संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : वक्त की किफायत बड़ी कीमती, लेकिन इस्तेमाल करने वालों के लिए ही..
03-May-2024 5:21 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : वक्त की किफायत बड़ी कीमती, लेकिन इस्तेमाल करने वालों के लिए ही..

अमरीका में शेयर मार्केट से जुड़े हुए कम्प्यूटर एल्गोरिदम बनाने वाले एक विशेषज्ञ ने अभी एक किताब लिखी है कि किस तरह वक्त बचाया जा सकता है। इस लेखक, निक सॉनेनबर्ग कई जगह भाषण देते हैं, और दुनिया के कामयाब कामगारों को उनके रोज के काम में वक्त बचाने की तरकीबें बताते हैं। दरअसल शेयर मार्केट का कारोबार ऐसा होता है कि किसी कंपनी के शेयरों में पूंजीनिवेश करते हुए अगर एक सेकेंड की भी देरी होती है, तो उसमें भाव ऊपर-नीचे हो सकता है, और नफा नुकसान में बदल सकता है। एक-एक पल की कीमत वहां समझ आती है। और ऐसे एक-एक पल न सिर्फ फैसले लेते वक्त महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि जिंदगी में हर जगह महत्वपूर्ण रहते हैं, हर दिन, और हर वक्त। लोग रोज के कामकाज में अगर कुछ वक्त बचा सकते हैं, तो उस वक्त का एक उत्पादक उपयोग हो सकता है। यह वक्त बचाना रोज के ऐसे छोटे-छोटे कामों में हो सकता है कि वहां पर वक्त की बर्बादी का किसी को ध्यान भी नहीं रहता। 

कामयाब लोगों में से कुछ लोग जो कि अपनी कल्पनाशीलता की वजह से आगे बढ़ते हैं, उनकी बात छोड़ दें, तो बाकी अधिकतर लोग वक्त को लेकर किफायत बरतने वाले भी रहते हैं। दिन में घंटे तो चौबीस ही रहते हैं, सोने के वक्त में तो कटौती हो नहीं सकती है, लेकिन काम और निजी जिंदगी की बाकी चीजों में रात-दिन का दोतिहाई वक्त गुजरता है, और इन्हीं 16 घंटों में खासी किफायत और खासी बचत की जा सकती है। हर किसी की जिंदगी में तरीके और कामकाज बहुत अलग-अलग रहते हैं, इसलिए कोई एक फॉर्मूला हर किसी पर फिट नहीं बैठ सकता, लेकिन यह चौकन्नापन हर किसी के काम आ सकता है कि एक-एक सेकेंड की बचत के कौन-कौन से तरीके इस्तेमाल किए जाएं। रोज कपड़ों को किस तरह रखा जाए, लैपटॉप बैग, और कपड़ों की जेब में कौन सा सामान कहां रखा जाए, ताकि ढूंढने में कुछ पल भी खराब न हो, किस तरह कागजों के गट्ठे को व्यवस्थित करके रखा जाए, ताकि अलग-अलग कागज तुरंत हाथ आ जाएं, चाबियां कैसे जगह पर रखें ताकि ढूंढने में समय बर्बाद न हो, बाजार से लाने वाले सामान किस तरह सामानों की लिस्ट किस तरह बनाई जाए ताकि दुबारा चक्कर न लगे, और कम से कम समय में खरीददारी पूरी हो जाए, ऐसी हजार किस्म की बातें हो सकती हैं जिनमें से कुछ दर्जन बातें तो हर किसी के काम आ सकती है। लोगों को रोज दवाईयां लेनी रहती हैं, और उन्हें एक साथ इस तरह व्यवस्थित नहीं रखा जाता कि वक्त बर्बाद किए बिना उन्हें निकाला जा सके। ऐसा ही रसोई के कामकाज में होता है, ऑफिस के कामकाज में होता है, और रोजाना आवाजाही के रास्तों को तय करने में भी होता है कि किस वक्त कौन सी सडक़ खाली रहती है। कुछ लोग ऑनलाईन कुछ कामों को घर पर करने के बजाय ऑफिस में आकर करें, तो हो सकता है कि घर से जल्दी निकलने पर सडक़ खाली मिले, और ऑफिस में आकर उसी काम को करते हुए सफर का वक्त बच जाए। आमतौर पर लोग अपने खुद के वक्त को इतना कीमती नहीं मानते कि वे अलग-अलग वक्त पर सडक़ों पर ट्रैफिक के दबाव को ध्यान में रखकर काम को पहले या बाद में कर लें, लेकिन जिंदगी में कामयाब होना है तो वक्त की जरा-जरा सी बर्बादी को रोकना जरूरी है। आज का वक्त कई तरह के डिजिटल उपकरणों का है। मोबाइल फोन, लैपटॉप, और दूसरी चीजों को चार्ज करने की जगह और वक्त से भी कई बार समय बचता है, और कभी-कभी तो किसी नाजुक मौके पर इनमें चार्जिंग न रहने से काम ही ठप्प हो जाता है। इसलिए वक्त और मेहनत, इन दोनों की किफायत का मिजाज ही बनाना पड़ता है। जो लोग चौकन्ने रहेंगे, वे लोग हर मामले में चौकन्ने रहेंगे, और जो लोग लापरवाह रहेंगे, वो हर काम में वक्त बर्बाद करते रहेंगे। 

जो पढ़ाई करने वाले लोग हैं, या कि किसी मुकाबले की तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए तो वक्त और अधिक मायने रखता है, और उन्हें अपने नोट्स, अपनी किताबें, इंटरनेट पर सर्च की गई जानकारी को अलग-अलग फाईल और फोल्डर बनाकर रखना आना चाहिए। जिन लोगों को बार-बार सफर पर जाना पड़ता है, और कई तरह के सामान रखने पड़ते हैं, वे अगर कोई छोटा सा सामान भूल जाएं, तो हो सकता है कि दूसरे शहर में रात-बिरात दवा की एक टेबलेट ढूंढते हुए पांच रूपए की दवा पर पांच सौ रूपए की टैक्सी का खर्च भी जुड़ जाए। हर किसी की जिंदगी में ऐसी अलग-अलग बातें रहती हैं, जिन पर ध्यान देने से, और अपने वक्त की कीमत समझने से लोग खुद भी सुधार कर सकते हैं, लेकिन ऐसा न हो पाए, तो उसके लिए हर शहर में कुछ जानकार लोग ऐसी क्लास भी ले सकते हैं, कि हर दिन कुछ वक्त कैसे बचाया जाए, और उसका बेहतर इस्तेमाल कैसे किया जाए। कहने-सुनने में यह बात कुछ हल्की और कम महत्वपूर्ण लग सकती है, लेकिन जब हम बचाए गए ऐसे पलों को पूरी जिंदगी के हर दिन के साथ जोडक़र देखेंगे, तो समझ पड़ेगा कि हम कितनी बड़ी बचत या कितनी बड़ी बर्बादी की बात कर रहे हैं। जो लोग किसी किताब को पढ़ते हुए बीच में छोडऩे पर बुकमार्कर नहीं लगाते हैं, वे दुबारा शुरू करने पर दो-चार पन्ने दुबारा पढऩे बैठ जाते हैं। दूसरी तरफ हमने ऐसे लोग भी देखे हैं जो बुकमार्कर पर ऊपर-नीचे होने वाला तीर का ऐसा निशान भी बनाकर रखते हैं कि किसी लाईन पर ले जाकर उसे रख दिया जाता है कि किताब बंद करते समय उसे कहां तक पढ़ा गया था। 

यह चौकन्नापन एकाएक नहीं आ सकता, और जिंदगी के किसी एक दायरे में अलग से नहीं आ सकता, इसके लिए लोगों को अपना स्वभाव ही सावधानी का ढालना पड़ता है, और लगातार ध्यान भी रखना पड़ता है कि कहां लापरवाही से समय बर्बाद हो रहा है। अगर किसी शहर में टाईम मैनेजमेंट सिखाने वाले कुछ अच्छे लोग हो सकते हैं, तो वे बहुत से लोगों को यह अहसास करा सकते हैं कि वे हर दिन किन कामों में कितना वक्त बचा सकते हैं। लेकिन यह किफायत उन्हीं लोगों के काम की है जो कि अपने बचे हुए वक्त को किसी तरह इस्तेमाल करते हैं। जो लोग रोजाना टीवी या मोबाइल फोन की स्क्रीन पर घंटों तक रील्स देख सकते हैं, वे वक्त बचाकर भी क्या कर लेंगे, बिना काम की कुछ और रील्स देख लेंगे। 

फिलहाल यह याद रखने की जरूरत है कि गया हुआ वक्त कभी लौटता नहीं, इसलिए आए हुए वक्त का अच्छे से अच्छा, और अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जाना चाहिए।  

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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