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बाजार की साजिश ने इंसानों को बना दिया वफादार ग्राहक
31-Dec-2023 6:33 PM
बाजार की साजिश ने इंसानों को बना दिया वफादार ग्राहक

इन दिनों सार्वजनिक जगहों पर बहुत से लोग इत्र की दुकान की तरह महकते हुए दिखते हैं। नौजवानों में मामूली आर्थिक हैसियत के बहुत से लडक़े-लड़कियां भी कुछ न कुछ सुगंध लगाए दिखते हैं। पसीने और बदन की बदबू को दबाने के नाम पर बहुत सी कंपनियां अपने डियो (डियोडोरेंट) की ऐसी आक्रामक मार्केटिंग करती हैं, और अनगिनत फिल्मी सितारे, या खिलाड़ी ऐसे स्प्रे के बाद ही अपने आत्मविश्वास के जागने का दावा करते हैं। ऐसी मॉडलिंग और ब्रांड प्रमोशन के बाद यह जाहिर है कि लोग अपने बदन की स्वाभाविक गंध को बदबू मान लेते होंगे, और किसी स्प्रे के सहारे के बिना वे अपने आपको आत्मविश्वास की बैसाखी के बिना चलने वाले महसूस करते होंगे।

दरअसल बाजार लोगों में हीनभावना और बेचैनी भरकर अपना कारोबार करता है। फैशन और मेकअप का बहुत बड़ा कारोबार अमरीकी सितारों से लेकर अमरीकी छरहरी गुडिय़ा, बार्बी डॉल के बदन के आकार के असर से चलता है। अभी अधिक वक्त नहीं हुआ जब दुनिया के सिगरेट और शराब के सबसे बड़े ब्रांड चर्चित चेहरों के कंधों पर सवार होकर ग्राहकों को लुभाने निकलते थे। हिन्दुस्तान में भी सिगरेट का एक बड़ा ब्रांड देश भर के जोड़ों को एक मुकाबले में बुलाता था, जिनमें सबसे अच्छा जोड़ा दिखने वाले पति-पत्नी को सिगरेट की मॉडलिंग के लिए छांटा जाता था। इस तरह नए कानून बनने के पहले तक बाजार लगातार बुरी आदतों को बढ़ाने के लिए भी हर किस्म के हथियारों वाले हमले इस्तेमाल करता था। आज भी हिन्दुस्तान में सिगरेट और शराब के इश्तहारों पर रोक रहने पर भी, उन्हीं नामों के दूसरे सामान बनाकर, उसी ब्रांड से बाजार में बेचने की धोखाधड़ी धड़ल्ले से चलती है, और कारोबार के दबाव में रहने वाली सरकारें इसे अनदेखा भी करते रहती हैं।

बाजार की तकनीक कुछ-कुछ राजनीतिक दलों सरीखी रहती है जो कि लोगों के मन में किसी तरह की दहशत, किसी तरह की नफरत, किसी तरह की धर्मान्धता, कट्टरता भरते हैं, फिर किसी काल्पनिक दुश्मन की गढ़ी गई तस्वीर दिखाकर खतरे बताते हैं, और वोटरों को यह सोचने को मजबूर करते हैं कि फलां नेता या राजनीतिक दल को वोट दिए बिना हिफाजत नहीं है। 

बाजार ऐसा ही करता है। लोगों को उनके बदन के आकार से हीनभावना का शिकार बना देता है, उन्हें अपने रंग को लेकर इतना बेचैन कर देता है कि माइकल जैक्सन जैसे लोग दर्जनों बार की प्लास्टिक सर्जरी से अपना रंग बदलवाते रहे, नाक को धार लगवाते रहे, और बेचैनी में ही मर भी गए। हिन्दुस्तान में भी फेयरनेस क्रीम का कारोबार आसमान चीरकर आगे बढ़ते रॉकेट की तरह बढ़ते रहा, और वह पूरी तरह से हीनभावना पर जिंदा बाजार था, जिसे देश के सबसे चर्चित, शाहरूख खान सरीखे फिल्म अभिनेता बढ़ावा देते रहे। 

देश के सबसे बड़े फिल्मी सितारे, सबसे बड़े क्रिकेट खिलाड़ी जब गैरजरूरी चीजों को बेचकर खुद अरबपति होते हैं, और वैसे ब्रांड के मालिकों को खरबपति बनाते चलते हैं, तो उस हमले के सामने साधारण सोच के जिंदा रह पाने की गुंजाइश नहीं रहती। देश के तीन-तीन, चार-चार सबसे बड़े सितारे जब कोई गुटखा बेचते हैं, तो नौजवानों को कैसे उसके इस्तेमाल से बचाया जा सकता है? जब देश की कुछ सबसे सुंदर चर्चित लड़कियां और महिलाएं हर कुछ महीनों में बदले जा रहे फैशन का बाजार खड़ा करने के लिए न सिर्फ इश्तहारों में, बल्कि मीडिया की दूसरी मासूम दिखती, लेकिन खरीदी गई जगहों पर भी छाई रहती हैं, तो देश की लड़कियां और महिलाएं उनके बिना अपने आपको समाज और अपने दायरे की दौड़ से बाहर पाती हैं। 

बाजार के हमले का सामना कर पाना आसान नहीं है, क्योंकि इन हमलों और इसके हथियारों को, इनकी फौजी रणनीति को दुनिया के कुछ सबसे शातिर दिमाग तय करते हैं। ये दिमाग माताओं के दिमाग में यह भरने में कामयाब हो जाते हैं कि बच्चों को अगर जिराफ की तरह ऊंचा बनाना है, उनके बदन और दिमाग को तेजी से बढ़ाना है, तो उन्हें दूध में कौन सा पाउडर घोलकर पिलाना होगा। हालत यह है कि बच्चों के खानपान को लेकर उनकी माताओं के दिमाग में इतना कुछ भर दिया गया है कि वे बच्चों के डॉक्टरों का जीना हराम किए रहती हैं। 

लोगों के मन में बेचैनी भरकर, उन्हें हीनभावना में डुबाकर, उन्हें बेहतरी के सपने दिखाकर इतना कुछ किया जाता है कि लोग बाजार की रणनीति के हिसाब से ही सोचने लगते हैं, और इंसान के बजाय ग्राहक बनकर वे अपने को अधिक महफूज महसूस करते हैं। जो सामान न हेलमेट हैं, न बुलेटप्रूफ जैकेट हैं, वे भी लोगों को हिफाजत का अहसास कराने लगते हैं। कुछ खास ब्रांड के टूथपेस्ट लोगों को यह बतलाने लगते हैं कि उनकी सांस से निकली हुई सनसनीखेज ताजगी किस तरह आसपास से गुजरती लड़कियों और महिलाओं को भी उनकी तरफ खींच देगी। लोगों के सेहतमंद खाने-पीने की एक मामूली सी समझ किनारे धरी रह जाती है, और वे ढेर-ढेर शक्कर वाले कोल्ड ड्रिंक, या एनर्जी ड्रिंक के बिना, किसी प्रोटीन ड्रिंक के बिना अपने को अधूरा पाते हैं। 

जिस तरह अखबार और टीवी चैनल, या यूट्यूब और फेसबुक के रास्ते लोगों तक पहुंचने वाली सोच उन्हें बदल दे रही है, उसी तरह हमलावर मार्केटिंग से लोगों का खानपान, रहन-सहन, सब कुछ बदल जा रहा है। लोग हजारों बरस से सामाजिक प्राणी थे, लेकिन अब बाजार की रणनीति लोगों के अलग-अलग समाज बांट दे रही हैं, और लोग ग्राहकों की अलग-अलग किस्मों के समुदाय बनते जा रहे हैं। अधिकतर लोगों को यह समझ भी नहीं पड़ रहा है कि वे किस तरह बाजार के हाथों एक कठपुतली की तरह काम कर रहे हैं, और वे अपनी जरूरत से बिल्कुल ही परे जाकर ग्राहक बनते जा रहे हैं। लोगों के पास आज किसी मोबाइल या कार का एक मॉडल अपनी पूरी क्षमता से इस्तेमाल नहीं हो पाता है कि कुछ और क्षमताओं वाले नए मॉडल लोगों के भीतर बेचैनी भरने लगते हैं। आज लोगों को अपने दोस्तों और परिवार के दायरे में यह सोचना चाहिए कि क्या उन्हें सचमुच और अधिक की जरूरत है, और नए की जरूरत है, या मौजूदा काफी है? बाजार शायद लोगों को इतना तर्कसंगत रहने नहीं देगा, और लोग एक वफादार ग्राहक की तरह अपने ब्रांड से बंधे रह जाते हैं, काल्पनिक जरूरतों को जरूरी सच मानकर उन्हें हासिल करने में जुट जाते हैं। पता नहीं बाजार की यह साजिश इंसानों को गुलाम ग्राहकों से परे भी कुछ रहने देगी या नहीं। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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