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दशकों पुरानी ब्रेनवॉश की कहानियां अब अमल में..
02-Jul-2023 6:06 PM
दशकों पुरानी ब्रेनवॉश की कहानियां अब अमल में..

पिछले कुछ महीनों में सोशल मीडिया के एक प्लेटफॉर्म ट्विटर के बारे में लिखना कुछ अधिक हुआ है। इसकी वजहें बड़ी जाहिर हैं। कुछ महीने पहले इसका मालिकाना हक बदला, और एक सबसे सनकी अंदाज में काम करने वाले अमरीकी खरबपति कारोबारी एलन मस्क ने दुनिया की अपनी एक सबसे कामयाब इलेक्ट्रिक कार कंपनी, टेस्ला, को कुछ वक्त के लिए अपनी टेबिल से हटाकर पूरा वक्त ट्विटर को देना चालू किया, उसे खरीदने के पहले भी, और उसे खरीदने के बाद भी। मस्क का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अपना एक अलग पैमाना है जिसमें पिछले अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप सरीखे अलोकतांत्रिक, हिंसक, और नफरतजीवी लोगों की भी जगह है। वे अभिव्यक्ति की संपूर्ण स्वतंत्रता जैसे शब्द पर यकीन करते हैं, और उसे ही ट्विटर पर लागू करने की मुनादी उन्होंने की थी। इस प्लेटफॉर्म की चर्चा की एक दूसरी वजह है कि यह आज दुनिया में खबरों को सबसे पहले दिखाने वाला प्लेटफॉर्म हो गया है। और एक तरफ फेसबुक निजी बातों के लिए जाना जाता है, तो ट्विटर राजनीतिक और सामाजिक बातों के लिए, सरकारी फैसलों और घटनाओं के लिए सबसे लोकप्रिय है। इस बारे में लिखने की एक वजह और भी है कि एलन मस्क की यह मिल्कियत अब बड़ी रफ्तार से अपने नियमों में फेरबदल कर रही है, और कल तक वेरीफाइड अकाऊंट के नाम से जाने-माने या किसी ओहदे पर बैठे हुए लोगों को ऊंची जाति के दर्जे की तरह जो ब्ल्यूटिक मिलता था, वह भी अब सिर्फ भुगतान पर मिलने लगा है, और इसके लिए अमिताभ बच्चन जैसे लोगों को भी वहां गिड़गिड़ाते देखा गया है। 

एलन मस्क ने ब्ल्यूटिक पाकर इठलाने वाले लोगों का गुरूर पल भर में मिट्टी में मिला दिया, जब हर किसी को सैकड़ों रूपये महीने देने पर ही यह नीली कलगी मिलने लगी। अब एक मजदूर भी ब्ल्यूटिकधारी हो सकता है, और कल तक का सवर्ण-ब्ल्यूटिकधारी आज अपना यह गुरूर खो सकता है अगर वह भुगतान करने को तैयार न हो। सामाजिक प्रतिष्ठा का एक प्रतीक किस तरह एक कारोबार कुचलकर रख सकता है, यह ट्विटर ने दिखा दिया है। अब कल एलन मस्क ने यह भी बताया कि भुगतान करने वाले ब्ल्यूटिकधारी किस तरह एक दिन में दस हजार तक ट्वीट पढ़ सकेंगे, लेकिन भुगतान न करने वाले ब्ल्यूटिक वंचित लोग अधिकतम हजार ट्वीट देख सकेंगे। अभी कुछ महीने पहले तक जो प्लेटफॉर्म पूरी तरह मुफ्त था, उसने अपनी पहुंच और सहूलियतों को धीरे-धीरे करके बेचना शुरू किया, और अब ग्राहक बढ़ाने के लिए गैरग्राहकों की सहूलियतों में बहुत बुरी तरह छंटनी शुरू कर दी है। ऐसे बहुत से फेरबदल ट्विटर ने यह कहते हुए भी किए हैं कि ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से चलने वाले बहुत से ऐसे एप्लीकेशन और प्रोग्राम हैं जो कि ट्विटर से जानकारी निचोड़ते हैं, और फिर उसका कारोबारी इस्तेमाल करते हैं। यह बात ठीक वैसी ही है जैसी कि जमीनी जिंदगी में कोई व्यक्ति फुटपाथ पर अपनी दुकान लगाकर सामान बेच ले। सोशल मीडिया पर आज के कारोबारी अपनी दुकान लगाकर, या दूसरे लोगों की दुकानें समेटवाकर अपना धंधा चलाते हैं। 

सोशल मीडिया आज आबादी के एक मुखर और सक्रिय हिस्से की जिंदगी का एक हिस्सा बन चुका है, इसलिए इस बारे में चर्चा जरूरी है। लोगों को याद होगा कि एक वक्त जब हिन्दुस्तान में अंग्रेज चाय का बाजार खड़ा करना चाहते थे, तो सार्वजनिक जगहों पर चाय मुफ्त में पिलाई जाती थी, और फिर उसके बाद लोग उसके आदी होकर उसे खरीदते थे। अब सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म एक-एक करके इसी किस्म का काम कर रहे हैं। ट्विटर से परे एक दूसरे सबसे लोकप्रिय प्लेटफॉर्म फेसबुक का हाल यह है कि वहां पर हिन्दुस्तान के जो लोग साम्प्रदायिकता के खिलाफ लगातार लिखते हैं, उनकी यह शिकायत है कि उनकी पोस्ट उनके दोस्तों को भी नहीं दिख रही है, लेकिन जब वे ढूंढते हुए उनके पेज पर आते हैं, तो वह दिखती है। मतलब यह कि पोस्ट फेसबुक पर तो है, लेकिन फेसबुक उनके करीबी दोस्तों के सामने भी उस पोस्ट नहीं रख रहा है। सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म अपने कम्प्यूटरों से इस तरह की सारी फेरबदल कर सकते हैं, ऐसा सारा काबू लाद सकते हैं। अभी जब पर्यावरण के बारे में सबसे अधिक झूठ वाले वीडियो को लेकर जब पश्चिमी दुनिया में टिक-टॉक से शिकायत की गई, तो उसने कहा कि उसने ऐसे सैकड़ों अकाऊंट बंद कर दिए हैं, बड़ी संख्या में ऐसे वीडियो हटा दिए हैं, और आदतन ऐसा पोस्ट करने वाले लोगों के अकाऊंट की पहुंच सीमित कर दी है ताकि अधिक लोग उसे न पाएं। यह सिलसिला एक अलग किस्म का सामंतवाद और साम्राज्यवाद है। एक वक्त जिस तरह तमाम फैसले राजा करते थे, आज सोशल मीडिया के सारे फैसले तीन-चार कारोबारी करते हैं, और उनकी पसंद-नापसंद, उनके चाहे-अनचाहे इन प्लेटफॉर्म पर लोगों की पहुंच कम-ज्यादा होती है, कोई सामग्री उपेक्षित रह जाती है, और कोई अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच जाती है। यही हाल यूट्यूब का भी है जहां उसके बढ़ाए हुए कोई वीडियो आसमान पर पहुंच जाते हैं, और कोई वीडियो औंधेमुंह जमीन पर गिर जाते हैं। 

अब जब अभिव्यक्ति की तथाकथित स्वतंत्रता के ये सबसे बड़े सार्वजनिक मंच आज कुछ मालिकों के हाथ के औजार हैं, और ये मालिकों के समाजसेवी काम नहीं हैं बल्कि कारोबार है, तो यह जाहिर है कि इनमें किसी भी किस्म की आजादी पर गहरे कारोबारी खतरे हमेशा ही मंडराते रहेंगे, और अब वे बढ़-चढक़र दिख रहे हैं। अब तक लोगों को टीवी चैनलों के लिए हर महीने कई सौ रूपए देने पड़ते थे, जो कि आज भी जारी है, आज भी कुछ सौ रूपए हर महीने देकर लोग इंटरनेट डाटा खरीदते हैं, यूट्यूब, स्पॉटीफाई, और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म पर भुगतान करने वाले बिना विज्ञापनों के देख-सुन सकते हैं, मतलब यह कि वे अपने वक्त का बेहतर इस्तेमाल कर सकते हैं, और लोग इन तमाम प्लेटफॉर्म पर अतिरिक्त भुगतान करके अपनी बात अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा सकते हैं। तो यह सब समाचारों और विचारों के भुगतान वाले विस्तार की तकनीकें हैं जो कि ये प्लेटफॉर्म भी बेचते हैं, और बाजार में इन पर परजीवी की तरह काम करने वाली कई दूसरी कंपनियां भी बेचती हैं। मतलब यह कि अपनी आवाज अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए, अपनी सोच लोगों पर लादने के लिए, अपने-आपको अनचाहे इश्तहारों से परे रखने के लिए अब लोगों का पैसा काम आता है। ट्विटर तो फिर भी ऐसे तमाम औजार खुलकर बेच रहा है, लेकिन फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर दुनिया भर में मुकदमे चल रहे हैं, संसदीय सुनवाई चल रही हैं कि वह किस तरह कुछ चुनिंदा लोगों को बढ़ावा देता है, और चुनिंदा लोगों को पीछे धकेलता है। 

पहली नजर में सोशल मीडिया के ये औजार बड़े लोकतांत्रिक लगते थे, और बड़ी रफ्तार से ये पूंजीवाद का एक हथियार बनकर सामने आ रहे हैं जो कि समाचारों और विचारों के एकाधिकार से पैसे वाले ताकतवर लोगों के हाथ मजबूत करेगा, और बाकी लोगों को इन्हीं समाचारों और विचारों को पढऩे को मजबूर करेगा। इसके साथ-साथ एक बड़ा खतरा यह भी है कि ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से बन रहे नए औजार इन प्लेटफॉर्म की कारोबारी रणनीतियों के साथ मिलकर पूरी दुनिया को एक खास किस्म से सोचने पर मजबूर भी कर सकते हैं। बहुत पहले कुछ अपराधकथा लेखकों ने इंसानों को ब्रेनवॉश करने की कहानियां लिखी थीं, वे शायद पिछले कुछ बरसों से अमल में आ रही हैं, अभी वे एक आशंका की तरह समझ पड़ रही हैं, और जो आने वाले कल में अधिक से अधिक लोगों को किसी राजनीतिक, कारोबारी, या धर्मान्ध सोच की तरफ मोडऩे की साजिश बना चुकी हैं। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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