संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पाकिस्तान में फौज और आतंकियों के मुकाबले के खतरे भारत को भी..
04-Nov-2023 4:14 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पाकिस्तान में फौज और आतंकियों के मुकाबले के खतरे भारत को भी..

फोटो : सोशल मीडिया

पाकिस्तान के एक एयरफोर्स हवाई अड्डे पर आत्मघाती आतंकी हमलावर हथियार लिए हुए घुस गए हैं, दोनों तरफ से भारी फायरिंग हो रही है, एयरबेस के भीतर आग भी लग गई है, और वहां के तहरीक-ए-जिहाद नाम के संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। पाकिस्तानी सेना ने इस पर बयान दिया है कि सैनिकों की तुरंत जवाबी कार्रवाई से हमला नाकाम हो गया है, तीन आतंकी घुसने के पहले ही मार दिए गए, और तीन को सैनिकों ने घेर लिया है। सेना ने माना है कि हमले के दौरान वहां खड़े तीन लड़ाकू विमानों को नुकसान पहुंचा है। आतंकियों का दावा है कि उन्होंने एयरबेस पर मौजूद एक टैंक को भी नष्ट कर दिया है। खबर याद दिलाती है कि कुछ अरसा पहले इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों ने भी इस एयरबेस पर हमला किया था, और एक और हमले में 14 पाकिस्तानी सैनिक भी मारे गए थे। ये घटनाएं अलग-अलग तो हैं, लेकिन इनके बीच मजबूत रिश्ता यह है कि ये सब पाकिस्तान में कमजोर होते लोकतंत्र का सुबूत हैं, और वहां आतंकियों की ताकत और पहुंच भी इससे पता लगती है। 

इस पर हमारे लिखने की कोई वजह नहीं बनती अगर पाकिस्तान की लोकतांत्रिक अस्थिरता, वहां की फौज की राजनीतिक दखल और हसरत, और पाकिस्तान के एक परमाणु हथियार संपन्न देश होने की सच्चाई नहीं होती। इन तीनों के साथ-साथ वहां ऐसे मजहबी दहशतगर्द फतवे देने वाले संगठन हावी हैं जिनका निशाना भारत की तरफ बने रहता है। ऐसे में एक कमजोर फौजी हिफाजत, या राजनीतिक हसरत वाली फौज जाने कब भारत के खिलाफ किसी मुहिम का फैसला कर ले, और उस वक्त कमअक्ल हाथों में अगर परमाणु हथियार रहें तो क्या हाल होगा? कहने के लिए हर देश परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के तरीकों को मुश्किल बनाकर रखते हैं ताकि प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के स्तर पर फैसला लिए बिना ऐसा न हो सके। लेकिन सच तो यह है कि पाकिस्तान के बारे में ऐसी चर्चा रही है कि उसके वैज्ञानिकों ने दूसरे देशों को परमाणु तकनीक बेची है। दूसरी तरफ पाकिस्तान के फौजी अफसर परले दर्जे के भ्रष्ट भी सुनाई पड़ते हैं। फिर पाकिस्तान की पीठ पर चीन का हाथ है, और पाकिस्तान अमरीकी दबाव में भी है। पड़ोस के अफगानिस्तान के तालिबान अपने बहुत ही हमलावर धार्मिक उन्माद के साथ पाकिस्तान में असर रखते हैं। ऐसी मिलीजुली बहुत सारी चीजें हैं जो कि पाकिस्तान को एक बहुत खतरनाक जगह बनाती हैं। यह भी समझने की जरूरत है कि किसी भी लोकतंत्र के पड़ोस में अगर ऐसी अस्थिर और बेकाबू फौजी और आतंकी हुकूमतें चलती हैं, तो फिर अपने आपमें सुरक्षित लोकतंत्र भी चैन से नहीं सो सकते। अगर हम भारत के लगाए गए आरोपों की बात करें, तो जाने कब से ये आरोप चले आ रहे हैं कि पाकिस्तानी फौज की खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत में आतंकी हमले करवाते रहती है। हम इसकी हकीकत नहीं जानते, लेकिन ऐसे आरोप कभी ठंडे नहीं पड़े हैं। अब सवाल यह उठता है कि भारत और पाकिस्तान के बर्बाद हो चुके रिश्तों को देखते हुए अगर सरहद के एक तरफ लोकतंत्र पूरी तरह से नाकाम दिख रहा है, फौज और आतंकियों में खूनी खींचतान चल रही है, तो फिर इनमें से कोई भी कब तक परमाणु हथियारों तक पहुंच सकेंगे, और कब उसका बेदिमाग इस्तेमाल कर पाएंगे, इसका अंदाज लगा पाना हमारे लिए मुमकिन नहीं है।

ऐसे में हिफाजत सिर्फ एक बात से हो सकती है कि भारत अपने आसपास सभी देशों को मजबूत लोकतंत्र बने रहने में मदद करे। भारत का ही एक और पड़ोसी, चीन, जिससे भारत की लगातार तनातनी चल रही है, वह एक-एक करके भारत के इर्द-गिर्द के देशों को कर्जदार बनाकर, साहूकार की तरह उन देशों की हुकूमत को गिरवी रख रहा है। ऐसे में भारत के सामने विदेश नीति की एक बड़ी चुनौती यह भी है कि वह अपने पड़ोस के, और आसपास के मालदीव सरीखे देशों को अपने खिलाफ न होने दे क्योंकि जहां भारत एक शून्य छोड़ेगा, वहां चीन समुद्री तूफान की रफ्तार से घुस जाएगा। भारत को पाकिस्तान की आंतरिक बर्बादी पर खुश नहीं होना चाहिए। भारत के बहुत से ऐसे लोग हैं जो कि एक दुश्मन माने जा रहे देश की महंगाई से, वहां की आंतरिक हिंसा से, वहां की राजनीतिक अस्थिरता से अपना सुख मानने लगते हैं। ऐसी सोच हिन्दुस्तान के लिए ही भारी पड़ सकती है क्योंकि सरहद पर किसी जंग में पाकिस्तान कमजोर पड़ सकता है, लेकिन आतंकी हमले करवाने के लिए बहुत बड़ी फौजी तैयारियां नहीं लगतीं, और पाकिस्तान का ट्रैक रिकॉर्ड शायद यह रहा है कि वहां के फौजी अफसर अपनी मर्जी से भी भारत के खिलाफ कई किस्म के काम करते रहे हैं। 

अब सवाल यह उठता है कि बोलचाल के भी रिश्ते न रह जाने पर भारत किस तरह पाकिस्तान को एक मजबूत लोकतंत्र बनने में मदद कर सकता है? इसके लिए भारत को अपने तमाम पड़ोसियों से बातचीत के रिश्ते रखने होंगे, और वहां पर लोकतंत्र के लिए हमदर्दी रखनी होगी। फौजों में मुकाबला हो सकता है, लेकिन वह दोनों देशों के लिए बहुत ही महंगा पड़ता है। दूसरी तरफ जो पड़ोसी देश एक-दूसरे के साथ मतभेदों के साथ भी जीना सीख लेते हैं, उनके फौजी खर्च भी घटते हैं, और कारोबार के फायदे भी होते हैं। भारत और पाकिस्तान इस संभावना को भूलकर बरसों से एक तनातनी जी रहे हैं जो कि और अधिक खतरनाक होने की आशंका भी रखती है। भारत के लोगों को यह समझना चाहिए कि एक मजबूत लोकतंत्र की तरह पाकिस्तान भारत के भले की भी बात होगी, उससे भारत का फौजी खर्च भी घटेगा, बर्फीली पहाडिय़ों पर जमकर शहीद हो जाने वाली जिंदगियां भी बचेंगी, और सरहद के दोनों तरफ सबसे गरीब लोगों का पेट काटकर हथियार खरीदना भी कम होगा। इन सबके लिए पाकिस्तान में लोकतंत्र का मजबूत होना जरूरी है, और भारत को इसमें गंभीर दिलचस्पी लेनी चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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