आजकल
मणिपुर के जिन वीडियो ने दुनिया का दिल दहला दिया है, उनमें आदिवासी महिलाओं को नंगा करके उनका जुलूस निकालने और उससे परे कुछ आदिवासी महिलाओं से गैंगरेप की चर्चा है। जिस तरह वहां गैरआदिवासी हिन्दू-मैतेई समुदाय के दिखते सैकड़ों लोगों ने कुकी-आदिवासी-ईसाई महिलाओं के साथ यह सुलूक किया, कहा जाता है कि ऐसी तमाम हिंसा के दौरान मैतेई समुदाय की महिलाएं अपने पुरूषों का हौसला बढ़ा रही थीं। अब वीडियो बहुत धुंधले आ रहे हैं, इसलिए इस बात के कोई सुबूत हम यहां नहीं रख सकते, लेकिन भरोसेमंद रिपोर्टर ऐसी बात लिख रहे हैं। और यह बहुत अनहोनी भी नहीं है। अगर महिलाएं हिंसा का साथ न दें, तो बहुत सी महिलाएं हिंसा का शिकार होने से बच सकती हैं।
मणिपुर के कुकी समुदाय की 18 बरस की एक लडक़ी का अपहरण करके उसके साथ गैंगरेप किया गया, और उसने पुलिस में अपने बयान में लिखाया है कि उसे मैतेई महिलाओं के एक समूह ने, जिन्हें मदर्स ऑफ मणिपुर भी कहा जाता है, उसने पकड़ा, और अपने हथियारबंद मर्दों की टोली के हवाले कर दिया, इसके बाद उसके साथ गैंगरेप हुआ, इस लडक़ी को गंभीर हालत में पड़ोस के नागालैंड में अस्पताल में भर्ती किया गया था, और अब उसकी रिपोर्ट हुई है।
अभी एक दूसरे मामले में महिलाओं पर होने वाली हिंसा के अलावा महिलाओं द्वारा की जाने वाली हिंसा पर कुछ लिखने या बोलने वाला था, तो एक अलग नजरिया समझने के लिए मैंने सामाजिक मोर्चे पर समर्पित एक महिला वकील से फोन पर लंबी बात की थी। मैंने उनसे पूछा था कि आज महिलाएं कई किस्म की हिंसा में शामिल दिखती हैं, क्या इसकी एक वजह उन महिलाओं का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और अधिक आत्मविश्वासी हो जाना भी है? इस पर उनका कहना था कि महिला पर हिंसा में महिलाओं का शामिल होना बहुत नई बात नहीं है। जब दहेज हत्याएं अधिक होती थीं, तो परिवार में सास, जेठानी, देवरानी या ननद तो उसमें शामिल रहती ही थीं। अब कानून के अधिक कड़े होने से यह सिलसिला कम हुआ है, वरना नापसंद बहू को जलाकर मारना बहुत होता था।
उनकी इस बात से मुझे याद आया कि एक वक्त जब कानून की निगरानी इतनी नहीं थी, तब मां के पेट में लडक़ा है या लडक़ी, इसकी जांच आसान रहती थी, और इसके बाद पेट में लडक़ी होने से गर्भपात करवा दिया जाता था। ऐसे तमाम फैसलों में परिवार की महिला-मुखिया, सास या जेठानी, या ननद का हाथ तो रहता ही था, उनके दबाव में ऐसी जांच होती थी, और फिर बेटे की चाहत में गर्भपात करवाने के पीछे भी परिवार की दूसरी महिलाओं का हाथ रहता था। इस तरह महिला पर हिंसा में महिला बहुत पीछे नहीं रहती।
लोगों को याद होगा कि चकलाघर चलाने वाली महिलाएं ही रहती थीं, या अभी भी हैं, कॉलगर्ल एजेंसी या मसाज पार्लर के नाम से सेक्स सेंटर चलाने वालों में महिलाएं रहती हैं, गरीब आदिवासी इलाकों से लड़कियों की तस्करी करना और उन्हें महानगरों में बेच देना, इस काम में भी महिलाएं हमेशा ही भागीदार मिली हैं। चाहे ऐसी महिलाओं के पीछे कोई दूसरे मर्द क्यों न हों, लेकिन ऐसे बहुत से जुर्म में ये महिलाएं अपनी मर्जी से भी शामिल होती हैं।
अभी एक ताजा मिसाल रूस से आई है जहां यूक्रेन जा रहे रूसी सैनिकों की बीबियों ने उन्हें यह इजाजत देकर भेजा है कि वे यूक्रेनी लड़कियों और महिलाओं से बलात्कार कर सकते हैं, बस इतना ख्याल रखें कि कंडोम लगाकर ही रेप करें, ताकि कोई बीमारी लेकर घर न लौटें। और यह आरोप किसी यूक्रेनी प्रोपेगेंडा का हिस्सा नहीं है, यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक सीनियर महिला अधिकारी ने औपचारिक रूप से बताया है।
जो आज मणिपुर में हो रहा है, कुछ उसी किस्म की बात यूक्रेन में भी हो रही है कि दुश्मन से हिसाब चुकता करने के लिए उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाए, और वैसा ही अभी के ताजा वीडियो में दिख रहा है जिन्हें फैलने से सरकार रोक रही है, और पिछले ढाई महीने से मणिपुर में बंद चल रहे इंटरनेट की वजह से ऐसे बाकी मामले सामने नहीं आए हैं, लेकिन खुद वहां के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने कहा है कि ऐसी सैकड़ों घटनाएं हुई हैं। जब मुख्यमंत्री कह रहे हैं तो उसमें गलत होने की कोई वजह नहीं दिखती है, और यह कल्पना की जा सकती है कि अगर ऐसे सैकड़ों मामले हुए हैं तो उनके पीछे किसी न किसी तबके की हजारों महिलाओं की सहमति भी रही होगी।
हम ऐसे उकसावे और भडक़ावे से परे जब देश की प्रमुख महिला नेताओं के बयान देखते हैं, तो वे भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा से भरे हुए दिखते हैं। अभी कल से मणिपुर के मुकाबले पश्चिम बंगाल में भी एक-दो महिलाओं से वैसे ही सुलूक के कुछ धुंधले वीडियो सामने आ रहे हैं और उनके साथ भाजपा की महिला नेताओं के ये बयान भी हैं कि मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी मणिपुर में हिंसा का तो विरोध कर रही हैं, लेकिन खुद के बंगाल में इस पर कोई काबू नहीं कर रही हैं। एक-दो दिनों में बंगाल के ऐसे वीडियो की हकीकत भी स्थापित हो जाएगी, लेकिन एक महिला मुख्यमंत्री को अपने राज में महिलाओं से हो रहे ऐसे सुलूक के आरोपों पर भी जो संवेदनशीलता दिखानी थी वह अभी तक नहीं दिख रही है।
यह लिखते-लिखते जो नई खबरें दिख रही हैं, वे बता रही हैं कि जिस दिन के वीडियो मणिपुर के सामने आए हैं, उसी दिन वहां और लड़कियों से भी गैंगरेप हुआ, उनकी हत्या कर दी गई, लेकिन 80 दिन बाद भी उनकी लाशों की खबर नहीं है।
दुनिया में बहुत किस्म की जंग ऐसी रही हैं जिनमें कोई फौज सामने वाली फौज से हिसाब चुकता करने के लिए उनके नागरिकों के साथ भी बलात्कार करते आई है, ऐसा ही कुछ देशों और भारत के प्रदेशों में राजनीतिक कार्यकर्ता भी करते आए हैं, अलग-अलग धर्मों के लोग भी कई मौकों पर हिंसक हमलों के लिए ऐसे बलात्कार हथियार की तरह इस्तेमाल करते देखे गए हैं। कुल मिलाकर यह बात समझ आती है कि दुनिया में पर्यटन का उद्योग हो, पारिवारिक ढांचा हो, जंग हो या किसी जगह का सामाजिक संघर्ष हो, उसमें महिलाओं से बलात्कार को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है, और जब ऐसा किया जाता है तब बलात्कारी देशों या तबकों की महिलाएं तालियां बजाते हुए अपने मर्दों की हौसला अफजाई करती हैं। अब इन नतीजों से लोगों को महिलाओं के बारे में जो सोचना हो सोचें, हम किसी एक देश या तबके की महिलाओं के बारे में तुरंत कुछ कहना नहीं चाहते, लेकिन खुद महिलाओं को इस बारे में सोचना जरूर चाहिए।