गहरे ट्यूबवेल खुदवा लेता है, उनमें ताकतवर पम्प लगा लेता है, और फिर पानी की मनचाही बर्बादी करता है। घास के बड़े-बड़े लॉन सींचे जाते हैं, छतों पर गार्डन लगाए जाते हैं, और कार और फर्श धोने का जिक्र तो हम शुरू में कर ही चुके हैं। 

लेकिन हिन्दुस्तान में कानूनों पर अमल बहुत ढीलाढाला होने से हालत यह है कि अधिकतर कारखानों में नियमों के खिलाफ जाकर ट्यूबवेल से जमीन के नीचे से पानी निकाला जाता है, और उसका औद्योगिक इस्तेमाल किया जाता है। फिर देश भर में धान जैसी कुछ फसलों के समर्थन मूल्यों के चुनावी इस्तेमाल की वजह से अलग-अलग कई पार्टियां बहुत अधिक दाम पर खरीदी का वायदा करती हैं, और सत्ता में आने पर करती भी हैं। नतीजा यह हो रहा है कि मुफ्त की बिजली, या सौर ऊर्जा से चलने वाले पम्प सरकार से ही किसानों को मिल रहे हैं, वे धान जैसी प्यासी फसल पर तमाम भूजल को उलीच दे रहे हैं, और भूजल स्तर गिरते चल रहा है। पानी की अधिक जरूरत वाली फसलें पर्यावरण पर एक खतरा बनती चल रही हैं, और समर्थन मूल्य की राजनीति ऐसी हो गई है कि सरकारें किसान-तबके को जरा भी नाराज करना नहीं चाहती हैं। लेकिन इसका बुरा असर पानी पर पड़ रहा है, और उसकी कोई भरपाई जमीन के भीतर हो नहीं रही है। 

एक तरफ कहने के लिए कई, या अधिकतर प्रदेशों में शहरों में नए निर्माण पर अंडरग्राउंड वाटर-रीचार्जिंग की शर्त लगाई जाती है, लेकिन स्थानीय संस्थाओं और म्युनिसिपल के भ्रष्टाचार की वजह से उस पर कहीं ईमानदार अमल नहीं होता। नतीजा यह है कि कांक्रीटीकरण बढ़ते चल रहा है, खुली जगह को सरकारी निर्माण में बड़ी कमीशनखोरी की वजह से तरह-तरह से ढांका जा रहा है, और बारिश का पानी अधिकतर जगहों पर बाढ़ के हालात पैदा करके नदियों के रास्ते समंदर पहुंचाया जा रहा है। कुल मिलाकर अंधाधुंध खपत, और तकरीबन जीरो बचत से धरती पर इस्तेमाल के लायक पानी लगातार घटते चल रहा है, और इंसानों को बिजली और गहराई तक काम करने वाले पम्पों पर जितना भरोसा है, उतना ही भरोसा सरकारों की नालायकी पर भी है कि वे पानी के इस्तेमाल पर कड़ाई से न रोक लगाएंगी, न ही टैक्स लगाएंगी। नतीजा यह है कि हिन्दुस्तान जैसे देश में पानी की जो आखिरी बाल्टी रहेगी, वह भी कार धोने के काम आएगी। 

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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