संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : तीन ताजा खबरों से निकली एक नसीहत
02-Nov-2023 4:47 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  तीन ताजा खबरों से  निकली एक नसीहत

हिन्दुस्तान में दो दिनों से इस बात को लेकर हंगामा मचा हुआ है कि सत्तारूढ़ भाजपा-एनडीए से परे के बहुत से नेताओं के आईफोन पर एप्पल कंपनी की तरफ से यह चेतावनी आई है कि कोई स्टेट-एजेंसी उनका फोन हैक करने की कोशिश कर रही है। पश्चिम की अंग्रेजी जुबान में ऐसी स्टेट-एजेंसी का मतलब कोई सरकारी एजेंसी होता है। इस पर सोशल मीडिया पर जब इन नेताओं ने बवाल खड़ा किया, तो भारत सरकार ने बिना देर किए इस मामले की जांच करवाने की बात कही। इतनी तेजी से जांच की बात उस वक्त नहीं आई थी जब दो बरस पहले पेगासस नाम के इजराइली फौजी-खुफिया सॉफ्टवेयर से हैकिंग के आरोप सामने आए थे। इस बार सरकार के पास शायद छुपाने को कुछ नहीं है इसलिए उसने जांच की बात कही है, और एप्पल कंपनी को नोटिस जारी किया है, जबकि पिछली बार सुप्रीम कोर्ट तक मामला जाने पर भी मोदी सरकार ने इस पर भी कुछ कहने से इंकार कर दिया था कि उसने पेगासस खरीदा है या नहीं। वह जांच अभी चल ही रही है, और सुप्रीम कोर्ट की बनाई गई विशेषज्ञ कमेटी पेगासस-हैकिंग के आरोंपों की जांच कर रही है। इस बीच अब एप्पल के फोन पर ऐसी घुसपैठ की कोशिश की चेतावनी आई है, तो आरोप फिर केन्द्र सरकार पर लग रहे हैं। लेकिन इस मामले को पूरी तरह से समझने के लिए यह जिक्र जरूरी है कि एप्पल ने बताया है कि उसके कम्प्यूटरों से जाने वाली ऐसी चेतावनियों में कुछ झूठी चेतावनियां भी हो सकती हैं, और कंपनी ने यह भी कहा है कि सरकार की तरफ से घुसपैठ करने वाले हैकर्स को कंपनी सपोर्ट करती है। दुनिया की सरकारों के पास अपने-अपने देश के कानून के मुताबिक घुसपैठ के अधिकार रहते हैं, और शायद एप्पल ने वैसे ही अधिकारों के तहत सरकारी एजेंसियों का साथ देने की बात कही है। कंपनी ने यह भी साफ किया है कि ऐसी चेतावनी उसके कम्प्यूटरों से क्यों जारी हुई है, वह इस बारे में भी कुछ बताना नहीं चाहती क्योंकि इससे हैकर्स को मदद मिल सकती है। यह भी दिलचस्प है कि अभी एप्पल की तरफ से 150 देशों में लोगों को ऐसी चेतावनी जारी हुई है, और जाहिर है कि इन डेढ़ सौ देशों में वहां की सरकारी एजेंसियों ने रातों-रात तो ऐसा काम करना शुरू नहीं किया होगा। 

अब हम इस मामले की और तह तक जाना नहीं चाहते, क्योंकि यह जांच की बात है, और भारत सरकार ने इसकी पूरी जांच की घोषणा कर दी है। लेकिन इसी के साथ एक दूसरे मामले को जोडक़र देखने की जरूरत है। लोकसभा सदस्य महुआ मोइत्रा पर पिछले कुछ दिनों से ये आरोप खबरों में हैं कि उन्होंने अडानी के खिलाफ जो दर्जनों सवाल पूछे थे, उसकी जानकारी उन्हें अडानी के एक प्रतिद्वंद्वी कारोबारी दर्शन हीरानंदानी से भी मिलती थी, जिन्हें वे अपना निजी मित्र बता रही हैं। ऐसे में इस विवाद में और पेट्रोल डालने के लिए महुआ मोइत्रा के एक पिछले प्रेमी वकील की सीबीआई को की गई यह शिकायत भी है कि महुआ ने दर्शन हीरानंदानी से तरह-तरह के खर्चीले उपहार लेकर, उनके एहसान लेकर ये सवाल पूछे थे। अब निराश या टूटे दिल वाले पिछले प्रेमी से ऐसी बातें आ सकती थीं, लेकिन जब दर्शन हीरानंदानी ने भी यह हलफनामा दिया कि महुआ मोइत्रा ने उनसे खर्चीले तोहफे वसूले, दिल्ली के सरकारी बंगले में उनसे काम करवाया, उन पर और कई किस्म के बोझ भी डाले, और इसके एवज में उन्होंने सांसद का अपना ई-मेल खाता दर्शन हीरानंदानी के हवाले कर दिया था कि वे वहां से सीधे भी सवाल लोकसभा सचिवालय भेज सकते थे। यह अपने आपमें एक बड़ा दुराचरण लगता है, और अब लोकसभा की इथिक्स कमेटी इसकी जांच कर रही है। चूंकि महुआ मोइत्रा प्रधानमंत्री और अडानी दोनों के खिलाफ असाधारण दर्जे की हमलावर थीं, इसलिए जाहिर है कि सरकार के सभी संबंधित विभाग इस जांच में लगे होंगे कि महुआ मोइत्रा ने क्या-क्या गलत काम किए हैं। और ऐसे ही निकली हुई एक बात कल केन्द्र की सत्ता की तरफ से मीडिया को बताई गई है कि हीरानंदानी के दफ्तर से, दुबई से महुआ मोइत्रा के संसदीय अकाऊंट को 47 बार इस्तेमाल किया गया था। कोई सांसद किसी दोस्त के दफ्तर को कभी एक-दो बार इस तरह इस्तेमाल कर ले, वह अलग बात होगी, लेकिन अगर 47 बार वहां से लोगों ने संसदीय अकाऊंट खोला था, और उस पर सवाल डाले थे, तो यह महुआ मोइत्रा के इस कारोबारी से बड़े असाधारण संबंधों को बताने वाली बात है। और जब कोई सांसद देश के सबसे ताकतवर लोगों से आर-पार की लड़ाई मोल लेते हैं, तो फिर उन्हें इतना सावधान भी रहना चाहिए कि उनका अपना चाल-चलन संसदीय और सार्वजनिक नैतिकता के पैमानों पर सही हो। 

इन दो अलग-अलग घटनाओं को जोडक़र देखने पर हमें यही समझ आताा है कि अब टेक्नालॉजी की निगरानी का ऐसा बुरा वक्त आ गया है कि लोगों की जिंदगी में कुछ भी निजी नहीं रह गया। न उनके फोन, न कम्प्यूटर, और न ही उनके ईमेल जैसे खाते। यह नौबत बढ़ती ही चली जानी है, दो दिन पहले की ही खबर है कि किस तरह हिन्दुस्तान के 81 करोड़ लोगों की आधार कार्ड से जुड़ी जानकारियां इंटरनेट पर अपराधियों के बीच बिक्री के लिए रखी गई है, और उसका मोलभाव चल रहा है। इसे दुनिया की एक बड़ी साइबर सुरक्षा कंपनी ने सामने रखा है, और उसका कहना है कि ये जानकारियां आईसीएमआर नामक भारत सरकार के संगठन के कम्प्यूटरों से चुराई गई लगती है। लोगों को याद रहना चाहिए कि कोरोना की वैक्सीन लगाने की जानकारियां शायद इसी संस्था के पास रहती थी, या आईसीएमआर की पहुंच वहां तक रहती थी। इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च कोरोना को लेकर तमाम किस्म के विश्लेषण कर रहा था, और कोरोना-रणनीति भी तय कर रहा था। अब वहां से अगर 81 करोड़ लोगों की जानकारियां बाजार में बिकने को हैं, तो यह एक बहुत ही खतरनाक नौबत है। कुल मिलाकर हकीकत यह है कि लोगों के निजी फोन हों, या किसी तरह के भी ईमेल अकाऊंट हों, या सरकार के आंकड़ों का डाटाबेस हो, इनमें से कुछ भी महफूज नहीं है। दूसरी बात यह कि आज दुनिया में ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल जितना हो चुका है, उससे ऐसे किसी भी डाटाबेस से जनता की सेहत और उसकी बाकी जानकारियों को पल भर में निकाला जा सकता है, उसका विश्लेषण किया जा सकता है। ऐसे में सरकारों को गैरजरूरी जानकारी न मांगना चाहिए, न रखना चाहिए क्योंकि किसी भी तरह से जानकारी की हिफाजत करना आसान नहीं रहता। और लोगों को अपने निजी उपकरणों से, निजी ऑनलाईन अकाऊंट से आपत्तिजनक बातें हटा देनी चाहिए, और अगर कोई गलत काम किया है तो उसकी जानकारी भी हटा देनी चाहिए। हैकरों के हाथों ब्लैकमेल होने से बेहतर है कि अपना चाल-चलन ही सुधार लें, और अपने हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर भी अपने कुकर्मों से मुक्त रखें।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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