बेमेतरा

बच्चों को अध्यापन के साथ-साथ संस्कार की भी शिक्षा दें
26-Jun-2024 3:20 PM
बच्चों को अध्यापन के साथ-साथ संस्कार की भी शिक्षा दें

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

बेमेतरा, 26 जून। नई शिक्षा नीति 2020 के तहत एफएलएन पर आधारित प्रशिक्षण का समापन सेजेस कन्या बेमेतरा जोन क्रमांक एक में हुआ। जिसमें 16 संकुलों के प्राथमिक विभाग के आधे शिक्षकों ने भाग लिया। प्रशिक्षण की शुरुआत डीआरजी धनीराम बंजारे के द्वारा नई शिक्षा नीति में ई जादुई पिटारा  पर विशेष रूप से चर्चा किया गया एवं एफएलएन बुनियादी साक्षरता एवं संख्यात्मक ज्ञान को सभी प्रशिक्षणार्थियों से अवगत कराया गया कि नई शिक्षा नीति के तहत बुनियादी ज्ञान कक्षा पहली से तीसरी के बच्चों में खेल-खेल एवं गतिविधियों के माध्यम से कैसे लाया जाए।

डीआरजी प्रीतम चंद्राकर के द्वारा भाषा शिक्षण के चारों मॉडल मौखिक गणित वर्णों का पहचान पठन कौशल एवं लिखित कौशल एवं नवा जतन के सात बिंदु स्वयं से सीखना, गली मित्र, विषय मित्र, पियार लर्निंग पर विशेष चर्चा किया गया।

डीआरजी प्रीतम चंद्राकर द्वारा बताया गया कि कैसे बच्चों में बुनियादी  कौशल लाने के लिए एक शिक्षक को सजग होकर बच्चों में 4 प्लस 1 प्लस 1 से बुनियादी साक्षरता प्राप्त कर सकते हैं। डीआरजी अब्दुल इमरान खान के द्वारा पुस्तकालय एवं बहुभाषी शिक्षण पर चर्चा कर बहुभाषी शिक्षा पद्धति के आधारभूत आयामों को स्पष्ट तौर पर समझाया गया एवं सभी प्रशिक्षणार्थियों में अपने कार्यों के प्रति हौंसला एवं निष्ठा से कार्य करने का निर्देश दिया गया।

एफएलएन प्रशिक्षण के द्वितीय चरण के समापन पर डाइट बेमेतरा से वरिष्ठ व्याख्याता थलज कुमार साहू एवं राजकुमार वर्मा के द्वारा मार्गदर्शन के रूप में सभी प्रशिक्षनार्थियो गति वीडियो के माध्यम से उमंग एवं ऊर्जा का संचार करते हुए एनईपी 2020 का मुख्य लक्ष्य एफएलएन को 2027 से पूर्व ही प्राप्त करने की रणनीतियों पर प्रकाश डाला गया।

डाइट व्याख्याता थलज कुमार साहू ने इस प्रशिक्षण की आवश्यकता क्यों है एफ़ एन एल क्या है इस पर विस्तृत चर्चा की। साथ ही प्रशिक्षण में सीखें सभी नवाचार को बच्चों तक शत प्रतिशत लागू करने के लिए निर्देशित किया। उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमें बच्चों को पढऩा है, उन्हें समझना है, की वह किस वातावरण से आ रहा है बच्चों में जन्मजात क्षमताएं होती है जन्मजात क्षमता होने के साथ-साथ एक उत्साह जनक परिवेश का होना अत्यंत आवश्यक है। बच्चे अपनी समझ और अनुभव को स्वाभाविक रूप से अपने हाव-भाव के साथ घर की भाषा में सहजता से सीखते हैं। बच्चे जब पहली बार विद्यालय आते हैं तो अपने साथ वह एक समृद्ध अनुभव लेकर के आते हैं। इस तरह नए अनुभव उनके पुराने अनुभव को और अधिक समृद्ध करते हैं उनकी समझ को बढ़ाते हैं जिस भाषा में बच्चे सबसे अच्छी तरह समझते हैं अर्थात बच्चों की मातृभाषा का अधिक से अधिक हमें उपयोग करना चाहिए।

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