संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जुर्म की इस भयानक कहानी से सभी परिवारों को तनाव घटाना सीखने की जरूरत..
21-Oct-2023 7:20 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  जुर्म की इस भयानक कहानी से सभी परिवारों को तनाव घटाना सीखने की जरूरत..

पारिवारिक तनाव किस हद तक जानलेवा हो सकते हैं इसका एक मामला किसी अपराध कथा या क्राइम थ्रिलर फिल्म की तरह सामने आया है। छत्तीसगढ़ से लगे हुए महाराष्ट्र के विदर्भ में एक बहू ने ससुराल वालों से परेशान होकर ऐसा जहर ढूंढा जिसका असर एकदम से न दिखे, और फिर उसने पति सहित ससुराल के कुछ लोगों को रोजाना वह धीमा जहर देना शुरू किया, और पहले तो लोगों की तबियत बिगड़ी और फिर अस्पताल में उन्होंने कुछ दिनों के फासले में ही एक-एक करके दम तोड़ दिया। बच्चे-बड़े मिलाकर तीन हफ्तों में ऐसे पांच लोग गुजर गए, और अब पुलिस ने उस बहू को गिरफ्तार कर लिया है जो कि कृषि विज्ञान की डिग्री वाली है, और ससुराल के तानों से परेशान होकर उसने यह काम किया था। यह हाल उस बहू के प्रेम विवाह के बाद हुआ था जिससे निराश उसके पिता ने कुछ महीने पहले ही खुदकुशी कर ली थी। मौतों वाले इस परिवार की एक और बहू भी कत्ल के इस सिलसिले में साथ थी। 

परिवारों के भीतर हिंसा बहुत अनोखी बात भी नहीं है, लेकिन घर की बहू इस दर्जे की हिंसा करे, इतने सारे लोग मारे जाएं, ऐसी खबर रोज-रोज नहीं आती है। अब पहली नजर में जो जानकारी है उसके मुताबिक ससुराल वाले ताना देते थे, और बहू ने हिसाब चुकता कर दिया। ससुराल वालों का ताना देना कोई बहुत अनोखी बात नहीं है, और आमतौर पर हिन्दुस्तान में प्रताडि़त बहू ही खुदकुशी करती है, वह ऐसी हिंसा नहीं करती। लेकिन अब वक्त बदला हुआ दिख रहा है, वह खुदकुशी करने या ससुराल छोडक़र जाने के बजाय इस तरह की और इस दर्जे की हिंसा करे, यह बात चौंकाती है, लेकिन इस सामाजिक हकीकत को समझने की जरूरत है। अब लोग इस बात को अपना हक मानकर नहीं चल सकते कि दूसरे परिवार से आई, या लाई गई बहू के साथ वे जैसा चाहे वैसा बर्ताव कर सकते हैं। एक तो कानून की तरफ से नवविवाहिता को कुछ खास किस्म की हिफाजत हासिल है, और शादी कुछ बरस बाद तक अगर उसके साथ कोई हादसा होता है तो उसकी अलग से जांच होती है। दूसरी बात यह कि अब मोबाइल और इंटरनेट की मेहरबानी से परिवार की बहू भी बाकी दुनिया के संपर्क में रह सकती है, और वह भी अच्छे या बुरे कई तरह विकल्पों पर काम कर सकती हैं। महिला की शिक्षा, आर्थिक-आत्मनिर्भरता, उसका कामकाजी होना, सोशल मीडिया पर दुनिया के लोगों से उसके संपर्क होना, इन सबसे भी उसके विकल्प बढ़ते हैं, और वह कल तक की छुई-मुई, घूंघट वाली घरेलू महिला नहीं रह गई है, और यही वजह है कि कई ऐसे जुर्म सामने आ रहे हैं जिनमें वह पति के साथ मिलकर किसी परेशान कर रहे प्रेमी का कत्ल करती है, या प्रेमी के साथ मिलकर पति को मार डालती है, या भाड़े के कातिल ढूंढकर इनमें से किसी एक का कत्ल करवा देती है। अब भारतीय नारी को अबला समझकर तबला की तरह पीटना ठीक नहीं है, क्योंकि अब वह हिसाब चुकता भी कर सकती है। कल तक उसे गिनती नहीं आती थी, लेकिन अब वह किसी कत्ल की सुपारी देने का हिसाब भी जानती है। ऐसी ही ताकत से लैस महाराष्ट्र की इस बहू ने धीमे जहर का इंतजाम किया, और एक-एक करके पांच लोगों को मार डाला। 

इससे एक बात यह भी समझ आती है कि परिवार के भीतर तनाव ठीक बात नहीं है। अगर लोगों का सुख-चैन से साथ नहीं निभता, तो उन्हें अपने अलग-अलग घर बना लेने चाहिए। महाराष्ट्र में अलग घर बनाना आम बात है, पता नहीं इस मामले में तनाव इतना बढऩे तक भी परिवार क्यों इस बारे में नहीं सोच पाया। आज के वक्त किसी को भी न पारिवारिक संबंधों में, न प्रेम या यारी-दोस्ती में तनाव इस हद तक बढऩे देना चाहिए। अब हिन्दुस्तान में भाड़े के हत्यारे इतने सस्ते में मिलने लगे हैं, और लोगों को यह भरोसा रहता है कि वे पकड़ाएंगे नहीं, इसलिए ऐसे जुर्म आए दिन हो रहे हैं। इनकी खबरों के बाद भी जुर्म करने वालों को डर नहीं लगता, और खतरा उठाने वाले को बचना नहीं सूझता। और यह तो बात परिवार के भीतर इस असाधारण दर्जे की हिंसा की है, लेकिन इससे परे छोटे-छोटे तनाव किस तरह किसी परिवार के सुख-चैन को खत्म करते हैं, और बड़े होते बच्चों के मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं, उसके बारे में भी सोचना चाहिए। मामले जब तक पुलिस या अदालत तक नहीं जाते, खबरों में नहीं आते, तब तक उनकी चर्चा नहीं होती। लेकिन हमारा मानना है कि कत्ल या खुदकुशी तक पहुंचे हर मामले की तुलना में कम से कम हजार मामले पारिवारिक और मानसिक तनाव के रहते हैं, और उन्हें किसी हिंसा तक पहुंचने के पहले सुलझा लेने में ही समझदारी है। कोई भी एक हिंसा परिवार के कई लोगों को कई बरस, या पूरी उम्र की कैद दिला सकती है, और ऐसी नौबत से बचना चाहिए। 

दुनिया के जिन पश्चिमी देशों को तथाकथित भारतीय संस्कृति के प्रशंसक खराब मानते हैं, वहां पर बच्चे जवान होने के बाद शादी के पहले भी मां-बाप से अलग रहने लगते हैं, और ससुराल के हाथों प्रताडि़त जैसी नौबत शायद वहां आती ही नहीं है। हिन्दुस्तान में बहू की शिकायत पर ससुराल के कई-कई लोगों की एक साथ गिरफ्तारी की खबर भी हर कुछ दिनों में आती है, लेकिन ससुराल के लोग हैं कि वे सुधरने का नाम नहीं लेते। अब देश के हर तनाव में तो परामर्शदाता हासिल नहीं हो सकते, लेकिन पारिवारिक तनाव घटाने की मामूली समझबूझ की बातें तो समाज के अलग-अलग मंचों पर हो ही सकती है। यह बात याद रखने की जरूरत है कि धर्म और जाति के आधार पर बने संगठन अमूमन दकियानूसी रहते हैं, और वहां पर पाखंडियों का राज रहता है, इसलिए धर्म और जाति के संगठन कभी बदलते हुए वक्त के मुताबिक बदलाव नहीं सुझा सकते। इसके लिए धर्म और जाति से परे के साधारण मंच अधिक कारगर हो सकते हैं जो कि ससुराल और बहू को बेहतर तरीके से साथ, या अलग-अलग रहने के तरीके सुझा सकें, या एक परिवार के भीतर भी दूसरे रिश्तों को भी साथ रहने का बेहतर रास्ता बता सकें। 

यह भी याद रखने की जरूरत है कि पारिवारिक तनाव से घिरे हुए लोगों की जिंदगी की उत्पादकता घट जाती है। वे बेहतर पढ़ नहीं पाते, और न ही बेहतर काम कर पाते। उनके दिल-दिमाग का एक हिस्सा तमाम वक्त परिवार के गैरजरूरी तनाव में उलझा रहता है। इसलिए पारिवारिक तनाव को घटाने और खत्म करने का हर मुमकिन रास्ता तलाशना चाहिए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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