संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कोरोना और लॉकडाऊन से सबक जरूरी वरना विनाश..
12-Oct-2020 6:01 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कोरोना और लॉकडाऊन से सबक जरूरी वरना विनाश..

लॉकडाऊन ने पूरी दुनिया में लोगों की जिंदगी तहस-नहस कर दी है। जो बहुत संपन्न देश हैं वहां तो लोग फिर भी घर बैठे जी पा रहे हैं, लेकिन हिन्दुस्तान जैसे मिलीजुली अर्थव्यवस्था वाले देश भी बदहाली में पहुंच चुके हैं। दुनिया के अर्थशास्त्रियों का यह भी मानना है कि अपने देश को कोरोना-लॉकडाऊन की मार से बचाने के लिए किसी देश का संपन्न होना जरूरी नहीं है, बल्कि वहां के शासकों का संवेदनशील होना जरूरी है। लॉकडाऊन ने लोगों की जिंदगी को कैसे-कैसे बदला है यह देखने के लिए अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट जरूरी नहीं है, सुबह घर के बाहर बैठें तो एक-एक सामान बेचने वाले 10-10 फेरीवाले आवाज लगाते निकलते हैं जिनकी आवाज कभी सुनी नहीं थी। कुछ ठेलेवाले अपने बच्चों को साथ लेकर फल और सब्जी बेचते निकलते हैं, और इन इलाकों में कभी ऐसे ठेले घूमते नहीं थे। कार धोने के लिए कई बच्चे आकर घरों के दरवाजे खटखटाते हैं कि उन्हें काम पर रख लें।
 
लॉकडाऊन से शहरों की तस्वीर बदल गई है, अनगिनत लोगों के रोजगार खत्म हो गए हैं, और उनके घर पर कमाई न आने से दूसरे कई घरों के चूल्हे जलना कम हो गए हैं या बंद हो गए हैं। हैदराबाद की एक रिपोर्ट अभी आई है जो बताती है कि वहां करीब सवा लाख टैक्सियां चलती थीं, इनमें से करीब 5 हजार टैक्सियां एयरपोर्ट पर ही लगती थीं क्योंकि हैदराबाद एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है। अब लॉकडाऊन के बाद वहां करीब दो सौ टैक्सियां ही लग रही हैं क्योंकि न उड़ानें आ जा रहीं और न मुसाफिर। दूसरी गंभीर बात यह है कि हैदराबाद में आईटी इंडस्ट्री इतनी बड़ी थी कि उसमें रोजाना 30 हजार टैक्सियां किराए पर लगती थीं, लेकिन अब लोग घरों से काम कर रहे हैं और ये लोग भी एकदम से बेरोजगार हो गए। अब एक शहर में अगर टैक्सी के एक कारोबार में एक चौथाई से कम लोग ही काम पा रहे हैं, तो जाहिर है कि उनके भरोसे जो होटल-ढाबे चलते थे, चाय-नाश्ते की बिक्री होती थी, जो गैराज और मैकेनिक काम पाते थे, वे सबके सब भी प्रभावित हुए होंगे। बेरोजगारी और आर्थिक संकट पहाड़ से लुढक़े हुए एक चट्टान की तरह होते हैं जो नीचे आते-आते रफ्तार पकड़ते जाती है, और अधिक खतरनाक होती जाती है। हैदराबाद जैसा हाल हिन्दुस्तान के अलग-अलग बहुत से शहरों में है जहां कोई एक कारोबार पूरी तरह ठप्प हो गया, या काम घर से होने लगा, और बड़े पैमाने पर रोजगार छिन गए, कारोबार प्रभावित हो गए।
 
कोरोना जैसी महामारी के बारे में अभी कुछ अरसा पहले तक तो कुछ विज्ञान कथा लेखकों को छोडक़र किसी को ऐसा अंदाज नहीं था कि ऐसा भी एक दिन आ सकता है। लेकिन अब जब ऐसा एक दिन आ गया है, आधा बरस ऐसे ही गुजर चुका है, और लोगों को आशंका है कि अगला आधा बरस भी कोरोना के मेडिकल खतरे और साथ-साथ खड़े हुए आर्थिक खतरे से भरा हुआ रहेगा, तो देश चलाने वाले लोगों को यह सोचना होगा कि ऐसी कोई दूसरी बीमारी आएगी, दुबारा आर्थिक खतरा आएगा तो क्या किया जाएगा? आज दुनिया की अर्थव्यवस्था को कोरोना ने तहस-नहस कर दिया है। लेकिन इससे यह बात भी साबित हुई है कि दुनिया के देश-प्रदेश न तो इस बीमारी के लिए तैयार थे, और न ही ऐसी आर्थिक मंदी, तालाबंदी, और भुखमरी के लिए। इसलिए इससे निपटने के साथ-साथ देशों और प्रदेशों को यह भी चाहिए कि अपने पीछे के कमरे में जानकार विशेषज्ञों को बिठाकर ऐसी योजनाएं बनवाएं कि दुबारा ऐसी नौबत आने पर क्या किया जाएगा, कैसे रोजगार के खत्म होने पर कौन से नए रोजगार खड़े किए जा सकेंगे, और ऐसे रोजगार-कारोबार की शिनाख्त भी करनी होगी जो कि लॉकडाऊन को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। 

अभी हिन्दुस्तान का सुप्रीम कोर्ट भी ऐसे मामलों पर बहस देख रहा है कि लॉकडाऊन के दौर के बैंक कर्ज पर ब्याज पर ब्याज से कैसे बचा जा सकता है, कैसे सरकारी हुक्म की वजह से कारोबार बंद करने वाले लोगों को राहत दी जा सकती है। यह तो सुप्रीम कोर्ट है जो कि एक सामाजिक-आर्थिक सरोकार के तहत ऐसी सुनवाई कर रहा है और लगातार सरकार पर दबाव बना रहा है कि उसे जनता को राहत देनी चाहिए। लेकिन अब कोरोना की वजह से हर देश-प्रदेश की सरकार के पास कुछ तो तजुर्बा आ गया है, और कुछ योजनाशास्त्री अपने अंदाज को इसमें मिला सकते हैं कि आने वाली जिंदगी में कैसे खतरों के लिए कैसी तैयारी रखी जानी चाहिए। 

पूरी दुनिया में फैले हुए वायरस से ऐसी तबाही की किसी ने कल्पना नहीं की थी। लेकिन यह वायरस इंसानी जिस्म पर बुरा असर डालने वाला वायरस है। हम इसी जगह हर बरस कई बार इस बात को लिखते हैं कि दुनिया में कुछ आतंकी ताकतें या देशों के बीच की जंग ऐसी भी हो सकती है जिनमें कम्प्यूटर वायरसों का इस्तेमाल करके कुछ या अधिक देशों के तमाम कम्प्यूटरों को खत्म कर दिया जाए। अब तक कई देशों के पास इस किस्म की विनाशकारी ताकत हो चुकी होगी, और कई आतंकी संगठन भी ऐसी ताकत हासिल कर सकते हैं। आज छोटे पैमाने पर कुछ हैकर कुछ कंपनियों के कम्प्यूटरों को हैक करके उनसे फिरौती लेकर हटते हैं, कल को अगर अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन किसी देश के तमाम कम्प्यूटरों को तबाह करने की हालत में आ जाएंगे तो क्या होगा? हम पहले भी कई बार यह सुझा चुके हैं कि साइबर-हिफाजत बढ़ाने के अलावा ऐसे किसी दिन के लिए सरकारों को एक आपात योजना बनाकर भी रखनी चाहिए। एक कल्पना करें कि हिन्दुस्तान में सिर्फ दो सेक्टरों के सारे कम्प्यूटरों को कोई ठप्प कर दे, तो क्या होगा? सारी टेलीफोन कंपनियां कम्प्यूटरों पर ही चलती हैं, और देश की बैंकिंग, सारा एटीएम, क्रेडिट कार्ड, ऑनलाईन भुगतान, यह सब कुछ कम्प्यूटरों पर चलता है। इन दोनों की कमजोर नब्ज पकडक़र वहां घुसपैठ करके अगर कोई इनका सारा डाटा खत्म कर दे, इनका काम ठप्प कर दे, तो क्या होगा? हॉलीवुड की ऐसी कई फिल्में आ चुकी हैं जिनमें आतंकी संगठन पूरे-पूरे शहरों के ट्रैफिक सिग्नलों पर कब्जा कर लेते हैं, टेलीफोन कंपनियों पर कब्जा कर लेते हैं, बिजलीघरों को कम्प्यूटरों से ठप्प कर देते हैं। आज हालत यह है कि आतंकी संगठन किसी देश की सुरक्षा प्रणाली को ऐसे नकली संकेत भी भेज सकते हैं कि कोई दूसरा देश उन पर हमला कर रहा है। जब दुनिया में तीसरा विश्वयुद्ध छिड़वाना बहुत मुश्किल नहीं रह गया है, तब लोगों को गंभीरता से सोचना चाहिए कि क्या कम्प्यूटरों का कोई कोरोना आए, तो दुनिया उसके साथ जी सकेगी? आज मेडिकल कोरोना ने लोगों को जितना बेरोजगार किया है, उतने का उतना बेरोजगार एक कम्प्यूटर-कोरोना कर सकता है। आज के कोरोना के चलते अगर कम्प्यूटर-कोरोना के खतरों का अंदाज लगाकर दुनिया अपने आपको उसके लायक तैयार नहीं करेगी, तो यह सरकारों की गैरजिम्मेदारी होगी।

आने वाली दुनिया मेडिकल और कम्प्यूटर दोनों किस्म के खतरों से घिरी रहना तय है, और जैसा कि जिंदगी की किसी भी दायरे में लागू होता है, बचाव ही अकेला इलाज रहेगा। एक बार अगर कम्प्यूटरों को तबाह कर दिया गया तो देशों की अर्थव्यवस्था उससे पूरी तरह शायद कभी नहीं उबर पाएंगी। आज दुनिया में जुर्म का सबसे बड़ा जरिया कम्प्यूटर और ऑनलाईन ही होना है, शारीरिक अपराध अब बीते वक्त की बात हो जाएंगे। दूसरी तरफ अगर हम यह मानकर चलते हैं कि कम्प्यूटरों के भीतर खुद को नष्ट कर देने वाली कोई बात कभी विकसित नहीं हो पाएगी, तो वह भी अदूरदर्शिता होगी। जैसा कि कई फिल्मों में रोबो-कॉप जैसे किरदार आते हैं जिनमें मशीनों को बनाया तो जाता है इंसानों की सेवा करने के लिए, लेकिन किसी वजह से वे मशीनें बागी हो जाती हैं, और भारी तबाही करती हैं। आज दुनिया के कम्प्यूटरों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जोड़ा जा रहा है, यह इंटेलीजेंस आगे जाकर कभी भी बेकाबू नहीं होगा, कभी अपने फैसले खुद नहीं लेने लगेगा, ऐसा तय तो है नहीं। 

इसलिए कोरोना से मेडिकल और आर्थिक इन दोनों तरह के असर देखने के बाद अब दुनिया को साइबर-जुर्म और साइबर-हादसों के बारे में भी सोचना चाहिए, और उसे भी कोरोना जैसी प्राथमिकता देकर बचाव की योजना बनानी चाहिए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  

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