आजकल

जब कभी ऐसा लगे कि इससे अधिक दिल दहलाने वाली खबर कम होगी, तभी कुछ ऐसा आ जाता है कि उसके पहले कि हैवानियत कम लगने लगती है। पाकिस्तान की एक खबर आई कि वहां इस्लाम छोड़ चुके एक नास्तिक सामाजिक कार्यकर्ता हैरिस सुल्तान ने अपनी एक किताब में यह लिखा है कि किस तरह वहां लोग अपनी लड़कियों की कब्र पर ताले लगाकर रख रहे हैं कि उनके दफन बदन बलात्कार से बचाए जा सकें। द कर्स ऑफ गॉड, वाई आई लेफ्ट इस्लाम नाम की इस किताब के बारे में हैरिस ने अभी ट्विटर पर लिखा है- पाकिस्तान ने यौन कुंठाओं से ग्रस्त एक ऐसा समाज बनाया है जिसमें लोग अपनी बेटियों की कब्र पर ताले डाल रहे हैं ताकि उन्हें बलात्कार से बचाया जा सके। हैरिस ने लिखा है कि जब आप बलात्कार से बचाने के लिए बुर्के की बात करते हो, तो ऐसी सोच कब्र तक ले जाती है।
पहली नजर में यह खबर फर्जी लगी, और हिन्दुस्तान के कई बड़े अखबारों ने इसे छापा था, लेकिन कम से कम एक बड़े अंग्रेजी अखबार ने इसे अपनी वेबसाइट से बिना कुछ लिखे हटा दिया। लेकिन जिस पाकिस्तानी अखबार के हवाले से यह बात हिन्दुस्तानी अखबारों में आई है, डेली टाईम्स नाम के उस अखबार में ढूंढते हुए उसके एडिटोरियल कॉलम में 28 अप्रैल को इस बारे में लिखा हुआ मिला। पाकिस्तान के बारे में इस संपादकीय में लिखा गया है- अपने देश के पारिवारिक मूल्यों पर बड़ा गर्व करने वाले पाकिस्तान में हर दो घंटे में एक औरत से बलात्कार होता है। लेकिन दिल दहलाने वाली एक बात यह है कि महिलाओं की कब्र पर ताले डालने पड़ रहे हैं कि लाशों से बलात्कार न हों। पाकिस्तान में नेक्रोफिलिया (लाश से सेक्स) के मामले अंधाधुंध बढ़ रहे हैं, और ऐसे में यह आसानी से समझ आता है कि लोग अपने गुजरे हुए लोगों को इनसे बचाना चाहते हैं। इस यौन कुंठाग्रस्त समाज में महिला का अस्तित्व एक ऐसे खिलौने से अधिक नहीं है जिससे खेलते हुए लोग उसके हाथ-पैर मोड़ सकते हैं। कुछ ही दिन पहले एक हाईवे के किनारे 18 बरस की लडक़ी की जली हुई लाश मिली है जिसे कुल्हाड़े से काटा गया था। लेकिन ऐसे कितने ही मामले पाकिस्तान की सरकार का ध्यान खींचने के लिए काफी नहीं है। इस देश में कुछ बिना दांत-नाखून के कानून हैं, और कुछ नारों वाले पोस्टर हैं, और प्रेस कांफ्रेंस में किए जाने वाले दावे हैं, जो सब बेअसर हैं। पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग का कहना है कि 40 फीसदी से अधिक पाकिस्तानी महिलाएं जिंदगी में किसी न किसी तरह की हिंसा झेलती हैं।
अखबार ने, और एक प्रमुख पाकिस्तानी अखबार ने जब इस बारे में लिखा है तो इस खबर को खारिज करना ठीक नहीं है। हैरिस सुल्तान नाम के लेखक ने तो इस बारे में लिखा ही है, पाकिस्तानी अखबार ने इस पर संपादकीय ही लिखा है, इसलिए इसे पाकिस्तान या मुस्लिम विरोधी प्रचार मानना ठीक नहीं है। भारत की सबसे बड़ी समाचार एजेंसी बन गई एएनआई ने भी यह समाचार जारी किया है। कुछ और खबरें बताती हैं कि किस तरह कब्रों से निकाल-निकालकर लाशों से बलात्कार के कई मामले सामने आ रहे हैं। पाकिस्तान में 2011 में कब्रिस्तान के एक चौकीदार को गिरफ्तार किया गया था जब उसने मंजूर किया था कि उसने 48 महिलाओं की लाशों से बलात्कार किया है।
अब पाकिस्तान की बात छोडक़र बाकी दुनिया की बात भी करनी चाहिए क्योंकि देशों की संस्कृति तो अलग-अलग हो सकती है, लेकिन इंसानों की बुनियादी सोच कुछ कमी-बेसी के साथ मिलती-जुलती हो सकती है। जिन देशों में यौन कुंठाएं जितनी अधिक रहती हैं, वहां पर यौन अपराध उतने ही अधिक होते हैं। जहां पर लोगों के मिलने-जुलने और सेक्स-संबंध बनाने पर रोक नहीं होती है, वहां अपराध की जरूरत भी कम पड़ती है। दुनिया के बहुत से धर्म कई किस्म की नैतिकता सिखाते हैं, और हर धर्म में पाप, स्वर्ग, नर्क की धारणाएं तो हैं ही। लेकिन वेटिकन के तहत आने वाले चर्चों में बच्चों से बलात्कार का इतिहास पूरी दुनिया में बिखरा हुआ है। और धर्म भी कहीं पीछे नहीं हैं। यह इसलिए भी है कि जो-जो धर्म अपने लोगों पर ब्रम्हचारी रहने की शर्त थोपते हैं, उनके बदन अपनी जरूरत कहीं न कहीं से पूरी कर लेते हैं। ब्रम्हचर्य कागज पर तो लिखे जाने लायक शब्द है, लेकिन असल जिंदगी में इस पर अमल तकरीबन नामुमकिन रहता है।
पाकिस्तान या उस किस्म की दकियानूसी संस्कृति वाले देश महिलाओं को बुर्के में रखकर, या दूसरे धर्मों और संस्कृतियों के लोग उन्हें किसी दूसरे किस्म के पर्दे, घूंघट में रखकर यह मान लेते हैं कि मर्दों को उत्तेजना से बचाया जा सकेगा। लेकिन ऐसा होता कुछ नहीं है। अगर औरत के कपड़े ही मर्दों को उत्तेजना से बचाते, तो फिर कब्र के भीतर का महिला का बदन तो बाहर से दिखता नहीं है, कब्र खोदकर उससे बलात्कार की नौबत क्यों आती?
समाज में जब-जब लोगों की प्राकृतिक जरूरतों पर कानूनी या सामाजिक रोक लगाई जाती है, तब-तब कई किस्म के अपराध बढ़ते हैं। पाकिस्तान में अगर हर दो घंटे में एक महिला से बलात्कार के आंकड़े हैं, तो यह मानकर चलना चाहिए कि कई बलात्कार होने पर ही कोई एक बलात्कार रिपोर्ट होता होगा। जिस धर्म में अच्छे चाल-चलन और नेक काम पर जन्नत में हूरों का वायदा हो, और बुरे काम पर दोजख की आग में जलना बताया गया हो, वहां भी अगर लाशों से बलात्कार हो रहा है, तो उसका मतलब यही है कि मजहब किसी को बुरे काम से नहीं रोकता, दिखावे के लिए मजहब को जितना मान लिया जाए, वह इंसान के भीतर की हैवानियत को नहीं रोक पाता। यह भी हो सकता है कि धर्मों की नीयत ही ऐसी हैवानियत (सच तो इसे इंसानियत कहना ही होगा) पर रोक लगाने की नहीं होगी।
फिलहाल उन धर्मों के लोग राहत महसूस कर सकते हैं जो लाशों को जला देते हैं, क्योंकि उनके भीतर के यौन कुंठाग्रस्त लोग भी पंचतत्वों से तो बलात्कार कर नहीं सकते।
अगर इस्लाम छोड़े हुए, और नास्तिक बन चुके एक लेखक की किताब की ही बात होती, तो उसे इस धर्म को बदनाम करने की कोशिश माना जा सकता था, लेकिन जब वहां का एक प्रमुख अखबार इस पर संपादकीय लिख रहा है, तो इसे झूठी खबर मानना ठीक नहीं है। सभी धर्मों के लोग अपने-अपने भीतर के मुजरिमों पर अपने धर्म के असर को एक बार फिर आंक लें कि धर्म किस बुरे काम को रोक पाता है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)