आजकल
दुनिया में खुशी की सालाना रिपोर्ट का यह दसवां साल है। हर बरस यह रिपोर्ट बनती है कि किस देश के लोग सबसे अधिक खुश हैं। पिछले कई बरसों से लगातार यह देखने में आता है कि योरप के स्कैंडेनेवियाई कहे जाने वाले देश सबसे अधिक खुशहाल देश हैं। और यह बात महज संपन्नता से जुड़ी हुई नहीं है, यह संपन्नता के साथ-साथ वहां के लोगों की मानसिक स्थिति और सामाजिक वातावरण जैसे कई पैमानों को भी बताती है। लिस्ट में सबसे ऊपर योरप के देशों का ही बोलबाला है, फिनलैंड सबसे ऊपर है, फिर डेनमार्क, आइसलैंड, स्विटजरलैंड, और नीदरलैंड्स हैं। लेकिन इस लिस्ट में भारत का हाल देखें तो वह दुनिया के देशों में 139वें नंबर पर है। 2018 में वह एक 133वें नंबर पर था, अब वह 139वें पर आ गया है। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि 2013 में जब यूपीए सरकार थी तब लोगों की खुशी के पैमाने पर भारत दुनिया में 111वें नंबर पर था, और अब वह फिसलकर 139वें पर पहुंचा है, मतलब यह कि लोग अब खुश नहीं हैं।
दूसरी तरफ यह भी देखने की जरूरत है कि हिन्दुस्तान किन देशों के आसपास खड़ा हुआ है। हिन्दुस्तान के आसपास की लिस्ट देखें तो उसके तुरंत बाद के देशों में तमाम देश अफ्रीका के हैं, यमन और अफगानिस्तान जैसे बदहाल देश हैं जो कि भुखमरी की कगार पर हैं। हिन्दुस्तान के पड़ोस के सारे ही देश हिन्दुस्तान से अधिक खुशहाल जिंदगी जीने वाले पाए गए हैं, कम से कम वहां की आबादी हिन्दुस्तान के मुकाबले अधिक खुश है। इस लिस्ट में पाकिस्तान 103 नंबर पर है, नेपाल उसके भी ऊपर 85 नंबर पर है, चीन 82 नंबर पर है, और हिन्दुस्तान के दूसरे पड़ोसी बांग्लादेश 99 नंबर पर है, इराक 109 नंबर पर है, इरान 116 नंबर पर है, म्यांमार 123 नंबर पर है, श्रीलंका 126 पर है। इतने तमाम देश के लोग अपने आपको हिन्दुस्तानियों के मुकाबले अधिक खुश पाते और बताते हैं।
इस रिपोर्ट को दुनिया में लोगों की खुशी और खुशहाली को आंकने का एक सबसे अच्छा औजार माना जा रहा है, इसमें किसी देश का दर्जा तय करते हुए प्रति व्यक्ति, सामाजिक सुरक्षा, औसत उम्र, जिंदगी में पसंद की आजादी, उदारता, और भ्रष्टाचार के प्रति नजरिया जैसी बातों पर आंकलन किया जाता है। इस लिस्ट में भारत की भारी गिरावट की कई वजहें पाई गई हैं। यह देश दुनिया के दवा-उद्योग की राजधानी माना जाता है, यहां दुनिया भर से चिकित्सा-पर्यटन पर लोग आते हैं, लेकिन यह अपने नागरिकों को इलाज मुहैया कराने में, औसत उम्र के मामले में दुनिया में 104 नंबर पर है। इस लिस्ट में सबसे आखिरी 146वें नंबर पर अफगानिस्तान हैं, और बदहाली की इस लिस्ट में हिन्दुस्तान उससे बस 10 सीढ़ी बेहतर है।
अब इन आंकड़ों का क्या मतलब निकाला जाए? 2013 में जब यूपीए सरकार थी, उस वक्त अगर हिन्दुस्तान दुनिया के 110 देशों से बदहाल था, तो आज वह 136 देशों से अधिक बुरी हालत में है। लोग खुश क्यों नहीं है? लोगों को तो आज एक उग्र राष्ट्रवाद मिला हुआ है, जिसकी वजह से एक साकार या निराकार दुश्मन को देखते हुए उनका कलेजा अधिक ठंडा होना चाहिए था, लेकिन वैसा दिख नहीं रहा है। आज हिन्दुस्तानियों की जिंदगी में धर्म जिस तरह घोल-घोलकर पिला दिया गया है, उससे भी लोगों को भारी खुश रहना चाहिए था, लेकिन वे वैसे खुश दिख नहीं रहे हैं। यह भी एक अजीब बात है कि योरप के जो देश इस लिस्ट में सबसे अधिक खुश दिख रहे हैं, उन देशों में धर्म का महत्व घटते चले जा रहा है, चर्च के भूखों मरने की नौबत आ गई है, और लोग धर्म से परे की जिंदगी में बहुत खुश हैं। तो क्या हिन्दुस्तान में आज का धार्मिक उन्माद लोगों की जिंदगी की खुशियों को बढ़ाने के बजाय घटा रहा है?
इस रिपोर्ट को भी और बहुत सी अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट की तरह खारिज किया जा सकता है कि यह भारत को बदनाम करने की साजिश है। लेकिन क्या यह हकीकत नहीं है कि धार्मिक उन्माद में लगे हुए आबादी के एक छोटे हिस्से की वजह से बाकी तमाम आबादी एक नाजायज तनाव और खतरे से गुजर रही है, और उसकी जिंदगी की खुशियां कम हो गई हैं? यह बात समझने के लिए तो किसी अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट की जरूरत भी नहीं है, और भारतीय समाज के अमन-पसंद लोगों की बहुतायत से बात करके ही इसको समझा जा सकता है। एक तरफ धार्मिक उन्माद, धर्मान्धता, नफरत, और उसके साथ-साथ बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई। कोई हैरानी नहीं है कि हिन्दुस्तान में पहले से अधिक लोगों में खुशी पहले से कम है।
आज जब धर्म के नाम पर इस देश को बांटा जा रहा है, लोगों को नफरत सिखाई जा रही है, और आबादी का एक छोटा लेकिन नारेबाज हिस्सा लगातार भडक़ाऊ और हिंसक बातें पोस्ट कर रहा है, तब यह उन्माद किसी में खुशी नहीं भर सकता। किसी तबके, धर्म या जाति से नफरत का मतलब खुशी नहीं हो सकता, उन्माद और हिंसा का मतलब खुशी नहीं हो सकता। हाल के बरसों में हिन्दुस्तान ने अभूतपूर्व धर्मोन्माद देखा है, असाधारण साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण देखा है, ऐसा उग्र राष्ट्रवाद हिन्दुस्तान ने कभी देखा नहीं था, लेकिन ऐसा लगता है कि इन सबने मिलकर भी इस देश को खुशी नहीं दिला पाई है। यह देश तमाम सामाजिक और आर्थिक पैमानों पर, लोकतांत्रिक और मानवाधिकार के पैमानों पर दुनिया के कम से कम सौ देशों के काफी नीचे है।