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बचाव में ही समझदारी है..
03-Apr-2022 3:55 PM
बचाव में ही समझदारी है..

चिकित्सा वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि लोग बाहर से जो जूते-चप्पल पहनकर आते हैं, अगर उन्हें पहनकर वे घर भर में घूमते रहते हैं तो घर में बीमारियां आने का खतरा अधिक रहता है। बाहर सडक़ें और सार्वजनिक जगहें आमतौर पर साफ नहीं रहती हैं, और जूते-चप्पल के साथ कई किस्म की गंदगी आती है, जो कि घरों में किसी और तरह से नहीं आ सकती है। इसलिए कई किस्म के कीटाणु और रोगाणु घर में लेकर आने का काम जूते-चप्पलों से होता है। इसलिए न सिर्फ हिन्दुस्तान के परंपरागत रीति-रिवाजों में, बल्कि जापान, चीन, और रूस जैसे बहुत से देशों में भी जूते-चप्पल बाहर उतारने का रिवाज है, फिर लोग चाहें तो घरों के भीतर के लिए अलग रखी हुई चप्पलें पहन लें। हिन्दुस्तान में कई दुकानों और दफ्तरों में भी ऐसा लागू किया जाता है, बाहर नोटिस लगा दिया जाता है कि जूते-चप्पल बाहर उतारें, लेकिन जूते या सैंडल खोलते हुए उनमें लगने वाले हाथ धोने का इंतजाम शायद ही कहीं रहता है, मंदिरों तक में नहीं रहता है, और लोग ऐसे गंदे हाथों से ही भीतर जाते हैं, कहीं फूल चढ़ाते हैं, कहीं प्रसाद पाते हैं, या किसी के घर-दुकान में सामने परोसे गए नाश्ते को उन्हीं हाथों से खाते हैं। कुल मिलाकर मतलब यह है कि अगर जूते-चप्पल बाहर उतरवाने हों, तो उन्हें उतारने-पहनने के बाद हाथ धोने का कोई इंतजाम होना चाहिए, वरना वह न उतारने से भी अधिक नुकसानदेह हो सकता है।

भारत में भी अब शहरीकरण और संपन्नता बढऩे के साथ-साथ लोग घर के कालीन पर भी लोगों का जूतों सहित आना उनके गर्मजोशी से स्वागत का एक हिस्सा मानते हैं। फिर चाहे ऐसा कालीन महीनों तक साफ न होता हो,  और जूतों की लाई गंदगी उनमें समाई रहे। लोगों को धार्मिक भावना से नहीं, सेहत की भावना से यह ध्यान रखना चाहिए क्योंकि अभी तो पिछले दो बरस से कोरोना की मार चल रही है, और आने वाले बरसों में हो सकता है कि गंदगी से फैलने वाली बीमारियां फैलने लगें, और उस दिन जूते-चप्पल की आदत बड़ा नुकसान कर जाए।

इस छोटी सी बात पर लिखने की जरूरत इसलिए लग रही है कि आज जिंदगी में बीमारियों का खतरा और इलाज का खर्च जिस रफ्तार से बढ़ते चल रहे हैं उन्हें देखते हुए बचाव ही अधिकतर लोगों के लिए अकेला इलाज हो सकता है। लोगों को रोज की जिंदगी में साफ-सफाई, सेहतमंद बने रहने के आसान प्राकृतिक तरीके, खानपान की सावधानी, तनावमुक्त जिंदगी जैसी कई बातों का ध्यान रखना चाहिए ताकि वे कम बीमार पड़ें, और इलाज की नौबत न आए। आज भी हम अपने आसपास के लोगों को देखें तो किसी भी उम्र के लोगों को जितने किस्म की महंगी बीमारियां हो रही हैं, उनका खर्च कितना होता होगा, उनके काम का कितना हर्ज होता होगा, इसका अंदाज बाकी लोगों को हिला सकता है।

दुनिया के दो विकसित देशों में एक बात एक सरीखी है। चीन और जापान इन दोनों में लोग सुबह नहीं नहाते, वे काम से लौटने के बाद घर पहुंचकर नहाते हैं। इसका तर्क बड़ा आसान है कि दिन भर घर के बाहर रहकर काम करके लोग तरह-तरह के प्रदूषण के साथ लौटते हैं, और संक्रमण के खतरे के साथ भी। इसके बाद इसी तरह खाकर सो जाने से वह प्रदूषण और संक्रमण बदन पर करीब चौबीस घंटे ही बने रहता है। इससे बेहतर यह है कि बाहर से घर लौटने पर नहाया जाए, और फिर अगले दिन घर के बाहर जाने पर प्रदूषण और संक्रमण का सामना शुरू होने तक तो कम से कम साफ-सुथरे रहें। एक चिकित्सा विशेषज्ञ का यह भी कहना है कि लोग बाहर से जब आते हैं, तो वे हवा में तैरते पराग कणों को भी अपने साथ ले आते हैं, और उनके बदन और कपड़ों से वे पराग कण घर के सोफे या बिस्तर पर भी चले जाते हैं, और परिवार के उन दूसरे लोगों को भी परेशान करते हैं जिन्हें उनसे एलर्जी है। इसलिए बाहर से आकर नहाने और कपड़े बदल लेने में ही सेहत के लिए एक बड़ी समझदारी है।

अब रोज के कामकाज को अगर देखें, तो अधिकतर लोगों को हर दिन घंटे भर का वक्त मिल सकता है, योग-ध्यान, प्राणायाम, कसरत, या सैर करने के लिए। गरीब से लेकर अमीर तक अलग-अलग लोगों के लिए इनकी संभावनाएं अलग-अलग हो सकती हैं लेकिन सबसे गरीब लोग भी किसी खुली जगह पर या आसपास के बगीचे में घंटे भर पैदल चल सकते हैं, और इससे सेहतमंद बने रहने में मदद मिलती है जिससे कि कई किस्म की बीमारियों का खतरा कुछ कम होता है। गरीब की जिंदगी में खतरा कम होना ही सबसे बड़ी बचत है क्योंकि आज जिस रफ्तार से बीमारियां बढ़ रही हैं, उसी रफ्तार से इलाज और दवाएं भी बढ़ रही हैं, और लोग कर्ज लेकर भी इलाज तो कराते ही हैं। लोगों को यह भी सोचना चाहिए कि जब वे सेहतमंद बने रहने के लिए, बीमारियों से बचने के लिए रोजाना इस तरह के बचाव की जीवनशैली अपनाते हैं, तो वे बिना कहे हुए अपनी अगली पीढ़ी के लिए एक मिसाल भी बन जाते हैं, और अपने बच्चों को वे विरासत में सावधानी दे जाते हैं। फिटनेस के लिए महंगे जिम जरूरी नहीं हैं, मामूली चप्पल-जूतों के साथ भी किसी खुली जगह पर, किसी सडक़ के किनारे सुबह-शाम की सैर की जा सकती है, या खाली हाथों भी कसरत की जा सकती है जिसके लिए कोई मशीनें नहीं लगतीं।

बचाव के ही सिलसिले में एक बात और लिखने को रह जाती है कि लोगों को सिगरेट-तम्बाकू, शराब जैसी आदतों से बचना चाहिए क्योंकि इनमें न सिर्फ इस्तेमाल के पहले खरीदने का भारी खर्च होता है, बल्कि इस्तेमाल के बाद कई किस्म की बीमारियों की गारंटी रहती है, जिनसे इलाज हो पाना हर बार मुमकिन भी नहीं होता। परिवार में एक किसी को कैंसर हो जाए तो मामूली कमाई वाला तो पूरा परिवार ही तबाह हो जाता है। इसलिए दोनों किस्म के खर्च बचाने के लिए, सेहत ठीक रखने के लिए, और परिवार को मुसीबत में न डालने के लिए लोगों को इन बुरी आदतों से पूरी तरह बचना चाहिए। यह बात इसलिए भी जरूरी है कि बुरी आदतों वालों के बच्चे भी इन आदतों का खतरा रखते हैं, और किसी भी समझदार या जिम्मेदार को अपनी अगली पीढिय़ों को ऐसी विरासत नहीं देनी चाहिए।

आज जब चारों तरफ बहुत से जलते-सुलगते मुद्दे हैं, तब भी जिंदगी के इन बुनियादी मुद्दों पर लिखने की जरूरत इसलिए है कि हर वक्त आसपास अनगिनत लोगों को बचाने की जरूरत तो बनी ही रहती है। ये बातें सावधानी की फेहरिस्त की कुछ बातें ही हैं, लोग बाकी बातें खुद सोच सकते हैं, या किसी से पूछ सकते हैं। एक बार जब मिजाज सावधानी का हो जाता है, तो दिल-दिमाग जिंदगी के बाकी पहलुओं को भी तौलने-परखने लगते हैं। तो चलिये कुछ बातों से तो सावधानी शुरू करें, जूते-चप्पल घर के बाहर उतारें, और मुमकिन हो तो काम खत्म करके लौटने पर नहा लें।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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